पुराने नियम, नये नियम और कलीसिया में पर्व

परीचय

अधिकांश धर्मों के अपने अपने त्योहार हैं। कुछ त्योहारों में भोज होते हैं, कुछ में उपवास रखे जाते हैं, तो, कुछ त्योहारों में सडकों पर जुलुस निकाले जाते हैं।

हिन्दुओ के तेंतीस करोड़ देवी देवता हैं और असंख्य पर्व! कुछ पर्व विश्वव्यापी रुप में प्रसिद्ध हैं, जैसे दिपावली और छठ, तो कुछ स्थानीय स्तर तक सिमीत हैं, जैसे एकादशी। इसके अलावा इनके अन्गिनत तिर्थ स्थल विभीन्न देशों में अवस्थित हैं जहां पूर्व निर्धारीत विशेष अवसरों पर हिन्दू धर्मावलम्बी पूजा करने के लिये या विधी विधान पूरा करने के लिये एकत्रीत होते हैं।

रमजान के अवसर पर मुस्लीम धर्मावलम्बी एक महीना उपवास रखते हैं और अन्त में तीन दिन का उत्सव मनाते हैं जिसे ईद कहा जाता है।

बौद्ध धर्मावलम्बियों के त्योहार विभीन्न देशों में अलग अलग मनाये जाते हैं, लेकिन अधिकांश देशों में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व है नव वर्ष का। वे बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और मृत्यु के अवसर पर भी मई महीने के पूर्णमासी के दिन उत्सव मनाते हैं।

यहूदी लोग अब भी लैव्यव्यवस्था के २३ अध्याय में उल्लिखित पर्वों को मनाते हैं जिन्हें परमेश्वर ने मूसा के द्वारा इन्हें दिया था, इनमें फसह पर्व, पेन्तिकुस्त और झोपडियों के पर्व सम्मिलित हैं।

मसीहियों के त्योहार कौन कौन से हैं? क्या उन्हें भी बाइबल में दिये गये त्योहारों को मनाना चाहिए जैसे यहूदी मनाते हैं? या, क्या परमेश्वर ने उन त्योहारों के बदले बडा दिन और ईस्टर जैसे पर्व कलीसिया के लिये निर्धारीत किये हैं?

इस लेख में मैं सर्वप्रथम बाईबल के पुराने और नये नियम में उल्लिखीत पर्वों के विषय में चर्चा करुंगा। फिर मैं संक्षेप में कलीसिया से सम्बन्धीत बडा दिन, ईस्टर और अन्य त्योहारों के विक्षय में बात करूंगा।

पुराने नियम के पर्व

परमेश्वर ने ईस्राएलियों को मूसा के द्वारा त्योहारों का वार्षिक तालिका दिया। परमेश्वर ने इनमें तीन मुख्य पर्वों, फसह, पेन्तिकुस और झोंपडियों के पर्व को अभिषिक्त किया जिनका वर्णन निर्गमन २३: १४–१७, लैव्य व्यवस्था २३ और गिनती २८ और २९ और व्यवस्था विवरण १६ में किया गया है।

फसह का पर्व पहले महीने में मनाया जाता था और इसमें अखमिरी रोटी और फसल के प्रथम फल के पर्व भी शामील किये गये थे। यह मिश्र देश की गुलामी से छुटकारा पाने और फसल की कटनी के आरम्भ का उत्सव भी था। मिश्र देश से निर्गमन और ईस्राएल देश का जन्म, ये ऐसी घटनायें थीं जिन्हें यहूदी लोग कभी भी भूल नहीं सकते हैं और इन घटनाओ को वे आज तक याद करते आ रहे हैं।

पेन्तीकुस्त या सप्ताहों का पर्व तीसरे महीने में मनाया जाता था, फसह पर्व के ५० दिनों के बाद। सिनाई पर्वत पर व्यवस्था दिये जाने के उपलक्ष में इसे उत्सव कर रुप में मनाया जाता था, जब परमेश्वर ने ईस्राएल को दश आज्ञायें दी थीं। यह भी एक ऐसी घटना थी जिसे वे कभी भी नहीं भूल सकते थे।

झोपडियों का पर्व सातवें महीने में मनाया जाता था और महीने के पहले दिन और दसवें दिन जो क्षमा दान का दिन था, दोनों दिन तुरही फूंकना शामील था। यह पर्व भी मिश्र देश से ईस्राएलियों के छुटकारा पाने और खेतों के पहिले फल से जुडा हुआ था। झोंपडियां यहूदियों को याद दिलाती थी कि किस प्रकार उन्होंने अपने घर मिश्र देश में छोडा था और अपनी यात्रा के दौरान अस्थायो तम्बुओ में रहे थे।

