एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना

“और एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसे कि कितनों की रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्यों ज्यों उस दिन को निकट आते देखो, त्यों त्यों और भी अधिक यह किया करो” (इब्रानियों १०:२५)।

समय समय पर हमारी भलाई चाहने वाले अधिकांश मित्र हमें इस पद के विषय में याद दिलाते रहे हैं, उन्हें भय है कि हम इस पद को अनदेखा कर रहे हैं। आइये, इस पद को हम नजदीक से देखें।

हमें कहां और कब इकट्ठा होना चाहिये? पुराने जमाने में इसका एक ही उत्तर होताः रविवार की सुबह ११ बजे स्थानीय मण्डली में। हमें सिर्फ इतना करना था कि हमें वहां जाना था और कुछ और लोगों के इकट्ठा होने के बाद वह सभा का रूप ले लेती थी। हम हिब्रू १०:२५ का पालन कर रहे थे। हमारे सामने एक ही समस्या थी - और वह गम्भीर समस्या थी - क्या यीशु इस सभा के केन्द्र में थे? कई बार, हमारी आशा है, वह हमारे बीच थे, कई बार वह किनारे खड़े थे और कई बार वह वहां थे ही नहीं।

इस पद में “इकट्ठा होने” के लिये उपयोग किया गया यूनानी शब्द ἐπισυναγη (एपिसिनागोग) है जो ἐπισυναγω (एपिसिनागो) क्रिया से लिया गया है जिसका अर्थ है “इकट्ठा होना”। इस शब्द के तीन भाग हैं, आगो का अर्थ है अगुवाई करना, सिन का अर्थ है “एक साथ” और एपि का अर्थ है “को” या “की ओर”। सिनागो (सिनगोग - सभाघर इसी शब्द से बना है) का अर्थ है अगुवाई करना या एक जगह इकट्ठा होना। इकट्ठा होना (इपिसिनागोग) जिस शब्द से बना है उसका अर्थ होता है “एक जगह की ओर इकट्ठा होना”।

यह ठीक है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि कहां और कब? यह पता लगाने के लिये कि कहां, आइये हम २ थिस्स․ २:१ देखें, “हे भाइयों, अब हम अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में तुम से बिनती करते हैं।” यहां भी हम वही शब्द एपिसिनागोग पाते हैं, लेकिन इस बार यह बताता है कि कहां इकट्ठा होना है! हमें उनके पास इकट्ठा होना है! वह हमारे सभा स्थल हैं।

जब हम मण्डली भवन जाते हैं, हम मण्डली भवन जाने वाले दूसरे लोगों से मिलते हैं। जब हम यीशु के पास जाते हैं, हम यीशु के पास जाने वाले दूसरे लोगों से मिलते हैं।

ये बातें यीशु की कही बातों से भी मिलती हैं। उनके शब्द थे, “मेरे पास आओ”, न कि “मण्डली भवन जाओ”। उन्होंने यह भी कहा था, “जहां दो या तीन मेरे नाम में इकट्ठा होते हैं वहां मैं उनके बीच रहता हूं”। वह सभा स्थल हैं। यहां भी इकट्ठा होने के लिये उपयोग किया गया यूनानी शब्द “सिनागो” है।

एक दृष्टान्त सुनें। एक बार मैंने एक वृत्त देखा जिसके अन्दर परिधि के पास मैं भी था और दूसरे लोग भी थे। मैं अन्य भाइयों और बहनों के नजदीक आना चाहता था, इसलिये परिधि के पास ही एक दिशा में बढ़ने लगा। लेकिन जैसे जैसे मैं कुछ लोगों के नजदीक जा रहा था, वैसे वैसे दूसरों से दूर भी होता जा रहा था। जब मैं उलटी दिशा में चलना आरम्भ किया, प्रतिफल वैसा ही था। मैं फिर कुछ लोगों के पास पर औरों से दूर हो रहा था।

इस लिये मैंने इस प्रयास को छोड़ दिया और विभिन्न भाइयों और बहनों के पास जाने का प्रयत्न करना छोड़ दिया। इसके बदले मैंने वृत्त के केन्द्र की ओर बढ़ना आरम्भ किया और अन्य लोगों ने भी ऐसा ही किया। फिर आपके विचार में क्या हुआ? हम सब एक दूसरे के नजदीक आ पहुंचे। और वृत्त के केन्द्र में कौन थे? वे ही थे जिन्होंने कहा था “मेरे पास आओ”।