राजा दौड और राजा सुलैमान

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भविस्यवाणिया महत्त्व

परिचय

शाउल, दाउद और सुलैमान इज्राइल के राजाओ में प्रथम तीन राजा थे । इनमें से प्रत्येक राजाने ४० वर्षों तक शासन किया, और इनमें से हरेक ने इतिहास के एक विशेष कालखण्ड को दर्शाया।

जैसा कि मैंने अपने दूसरे लेख ‘बाइबल का कालक्रम’ में इसकी व्याख्या की है, बाइबल के कालक्रम को २००० वर्षों की प्रमुख अवधी में विभाजित किया गया है। फिर इन्हें ४० जुबली या ५० वर्ष की अवधी में बांटा गया है। प्रथम २००० वर्ष का कालखण्ड आदम की उत्पत्ति से लेकर इब्राहीम के जन्म तक का समय है। दूसरा २००० वर्ष का समय इब्राहीम के समय से लेकर यीशु की मृत्यु के दिन तक का समय है। तीसरा २००० वर्ष का समय यीशु की मृत्यु के समय से लेकर वर्तमान समय तक है।

मेरा विश्वास है कि शाउल का ४० वर्ष का शासनकाल इब्राहीम से लेकर यीशु की मृत्यु तक के समय को चित्रीत करता है जब परमेश्वर ने आरम्भिक रुप से यहूदियों के साथ बर्ताव किया। दाउद का ४० वर्षीय शासन यीशु के समय से वर्तमान तक के समय का प्रतिनिधीत्व करता है, जिसे हम ‘कलीसिया का युग’ या ‘अनुग्रह का युग’ के रुप में जानते हैं। सुलैमान का शासनकाल ‘परमेश्वर के राज्य का युग’ दर्शाता है, जिसके लिये हम अग्रसर हो रहे हैं। यदि यह सही है तो दाउद और सुलैमान के बीच की तुलना करने से वर्तमान में हमारे लिये परमेश्वर की इच्छा क्या है, इस बात को समझने में सहायता मिलेगी, साथ ही उनके लोगों और संसार के साथ उनके बर्ताव में जो परीवर्तन हो रहे है उन्हें भी हम समझ पायेंगे।

सर्वप्रथम हम शाउल और दाउद के बीच के अन्तर को देखेंगे।

शाउल और दाउद

शाउल और दाउद दोनों को शामुएल भविष्यवक्ता ने राजा के रुप में अभिषेक किया था। दोनों को परमेश्वर ने चुना था और दोनों ने ही युद्ध क्षेत्र में महान् सफलता प्राप्त की थी। लेकिन शाउल और उसके तीनों पुत्रों के जीवन का अन्त आपदा और परमेश्वर के तिरस्कार के साथ हुआ। दाउद एक ऐसे राजवंश का पिता बना जो शताब्दियों तक यहूदा के सिंहासन पर राज्य करता रहा, और अन्त में सदा सर्वदा के लिये उस सिंहासन के उत्तराधिकारी यीशु को हस्तान्तरित किया गया।

शाउल पुराने करार को दर्शाता है जो अन्तमें सिर्फ मृत्यु दे सकता है। बाहरी तौर पर वह सुन्दर, बलवान् और क्षमतावान् था, लेकिन उसका अन्तरमन परमेश्वर से निर्देशित नहीं था। उसकी अनाज्ञाकरिता और पाप अन्तमें उसे अस्वीकार और मृत्यु तक पहुंचा दिया। उसका पुत्र योनातान भी, जो दाउद का अति प्रिय मित्र था, और रणभूमि में शूरवीर था, गिलबो पर्वत पर अपने पिता के साथ ही फिलिस्तियों के द्वारा मारा गया। दाउद ने उन दोनों की याद में एक सुन्दर शोक गीत की रचना की जिसके अन्तिम कुछ शब्द इस प्रकार हैं। ‘हाय, शूरवीर क्योंकर गिर गए, और युद्ध के हथियार कैसे नाश हो गए हैं!’(}( २ शामूएल १:१७-२७)

परमेश्वर ने दाउद का चयन करके, जो उनके अपने मन के अनुसार का व्यक्ति था, पूर्णतया नयी शुरुआत की। उन्होंने न शाउल के वंश न ही उसके गोत्र से किसी को स्वीकार किया। शाउल बिन्जामीन कुल का था लेकिन परमेश्वर ने यहूदा के कुल की ओर नजर किया ताकि यरूशलेम के सिंहासन पर आने वाले सदियों तक राज्य करने के लिये इस गोत्र से किसी का चयन कर सकें।

इस प्रकार दाउद ने ४० वर्षों तक शासन किया और विश्व के इतिहास में प्रसिद्ध राजा बना। उसकी मृत्यु उसके अपने ही राजभवन में शान्तीपूर्ण वातावरण में हुई और उसके बाद उसका पुत्र सुलैमान उसका उत्तराधिकारी बना।

सुलैमान का सपना

सुलैमान और उसके पिता दाउद में क्या अन्तर था?

सुलैमान के शासनकाल के आरम्भ में परमेश्वर ने उसे सपने में दर्शन दिया। १ राजा ३ में इस घटना का वर्णन किया गया है, जिससे उसके बाद की घटनाओ को समझने में काफी मदद मिलती है। वर्णन इस प्रकार है:

गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। सुलैमान ने कहा, तू अपने दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा, क्योंकि वह अपने को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साथ सच्चाई और धर्म और मन की सीधाई से चलता रहा; और तू ने यहां तक उस पर करुणा की थी कि उसे उसकी गद्दी पर बिराजने वाला एक पुत्र दिया है, जैसा कि आज वर्तमान है।

और अब हे मेरे परमेश्वर यहोवा! तूने अपने दास को मेरे पिता दाऊद के स्थान पर राजा किया है, परन्तु मैं छोटा लड़का सा हूँ जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता। फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगों के मध्य में है, जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती।

तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके?

इस बात से प्रभु प्रसन्न हुआ, कि सुलैमान ने ऐसा वरदान मांगा है।

तब परमेश्वर ने उस से कहा, इसलिये कि तू ने यह वरदान मांगा है, और न तो दीर्घायु और न धन और न अपने शत्रुओं का नाश मांगा है, परन्तु समझने के विवेक का वरदान मांगा है इसलिये सुन, [मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ, यहां तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहिले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा। [फिर जो तू ने नहीं मांगा, अर्थात धन और महिमा, वहमैं तुझे यहां तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा।

फिर यदि तू अपने पिता दाऊद की नाईं मेरे मार्गों में चलता हुआ, मेरी विधियों और आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊंगा।

सुलैमान ने परमेश्वर से सिर्फ एक चीज मांगी थी – बुद्धी। परमेश्वर ने बुद्धी देकर उसकी मांग पूरी की और इसके साथ साथ यदि सुलैमान अपने पिता दाउद के कदमों पर चले तो उसने धन सम्पत्ति, यश, शान्ती और दिर्घायु देने की प्रतिज्ञा भी की। हम लोग एक एक कर इन वरदानों के विषय में चर्चा करेंगे।

