कलीसिया, धर्मशास्त्र और ईतिहास में क्रूस का स्थान

परीचय

त्रिएकता मसीही धर्म की प्रमुख शिक्षा है और क्रूस इसका विश्वव्यापी चिन्ह। क्रूस और त्रिएकता में आश्चर्यजनक एवम् अविश्वसनीय चार समानतायें हैं।

त्रिएकता की शिक्षा के विषय में मैंने अलग से लिखा है, और इस लेख में हम क्रूस के चिन्ह के विषय में विचार करेंगे। उपरोक्त चारों बातें हम एक एक कर विचार करेंगे।

कलीसिया और आधुनिक विश्व

आधुनिक विश्व और कलीसिया, दोनों में क्रूस अश्चर्यजनक रूप में व्याप्त है। आप इसे सब जगह देख सकते हैं।

क्रूस सभी तरह के आकार प्रकार में उपलब्ध हैं, महिलाओं के गले की माला के लिये एक इन्च से भी छोटे नाप से लेकर विश्व के कई शहरों में दो सय फीट उँचाई तक। ग्रीक क्रूस, रोमन क्रूस, सेल्टीक क्रूस, माल्टीज क्रूस और सेंट एन्ड्रुज क्रूस, सभी के आकार अलग अलग होते हैं।

अनेक कलीसियाओं में धर्म गुरु और अनुयायी दोनों अपने शरिर पर बार बार क्रूस का चिन्ह बनाते हैं। प्रवेश द्वार पर अक्सर वे क्रूस के आगे दण्डवत् करते हैं। बच्चों को समर्पण करते समय उनके ललाट् पर क्रूस का चिन्ह बनाया जाता है।

बहुत सारे कलीसिया भवन का निर्माण क्रूस के आकार में किया जाता है और भवन के अन्दर और बाहर क्रूस से सजाया जाता है।

कैथोलिक देशों में छोटे बडे आकार में चारों ओर क्रूस दिखाई देते हैं और कलीसियाओं के सभी उत्सव बडे बडे क्रूस के साथ रैली कर मनाये जाते हैं ताकि सब देख सकें।

क्रूस से सम्बन्धित बहुत से सुन्दर भजन लिखे गये हैं

अठाइस देशों के झण्डों पर क्रूस हैं। संयुक्त अधिराज्य इनमें सबसे आगे है – इसके झण्डे पर सेंट एन्ड्रूज का क्रूस, सेंट जौर्ज का क्रूस और सेंट पैट्रीक का क्रूस है ।

कुछ खिलाडी अपने गले में क्रूस पहनते हैं ताकि उन्हें सफलता मिले और अन्धविश्वासी लोगों का विश्वास है कि क्रूस उन्हें दुष्टात्माओं से रक्षा करेगा।

पाश्चात्य देशों में कब्रिस्तान अनगिनत क्रूस से भरे हैं, इसका कारण यह हो सकता है कि उनकी आशा के अनुसार क्रूस कब्र के अन्दर रखे गये व्यक्ति की यात्रा को सफलता पूर्वक अगले सन्सार में पहुँचा दे।

कलीसिया में क्रूस का महत्त्व ईतना अधिक है कि हम आशा करते हैं नये नियम की पुस्तक में भी इसका महत्त्व उतना ही हो। आइये, हम बाईबल खोलें और देखें।

बाईबल

जब हम नया नियम खोलते हैं, हमारे सामने दो समस्यायें आती हैं।

पहली समस्या, नये नियम में क्रूस शब्द का न होना।

हिन्दी शब्द क्रूस का हिन्दी नये नियम में लगभग 30 बार उल्लेख हुआ है, लेकिन मूल भाषा ग्रीक में? आप विश्वास नहीं करेंगे, एक बार भी उल्लेख नहीं है!