ये सभी पर्व परमेश्वर के द्वारा स्थापित किये गये थे और आपसी एकता को मजबूत करते थे। सभी समर्थ यहूदी पुरुष इन पर्वों को मानने के लिये वर्ष में तीन बार यरुशलेम की यात्रा करते थे। इन पर्वों को पालन करते समय सभी काम बन्द रखा जाता था और परमेश्वर की उपस्थिति में यह आनन्द मनाने का अवसर होता था, सिवाय उस समय के जब यम किप्पुर के अवसर पर सभी उपवास रखते थे और अपनी आत्मा को दुखी करते थे।

यहोशू के बाद इन पर्वों का मानना कम होता गया, और उसके बाद कई सौ वर्षों तक इनका मानना बन्द रहा। उसके बाद राजा हेजेकियाह और जोसियाह ने इन पर्वों को गहरे पश्चाताप के साथ पुनर्स्थापित किया और फिर बाबुल के निर्वासन के बाद एज्रा ने भी इन्हें पुनर्स्थापित किया था।

पुराने नियम के १ राजा १२: ३१, ३२ में हम एक और पर्व के विषय में पढते हैं। सुलेमान के पुत्र रहूबिआम के हिस्से दक्षिण और यारोबाम के हिस्से उत्तर में अधिराज्य के विभाजीत होने के बाद यारोबाम को ऐसा करना उचित लगा कि अपने देश वासियों के लिये एक प्रतिद्वन्द्वी धर्म स्थापित किया जाय जिससे उन्हें आराधना करने के लिये यरुशलेम नहीं जाना पडे। उसने बेथेल और दान में सोने के बछडे स्थापित किये और आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन उत्सव मनाने के लिये ठहराया। धर्मशास्त्र कहता है कि यह एक ऐसा दिन है जिसे उसने अपने मन के अनुसार निश्चय किया। जब जब हम ईस्राएल के इतिहास को पढते हैं, हमें बार बार यही पढने को मिलता है , ‘नेबात का पुत्र यारोबाम जिसने इस्राएल को पाप करने को लगाया।’

नये नियम के पर्व

नये नियम के समय में क्या हुआ था? क्या यीशु के अनुयायियों ने फसह, पेन्तिकुस्त और झोंपडियो के पर्व मनाना छोडकर बडा दिन और ईस्टर मनाना आरम्भ कर दिया था?

हम बाईबल धर्मशास्त्र में कहीं भी बडा दिन और ईस्टर का उल्लेख नहीं पाते हैं, लेकिन नये नियम के आरम्भ से अन्त तक यहूदियों के पर्वों का उल्लेख मिलता है।

नये नियम के समय यहूदियों के पर्व मनाये जा रहे थे, यह बात तो स्पष्ट है, लेकिन समय के साथ इनका अर्थ भी नया होता जा रहा था।

जब यीशु ने अपने चेलों के साथ अपना आखिरी फसह मनाया, उस समय उन्होंने ऐसे शब्दों का उपयोग किया जिससे चेले स्तब्ध रह गये “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो” (लुका २२: १९). । हमने ये शब्द हजारों बार सुने होंगे, लेकिन इनके अर्थ पर कभी विचार नहीं किया कि यहूदी चेलों ने इससे क्या समझा। १५०० वर्षों से अधिक समय से यहूदी मिश्र देश से छुटकारा पाने और अपने देश के स्थापना होने का स्मरण करते हुए फसह मनाते आ रहे थे। यीशु इनके सबसे पवित्र और राष्ट्रीय धार्मिक पर्व को डाका डालकर इसे एक नया अर्थ दे रहे थे। “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” वह मिश्र देश से निर्गमन की तुलना में बहुत बडा छुटकारा लाने वाले थे। सुनने वालों के आश्चर्य का अनुमान लगाया जा सकता है।

५० दिनों के बाद पेन्तिकुस्त का पर्व मनाने के लिये पडोसी देशों से बहुत से यहूदी यरुशलेम में एकत्रित हुए। यह पर्व सिनाई पर्वत पर व्यवस्था दिए जाने की नाटकीय घटना को स्मरण करने के लिये मनाया जाता था। पवित्र आत्मा बडी शक्ति के साथ उतरे, इस बार एकत्रित हुए लोगों के हृदय में व्यवस्था लिखने के लिये। एक बार फिर पुराने पर्व का बुनियादी रुप में नया अर्थ!