दिर्घायु

परमेश्वर ने सुलैमान से दिर्घायु की प्रतिज्ञा तो की लेकिन उसके साथ ही एक शर्त लगा दी। ‘फिर यदि तू अपने पिता दाऊद की नाईं मेरे मार्गों में चलता हुआ, मेरी विधियों और आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊंगा।’ अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में सुलैमान ने परमेश्वर द्वारा दिये गये शर्तों को पूरा नहीं किया। जैसा कि हम देखेंगे, उसने अन्य देवी देवताओ के पिच्छे चलने लगा। अपने युवावस्था में वह राजा बना और ४० वर्षों तक शासन किया। हम अनुमान कर सकते हैं कि ६० के दशक में उसकी मृत्यु हो गयी।

पराने करार में लम्बी उम्र के विषय में बहु अधिक जोड दिया गया है। पांचवी आज्ञा में भी इसका उल्लेख किया गया है।‘तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए।’ (निर्गमन २०:१२) ।‘क्योंकि जीवता कुत्ता मरे हुए सिंह से बढ़कर है।’ (सभो ९:४। यदि हम इस जीवन के दृष्टीकोण से देखें तो स्वास्थ्य और लम्बी उम्र सर्वश्रेस्ठ आशिर्वाद हैं जो किसी को मिल सके।

नये नियम या नये करार में शायद ही कहीं लम्बी उम्र या दिर्घायु का उल्लेख मिलता है, लेकिन अनन्त जीवन या इसका वास्तविक अर्थ देने वाला, आत्मिक जीवन जैसे शब्दों का बार बार उल्लेख किया गया है। पुराने करार के प्राकृतिक स्वास्थ या दिर्घायु जैसे शब्द नये नियम में आत्मिक जीवन और आत्मिक स्वास्थ को चित्रीत करते हैं।

प्राकृतिक अवस्था में जीवन और स्वास्थ्य अन्य आशिषों के लिये आधारशीला हैं। मृत्यु के बाद या किसी तरह की बिमारी या कष्ट में आप भोजन, पानी, सम्पत्ति, मनोरंजन, या किसी भी चीज के उपयोग का आनन्द नहीं ले सकते हैं। आत्मिक अवस्था में भी ऐसा ही होता है। यदि आपके पास आत्मिक जीवन और आत्मिक स्वास्थ्य नहीं हैं तो आप अन्य आत्मिक आशिषों की आशा नहीं कर सकते हैं। अपनी सेवकाई के आरम्भ में ही यीशु ने निकोदिमुस से कहा था, “तुझे नया जन्म लेना आवश्यक है।” हम आत्मा में तब तक बुद्धी और धन सम्पत्ति प्राप्त नहीं कर सकते जब तक हम पहले जीवन नहीं पा लेते।

बुद्धी

सुलैमान ने परमेश्वर से बुद्धी के लिये प्रार्थना क्यों की? महान् पिता के युवा पुत्र के रुपमें वह सिंहासन पर बैठा था और उसे अपनी गहन जिम्मेवारी का आभास हुआ था। उसका बडा भाई अदोनिजा उससे सिंहासन हडपने की कोशिश कर चुका था। परमेश्वर की प्रजा का उचित देखभाल करने की उसकी गहरी इच्छा थी। वह अपने पिता के विभीन्न गुणों का भी आदर करता था, यह भी निर्विवाद सत्य है। दाउद का विश्वास बहुत बडा था और युद्ध क्षेत्र में उसका साहस महान् था, इसके साथ साथ उसकी सहृदयता एवम् अपने शत्रुओ को भी क्षमा करने की क्षमता बहुत बडी थी। वह कवि और संगीतकार भी था। इससे भी बडी बात, उसमें परमेश्वर के लिये अत्यन्त गहरा प्रेम भरा था। परन्तु ऐसा लगता है कि दाउद के पास बुद्धी का अभाव था और शायद सुलैमान इस बात को जानता था और इसका प्रतिफल भी देखा था।

दो घटनायें पिता और पुत्र के अन्तर को स्पष्ट कर सकते हैं।

दाउद के मित्र योनातान, जो शाउल का पुत्र था, उसका एक विकलांग पुत्र था जिसका नाम मेपिबोसेथ था। दाउद ने उस समय के सर्वमान्य प्रचलन, जिसके अनुसार शत्रु रजघराने के सभी परुष सदस्यों की हत्या कर दी जाती थी, को दरकिनार कर दिया। उसने मेपीबोसेथ को जीवन पर्यन्त अपने पुत्र के रुप में स्वीकार कर पुत्र के समान ही अपने टेबल पर खाने की सुविधा दे दी। कितना बडा अनुग्रह, कितनी बडी कृपा, जो इसके लायक था ही नहीं। कितनी सुन्दरता के साथ दाउद ने परमेश्वर के प्रेम का एक अयोग्य व्यक्ति के लिये प्रदर्शन किया था।

एक समय ऐसा आया जब दाउद के अपने ही पुत्र अबसालोम ने दाउद के खिलाफ विद्रोह किया और दाउद को यरुशलेम छोडकर भागना पडा। मेपीबोसेथ का नौकर सीबा प्रवास में दाउद के साथ था लेकिन मेपीबोसेथ राजमहल में ही रहा। जब दाउद ने सीबा से पूछा कि मेपीबोसेथ कहां है, तब उसने जबाब दिया, “सीबा ने राजा से कहा, वह तो यह कहकर यरूशलेम में रह गया, कि अब इस्राएल का घराना मुझे मेरे पिता का राज्य फेर देगा। राजा ने सीबा से कहा, जो कुछ मपीबोशेत का था वह सब तुझे मिल गया। सीबा ने कहा, प्रणाम; हे मेरे प्रभु, हे राजा, मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि बनी रहे।” (२ शमू १६:३-४)।

कुछ समय बाद अबसालोम की हत्या हो गयी और दाउद सीबा के साथ यरूशलेम वापस आ गया। मेपिबोसेथ उनके स्वागत में बाहर आया। दाउद का पहला प्रश्न था, ‘मेपीबोसेथ, तू मेरे साथ क्यों नहीं आया?’ मेपीबोसेथ ने उत्तर दिया कि सीबा ने उसे गधे की सवारी की तैयारी करने में सहायता नहीं की और दाउद के सामने उसे बदनाम किया। वह तो हमेशा ही दाउद के प्रति स्वामी भक्त ही रहा है। ’ (२ शमू १९: २४-३०)।

इस कथा ने मुझे उलझन में डाल दिया, मैंने इस घटना को कईबार पढा और इस निर्णय पर पहुंचने की कोशिश की कि इन दोनों में कौन सही है और कौन झूठ बोल रहा है। तभी दूसरा विचार मेरे मनमें आया। यह मेरी समस्या नहीं थी, बल्कि दाउद की थी। मुझे कैसे पता चले कि दाउद नहीं जानता था? दाउद इस सम्पत्ति में दोनों को बराबर भाग लगाने की आज्ञा दे दी। इन सभी बातों में दाउद ने बडे ही बुद्धीहीनता का प्रदर्शन किया।