हिन्दी शब्द ‘क्रूस’ ग्रीक शब्द σταυρος (स्टौरस) का गलत अनुवाद है, इस शब्द का ठीक अनुवाद ‘बिना बाहीं का खम्भा है । (पूर्ण विवरण के लिये σταυρος और σταυροω शब्दों का स्ट्रौङ्ग द्वारा दिये गये परिभाषा देखें।)

वास्तविक सत्यता यह है कि यीशु क्रूस पर चढाये ही नहीं गये थे, बल्कि उन्हें खम्भे पर कील ठोक के मृत्यु दण्ड दिया गया था।

यूहन्ना ३:१४ में यीशु ने अपनी मृत्यु के तरीके के विषय में पहले ही बताया था, “और जिस रीति से मूसा ने जंगल में सांप को ऊंचे पर चढ़ाया, उसी रीति से अवश्य है कि मनुष्य का पुत्र भी ऊंचे पर चढ़ाया जाए।” मूसा ने जङ्गल में किस रीति से सांप को ऊंचे पर चढाया? गिन्ती की पुस्तक, २१:८,९ में हम पाते हैं “यहोवा ने मूसा से कहा , ‘एक तेज विष वाले सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो सांप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।’ सो मूसा ने पीतल को एक सांप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब सांप के डसे हुओं में से जिस जिसने उस पीतल के सांप को देखा वह जीवित बच गया । ” मूसा ने सांप को क्रूस पर नहीं, परन्तु खम्भे पर लटकाया।

पतरस ने लिखा: “आप ही हमारे पापों को अपनी देह पर लिये हुए क्रूस पर चढ़ गया” ( १पतरस २: २४)।

अन्त मे मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि नये नियम में ये दोनों शब्द σταυρος (स्टौरस) और σταυροω (स्टौरो) (जिनका साधारण अनुवाद क्रूस और क्रूस पर चढाना किया गया है) सिर्फ पौलुस की पत्रियों में ही मिलते हैं। (सुसमाचार की पुसतकों और प्रेरितों के काम के साथ साथ स्टौरस का उल्लेख एक बार इब्रानियों में और स्टौरो का उल्लेख एक बार प्रकाशित वाक्य में भी मीलता है। पतरस, याकुब, युहन्ना या यहुदा, इनमें से किसी ने भी अपने पत्रों में इन दोनों शब्दों में से किसी एक का भी उल्लेख कभी नही किया.। यदि मसीही धर्म के लिये क्रूस महत्वपूर्ण है तो उल्लेख होना चहिये था’

दूसरी समस्या – क्रूस के चिन्ह का न होना

नये नियम में क्रूस को चिन्ह के रूप मे उपयोग करने का कोई प्रमाण नहीं मिलता।

नये नियम के समय कलीसिया भवन के उपर कभी भी क्रूस नहीं लगाते थे, क्योंकि कलीसिया भवन होते ही नहीं थे।साधारण सी बात है नये नियम की कलीसिया में मूर्ति या चिन्ह के साथ साथ क्रूस भी नहीं होते थे। किसी को भी उनकी आवश्यकता नहीं थी न ही कोई उन्हे रखना चाहता था। यीशु में विश्वास ह्रिदय के अन्दर की बात थी। सभी बाहरी बातें बाद में आती गयीं।

पौलुस ने वास्तव में यीशु की म्रित्यु दर्शाने के लिये द्रिश्य चित्रो का उपयोग किया था। गलातियों ३:1 में उन्हो़ने लिखा है, “अरे निर्बुद्धि गलातियो, किसने तुम्हें मोह लिया? तुम्हारी आंखों के सामने यीशु मसीह को क्रूस पर चढाया हुआ प्रदर्शित किया गया था।” वह द्रिश्य चित्र क्या था? मुझे नहीं लगता वह पावर प्वाइन्ट प्रेजेन्टेसन था, न ही वह लकडी का बना क्रूस था। यह तो इनसे भी अच्छी चीज थी। यह स्वयम् पौलुस का अपना जीवन था। उन्होंने अपने हीजीवन मे यीशु की म्रित्यु और पुनरुत्थान का प्रदर्शन किया। वह स्वयम् द्रिश्य चित्र थे।

दूसरी आज्ञा कहती है, “तू अपने लिये कोई मूर्ति गढकर न बनाना, अथवा न किसी की प्रतिमा बनाना जो ऊपर आकाश में ,या नीचे धरती पर या धरती के नीचे जलमें है।” (निर्गमन २०:4) क्रूस लकडी का बना स्वरुप है, जिस पर यीशु को म्रित्यु दण्ड दिया गया, ऐसा अधिकांश लोगों का विश्वास है।