इस प्रकार यहूदी पर्वों को विस्थापित कर उनके बदले नये या दूसरे पर्व स्थापित करने का कोई प्रश्न या सुझाव नहीं पाते हैं। बल्कि सतही तौर पर मनाये जाने वाले त्योहारों के स्थान पर आन्तरीक वास्तविकता स्थापित हुए हैं। बलि के मेमनों के स्थान पर हम बकरियों या गायों की बलि की ओर नहीं बढकर आगे और उपर की ओर, यीशु की ओर बढते हैं जो परमेश्वर का मेमना हैं। हम यहूदियों के पवित्र मन्दिर के स्थान पर भव्य गिरिजाघरों और आरधना स्थलों को स्थापित नहीं करके जीवित पत्थरों से निर्मित आत्मिक मन्दीरों की ओर अग्रसर होते हैं। इसी प्रकार हम फसह के स्थान पर ईस्टर स्थापित नहीं करते, बल्कि यूशु के बलिदान के फलस्वरुप जीवित और आत्मिक क्षमादान के अनुभव की बात करते हैं। पेन्तिकुस्त पवित्र आत्मा के बप्तिस्मा का आश्चर्यजनक अनुभव बन जाता है। झोंपडियों का पर्व परमेश्वर के लोगों के लिये ऐसे अनुभव की ओर दिखाता है जो भविष्य में पूरे होंगे।

कुल्लुसियों के २: १६ – १७ में पौलुस इन बातों को बताता है: “इसलिये खाने पीने या पर्व या नए चान्द, या सब्तों के विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे। क्योंकि ये सब आने वाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएं मसीह की हैं”। गलतियों को पौलुस (४: ९ -११) कहता है: “पर अब जो तुम ने परमेश्वर को पहचान लिया वरन परमेश्वर ने तुम को पहचाना, तो उन निर्बल और निकम्मी आदि-शिक्षा की बातों की ओर क्यों फिरते हो, जिन के तुम दोबारा दास होना चाहते हो? तुम दिनों और महीनों और नियत समयों और वर्षों को मानते हो। मैं तुम्हारे विषय में डरता हूं, कहीं ऐसा न हो, कि जो परिश्रम मैं ने तुम्हारे लिये किया है व्यर्थ ठहरे”।

‘छाया’ से पौलुस का अर्थ क्या था? छाया, अथवा तश्वीर या पेन्टींग किसी भी त्रि-आयामी वस्तु की द्वी- आयामी प्रतिकृती है। अपने आप में इसका कोई मू्ल्य नहीं है। साइन पोष्ट के समान ही इसका सम्पूर्ण मूल्य उसी वस्तु में निहीत है, जिसकी ओर यह संकेत करता है।

पुराने नियम के सभी त्योहार द्वी – आयामी छाया थे जो नये नियम के त्रि- आयामी वास्तविकता की ओर इंगित करते थे। पुराने नियम के सभी बलिदान और पर्व जिन्हें परमेश्वर ने मूसाको सत्य निष्ठापूर्वक पालन करने के लिये दी थी, अपने आप में इनका कोई मूल्य नहीं था, लेकिन निश्चय ही ये वृहत् आत्मिक सत्यता की ओर इंगित करते थे। हम कोई परिवर्तित या नया धर्म का प्रादुर्भाव नहीं, लेकिन पुराने का विशाल विकशित स्वरुप देखते हैं। एक सपाट वर्गाकार ठोस में रुपान्तरित हो चुका है, मूल्यवान् घनाकार में, सपाट वृत्त ठोस गोला बन चुका है, जो नींव मात्र था वह पूर्ण निर्मित भवन का रुप ले चुका है, जो मृत थे, वे जिवीत हो चुके हैं।

इस्राएल के पर्व शिर्षक से मैंने एक अलग लेख लिखा है जिसमें मैंने यहूदियों के पर्वों के आत्मिक अर्थ की विस्तार से व्याख्या की है।

कलीसिया के पर्व

बडा दिन, ईस्टर और कलीसिया के अन्य पर्वों के विषय में हम क्या कहेंगे?

