विश्वव्यापी मिलाप

और

अक्षम्य पाप

परिचय

आजकल बहुत से लोग विश्वव्यापी मिलाप पर विश्वास करते हैं – ऐसा विश्वास कि अन्त में मानव जाति का हरेक सदस्य परमेश्वर के साथ मिलाप में होगा। यह शिक्षा बाइबल के अन्य वचन के साथ साथ कुलुस्सियों १:१९,२० पर आधारित है जिसमें ऐसा लिखा है कि यीशु के द्वारा परमेश्वर समस्त वस्तुओ का अपने साथ मेल कर लेगा।

लेकिन मत्ती १२:३२ और मरकुस ३:२९ में यीशु के द्वारा अक्षम्य पाप के विषय में कही गयी बातों से यह शिक्षा कैसे मेल खा सकती है?

कुछ अनुवादों के अनुसार, यीशु ने क हा है कि यह पाप “क्षमा नहीं हो सकता, न इस युग में, न ही आनेवाले युग में।”.

कुछ अन्य अनुवादों के अनुसार यीशु ने कहा, “यह क्षमा नहीं हो सकता, न तो इस संसार में, न ही आने वाले संसार में।”.

और इन दोनों बातों में बहुत बडा अन्तर है।

‘आने वाला युग’ इस पृथ्वी पर स्थापित होने वाले भविष्य को दर्शाता है, ‘आने वाला संसार’ मृत्यु के बाद के समय को दर्शाता है।

आने वाले संसार में कोई भी मिलने वाली क्षमा ऐसी नहीं है जिससे ऐसा लगे कि यीशु पर विश्वास नहीं करने वाले लोग अनन्त काल तक परमेश्वर से दूर रखे जायेंगे या उनका विनाश कर दिया जायेगा और उनका अस्तित्व मिट जायेगा।

आने वाले युग में मिलने वाली क्षमा भी कोई ऐसी सम्भावना नहीं दिखाती कि भविष्य में, इस धरती पर, आने वाले युग के आरम्भ होने के बाद परमेश्वर के साथ मिलाप सम्भव है।

अनुवाद की समस्या को हम बाद में देखेंगे, पहले हम परमेश्वर के न्याय का चरित्र और अक्षम्य पाप के साथ इसके औचित्य पर विचार करेंगे।

परमेश्वर का न्याय

परमेश्वर के न्याय के विषय में जो सबसे परम्परागत शिक्षा है, वह बिलकुल साधारण है। मानव जाति के सभी सदस्य पापी हैं। यीशु ने सम्पूर्ण संसार के पाप के दण्ड को अपने उपर ले लिया है। जो लोग अपने पापो़ं से पश्चाताप करते हैं और यीशु पर विश्वास करते हैं, उन्हें क्षमा मिलेगी और वे अनन्तकाल तक यीशु के साथ स्वर्ग में व्यतीत करेंगे। जो लोग अपने पापों से पश्चाताप नहीं करेंगे, उन्हें क्षमा नहीं मिलेगी और वे अनन्तकाल तक नर्क में कष्ट में रहेंगे। दूसरे शब्दों में सभी विश्वासियों के लिये समान पुरस्कार और सभी अविश्वासियों के लिये समान दण्ड।

एकदम आसान, लेकिन तर्कसंगत नहीं, न्यायसंगत नहीं और न हीं धर्मशास्त्र के वचनों पर आधारित।

बुनियादी तौर पर परमेश्वर धर्मी हैं। यशायाह ने लिखा है, “मुझे छोड़ कोई और दूसरा परमेश्वर नहीं है, धर्मी और उद्धारकर्ता ईश्वर मुझे छोड़ और कोई नहीं है।” (यशा ४५:२१ और दाउद ने लिखा है, “तेरे सिंहासन का मूल, धर्म और न्याय है” (भजन ८९:१४)। हिब्रू शब्द (tsadiq), जिसका अर्थ है ‘न्यायी’ या ‘धर्मी’, बाइबल धर्मशास्त्र में १९७ बार उपयोग हुआ है। यह संसार अन्याय से भरा है, लेकिन परमेश्वर न्यायी हैं।

इब्राहिम ने पूछा, “क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?” (उत्पत्ति १८:२५)

परमेश्वर के न्याय से सम्बद्ध तीन सिद्धान्तों पर हम विचार करेंगे।

  1. परमेश्वर के विरुद्ध किया गया पाप मनुष्य के विरुद्ध किये गये पाप की तुलना में अधिक गंभीरहोता है।
  2. जान बुझकर किया गया पाप अनजान अवस्था में किये गये पाप की तुलना में अधिक गंभीरहोता है।
  3. अपराध के अनुपात में ही दण्ड दिया जाता है।