इसका फल गम्भिर अन्याय था। यदि मेपिबोसेथ सच्च बोल रहा था तो बिना कारण उसे अपनी आधी सम्पत्ति गंवानी पडी थी, और सीबा अपने झूठ के लिये अत्यधिक पुरस्कृत हुआ था। यदि सीबा सच्च बोल रहा था तो मेपिबोसेथ एक ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध धोखा और कृतघ्नता का गम्भीर अपराधी था जिसने उसे सिर्फ असिमीत दया दिखाई थी। उसके लिये ये अच्छा हुआ कि अपनी आधी सम्पत्ति ही गंवानी पडी। इसके अलावा सीबा को की गई प्रतिज्ञा से दाउद पिच्छे हट रहा था।

सुलैमान के सामने परमेश्वर से अपनी भेंट के तुरन्त बाद एक अति ही गम्भीर समस्या आ कर खडी हो गयी थी। (१ राजा ३: १६-२८) एक ही घर में दो वेश्याओ ने दो बच्चों को जन्म दिया। एक बच्चा जीवित और स्वस्थ था, लेकिन दुसरा मर गया। दोनों ने ही जीवित बच्चे को अपना होने का दावा कर रही थीं और कोई साक्षी भी उपलब्ध नहीं था। सुलैमान के साथ परमेश्वर की बुद्धी थी। फिर राजा ने कहा,“ मेरे पास तलवार ले आओ”; सो एक तलवार राजा के साम्हने लाई गई। तब राजा बोला, “जीविते बालक को दो टुकड़े कर के आधा इस को और आधा उसको दो।” तब जीवित बालक की माता का मन अपने बेटे के स्नेह से भर आया, और उसने राजा से कहा, “हे मेरे प्रभु! जीवित बालक उसी को दे”; परन्तु उसको किसी भांति न मार। दूसरी स्त्री ने कहा, “वह न तो मेरा हो और न तेरा, वह दो टुकड़े किया जाए।” तब राजा ने कहा, “पहिली को जीवित बालक दो; किसी भांति उसको न मारो; क्योंकि उसकी माता वही है।” इस प्रकार वास्तवीक मां को जल्द ही उसका अपना बच्चा प्राप्त हो गया।

सुलैमान ने, परमेश्वर की बुद्धी से भरपूर, करीब करीब असम्भव समस्या का समाधान कर दिया। इसकी तुलना में साधारण समस्या का निराकरण भी दाउद से नहीं हो सका था। सुलैमान का न्याय परमेश्वर के न्याय को प्रतिबिम्बीत करता है जो असिमीत बुद्धी पर आधारित है। दाउद का फैसला स्वर्गीय सहयोग रहित मानवीय स्रोत को दर्शाता है।

सुलैमान के शासन के आरम्भ में घटित यह घटना इतनी शानदार थी कि उसकी प्रजा आश्चर्यचकित रह गई। लेकिन यह तो भविष्य में प्रकट होने वाली बुद्धी का एक छोटा सा अंश ही था। यह प्रेरणा का एक झोंका या पवित्र आत्मा का वरदान था जिससे हाल की आवश्यकता पुरी की जा सके। बाद में सुलैमान उस समय के सभी विषयों पर बुद्धी से भरपूर पाया गया। जैसा कि उल्लेख किया गया है, ‘और परमेश्वर ने सुलैमान को बुद्धि दी, और उसकी समझ बहुत ही बढ़ाई, और उसके हृदय में समुद्र तट की बालू के किनकों के तुल्य अनगिनित गुण दिए।’ (१ राजा ४:२९) उसकी बुद्धी इतनी असिमीत थी कि दूर दूर से लोग उसकी बातें सुनने के लिये आते थे।

यीशु स्वयम् बुद्धी और कद में बढते गये। उन्होंने एकाएक अचानक होने वाला परीवर्तन अनुभव नहीं किया । १२ वर्ष की उम्र में यीशु इतने बुद्धीमान हो गये थे कि व्यवस्था के विषय में अपने से बडे उम्र के लोगों से बातचीत कर सकें। ३० वर्ष की उम्र में उनकी बुद्धी परीपक्वता में सिद्ध हो गयी थी और वे पिता के द्वारा दिये गये काम करने के लिये तैयार थे।

कलीसिया का युग जो अभी चल रहा है, यह बुद्धी का युग नहीं रहा है। बहुत से परमेश्वर के सच्चे सन्त भ्रष्ट मण्डली के सदस्य रहे हैं। उन्हें सच्चाई कम और झूठ अधिक खिलाया गया है। उन्होंने संघर्ष किया है, प्रार्थना की है, दाउद की तरह आंसू बहाये हैं और अपने मुक्तिदाता के प्रेम के लिये अपना लहू बहाया है। फिर भी साधरणतया इनमें बुद्धी का अभाव रहा है।

यीशु ने अपने चेलों से कहा, ‘इस युग के सन्तान अपने युग के ज्योति के सन्तान की तुलना में अधिक बुद्धीमान् हैं’। वह युग परमेश्वर के लोगों के लिये बुद्धीमत्ता का युग नहीं ठहराया गया था।

पौलुस स्वयम् परमेश्वर के द्वारा प्राप्त बुद्धी में उत्क्रिष्ट था। हिब्रू भाषा शास्त्र में उसकी समझ की निपुणता उस समय की पृस्टभूमी को देखकर अतुलनीय लगता है। बच्चे अपना भोजन इस बात से बिलकुल अनजान होकर करते हैं कि किस प्रकार यह टेबुल तक आ पहुंचा है। उनके माता पिता किस प्रकार परीश्रम करके आय आर्जन करते हैं, भोजन सामग्री खरीदते हैं, इन्हें पकाकर टेबुल पर परोसते हैं, इस विषय में वे कुछ नहीं जानते। वे इन सारी चीजों को स्वाभाविक रुप से मान लेते हैं। इसी प्रकार अधिकांश लोग नये नियम को पढते समय यह विचार ही नहीं करते कि यह कैसे अस्तित्व में आया। परमेश्वर ने पौलुस के मन को स्वर्गीय बुद्धी से प्रबुद्ध कर दिया जिसे उसने अपने पत्रों मे़ं व्यक्त किया। इस बुद्धी के विषय में उसने ईफिसियों ३: ९,१० में बताया है: ‘और सब पर यह बात प्रकाशित करूं, कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्वर में आदि से गुप्त था। ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का नाना प्रकार का ज्ञान, उन प्रधानों और अधिकारियों पर, जो स्वर्गीय स्थानों में हैं प्रगट किया जाए।’

पौलुस ने स्वयम् तो इस बुद्धी का अनुभव किया लेकिन कलीसिया इस मार्ग पर आगे नहीं जा सकी बल्कि अन्धेपन, अज्ञानता और मूर्खता में गिरती गयी। पौलुस का यह दर्शन कि कलीसिया के द्वारा परमेश्वर का नाना प्रकार के ज्ञान का प्रदर्शन हो, इसे पूर्ण होने में देरी हो गयी। दाउद के युग का संघर्ष पहले आरम्भ होना था।