इस प्रश्न के उत्तर देने से पहले हमें कुछ क्रान्तिकारी और विवादास्पद सवाल करना आवश्यक है। क्या मूल प्रेरितों के प्रस्थान के बाद कलीसिया क्रमिक रूप से परिपक्वता की ओर बढती रही या अन्धकार की ओर? सम्राट् कौन्सटेन्टाईन द्वारा क्रिश्चियन धर्म को रोम के राजकीय धर्म के रुप में स्थापित किया जाना विजयोल्लास की बात थी या एक त्रासदी थी? अन्य जाति के आराधना स्थलों और उनके रीति रिवाजों का ईसाईकरण एक उदार सम्झौता था या सत्यता से दूर जाना?

मेरा मानना है कि धर्मशास्त्र और इतिहास एक साथ इस बात की गवाही देते हैं कि संगठीत कलीसिया क्रमिक रुप से ज्योति की ओर न जाकर लगातार अन्धकार की ओर चलते गये। नये नियम के आत्मिक स्वरुप को कलीसिया ने गंवा दी। उसके बाद पुराने नियम में उपलब्ध सत्यता की ओर न लौटकर इसके अगुवों ने लोगों की सन्तुष्टी के लिये अपने मन की इच्छा के अनुसार मूर्तियां और पर्व स्थापित किये, या और स्पष्ट कहें तो, अपने मन की करने के लिये उन्होंने बुतपरस्ती को अपनाया। फलस्वरुप इस अवधी को, जब सम्पूर्ण यूरोप अविश्सनीय रुप से शक्तिशाली कलीसिया के अधीन था, इतिहासकार अन्धकार के युग के रुप में जानते हैं।

बडा दिन

बडा दिन से समबन्धित सभी बातें बुतपरस्ती से जुडे़ हैं।

ईस्टर

ईस्टर भी बुतपरस्ती से आरम्भ होता है। ईस्टर शब्द निनवे की प्रजनन की देवी अस्टार्टे से लिया गया है। ईस्टर में उपयोग किये जाने वाले अण्डे भी प्रजनन को दर्शाते हैं। खरगोस (ईस्टर बन्नीज) भी प्रजनन के संकेत हैं। बसन्त ऋतू, जब ईस्टर मनाया जाता है, वर्ष का सर्वाधिक उपजाउ समय होता है।

ईस्टर शब्द बाईबल में कहीं भी उल्लेखित नहीं है।

लेन्ट (उपवास/ व्रत)

कलीसिया के कैलेण्डर में लेन्ट ईस्टर के दिन समाप्त होने वाला ४० दिन का उपवास है, जो शायद यीशु के ४० दिन लम्बा मरूभूमि में किये गये उपवास को स्मरण करने के लिये आरम्भ किया गया हो। लेकिन यीशु का उपवास हेमन्त ऋतू में रखा गया था और उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान के समय से अलग था।

लेन्ट एक पुराना शब्द है जिसका अर्थ होता है बसन्त। इसका वास्तविक आरम्भ सुमेरियन देवता टम्मुज की मृत्यु पर ४० दिनों का शोक पूर्ण रोदन से हुआ है जिसे ४० वर्ष की उम्र में जंगली सूअर ने मार दिया था। इस शोक को यहेजकेल ८: १३–१५ में तिरस्कार कहा गया है।

कलीसिया के अन्य पर्व

Christmas and other Church Festivals में मैंने कलीसियाओ के पर्व के विषय में विस्तार से बताया है। .

सारांश

पुराना नियम के पर्व परमेश्वर से अभिषिक्त थे और निष्ठापूर्वक पालन करने के लिये परमेश्वर ने आज्ञा दी थी। ये भविष्य में प्रकट होने वाले आत्मिक सच्चाइयों की ओर दिशा निर्देश देते हुए तत्कालीन अस्थायी आवश्कता की पुर्ति करते थे।

नये नियम के पर्व आत्मा के अदृश्य अवस्था से सम्बन्धीत हैं। उनके लिये जिन्होंने पानी और आत्मा से परमेश्वर के राज्य में जन्म लिया है, ये पर्व महत्वपूर्ण हैं, वास्तविक हैं और मानव निर्मित किसी भी पर्व की तुलना में अति श्रेष्ठ हैं। जिस प्रकार स्वर्ग धरती से बहुत उपर है, उसी प्रकार ये पर्व भी पुराने नियम के पर्वों से उपर हैं।

कलिसिया के पर्व परमेश्वर के द्वारा कभी नहीं अभषिक्त किये गये। वे सब बुतपरस्ती से आरम्भ होते हैं और व्यवहार में भौतिकवाद से भरपूर हैं। नये नियम के बुनियादी सिद्धन्तों से उनका दूर का भी कोई सम्बन्ध नहीं है।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह