यीशु परमेश्वर हैं या परमेश्वर के पुत्र?

परिचय

पिछले सतरह सौ वर्षों से, कौन्सटेन्टाइन के समय से ही, परम्परागत मण्डलियों ने हमें यही शिक्षा दी है कि यीशु परमेश्वर हैं।

क्या आरम्भिक मण्डली का विश्वास यही था?

क्या बायबल धर्मशास्त्र हमें यही शिक्षा देती है?

आइये, हम धर्मशास्त्र में इन प्रश्नों के उत्तर ढुंढें।

परमेश्वर द्वारा की गयी घोषणा

जब यीशुने बप्तिस्मा देनेवाले यूहन्नाके द्वारा बप्तिस्मा लिया, तब परमेश्वर का आत्मा कबूतर की भांति उसके उपर उतरा और स्वर्ग से ऐसी वाणी आई, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं”(मत्ती ३:16,17)। परमेश्वर ने यीशु का परीचय स्पष्ट शब्दों में दिया। वह परमेश्वर के पुत्र थे। परमेस्वर के द्वारा दी गयी यह उपाधि नये नियम की अवधी भर उपयोग में रही। यीशु का परमेश्वर के रूपमें कोई उल्लेख नहीं मिलता।

यीशु तुरंत मरुभूमी में चले गये और शैतान ने तीन बार इन शब्दों के द्वारा उनके परीचय के विषयमें प्रश्न किया, “यदि आप परमेश्वर का पुत्र हैं ..?” शैतान ऐसा भी प्रश्न कर सकता था, “यदि आप परमेश्वर हैं”, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। दुष्ट आत्मा भी परमेश्वर के पुत्र के रूपमें यीशु का परीचय जानते थे (मत्ती ८:२९, मरकुस ३:११ देखें) ।

पतरस की स्वीकारोक्ति

एक समय ऐसा आया जब यीशु चाहते थे कि उनके चेले उनका परीचय जानें। उन्होने उनके सामने एक प्रश्न रखा, “तुम क्या कहते हो, मैं कौन हूं?” पतरस ने इन शब्दों में उत्तर दिया, “आप मसीह हैं, जिवीत परमेश्वर के पुत्र।”

पतरस के उत्तर पर यीशु की प्रतिक्रिया कैसी थी? उन्होंने इसे बिना शर्त, पूर्ण समर्थन दिया। उन्होंने पतरस से कहा, यह तो परमेश्वर के द्वारा दिया गया प्रकाश था। “मेरे पिता ने जो स्वर्ग में है, यह बात तुझ पर प्रगट की है”

पतरस ने इस बात को एकदम ठीक समझा! “आप परमेश्वर हैं” पतरस ने ऐसा नहीं कहा। यदि पारम्परिक शिक्षा ठीक है तो हम ऐसे ही उत्तर की आशा कर सकते थे। लेकिन पतरस ने कहा, “आप जीवित परमेश्वर के पुत्र हैं।”

परमेश्वर द्वारा की गई सिधी घोषणा और पतरस का प्रकाश, जिसे यीशुने पूर्ण समर्थन किया, हमें यह बताने के लिये पर्याप्त है कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, परमेश्वर नहीं। जैसा कि हम देखेंगे, पूरे नये नियम के मुख्य लेखक हमें यही बात बताते हैं।

तीन स्पष्ट बयान

बाइबल धर्मशास्त्र के तीन खण्ड यीशु के परीचय के सम्बन्ध में स्पष्ट बयान देते हैं। उनका क्या कहना है? (सन्दर्भ पदों को क्लीक करें और सम्पूर्ण भाग को पढें)।

ये वाक्यांश हमें यीशु के विषय में बहुत सी आश्चर्यजनक बातें बताती हैं। यीशु ,“परमेश्वर के स्वरुप में थे,” “वह अद्रिश्य परमेश्वर के द्रिश्य प्रतिरूप थे”, “परमेश्वर की सारी परिपूर्णता उसमें प्रसन्नता पूर्वक वास करती थी”, “परमेश्वर का पुत्र”, “उसकी महिमा का प्रकाश” और “उसके तत्व की छाप है” लेकिन वे यह नहीं कहते कि वह परमेश्वर थे। यदि पारम्परिक शिक्षा सही है तो ये वाक्यांश ऐसा क्यों नहीं कहते कि वह परमेश्वर थे?

अन्य सन्दर्भ

नये नियम की पुस्तक में यीशु को ४० बार परमेश्वर के पुत्र के रुप में उद्ध्रित किया गया है। यीशु ने भी अपने आप को परमेश्वर के पुत्र के रुप में उद्ध्रित किया है। उनके अनुयायी उन्हें परमेश्वर के पुत्र के रुप में सम्बोधन करते थे। यहां तक कि दुष्टात्मा से ग्रसित लोग भी उन्हें “परमेश्वर के पुत्र” कहकर सम्बोधित करते थे। यहां कुछ उदाहरण दिये गये हैं:

ये सभी व्यक्ति, यीशु समेत, क्यों यीशुको परमेश्वर के पुत्र के रुप में सम्बोधित करते हैं? यदि मण्डली की शिक्षा सही है तो निश्चय ही वे सब यीशु को परमेश्वर सम्बोधित करते। लेकिन ऐसा नहीं करते हैं। क्या उनमें से किसी ने भी नहीं समझा कि यीशु वास्तव में कौन थे?

अभी तक हमने जिन बहुतायत प्रमाणों को देखा है, वे यही दिखाते हैं कि यीशु परमेश्वर नहीं, परमेश्वर के पुत्र हैं। बाइबल धर्मशास्त्र में कोई भी वाक्यांश ऐसा नहीं है जो यीशु को परमेश्वर के रुपमें सम्बोधन करता हो, लेकिन कुछ, पांच या छे उदाहरण ऐसे हैं जिनमें यीशु को परमेश्वर के रुप में उद्ध्रित किया गया है। अब हम इन वाक्यांशों को बारीकी से देखेंगे कि क्या वास्तव में वे बताते हैं कि यीशु परमेश्वर हैं, लेकिन उससे पहले हमें एक मुद्दे को स्पष्ट करना आवश्यक है।

एलोहिम (Elohim) और थेओस् (Θεος)

ग्रिक शब्द थेओस ( Θεος) का हिन्दी अनुवाद परमेश्वर एवम् अंग्रेजी में God किया गया है। हिब्रू शब्द एलोहिम (Elohim, אֱלֹהִים) का अनुवाद भी इसी प्रकार किया गया है। लेकिन ये दोनों शब्द थेओस और एलोहिम हिन्दी शब्द परमेश्वर और अंग्रेजी शब्द God की तुलना में व्यापक अर्थ रखते हैं। (Elohim - Blue letter Bible देखें)

नीचे कुछ उदाहरण दिये गये हैं:

उपरोक्त पदों में एलोहिम और थेओस शब्दों का अनुवाद देवता, ईश्वर, देव, न्यायकर्ता के रुप में किया गया है। इन शब्दों का अनुवाद शासक, स्वर्गदूत या महत्वपूर्ण व्यक्ति के रुप में भी किया जा सकता है।

इसका अर्थ यह है कि एलोहिम या थेओस शब्द जहां जहां उपयोग किये गये हैं, सटीक अनुवाद के लिये अनुवादक को गहराई में जाना ही पडेगा। यीशु के लिये जहां थेओस शब्द का अनुवाद किया गया है, वहां यीशु के बदले परम्परागत शिक्षा को बल देने के लिये अनुवादकों ने हमेशा ‘परमेश्वर’ शब्द का ही उपयोग किया है।

इसीलिये हम सबों के लिये यह जानना आवश्यक है कि हिब्रू शब्द एलोहिम (Elohim) और ग्रीक शब्द थेओस (Θεος) सर्वोच्च व्यक्ति के लिये सिर्फ परमेश्वर ही नहीं, परन्तु स्वर्गदूत, देवता, और विशेष व्यक्तियों के लिये भी उपयोग किये जा सकते हैं। यीशु परमेश्वर हैं, इस द्वीधापूर्ण विचार या शिक्षा को सम्पूर्ण बाइबल से हटाने के लिये यह एक प्रमाण ही काफी है।

थोमा की स्वीकारोक्ति

नये नियम का यह विशेष भाग अलग है और यह दिखाता है कि यीशु ही परमेश्वर हैं। हम इस भाग को विस्तार से देखेंगे।

यूहन्ना २०:२७-२९ में जब थोमा ने यीशुको पुनरुत्थान के बाद जीवित देखा, आश्चर्यचकित हो कर उसने इन शब्दों में कहा, “मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर”। प्रथम द्रिष्टी में यह पतरस के विश्वास की स्वीकारोक्ति जैसा ही प्रतीत होता है परन्तु दोनों के बीच महत्वपूर्ण भिन्नता है। यीशु ने पतरस की सराहना की लेकिन आश्चर्य है कि थोमा को झिडकी दी। “तू ने तो मुझे देखकर विश्वास किया है, धन्य वे हैं जिन्हों ने बिना देखे विश्वास किया”

ऐसा अन्तर क्यों? पतरस को प्रकाश मिला था कि यीशु मसीह और परमेश्वर के पुत्र थे। थोमा को ऐसा कोई प्रकाश नहीं मिला था। औरों की बातों पर अविश्वास करने के बाद जब उसने स्वयम् यीशुको जीवित देखा तब अपने मनके आश्चर्यको व्यक्त कर रहा था। पतरस के शब्द ,“मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर”, सिर्फ आश्चर्य की अभिव्यक्ति थे, न कि परमेश्वर से प्राप्त किसी प्रकार का प्रकाश।

कुछ गुप्त ग्रीक व्याकरण मेरी बात को प्रमाणित करते हैं। थोमा के वास्तविक ग्रीक शब्द थे “ὁ κυριος (Lord, प्रभु) μου και ὁ θεος (God, परमेश्‍वर) μου”। ग्रीक संज्ञा (Noun) विभीन्न प्रकार से अन्त होते हैं। उनका अन्त होना इस बात पर निर्भर करता है कि वे वाक्य में ‘कर्त्ता’ Subject) हैं कि लक्ष्य (Object) अथवा कोई व्यक्ति जिसे सम्बोधन (addressed) किया गया है? यदि थोमा यीशु को सम्बोधन कर रहे होते तो हम इन शव्दों को Vocative form में पाते κυριε आउर θεε। क्रूस पर यीशु कराह उठे थे, “θεε μου” हे मेरे परमेश्वर (सम्बोधन करते हुए)।

इसके साथ साथ हमने यह भी देखा है कि ग्रीक शब्द θεος (थेयोस), जिसका अनुवाद परमेश्वर किया गया है, इसका अर्थ महान् या महत्वपूर्ण व्यक्ति भी हो सकता है। थोमा के द्वारा सम्बोधन किये गये शब्दों के विषय में भी हम यही कह सकते हैं।

पराक्रमी परमेश्वर, अनन्त के पिता

ऐसा लगता है कि पुराने नियम के इस वाक्यांश में यह बताया गया है कि यीशु परमेश्वर हैं । अधिकांश अनुवादों में यशायाह ९:6 यह कहता है , “क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी, और उसका नाम अद्भुत, युक्ति करने वाला, पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा”। अधिकांश व्यक्ति ऐसा विश्वास करते हैं कि यह यीशु के विषय में की गयी भविष्यवाणी है जो हमें बताती है कि यीशु परमेश्वर हैं।

वास्तव में यह ऐसी भविष्यवाणी है जो दो तरह से पूर्ण होती है। निकट भविष्य के द्रिष्टीकोण से यह राजा हिजेकिया के जन्म से सम्न्धित है, तो सुदूर भविष्य के द्रिष्टीकोण से यीशु के जन्म से। यहां दो समस्यायें हैं। हिब्रू ‘क्रिया’ जिसका अनुवाद किया गया है , (उसका नाम) रखा जायेगा, सक्रिय (Active) है न कि निष्क्रीय (Passive)। शाब्दिक अनुवाद होगा (यशायाह ९ देखें) “रखेंगे (उसका नाम)”। एक पुत्र के लिये, चाहे वह हिजेकिया या यीशु हों, अनन्त के पिता एक अति ही अस्वाभाविक नाम है। ‘पराक्रमी परमेश्वर’ निश्चय ही हिजेकिया के लिये उपयुक्त नाम नहीं है। यहां पर हिब्रू भाषा अस्पष्ट है कि ‘कर्ता’(Subject) कौन है और ‘लक्ष्य’(Object) कौन। इस समस्या को देखते हुए इस वाक्य का सम्भवत: सही अनुवाद ऐसा हो सकता है: “पराक्रमी परमेश्वर और अनन्त के पिता उसका नाम अद्भूत युक्ति करनेवाला और शान्ति का राजकुमार रखेंगे। “यह अनुवाद सर्वथा सटीक है।

अस्पष्ट वाक्यांस

नये नियम के चार कम प्रचलित पद भी त्रिएकता के इस विचारधारा का समर्थन करते हैं कि यीशु परमेश्वर हैं। मैं उनका विवरण नीचे दे रहा हूं ताकि आप इस लेख के अन्त में उनका अध्ययन कर सकें।

मैं और पिता एक हैं

बहुत से लोगों का मानना है कि यीशु के ये शब्द ही प्रमाणित करते हैं कि यीशु परमेश्वर हैं। इसके लिये वे फरिसियों द्वारा कहे गये शब्दों को उध्रित करते हैं, “तू मनुष्य हो कर अपने आप को परमेश्वर बनाता है” (यूहन्ना १०:33)। और इस बात को बताना चाहते हैं कि इन शब्दों से यीशु के कहने का अर्थ क्या था। लेकिन क्या फरिसियों का कहना ठीक था? कोई भी नहीं कह सकता कि वे यीशु को अच्छी तरह समझ सकते थे।

इन शब्दों का उपयोग कर यीशु क्या बताना चाहते थे? इस प्रश्न क उत्तर इतना आसान नहीं है। सम्भव है उनके कहने का तात्पर्य यह हो कि जो भी काम या विचार वे करते थे, यीशु और पिता इन सभी में एक मन के हों। लेकिन इस कथन का यह अर्थ कदापि नहीं था कि यीशु ही परमेश्वर थे।

अपनी अन्तिम प्रार्थना में यीशु ने प्रार्थना की थी कि यीशु और उनके पिता और उनके अनुयायी, सब एक होंगे, “मैं केवल इन्हीं के लिये बिनती नहीं करता, परन्तु उन के लिये भी जो इन के वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे, कि वे सब एक हों। जैसा तू हे पिता मुझ में हैं, और मैं तुझ में हूं, वैसे ही वे भी हम में हों, इसलिये कि जगत प्रतीति करे, कि तू ही ने मुझे भेजा” (यूहन्ना १७:२०-२१)

यदि परमेश्वर के साथ एक होने का अर्थ यह है कि यीशु परमेश्वर हैं, तब तो उनके सभी अनुयायी भी परमेश्वर हैं!

परमेश्वर मसीह में थे

यीशु ने फिलिप से पूछा, “क्या तू प्रतीति नहीं करता, कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझ में हैं?” (यूहन्ना १४:10)। पौलुस ने भी इनके समान शब्द लिखे, “परमेश्वर ने मसीह में हो कर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया” (२ कुरि ५:19)। पौलुस ऐसा भी लिख सकता था, “यीशु स्वयम् परमेश्वर थे और अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर रहे थे।” लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उसने लिखा, “परमेश्वर मसीह में हो कर।” स्पष्ट रुप से इसका अर्थ दूसरा है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि मसीह ही परमेश्वर थे। यदि पवित्र आत्मा हमारे अन्दर निवास करते हैं तो हमारे अन्दर भी परमेश्वर हैं, लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हम भी परमेश्वर हैं। यही अन्तर अन्य वाक्यांसों में भी हैं जिनका उपयोग बहुत से व्यक्ति यीशु को परमेश्वर के रुप में प्रमाणित करने के लिये करते हैं।

यूहन्ना १:१में हम पढते हैं, “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था” । यूहन्ना १:14 कहता है, “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया” । बहुत से व्यक्ति इस पद को भी यीशु को परमेश्वर प्रमाणित करने के लिये उपयोग करते हैं। वास्तव में “वचन देहधारी हुआ” पौलुस के द्वारा उपयोग किये गये शब्दों के समान ही हैं, “परमेश्वर यीशु में होकर”। इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि यीशु ही परमेश्वर हैं।

यही बात १ तिमु ३:16 भी बताती है: “वह ( अथवा परमेश्वर) जो शरीर में प्रगट हुआ, आत्मा में धर्मी ठहरा, स्वर्गदूतों को दिखाई दिया, अन्यजातियों में उसका प्रचार हुआ, जगत में उस पर विश्वास किया गया, और महिमा में ऊपर उठाया गया।” बहुत से लोग इस पद को भी यीशु को परमेश्वर प्रमाणित करने के लिये उपयोग करते हैं, लेकिन यहां सिर्फ यही बताया गया है कि परमेश्वर मसीह में थे। यह पद हमें यह नहीं बताता कि मसीह ही परमेश्वर थे

यह तथ्य कि परमेश्वर यीशु में थे, थोमा के द्वारा कहे गये इन शब्दों से भी प्रमाणित होता है, “मेरे प्रभु और मेरे परमेश्वर”। कुछ समय पहले थोमा की उपस्थिति में यीशु के द्वारा कहे गये शब्दों के अनुसार ही थोमा ने यीशु में परमेश्वर को देखा, “जिसने मुझे देखा है, उसने पिता को देखा है” (यूहन्ना १४:९)।

एक ही परमेश्वर

पुराने नियम के बहुत से भाग इस बात को स्पष्ट करते हैं कि परमेश्वर एक ही हैं।

प्रत्येक यहूदी व्यवस्थाविवरण के ६:४ में लिखे गये इन शब्दों को अच्छी तरह जानता है, “यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है”

यशायाह ४५ में भी परमेश्वर ने इन तीन बातों को स्पष्ट किया है:

यदि परमेश्वर स्वयम् परमेश्वर हैं और यीशु भी परमेश्वर हैं तब दो अलग अलग व्यक्ति हैं और स्पष्ट है कि एक से अधिक परमेश्वर हैं।

इसी विषय पर एक और विचार और सम्भवत: इस लेख में सबसे महत्वपूर्ण बात है: यदि यीशु परमेश्वर हैं और हम मनुष्य मरणशील प्राणी, तब बहुत कम सम्भावना बचती है कि हम भी कभी यीशु के समान हो पायेंगे, लेकिन यदि वह परमेश्वर के पुत्र हैं और नया जन्म पाकर हम परमेश्वर के सन्तान बन जाते हैं, और यीशु के भाई और बहन, तब हमारे लिये एक प्रचुर सम्भावना बनती है कि हम उनकी स्वरुप में परीवर्तन हो जायेंगे और उनके समान ही जीवन जी पायेंगे।

निष्कर्ष

१७ शताब्दियों से कलीसियाओ ने हमें यही शिक्षा दी है कि यीशु ही परमेश्वर है। अधिकांश मसीही (मेरे साथ साथ) अपने बचपन से ही यह सिखते आये हैं। और इस शिक्षा को हम सब निर्विरोध मानते आये हैं।

उनके परीचय से सम्बन्धित जितनी भी घोषणायें की गयीं हैं, सभी का यही कहना है कि यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं, न कि परमेश्वर। और इन तीनों विवरणों में, फिलिपियों २:४-११, कुलुस्सियों १:१४-१९ और इब्रानियों १ कोई भी यह नहीं कहता कि यीशु परमेश्वर हैं। करीब ४० वाक्यांशों में उन्हें परमेश्वर का पुत्र कहा गया है।

नये नियम में सिर्फ ४ या ५ बार यीशु को परमेश्वर कहा गया है, लेकिन इनमें से कोई भी प्रत्यक्ष रुप से यीशु का विवरण नहीं देता और इन सभी के अर्थों में कुछ न कुछ अस्पष्टता अवश्य है।

ग्रीक और रोमी देवता नियमीत रुप से प्रिथ्वी का भ्रमण करते थे और मनुष्यों के बीच विचरण करते थे। और यीशु को परमेश्वर के रुप में दर्शाना और ईसाई धर्म को भी अन्य मूर्तिपूजक धर्मों के समानता में ला खडा करना सम्राट् कन्स्टेनटाईन की ईच्छा के अनुसार ही था।

यीशु को परमेश्वर के रुप में नहीं, परन्तु परमेश्वर के पुत्र के रुप में मानना त्रिएकता की शिक्षा के लिये गम्भीर समस्या है। परम्परागत कलीसियाओ के लिये इस मुख्य शिक्षा पर प्रश्न चिन्ह खडा करता है। मैंने इस विषय पर कलीसिया की परम्परा, इतिहास और धर्मशास्त्र में त्रिएकता की शिक्षा में लिखा है।

और अन्त में येशुआ को परमेश्वर के रुप नहीं, किन्तु परमेश्वर के पुत्र के रुप में मानने से यहूदियों को येशुआ को मसीहा के रुप में स्वीकार न करने की बहुत बडी बाधा दूर हो जाती है।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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अस्पष्ट वाक्यांशों के सम्बन्ध में

Biblical Unitarian website बाइबल के बहुत से पद जिन्हें त्रिएकता की शिक्षा के पक्ष में उपयोग किया जाता है, उनकी व्याख्या करता है, जिनमें निम्न पद भी शामिल हैं। उनके द्वारा की गयी व्याख्या और मेरी व्याख्या में अन्तर हो सकता है।

इब्रानियों १: ८-९

यह वाक्यांश भजन संग्रह ४५: ६,7 से उध्रित किया गया है, “हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना रहेगा; तेरा राजदण्ड न्याय का है। तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है। इस कारण परमेश्वर ने हां तेरे परमेश्वर ने तुझ को तेरे साथियों से अधिक हर्ष के तेल से अभिषेक किया है।”

भजन ४५ के आरम्भिक शब्द हैं, “मेरा हृदय एक सुन्दर विषय की उमंग से उमण्ड रहा है, जो बात मैं ने राजा के विषय रची है।” ये शब्द राजा को सम्बोधित किये गये थे। ६ पद के शब्द हैं, “हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना रहेगा; तेरा राजदण्ड न्याय का है। तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है।” जिनसे ऐसा लगता है कि परमेश्वर को सम्बोधित किया गया है, राजा को नहीं। इसके बाद उपयोग किये गये ये शब्द, “इस कारण परमेश्वर ने हां तेरे परमेश्वर ने तुझ को तेरे साथियों से अधिक हर्ष के तेल से अभिषेक किया है” फिर से राजा को सम्बोधित किये गये हैं। यहूदी पाठक, जिन्हें यह पत्र लिखा गया था, भजन ४५ जानते थे, इसलिये वे मानते थे कि यीशु परमेश्वर नहीं थे।

इस वाक्यांश का वैकल्पिक अर्थ यह भी है कि ईश्वर शब्द (थेओस) एक महत्वपूर्ण व्यक्ति को सम्बोधन करने के लिये उपयोग किया गया है।

रोमियों ९:५

ग्रीक भाषा में यह शब्द अस्पष्ट है। इसे दो प्रकार से सटीक अनुवाद किया जा सकता है:

  1. पुर्खे उन्हीं के हैं, उन्हीं से मसीहका प्रादुर्भाव हुआ जो सर्वोच्च हैं, परमेश्वर जो सदा सर्वदा धन्य हैं।
  2. पुर्खे उन्हीं के हैं, और उन्हीं के द्वारा शरीर में मसीह का आगमन हुआ। सर्वोच्च परमेश्वर जो सदा सर्वदा धन्य हैं।

इस पदका अनुवाद किस प्रकार करना चाहिये, यह बात अनुवादक पर निर्भर करता है, लेकिन अधिकांश अनुवादक त्रिएकता की शिक्षा पर विश्वास करते हैं, इसीलिये उनका अनुवाद पहले के समान है।

२ पतरस १:५

शमौन पतरस की और से जो यीशु मसीह का दास और प्रेरित है, उन लोगों के नाम जिन्होंने हमारे परमेश्वर और (हमारे) उद्धारकर्ता यीशु मसीह की धामिर्कता से हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्त किया है।

तीतुस २:१३

और उस धन्य आशा की अर्थात अपने महान परमेश्वर और (अपने) उद्धारकर्ता यीशु मसीह की महिमा के प्रगट होने की बाट जोहते रहें।

उपरोक्त दोनों पदों में उपयोग किया गया ग्रीक भाषा अस्पष्ट है। क्या वे एक व्यक्ति यीशु को इंगित करते हैं? अथवा वे दो व्यक्तियों की ओर दिखाते हैं, परमेश्वर और यीशु? अनुवादक निर्णय कर सकते हैं। ‘अपने’ शब्द को वे समावेश कर सकते हैं या छोड सकते हैं। त्रिएकतावादी अनुवादक यह प्रयास करेंगे कि ‘अपने’ शब्द को छोड दें और इस प्रकार अनुवाद करें कि दोनों ही पद सिर्फ यीशु को सम्बोधित करते हैं।

इस बात की सम्भावना है कि शास्त्रियों ने उपरोक्त पदों में बदलाव किया हो, ताकि त्रिएकता की शिक्षा को बल मिले। नये नियम में अन्य भागों में ऐसा दिखता है।