विश्व निश्चय ही एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुका है जिसमें ज्ञान सभी कल्पना की सीमा को पार कर चुका है। हरेक तरह से आदमी पहले से अधिक बुद्धीमान् हो गये हैं। तुलनात्मक रुपसे परमेश्वर के लोग प्राय: मूर्ख लगते – और हैं।

अब इस अवस्था का अन्त होना है। अब हम ऐसे समय में आ गये हैं जब, सुलैमान की तरह, हम परमेश्वर से बुद्धी के लिये बिन्ती करेंगे, और वह हमें बुद्धी प्रदान करेंगे। वह अपनी बुद्धी हमें प्रदान करना चाहते हैं।

बुद्धी क्या है और यीशु किस प्रकार इसे प्रदान करते हैं? यीशु ही बुद्धी हैं और वह स्वयम् को प्रदान कर इसे प्रदान करते हैं।

शान्ती (अमन, मेल)

सुलैमान के सपने में परमेश्वर ने जिन आशिषों की प्रतिज्ञा की थी उनमें शान्ती का उल्लेख नहीं है। हां, यह उसके नाम सुलैमान का अर्थ अवश्य है। सुलैमान – Shlomo (שְׁלֹמֹֽה) हिब्रू शब्द शालोम की तरह ही इसका अर्थ शान्ती है, और निश्चय ही यह सुलैमान के शासन का एक रूप था।

दाउद युद्ध पसन्द व्यक्ति था। अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में उसने सुलैमान से कहा, ‘परन्तु यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, कि तू ने लोहू बहुत बहाया और बड़े बड़े युद्ध किए हैं, सो तू मेरे नाम का भवन न बनाने पाएगा, क्योंकि तू ने भूमि पर मेरी दृष्टि में बहुत लोहू बहाया है। देख, तुझ से एक पुत्र उत्पन्न होगा, जो शान्त पुरुष होगा; और मैं उसको चारों ओर के शत्रुओं से शान्ति दूंगा; उसका नाम तो सुलैमान होगा, और उसके दिनों में मैं इस्राएल को शान्ति और चैन दूंगा’ (१ इति २२:८,९)।

यशायाह और मीका, दोनों नबियों ने एक ऐसा दिन देखा था जब लोग ‘अपनी तलवारें पीट कर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे’ (यशायाह २:४)।

हिब्रू की किताब के लेखक ने शबाथ (विश्राम दिन) की पूर्णता में इसी सत्यता को देखा। उसने लिखा, ‘सो जान लो कि परमेश्वर के लोगों के लिये सब्त का विश्राम बाकी है (हिब्रू ४:९) । ‘हे प्रियों, यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं’। (२ पतरस ३:८)। बाइबल में उल्लिखीत ६ दिन या ६००० वर्ष की अवधी समाप्त हो गयी है, और अब हम सातवें दिन में प्रवेश कर रहे हैं।

मेरा विश्वास है कि एक दिन ऐसा आएगा जब युद्ध का अन्त हो जाएगा और विश्व के सब देश एक दूसरे के साथ शान्ती से रहेंगे। लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात ये होगी कि वह दिन ऐसा होगा जब परमेश्वर के लोग अपने शबत विश्राम में प्रवेश करेंगे, और अपने अपने कामों का अन्त कर परमेश्वर की शक्ति में जीएंगे और विश्राम करेंगे।

धन सम्पत्ति

समृद्धी और धन सम्पत्ति बुद्धी और शान्ती के स्वाभाविक प्रतिफल हैं। बुद्धी समृद्धी की नींव है, ठीक उसी प्रकार, जैसे कि मूर्खता गरीबी की नींव है। लेकिन शान्ती के बिना अधिक समृद्धी सम्भव नहीं है। युद्ध अधिकांश लोगों की गरीबी का कारण है।

सुलैमान का साम्राज्य विशाल क्षेत्र में फैला था, और बहुत से पडोसी देश उसे कर देते थे। वह बहुत बडी सम्पत्ति का मालिक था। सुलैमान के लिये इस सम्पत्ति का अर्थ था भव्य दरबार, अन्गिनत नौकर चाकर, बहुत से मवेशी, भरपूर भोजन सामग्री, और बहुत बडे परीमाण में सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थर। इस सांसारीक धन सम्पत्ति का आत्मिक समतुल्य क्या है?

उसका दरबार: तो सर्वप्रथम हम सुलैमान के दरबार या जैसा कि हिब्रू भाषा में कहते हैं, उसके घर के विषय में विचार करें। यह एक विशाल भवन था जो १५० फीट लम्बा, ७५ फीट चौडा और ४५ फीट उंचा था। इसके निर्माण में १३ वर्ष लगे थे। घर क्या होता है? घर बार विहीन लोगों से पूछना अच्छा होता। घर एक ऐसी जगह है जहां आप रहते हैं, जिस पर आपका स्वामित्व है। यह आपको सुरक्षा देती है। हवा पानी से आपकी रक्षा करती है। यह ऐसी जगह है जहां आप अपनी चीजें सरक्षित रख सकते हैं। अधिकतर घर किसी भी व्यक्ति के समृद्धी को दर्शाता है।

यीशु ने अपने चेलों से कहा कि वह उनके लिये जगह (रहने की) तैयार करने जा रहे हैं। बाद में यीशुने उनसे कहा कि उन्हें उनमें रहना आवश्यक है। यीशु ही वह जगह हैं। वह स्वयम् ही भवन हैं। वह हीं वह जगह हैं जहां हमें रहना है। तूफान से हमारी रक्षा करने वाले वही हैं। सिर्फ उन्हीं में हमारी आत्मिक सम्पत्ति सुरक्षित हैं। उन्हीं में बुद्धी और ज्ञान का सारा खजाना छुपा है। यीशु ही वह विशाल दरबार हैं जहां हम समृद्धी और भरपूरी में जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

उसके नौकर चाकर: सुलैमान के पास बडी संख्या में नौकर चाकर भी थे। हमारे लिये इस बात का अर्थ क्या हो सकता है? हिब्रू १:१४ में हम पढते हैं, ‘क्या वे सब (स्वर्गदूत) सेवा टहल करने वाली आत्माएं नहीं; जो उद्धार पाने वालों के लिये सेवा करने को भेजी जाती हैं’? उत्पत्ति से लेकर प्रकाश की पुस्तक तक बाईबल स्वर्गदूतों के सन्देशों और गतिविधियों से भरा हुआ है। फिर भी हम में से अधिकांश उनके विषय में बहुत कम जानते हैं। कितनी बार परमेश्वर के प्रकाश को दानियल और यूहन्ना तक पहुंचाने में स्वर्गदूतों ने मध्यस्तता की है। कितनी बार युद्ध क्षेत्र में इन्होंने इजराइलियों की सहायता की है। कितनी बार उन्होंने आवश्यकता पडने पर सहायता पहुंचायी है। इन्होंने यीशु की दो बार सहायता की, मरूभूमी में परीक्षा के बाद और गेतसमनी में। उन्होंने आवश्कता पडने पर एलियाह को भोजन उबलब्ध कराया। पौलुस भविष्य के ऐसे दिन के विषय में बात करता है जब परमेश्वर के लोग स्वर्गदूतों का न्याय करेंगे। सम्भव है स्वर्गदूत सुलैमान के अन्गिनत नौकर चाकर के समतुल्य हों।

उसके मवेशी: अन्गिनत नौकर चाकर के अलावा सुलैमान के पास असिमीत संख्या में मवेशी भी थे, खासकर घोडे। पशु किसी काम को अच्छी तरह पूरा कर सकते हैं, लेकिन मनुष्य और उनके बीच जो बडा अन्तर है (धर्मशास्त्र हमें बताता है) वह यह है कि पशु सोच नहीं सकते हैं। भजन ३२:९ कहता है, ‘तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते,’ इसके विपरीत, जैसा कि हमने देखा है, सुलैमान बुद्धी से भरपूर और उसका हृदय समझदार था। मेरा विश्वास है कि परमेश्वर के उद्देश्य की पूर्ति में उन लोगों का महत्वपूर्ण स्थान होगा जो सारे बल से उसका काम करते हैं, लेकिन आत्मिक बुद्धी और समझ रहित जीवन व्यतीत करते हैं।

उसके भोजन सामग्री: भोजन और पेय पदार्थ परमेश्वर के वचन और उसकी आत्मा के चिन्ह हैं। जब परमेश्वर बोलते हैं, हम उनकी आवाज सुनते हैं, हम भोजन करते हैं। उनका वचन ही वह भोजन है जो हमें ताकत देता है और हमें बलवान बनाता है। उनकी आत्मा दाखमद्य के समान है जो हमें आनन्दित करता है। विगत में हमने निश्चय ही परमेश्वर के उत्तम वचन का स्वाद लिया है और उनकी आत्मा का दखमद्य पिया है, लेकिन आने वाला भोज ऐसा होगा कि पिछला सर्वश्रेस्ठ भोज भी इसके आगे बिलकुल फींका लगेगा।

उसका खजाना: सुलैमान का खजाना सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थरों से भरा पडा था। बाइबल और सधारण कहावत भी धन सम्पत्ति को बुद्धी के साथ जोडकर देखते हैं। ‘बुद्धि की प्राप्ति चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चान्दी से अति योग्य है’। (हितो १६:१६) । जैसा कि उपर उल्लेख किया गया है, ‘जिस (मसीह) में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं’ (कुलु २:३)। हम देख चुके हैं कि सुलैमान ने परमेश्वर से बुद्धी के वरदान के लिये विन्ती की थी और इस वरदान ने उसे अन्य आशिषों तक पहुंचाया।

मानवीय विचार से देखें तो बुद्धी और ज्ञान धन सम्पत्ति प्राप्त करने में सहायक होते हैं। व्यापार, कानून, औषधी और कम्प्यूटर का ज्ञान लोगों को धनी बना सकते हैं। धन सम्पत्ति अन्य चीजें प्राप्त करने की कुंजी है। सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थर आत्मिक संसार के बुद्धी, ज्ञान और समझ हैं। बुद्धी बहुमूल्य और सुन्दर है और अपने साथ अन्य आत्मिक आशिषों को लेकर आती है।

अभी तक, मेरा मानना है, कि हम गरीबी में जीवन व्यतीत करते आये हैं। जिस विशाल सम्पत्ति को पिता हमें देना चाहते हैं, उसके एक बहुत ही छोटे हिस्से का स्वाद हमने लिया है।

धन सम्पत्ति परमेश्वर के लोगों के सामुहिक (आत्मिक) अधिकार पर निर्भर करता है।

जब परमेश्वर मसीह के शरीर को एक साथ हमारी कल्पना से परे पूर्णता और परीपक्वता में पहुंचायेंगे तब हमे सुलैमान का खजाना प्राप्त होगा।

एक साथ एकत्रित होने का अर्थ सुलैमान के मन्दिर का निर्माण होना है।

सुलैमान का मन्दिर

यीशु ने अपने चेलों से कहा, ‘मुझमें रहो और मैं तुझ में।’ हां, दोनों ही बातें एक आपस में ठीक हैं। हम यीशु में रहते हैं और यीशु हम में। परमेश्वर हमारे वास स्थान हैं। हम परमेश्वर के वास स्थान हैं। परमेश्वर हमारे अन्दर वास करते हैं, मन्दिर इस तथ्य को चित्रीत करता है। ये महान् सत्य स्वाभाविक मन स्वीकार नहीं करता, लेकिन आत्मिक अवस्था में सत्य लगते हैं, जो समय और स्थान के नियम से परे है।

दाउद मन्दिर का निर्माण करने की इच्छा रखता था, लेकिन, क्योंकि वह युद्ध करने और लहू बहाने वाला व्यक्ति था, इसीलिये परमेश्वर ने उसकी महात्वाकान्छा पूर्ण नहीं होने दी।

सामग्री के व्यवस्था की जिम्मेवारी उसने पूरी की लेकिन वास्तविक निर्माण का उत्तरदायीत्व सुलैमान के कंधों पर पडा।

यह मन्दिर मसीह का सच्चा शरीर होगा। यह दृस्टीगत होने वाली कलीसिया नहीं है जिसे हमने विगत में, अभी तक देखते और अनुभव करते आये हैं। यह तो अधिकांश रुप में बाइबल में उल्लिखीत बाबेल या बेबिलोन का प्रतिरूप रहा है।

परमेश्वर की इच्छा है कि वह अपने लोगों को एकत्रीत करें। मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि मसीही लोग बडी संख्या में विशाल भवनों या खुली जगहों में एक साथ इकट्ठा होंगे। मेरा कहना यह भी नहीं है कि करिसमेटीक, इभान्जेलिकल या बाइबल पर विश्वास करने वाले लोगों का एक सुपर डिनोमिनेसन स्थापित किया जाय। ऐसे काम अच्छे उद्देश्य के साथ आरम्भ किये जा सकते हैं, लेकिन इनका अन्त बाबुल का गु्म्बद निर्माण करने जैसा ही होता है। परमेश्वर का सच्चा मन्दिर मसीह के शरीर का आत्मिक एकत्रीकरण है और रहेगा।

परमेश्वर के लोगों के एकत्रित होने का स्थान कौन सा होगा? थिसुलुनिकियों के पत्र में पौलुस ने एक मात्र स्वीकार्य स्थान का नाम उल्लेख किया है। हम सब को उनके पास या उनमें एकत्रित होना चाहिये। (२ थिसु २ :१)। वह कौन हैं? यीशु के अलावा और कौन हो सकते हैं? जहां दो या तीन सत्यता और वास्तविकता में उनके नाम में एकत्रित होते हैं, वहां उनके बीच वह रहते हैं। ( एक दूसरे के साथ इकट्ठा होना देखें) परमेश्वर ने अपने लोगों के लिये जिस एकता की योजना की है, वह यही है।

मन्दिर के वास्तविक निर्माण में सात वर्ष लगे थे, लेकिन आवश्यक निर्माण सामग्री इकठा करने का काम बहुत पहले आरम्भ हो गया था। आवश्यक पत्थरों को तरासना और सही आकार देने का काम मन्दिर में चिनाई करने से बहुत पहले ही खदानों में शुरु हो गया था।‘और बनते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया, जो वहां ले आने से पहिले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हथौड़े वसूली वा और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाईं नहीं पड़ा’। (१ राजा ६:७) इसी प्रकार जिवीत पत्थर भी जिनसे आत्मिक मन्दिर का निर्माण होना है, वास्तविक निर्माण स्थल जहां उन्हें एक साथ जोडा जायेगा, से अलग ही छेनी और हथौडे से तरासे जा रहे हैं। अभी यही काम हो रहा है। अभी इन खदानों में परमेश्वर की महीमा नहीं देखी जा सकती है, लेकि जब इन पत्थरों को चुप चाप एक दूसरे से जोडकर परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर का निर्माण पूर्ण हो जायेगा तब उसकी महिमा हमारी सभी कल्पनाओ से परे होगा।

अन्त में जब मन्दिर का निर्माण पूरा हुआ तब इदकर समर्पण के लिये सुलैमान ने सभी इजराइलियों को निमन्त्रित किया। (१ राजा ८)। इस महान् अवसर के लिये परमेश्वर ने कौन सा समय चुना? यह तम्बुओ के पर्व का समय था। इसके अलावा और कोई समय हो ही नहीं सकता था। यह पर्व मूसा के द्वारा परमेश्वर ने अपने लोगों को दिए सात पर्वों में आखिरी पर्व है, और यह उनके उद्देश्यों को पूर्ण करने के साथ साथ उनकी इच्छा के उत्कर्ष का प्रतिनिधीत्व करता है। इसमें निहीत सभी संकेतों के द्वारा यह सुलैमान के शासन को अच्छी तरह दर्शाता है।

हम पढते हैं, ‘और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था’ (१ राजा ८:११)।

सुलैमान का शासन इजराइलियों के प्राचीन इतिहास का उत्कर्ष था। इसके बाद जब तक इजराइलियों का देश अस्तित्व में था, कभी भी ऐसी शक्ति और महिमा नहीं देखी गयी। और इस समय जब मन्दिर परमेश्वर की महिमा से सराबोर था, यह सुलैमान के शासन काल का महान उत्कर्ष था। कैसा अद्भूत अवसर था यह।

कोई भी यह कैसे भूल सकता था? फिर भी इतना आश्चर्यजनक होने के बावजूद भी यह भविष्य में निर्माण होने वाले मन्दिर के भव्यता का सिर्फ एक तश्वीर भर था।

पेन्तिकोस का दिन भी एक ऐसा दिन था कि उस दिन उपस्थित कोई भी व्यक्ति उसे भूल नहीं सकता था। परमेश्वर की महिमा एकत्रित समूह पर उतरा और परमेश्वर की शक्ति इतने बडे परीमाण में दिया गया जैसा कि इसके पहले कभी नहीं देखा गया था। उस दिन बहुत से लोगों का जीवन अनन्त जीवन में परीवर्तन हो गया। वह अनुभव अत्युत्तम और अवर्णनीय तो था ही, लेकिन आने वाले महान् महिमा की तुलना में सिर्फ पूर्वानुभव ही था। यह सिर्फ प्रथम कटनी था और सिर्फ एक दिन के लिये। आने वाले तम्बुओ का पर्व फसल की विशाल कटनी का समय होगा जिसे पकने में गर्मी का पूरा मौसम लगा है। यह सिर्फ एक दिन का नहीं, परन्तु पूरे एक हफ्ता का उत्सव होगा।

हिब्रू भाषा में एक बहुत ही सुन्दर प्रार्थना और भजन है, ‘काश मन्दिर का भवन जल्द निर्माण हो, हमारे ही समय में, और आपकी व्यवस्था में हमारा अंश प्राप्त हो।‘ इस भजन को आज हम लेखक की तुलना में अधिक समझदारी से गा सकते हैं।

शीबा की रानी

सुलैमान का शासन काल शीबा की रानी के आगमन के कारण भी प्रसिद्ध है, जिसका वर्णन १ राजा १० में मिलता है। उसका यश रानी के देश तक फैला था, लेकिन उसे लगता था कि लोग बढा चढा कर बातें करते हैं। कठीन प्रश्नों के साथ वह सुलैमान की जांच करने आयी और उसके सभी प्रश्नों का राजा ने सन्तोषजनक उत्तर दिया। रानी ने सुलैमान का दरबार, उसके नौक चाकर और उसकी सम्पत्ति देखी, और अक्षरस: ‘उसके होस उड गये। तब उसने राजा से कहा, तेरे कामों और बुद्धिमानी की जो कीर्ति मैं ने अपने देश में सुनी थी वह सच ही है। परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपनी आंखों से यह न देखा, तब तक मैं ने उन बातों की प्रतीत न की, परन्तु इसका आधा भी मुझे न बताया गया था; तेरी बुद्धिमानी और कल्याण उस कीर्ति से भी बढ़कर है, जो मैं ने सुनी थी’। (१ राजा ६,7)। बाद में इसी अध्याय में हम पढते हैं , ‘और समस्त पृथ्वी के लोग उसकी बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने मन में उत्पन्न की थीं, सुलैमान का दर्शन पाना चाहते थे’ (१ राजा १०:२४)।

जकर्याह की आखिरी भविष्यवाणी (१४:१६), पता नहीं वह इस बात को जानता था या नहीं, इन घटनाओ से पूरी तरह मिलती है।‘तब जितने लोग यरूशलेम पर चढ़ने वाली सब जातियों में से बचे रहेंगे, वे प्रति वर्ष राजा को अर्थात सेनाओं के यहोवा को दण्डवत करने, और झोंपडिय़ों का पर्व मानने के लिये यरूशलेम को जाया करेंगे’।

जकर्याह की आखिरी भविष्यवाणी (१४:१६), पता नहीं वह इस बात को जानता था या नहीं, इन घटनाओ से पूरी तरह मिलती है। ‘तब जितने लोग यरूशलेम पर चढ़ने वाली सब जातियों में से बचे रहेंगे, वे प्रति वर्ष राजा को अर्थात सेनाओं के यहोवा को दण्डवत करने, और झोंपडिय़ों का पर्व मानने के लिये यरूशलेम को जाया करेंगे’

यशायाह और मीका परमेश्वर के लोग यरूशलेम स्थित उसके भवन में और निश्चयता से आने की भविष्यवाणी करते हैं: ‘अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाडिय़ों से अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा की नाईं उसकी ओर चलेंगे। और बहुत जातियों के लोग जाएंगे, और आपस में कहेंगे, आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हम को अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा’ (यशा २:२, मीका ४:१,२)।

इसके विपरीत यीशु ने अपने चेलों से कहा, ‘सारे संसार में जाओ और सभी लोगों में सुसमाचार का प्रचार करो।’

यीशु ने अपने चेलों को यरूशलेम में जब तक अन्य जाति नहीं आ जाते तब तक प्रतिक्षा करने को क्यों नहीं कहा? उन्होंने इन्हें लोगों के पास जाने की आज्ञा क्यों दी?

यीशुने चेलों से लोगों के बीच जाने के लिये इसलिये कहा कि अभी तक सुलैमान का प्रादुर्भाव नही हुआ था और लोगों के जाने के लिये कोई मन्दिर भी नहीं था। दाउद का युग ऐसा समय था जब सन्तों को बाहर जाना आवश्यक था। सुलैमान का युग ऐसा समय होगा जब अन्य जाति अन्दर आयेंगे।

जिस मन्दिर का निर्माण परमेश्वर करने जा रहे हैं, उसकी महिमा का वर्णन शब्दों में करना असम्भव है। यदि वर्णन किया भी जाय तो भी शीबा की रानी की तरह हमारे ह्रिदय से अविश्वास ही प्रकट होगा। लेकिन एक समय ऐसा आयेगा जब हम शीबा की रानी की तरह ही बोल पडेंगे, ‘मैंने इन बातों पर तब तक विश्वास नहीं किया जब तक मैंने स्वयम् आकर अपनी आंखों से नहीं देखा। वास्तव में आधी बातें भी मुझे नहीं बतायी गयी थीं।’

संक्रमण

मेरा विश्वास है कि अभी हम दाउद के युग से सुलैमान कि युग में जाने के लिये संक्रमण काल में हैं। संक्रमण कठीनाई और अनिश्चयता दोनों से भरा समय हो सकता है। स्वभाव से ही हम विगत से चिपके रहना और अनजाने भविष्य से भयभीत रहना चाहते हैं। शमूएल के लिये परमेश्वर के द्वारा शाउल का ईनकार किया जाना दुखद समय था। लेकिन परमेश्वर ने उससे कहा, ‘और यहोवा ने शमूएल से कहा, मैं ने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिये तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपने सींग में तेल भर के चल; मैं तुझ को बेतलेहेमी यिशै के पास भेजता हूं, क्योंकि मैं ने उसके पुत्रों में से एक को राजा होने के लिये चुना है’। (१ शमू १६:१)। शामूएल के लिये परमेश्वर के साथ आगे बढना आवश्यक था।

दाउद परमेश्वर का नया दास था, और उसने परमेश्वर की सेवा की और सम्पूर्ण ह्रिदय से उसे प्रेम किया। उसने इजराइल देश पर अद्भूत रीति से शासन किया, फिर भी वह अमर नहीं था, विशेषकर इस पृथ्वी पर। शाउल के समान ही दाउद की मृत्यु भी शोक का समय था। उसकी प्रजा उसे मन की गहराई से प्रेम करते थे, उसने भी उनके लिये बडी बडी उपलब्धियां हासील की थी। प्रजा नहीं चाहती थी कि राजा दाउद की मृत्यु हो।

जब दाउद वृद्ध और कमजोर हो गया, तब उसे मृत्यु से बचाने के लिये, लोगों ने देश भर एक युवा लडकी की खोज की, जो दाउद के शरीर को गरम रख सके। उन्हों ने शूनामी अबीशैग को पाया जो उसके साथ सो सके। वचन में लिखा है कि , ‘उसने लडकी के साथ सहवास नहीं किया।‘ लाक्षणिक रूप से उनका सारा प्रयास व्यर्थ रहा। वे उसे जीवित नहीं रख सके। और फिर अबिशैग का अर्थ ‘भूल का पिता’ होता है। यदि हम विगत के परमेश्वर के कामों से चिपके रहें और बिते हुए कामों को जीवीत रखने का प्रयत्न करें तो हम भी ‘भूल के पिता’ बन जायेंगे।

पौलुस, जिसे कभी शाउल के नाम से जाना जाता था, उसने व्यवस्था के युग से अनुग्रह के युग के बीच का संक्रमण अनुभव किया था। इसमें उसकी जाति के यहूदी लोगों का क्षणिक इनकार किया जाना भी समावेश था। जानकर या अनजाने में, इसमें कोई शंका नहीं कि इसी कारण उसने अपना नाम हिब्रू भाषा के शाउल से बदल कर लैटीन भाषा में पौलुस रखा। यह इन दोनों बातों को दर्शाता है, एक युग का अन्त और एक जाति का इन्कार।

पौलुस, जिसे कभी शाउल के नाम से जाना जाता था, उसने व्यवस्था के युग से अनुग्रह के युग के बीच का संक्रमण अनुभव किया था। इसमें उसकी जाति के यहूदी लोगों का क्षणिक इनकार किया जाना भी समावेश था। जानकर या अनजाने में, इसमें कोई शंका नहीं कि इसी कारण उसने अपना नाम हिब्रू भाषा के शाउल से बदल कर लैटीन भाषा में पौलुस रखा। यह इन दोनों बातों को दर्शाता है, एक युग का अन्त और एक जाति का इन्कार।

रोमियो ९:२,३ में उसने अपना हृदय उडेल दिया है, ‘कि मुझे बड़ा शोक है, और मेरा मन सदा दुखता रहता है। क्योंकि मैं यहां तक चाहता था, कि अपने भाईयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं, आप ही मसीह से शापित हो जाता’। लेकिन परमेश्वर ने उसे अन्यजाति के लिये प्रेरित नियुक्त किया था और उसे परमेश्वर के साथ आगे बढना था। वह परमेश्वर के विगत के योजनाओ में अपने को उलझा नहीं सकता था।

पतरस का कहना था, ‘दाउद अपने समय में परमेश्वर की इच्छा के अनुसार लोगों की सेवा करने के बाद मर गया।’ हमें भी अपने पुस्ता के लोगों के बीच सेवा करना आवश्यक है, शाउल या दाउद या अपने पुर्खों के पुस्ता की नहीं, लेकिन सुलैमान के पुस्ते की, जिसमें हम प्रवेश करने जा रहे हैं। परमेश्वर में भविष्य हमेशा विगत के समय से अच्छा होता है।

संसार

परमेश्वर के लोगों के लिये राजा सुलैमान और उसके शासन के महत्त्व के विषय में हमने चर्चा की है। अब हम संसार के लिये इसका अर्थ या महत्त्व क्या है, इस विषय पर चर्चा करेंगे।

हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब जीवन के कई क्षेत्रों में विगत के पुस्ता की तुलना में बुद्धी और ज्ञान के क्षेत्र में कल्पनातीत वृद्धी हुई है। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में शानदार प्रगति हुई है। विगत ५० वर्षों में शायद इतनी अधिक प्रगति हुई है जो इससे पहले के पूरे इतिहास में नहीं हुई। लेकिन यह बुद्धी और ज्ञान विश्वव्यापी स्वरूप नहीं ले सके हैं। बहुत सी मानवीय समस्याओ का समाधान नहीं हो सका है, और इतनी बडी प्रगति होने के बावजूद भी पहले की तुलना में लोगों की हालत बहुत बुरी है। विश्व के अरबों की जन संख्या में सिर्फ कुछ अल्पसंख्यक ही इस महान् प्रगति का लाभ उठा रहे हैं।

विश्व में शान्ती स्थापित हुई है लेकिन खण्डीत रूप में। विगत ८० वर्षों से पश्चिमी देशों में युद्ध नहीं हुआ। लिखीत इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। बडी दुखद बात है कि विश्व के अन्य भाग में ऐसा नहीं है। अफ्रिकी और एशिया के देशों में विभत्स युद्ध हो रहे हैं और गरीबी में जी रहे लोगों के जीवन को और अधिक कष्टकर बना रहे हैं।

सम्रिधी, जो पहले सोचा भी नहीं जा सकता था, पश्चिमी देशों में बहुत से लोगों के पास आ गयी है। बहुत से लोग पूर्व राजाओ से भी अच्छा जीवन जी रहे हैं। लेकिन, कुछ गिने चुने लोगों के पास ही ये आशिषें हैं। विश्वव्यापी रूप में अधिकांश व्यक्ति चरम गरीबी जी रहे हैं, जिन्हें यह भी पता नहीं कि फिर कब चुल्हा जलेगा।

दिर्घायु, सुलैमान को दी गयी आखिरी प्रतिज्ञा, भी कुछ ही लोगों के जीवन में पूरी हो रही है। पश्चिमी देशों में पहले की तुलना में लोग अभी ३० वर्ष ज्यादा जी रहे हैं। लेकिन विश्व के अन्य देशों में पहले की तुलना में लोगों की उम्र घटी है। बहुत से बच्चे बचपन पार नही़ कर पाते और अधिकांश लोग ५० की उम्र में बुढे दिखते हैं।

इन सभी बातों में हम एक शुरुवात और एक सम्भावना देखते हैं, लेकिन पूरी तश्वीर अभी दूर है। हम उस समय की प्रतिक्षा कर रहे हैं जिसे हबक्कुक ने देखा था, ‘क्योंकि पृथ्वी यहोवा की महिमा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसे समुद्र जल से भर जाता है’ (हब्ब २:१४)।

सुलैमान का पतन

पूर्णता देने के लिये, सुलैमान के पतन के विषय में हम संक्षेप में चर्चा करेंगे।

प्रकाशित वाक्य के २० अध्याय में शैतान को १००० वर्षों के लिये बांधे जाने और थोडे समय के लिये खोले जाने की बात लिखी गयी है। तदनुसार १ राजा ५:४ में सुलैमान कहता है, ‘परन्तु अब मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझे चारों ओर से विश्राम दिया है और न तो कोई विरोधी है, और न कुछ विपत्ति देख पड़ती है’। हिब्रू में विरोधी शब्द शैतान के लिए उपयोग होता है। इसक अक्षरस: अनुवाद होगा, ‘न कोई शैतान है’। बाद में १ राजा ११ में, जब सुलैमान परमेश्वर को छोड अन्य देवी देवताओ को पूजना आरम्भ करता है, तब हम पढते हैं, ‘परमेश्वर ने सुलैमान के लिये एक विरोधी खडा किया’ – हिब्रू भाषा में शैतान। सुलैमान के लिये शैतान को पहले बांधा गया और फिर स्वतन्त्र कर दिया गया।

ऐसा लगता है कि अपने पतन से पहले सुलैमान ने २० वर्षों तक परमेश्वर की सेवा की। ५० वर्ष का एक जुबली के हिसाब से २० जुबली १००० वर्ष होते हैं, जो समय के हिसाब से भी सही ठहरता है।

१ राजा ११:१-३ में सुलैमान के पतन का विवरण मिलता है: ‘परन्तु राजा सुलैमान फ़िरौन की बेटी, और बहुतेरी और पराये स्त्रियों से, जो मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, सीदोनी, और हित्ती थीं, प्रीति करने लगा’।

सुलैमान ने राजनैतिक लाभ को परमेश्वर के आज्ञा पालन से अधिक प्राथमिकता दी। उसने पडोसी देशों से संधियां कीं और उनके राजघराने से अपने लिये रानियां लाया। विशेषकर उसने मिश्र के फिरौन की पुत्री को अपनी पत्नी बनाया।

इसका तत्काल आत्मिक प्रतिफल मिला। ‘उसकी पत्नियों ने उसका ह्रिदय परमेश्वर दे दूर कर दिया।‘

सुलैमान के पापों का दिर्घकालीन फल आत्मिक और राजनीतिक दोनों ही थे। एक पुस्ता बितने के बाद, ‘राजा रहूबियाम के पांचवें वर्ष में मिस्र का राजा शीशक, यरूशलेम पर चढ़ाई कर के, यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं, सब की सब उठा ले गया; और सोने की जो ढालें सुलैमान ने बनाईं थीं सब को वह ले गया’ (१ राजा १४:२५,२६)। शाउल और दाउद के शासन काल में इजराइल एक शक्तिशाली स्वतन्त्र देश बन गया था। ये सभी बातें नष्ट हो गयीं और इजराइल शतकों तक मिश्र के अधीन उपनिवेश के रूप में रहा। मक्काबीज के समय में थोडे दिनों की स्वतन्त्रता के अलावा मई १४, १९४८ ई तक इजराईल किसी न किसी दूसरे देश के अधीन रहा।

निष्कर्ष

इस लेख का मुख्य विषय परमेश्वर के लोगों में भविष्य में प्रकट होने वाली महिमा है। बदलते हुए स्पष्टता और विवरण के साथ ये सात चीजें स्वतन्त्र रूपसे इसकी साक्षी देते हैं।

किसी बात की सत्यता प्रमाणित करने के लिये कितने साक्षी की आवश्यकता पडती है? ‘दो या तीन साक्षी के द्वारा किसी भी बात की सत्यता प्रमाणित होगी’। बाइबल में इस बात को पांच बार दुहराया गया है (थोडा परीवर्तन के साथ)।

आइये हम अपने हृदय खोलें और परमेश्वर की स्तुति करें, और भविष्य में आने वाली अद्भूत बातों के लिये आनन्दित हों। पतरस के शब्दों में, ‘हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिसने यीशु मसीह के हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया’

‘अर्थात एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये। जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है, जिन की रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आने वाले समय में प्रगट होने वाली है, की जाती है’ (१ पतरस १:३-५)।

आइये हम अविश्वास को छोडकर परमेश्वर पर भरोसा करें, ताकि वह उन अद्भूत और महान् कार्यों को अन्जाम दें, जिनकी प्रतिज्ञा उन्होंने की है।

आइये हम परमेश्वर के साथ आगे बढने की इच्छा रखें। हम शाउल के लिये शोक करना बन्द करें। निर्धारित समय से अधिक दाउद को जीवित रखने का प्रयत्न ना करें। बल्कि प्रेरित पौलुस के समान हम भी ऐसा ही करें, ‘परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ।निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है’ (फिलिप ३:१३-१४)।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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