हम थोडी देर के लिये कांस के सांप के पास चलते हैं जिसे मूसा ने खम्भे पर लटकाया था। २राजा १८:4 मे इस घटना के करीब १००० वर्ष बाद हम पढते हैं, “उसने ऊचे स्थान ढा दिये, लाटो को तोड दिया और अशेरा को काट डाला। उसने मूसा द्वारा निर्मित कासे के सर्प को भी जो नहुशतान कहलाता था, टुकडे टुकडे कर दिया, क्योकि इस्रएली उस समय तक उसके समक्ष धुप जलाते थे”। । उसने ऐसी पवित्र और प्राचीन स्मारक को नष्ट करने की हिम्मत कैसे की? बहुत ही साहसी काम है।

क्रूस के चिन्ह का आरम्भ नये नियम में नहीं बल्कि उससे भी बहुत पहले हुआ था, जैसा कि हम देखेंगे।

क्रूस के चिन्ह का आरम्भ

वर्ल्ड एटलस के अनुसार , “बहुत सी बातें प्रमाणित करती हैं कि मसीही धर्म के प्रादुर्भाव के सदियों पहले क्रूस के चिन्ह का उपयोग आरम्भ हो चुका था। सिरिया, मिश्र, यूनान, लैटीन, भारत और मेक्सिको में फैलने से पहले प्राचीन बेबिलोन में क्रूसका आरम्भ हुआ था”

दूसरे शब्दो में क्रूस अन्य जाति द्वारा उपयोग किया गया चिन्ह है। चिन्ह के रूप में इसका आरम्भ यीशु की म्रित्यु से नहीं लेकिन उससे भी बहुत पहले अन्य प्राचीन धर्मों में हो चुका था।

बेबिलोन के धर्म में क्रूस का सम्बन्ध उनके देवता तम्मूज से है, जिसका उल्लेख यहेजकेल ने किया है, “तब वह मुझे यहोवा के भवन के उस फाटक के पास ले गया जो उत्तर की ओर था और वहां स्त्रियाँ बैठी हुई तम्मूज के लिये रो रही थीं ” (यहेज (८:14). तम्मूज शब्द का पहला अक्षर बेबिलोन के भाषा का टी है (T) या ✞, जो मसीही धर्म के परम्परगत क्रूस के समान होता था। यह चिन्ह (✞) के रुपमे ठीक उसी प्रकार बेबिलोन के धर्मो में बप्तिस्मा लेने वालों के ललाट पर बनाया जाता था, ठीक उसी प्रकार,जैसा कि परम्परागत मसीही बच्चों के सन्सकारों में।

प्राचीन मिश्र के धर्म में क्रूस आंख का चिन्ह था जैसा कि अंग्रेजी अक्षर T के ऊपर एक व्रित बना हो। (☥). यह अनन्त जीवन का प्रतिक था

हिन्दू धर्म में क्रूस का आकार स्वस्तिक के समान था, (卐), जिसे हिटलर ने आर्य वंश के प्रतिक के रूप में स्वीकार किया । उसका मानना था कि सभी जर्मन आर्य वंशी थे।

बहुत से वेब साइट पर प्राचीन धर्मों में क्रूस के विस्त्रित वर्णन दिये गये हैं, जैसा कि वर्ल्ड एटलस वेब साइट: The History of the Christian Cross जो उपर दिया गया है। इससे अधिक व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।

कलीसिया में क्रूस के चिन्ह का स्वीकार किया जाना

कलीसिया ने अपने महत्वपूर्ण चिन्ह के रूप में किस समय क्रूस को स्वीकार किया?

मसीहियों में चिन्ह के रूप में क्रूस का उपयोग ईस्वी सन् दूसरी या तीसरी शताब्दी में आरम्भ हुआ है, ऐसा लगता है। लेकिन सम्राट कौन्सटेन्टाईन के समय तक इसका प्रचलन चारों ओर फैल नहीं पाया था।

ईस्वी सन् ३१२ में रोमी सेनापति कौन्सटेन्टाईन ने अपने आप को सम्राट घोषित कर दिया और अपनी सेना लेकर तत्कालीन सम्राट मैक्सेन्सियस के बिरुद्ध रोम में आक्रमण कर दिया। रोम के बाहरी इलाके में मिलवियन पुल के पास उन्हों ने युद्ध लडा।

किंवदंती के अनुसार, कौन्सटेन्टाईन और उनकी सेना ने ऊपरआकाश में प्रकाश पूंज से बना एक क्रूस देखा, जिसके साथ ये शब्द लिखे थे “in hoc signo vince” - “इस चिन्ह के साथ विजय प्राप्त करो”. सम्राट् ने अपने सैनिकों को क्रूस के चिन्ह वाले ढाल के साथ युद्ध क्षेत्र में भेजा। उन्होंने मैक्सेन्सियस की हत्या करदी, उसकी सेना को तहस नहस कर दिया और उसका शिर काटकर भाले पर लटका कर रोम शहर में ले आये। उसके बाद कौन्सटेन्टाईन रोम के नये सम्राट बन गये। (अधिक जानकारी के लिये Battle of Milvian Bridge देखें।)

इस घटना के कई शताब्दी बाद पवित्र भूमि (अब इसराइलका भूमि) को विधर्मियों से छुडाने के लिये क्रूसेडर्स इसी प्रकार युद्ध में गये थे। उनके वस्त्रों पर बडे आकर में लाल रंग के क्रूस बनाये गये थे। रास्ते में मिले हरेक यहूदियों की उन्होंने हत्या करदी।

कौन्सटेन्टाईन का परीवर्तन क्रूस के दर्शन के कारण हुआ था, तर्सिस के शाउल का परीवर्तन यीशु के दर्शन के द्वारा हुआ था। शाऊल प्रेरित पौलुस बन गया, कौन्सटेन्टाईन रोम का सम्राट्। सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य में पौलुस ने जीवन भर यीशु के विषय में प्रचार किया और शिक्षा दी, कौन्सटेन्टाईन ने अपना सैनिक आक्रमण जारी रखा और कलीसिया में मूर्त्ति पूजा और ऐसे ही प्रचलन को लाता गया।

कौन्सटेन्टाईन ने निर्णय किया कि मसीही धर्म सम्पूर्ण रोमी साम्राज्य का धर्म हो, लेकिन इसमें अपनी ईच्छा के अनुसार किसी भी प्रकार का सुधार करने के लिये वह स्वतन्त्र हो। अपने धर्म परिवर्तन से पहले वह सूर्य देवता की पूजा करता था, और बाद में भी ऐसा करता रहा। विश्राम दिन (शबथ) को शनिवार के बदले रविवार कर दिया। (रोमियों ने बेबिलोनियन लोगों की तरह ही दिनों का नामकरण सूर्य, चन्द्र और पांच नक्षत्रों के नाम पर रखा। रविवार सूर्य के नाम पर और सोमवार चन्द्रमा के नाम पर। हिब्रू प्रचलन में शबथ के अलावा बाकी दिन पहला दिन, दूसरा दिन आदि थे। कौन्सटेन्टाईन ने २५ दिसम्बर को यीशु मसीह का जन्म दिन के रूप में स्थापित कर दिया, जो कि वास्तव में अविजीत सूर्योत्सव के रूप में मनाया जाता था। वह यहूदियों से और उनसे सम्बन्धित सभी बातों से घ्रिणा करता था और इसी लिये उसने निस्तार पर्व को ईस्टर कर दिया जो कि अविश्वासियों का पर्व थ। मन्दिर सब कलीसिया भवन में परिणत कर दिये गये।

इससे भी बुरी अवस्था आने वाली थी। बाद की सदियों में कलीसिया अपार राजनैतिक शक्ति पाकर यूरोप पर एकक्षत्र शासन करने लगी। जैसे जैसे समय व्यतीत होता गया, कलीसिया अपने इरोधियों को सताने और हत्या करने लगी। इसमें यीशु के सच्चे अनुयायी और यहूदी दोनों थे।

उनकी विचित्रता पर विचार नहीं करके बचपन से हम जिन चीजों को देखते आये हैं, उन्हें आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। हम में से अधिकांश लोग क्रूस से इतना परीचित हैं कि हम यह विचार ही नहीं करते कि मसीही धर्म के लिये यह कितना विचित्र चिन्ह है। यदि यीशु को गोली मारकर म्रित्यु दण्ड दिया गया होता तो क्या उनके अनुयायी बन्दूक को अपना चिन्ह स्वीकार कर लेते? यदि तलवार से उन्हें म्रित्यु दण्ड दिया जाता तो क्या आज के कलीसिया भवन तलवारों से सजाये जाते? मुझे ऐसा नहीं लगता। तो फिर क्यों सब जगह क्रूस ही क्रूस! वास्तव में यह विचित्र लगता है।

यीशु में विश्वास करने का असली चिन्ह सिर्फ उनके सच्चे अनुयायियों का परीवर्तित जीवन ही है।

कुछ बाइबल के विद्वान ऐसा मानते हैं कि स्टोरस क अर्थ खम्भा या क्रूस दोनों हो सकता है और यीशु की म्रित्यु क्रूस पर हुई, खम्भे पर नहीं। हो सकता है, उनका कहना सही हो, लेकिन इसके बवजूद भी निम्नलिखीत तथ्यों का क्या करेंगे?

निष्कर्ष

त्रिएकता और क्रूस के चिन्ह की शिक्षा से सम्बन्धित चार बुंदों को मैं यहां फिर दुहराना चाहता हूं।

बडा दिन, ईस्टर, कलीसिया भवन, कलीसिया से सम्बन्धित पदक्रम, विशेष वस्त्र आदि में यही बातें लागु होती हैं। ये सभी चीजें बेबिलोनियन या अन्य प्राचीन धर्मों से आयी हैं। ये सभी चिजें स्वधर्मत्यागी कलीसियाओ के विशेष लक्षण हैं।

आश्चर्यजनक बात यह है कि नये नियम में इन बतों की भविष्यवाणी की गयी थी। यीशु, पतरस (२ पतरस २:1), पौलुस (२ कोरि ११:13), यूहन्ना (१ यूहन्ना ४:1) और यहूदा (यहूदा ४) सबों ने भविष्यवाणी की थी कि झूठे भविष्यवक्ता परमेश्वर के अनुयायियों के बीच आयेंगे। उन सबों ने भविष्य की स्वधर्मत्यागी कलीसिया को देखा था। यीसु ने स्वयम् बहुत बडे धोखा के विषय में भविष्यवाणी की थी: “क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएंगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें।” (मत्ती २४:२४).

सबसे स्पष्ट नबूवत जो स्वधर्मत्यागी कलीसिया के लिये तब दी गयी थी जब वह पतमुस द्वीप पर निर्वासन में थे। उन्हों ने कलीसिया को जाग्रिति प्राप्त प्राचीन बेबीलोन के रूप में देखा। उनका मुख्य प्रकाश प्रकाशित वाक्य १७:१६ में पाया जाता है। इसके आखिरी शब्द इस प्रकार हैं “और उसके माथे पर यह नाम लिखा था, ‘भेद – बड़ा बाबुल पृथ्वी की वेश्याओं और घृणित वस्तुओं की माता।’ और मैं ने उस स्त्री को पवित्र लोगों के लोहू और यीशु के गवाहों के लोहू पीने से मतवाली देखा और उसे देख कर मैं चकित हो गया” (प्रकाश १७:5,6). यूहन्ना आश्चर्यचकित हो गया। उसे विश्वास नहीं हुआ कि वह क्या देख रहा है। यीशु के साधारण अनियायी जिन्हें यूहन्ना जानता था, उन्हें बडी बडी सांसारिक संस्थाओं में अपहरण कर लिया गया था, जो यीशु के असली अनुयायियों को सताते और हत्या कर रहे थे और वह भी यीशु के नाम में।

बेबीलोन के लिये यूहन्ना के अन्तीम शब्द हैं, “फिर मैं ने स्वर्ग से किसी और का शब्द सुना, कि हे मेरे लोगों, उस में से निकल आओ; कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उस की विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े। क्योंकि उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं, और उसके अधर्म परमेश्वर को स्मरण आए हैं। ” (प्रकाशितवाक्य १८:४,५).