परमेश्वर या मनुष्य के विरुद्ध किये गये पाप

सबसे बडा पाप क्या है? निसन्देह यह सबसे बडी आज्ञा को तोडना है। यीशु ने इस बात को एकदम स्पष्ट किया है, “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती २२:३७-३९)

परमेश्वर के विरुद्ध किया गया पाप ही सबसे बडा पाप है। इसके बाद मनुष्य के विरुद्ध किये गये पाप का स्थान आता है। लेकिन मनुष्य ही इस क्रम को उलट देता है। मनुष्य के लिये मनुष्यों के विरुद्ध किये गये पाप ही सबसे बडे पाप हैं। परमेश्वर के विरुद्ध किये गये पापों का उतना महत्व नहीं है। मनुष्य के विचार में इतिहास के नरसंहारक सबसे बडे पापी थे, और यदि मृत्युके बाद भी कोई जीवन है तो उन्हें सबसे बडा दण्ड मिलेगा।

‘दस आज्ञा’ हमें यही बात बताती है। प्रथम चार आज्ञा परमेश्वर के विरुद्ध होने वाले पाप से सम्बन्धित हैं। अन्तिम ६ आज्ञा मनुष्य के विरुद्ध होने वाले पाप से सम्बन्धित हैं। “तू हत्या न करना” छठी आज्ञा है, पहली आज्ञा नहीं।

आइये, हम फिर यीशु के शब्दों को देखें: “इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी। जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहेगा, उसका यह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो कोई पवित्र-आत्मा के विरोध में कुछ कहेगा, उसका अपराध न तो इस लोक में और न पर लोक में क्षमा किया जाएगा” (मत्ती १२:३१-३२)।

और इन शब्दों का हिब्रू ६:४-६ के साथ तुलना करें: “क्योंकि जिन्हों ने एक बार ज्योति पाई है, जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्र आत्मा के भागी हो गए हैं। और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आने वाले युग की सामर्थों का स्वाद चख चुके हैं। यदि वे भटक जाएं; तो उन्हें मन फिराव के लिये फिर नया बनाना अन्होना है; क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिये फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रगट में उस पर कलंक लगाते हैं। ”

ये दोनों भाग परमेश्वर के विरुद्ध पाप के विषय में बताते हैं।

यीशु के शब्द मनुष्य के विरुद्ध और परमेश्वर के विरुद्ध होने वाले पाप के बीच अन्तर दिखाते हैं। यीशु ने “ben adam” शब्द का उपयोग किया है, जिसका अर्थ होता है , “मनुष्य का पुत्र” लेकिन यह एक हिब्रू शब्द है जिसे ‘मनुष्य जाति’ के लिये उपयोग किया जाता है। यीशु ने अधिकतर इस शब्द को स्वयम् के लिये उपयोग किया है। पवित्र आत्मा परमेश्वर के आत्मा हैं। इस लिये परमेश्वर और मनुष्य के विरुद्ध किये जाने वाले पाप के बीच स्पष्ट अन्तर दिखाया गया है। मनुष्य के विरुद्ध किये गये पाप इस युग में या इस संसार में क्षमा किये जा सकते हैं, लेकिन परमेश्वर के विरुद्ध किये गये पाप नहीं।

जान बुझकर किये गये पाप

यीशुने इस बात को एकदम स्पष्ट किया है कि जान बुझकर किये गये पाप की तुलना में अनजान अवस्था में किये गये पाप का दण्ड कम होगा। उन्हों ने इन शब्दों में बताया है, “और वह दास जो अपने स्वामी की इच्छा जानता था, और तैयार न रहा और न उस की इच्छा के अनुसार चला बहुत मार खाएगा। परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह थोड़ी मार खाएगा, (लूका १२:४७-४८)।

अपनी मृत्युके समय यीशु ने इस प्रकार प्रार्थना की, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहें हैं” (लूका २३:३४)।

तथाकथित बुतपरस्त देशों के लाखों लोग यीशु का नाम बिना सुने और बाइबल धर्मशास्त्र का एक भी अक्षर बिना पढे मृत्युका ग्रास बने हैं। उन्हें दिया जाने वाला दण्ड (यदि दण्ड दिया गया तो), हमारी तुलना में बहुत ही हल्का होगा, जिन्होंने परमेश्वर का वचन सुना है और पढा भी है, लेकिन उनका पालन नहीं किया है।

इब्रानियों का यह भाग परमेश्वर के विरुद्ध और जान बुझकर किये गये पाप को बहुत अच्छी तरह दर्शाता है। “क्योंकि सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझ कर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हां, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा। जब कि मूसा की व्यवस्था का न मानने वाला दो या तीन जनों की गवाही पर, बिना दया के मार डाला जाता है। तो सोच लो कि वह कितने और भी भारी दण्ड के योग्य ठहरेगा, जिसने परमेश्वर के पुत्र को पांवों से रौंदा, और वाचा के लोहू को जिस के द्वारा वह पवित्र ठहराया गया था, अपवित्र जाना है, और अनुग्रह की आत्मा का अपमान किया (इब्रानियों १०:२६-२९)।

अपराध के समानुपातिक

सभी सभ्य देशों में दण्ड अपराध के समानुपातिक होता है। एक या दो माईल प्रति घण्टा से गति सीमा का उल्लंघन करना कोई गम्भिर अपराध नहीं माना जाता। ५००/- रुपये का जुरमाना हो सकता है। छोटी मोटी चोरी करना या किसी दूकान से चीजें चुराना और भी बुरा अपराध माना जा सकता है और कुछ कडा दण्ड हो सकता है। हथियार के साथ डकैती करना अधिक गंभीरअपराध है और इसके लिये जेल की सजा हो सकती है। बलात्कार और हत्या जैसे अपराधों के लिये जेल की लम्बी सजा हो सकती है। कुछ देशों में आज भी हत्या के लिये फांसी की सजा है। हमेशा ही दण्ड अपराध के समानुपातिक होता है। क्या परमेश्वर इसके विपरीत न्याय करेंगे?

कुछ मुस्लीम देशों में नबी की निंदा करने पर, कुरान की निंदा करने पर या मुसलमान धर्म त्यागने पर मृत्युदण्ड का प्रावधान है। लेकिन इन देशों के बाहर रहने वाले लोग शायद ही इसे न्यायसंगत मानें।

सम्पूर्ण बाइबल में अपराध के अनुपात में ही दण्ड का प्रावधान है।

निर्गमन के २१वें अध्याय में विभीन्न अपराधों के लिये विभीन्न दण्डों की सूचि दी गयी है। इस अध्याय में पशुओ, गुलामों और अन्य व्यक्तियों से सम्बन्धित बहुत से अपराधों का वर्णन किया गया है, और हरेक अपराध के लिये दण्ड का प्रावधान समानुपातिक ही है। इसके विख्यात शब्द हैं, “आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत”। इन शब्दों का उद्देश्य बदले की भावना को प्रोत्साहित करना नहीं, परन्तु हानि के अनुपात में दण्ड को सिमीत करना है। संयोग वश हुई क्षति के लिये दण्ड की व्यवस्था जान बुझकर की गई क्षति की तुलना में हलका ही होता है।

मत्ती ११:२४-२४ में यीशु ने उन शहरों के विषय में बताया है, जिन्होंने यीशु के महान् कार्य तो देखे थे, लेकिन अपने पापों से पश्चाताप नहीं किया था। यीशु ने उनसे कहा, “न्याय के दिन तेरी दशा से सदोम के देश की दशा अधिक सहने योग्य होगी।”. यहां भी फिर से सजा के अनुपात की बात कही गयी है।

अक्षम्य पाप

अत: अक्षम्य पाप क्या है? यीशु ने इसे पवित्र आत्मा के विरुद्ध की गई निंदा बताया है। मत्ती १२:२२-३२ में उल्लिखित सन्दर्भ यह है कि फरिसियों ने यीशु पर यह दोष लगाया था कि वह बेलजेबुब, दुष्टात्माओं के राजकुमार की सहायता से दुष्टात्मओ को निकाल रहे थे। फरिसियों ने खूद अपनी आंखों से देखा था कि यीशु के द्वारा कैसे पवित्र आत्मा की शक्ति दुष्टात्माओं को निकालने में सफल हो रही थी, लेकिन इसके लिये उन्होंने शैतान को श्रेय दिया। फरिसी यहां स्पष्ट रुप से दोनों तरह पाप कर रहे थे, जान बुझकर, परमेश्वर के विरुद्ध। परमेश्वर की निंदा के लिये उपयोग किये गये शब्दों के लिये उनके पास कोई बहाना नही़ था। यह अक्षम्य पाप था।

क्षमा

‘क्षमा करना’ शब्द (forgive), बाइबल धर्मशास्त्र के नये नियम में ग्रीक शब्द ἀφιημι (aphiemi) का अनुवाद है, जिसका बुनियादी अर्थ होता है दूर भेजना। क्षमा करना पाप को दूर भेजना है।

प्राचीन इजराइल देश में प्रत्येक वर्ष ‘प्रायश्चित’के दिन महायाजक बकरे (बलि का बकरा) के शिर पर अपने हाथों को रखकर लोगों के पाप स्वीकार करता थ। इसके बाद लोगों के पाप के साथ उस बकरे को मरुभूमि में छोड दिया जाता था। (लैव्यव्यवस्था १६:२१) महायाजक और बकरा, दोनों ही यीशु के प्रतीक थे, जिन्होंने लोगों के पाप के लिये अपने आप को अर्पण कर दिया। इस समारोह को इजराइलियों द्वारा किये गये ताजा पापों के लिये प्रत्येक वर्ष दुहराया जाता था। लेकिन जब यीशु ने अपने आपको अर्पण किया तब सारे संसार के सभी पापों के लिये पूर्ण और अन्तिम बलिदान कर दिया।

क्षमा शब्द के अर्थ को हमें और विस्त्रित रूपसे देखना आवश्यक है। यीशु ने चेलों को इस प्रकार प्रार्थना करना सिखाया“जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर।” (मत्ती ६:१२)। यदि किसी के अपराध क्षमा किये जाते हैं तो उसके लिये कोई सजा नहीं है। ( जिस ग्रीक शब्द का अनुवाद अपराध किया गया है उस शब्द का साधारण अर्थ ऋण है। यदि किसी के ऋण क्षमा किये जाते हैं तो उसे कुछ भी भुगतान नहीं करना है।) यदि क्षमा नहीं किया गया है, तो उसे सम्पूर्ण ऋण भुगतान करना अनिवार्य है। लेकिन जब उसने ऋण चुक्ता कर दिया है, तो बात खत्म हो जाती है। ऋण क्षमा नहीं किया गया पर भुला दिया गया है।

यीशु ने इस सधारण प्रार्थना को मत्ती १८:२३-३४ में विस्तारित किया है। एक नौकर ने अपने मालिक से बहुत बडा ऋण लिया। जब नौकर ने मालिक से दया की याचना की, तब मालिक ने खुशी से उसे क्षमा के दिया। बडे आनन्द की बात थी। नौकर को ऋण लौटाने की जरुरत नहीं थी। जब नौकर बाहर गया तो उसे अपने मित्र से मुलाकात हुई, जिसने इस नौकर से एक छोटी सी रकम उधार ली थी। जब मित्र ने उधार नहीं लौटाया तो इस नौकर ने क्रोधित होकर उसे जेलखाने में डाल दिया, जब तक कि कर्ज का पूरा भुगतान नही़ं हुआ। दण्ड तो कठोर था, लेकिन कर्ज भुक्तान होने के बाद वह व्यक्ति फिर से स्वतन्त्र हो गया।

जिन व्यक्तियों को क्षमा कर दिया गया है, वे स्वतन्त्र हैं। उन्हें चुक्ता करने के लिये कोई भी ऋण बाकी नहीं है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें क्षमा नहीं मिली है, उनके लिये ऋण पूरा पूरी चुक्ता करना आवश्यक है। लेकिन जब वे ऋण चुक्ता कर देंगे, तब वे भी स्वतन्त्र हैं।

परमेश्वर का ऋण पाप का प्रतीक है। स्पष्ट है कि हमने परमेश्वर से आर्थिक ऋण नहीं लिया है। ऋण बडा या छोटा हो सकता है, लेकिन ऋण कैसा भी क्यों न हो, यदि क्षमा नहीं किया गया है तो पूरी रकम, न कम न अधिक, भुक्तान करना ही पडेगा। इसी लिये असिमीत दण्ड या अनन्तकाल की सजा असमर्थनीय लगती है।

परमेश्वर के द्वारा दी गयी सजा का स्वरुप कैसा होगा और यह कब आरम्भ किया जायेगा? यह इसी जीवन में होगा या आने वाले जीवन में? इसी संसार में या आनेवाले संसार में?

यह बात हमें यीशु के शब्दों के ठीक ठीक अनुवाद की समस्या पर ला खडा करती है। हम इस समस्या पर फिर से विचार करेंगे।

कौन सा अनुवाद सटीक है?

यीशु के शब्दों का कौन सा अनुवाद सटीक है? उनके खने का तात्पर्य क्या था, वर्तमान संसार या आनेवाला संसार, वर्तमान युग या आनेवाला युग?

यह लिंक मत्ती १२:३२ यीशु के शब्दों के ६० अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध कराता है। इन अनुवादों में करीब आधा age to come (आनेवाले युग) का उपयोग किया है तो बाकी आधा world to come (आने वाला संसार) या life to come (आने वाला जीवन) का उपयोग किया है। इन दोनों का अर्थ एक ही है। सभी पुराने अनुवाद ‘आने वाले संसार’ और अधिकांश नये अनुवाद ‘आने वाले युग’ का उपयोग किया है।

समस्या की जड़ ग्रीक शब्द (aion) है, इसीसे अंग्रेजी शब्द (eon) बना है। ग्रीक शब्द (aion) के विभीन्न उपयोगों और अर्थों पर मैंने एक अलग लेख (Αἰων and עֹלָֽם (olam) लिखा है। निश्चय ही युग और संसार, इस शब्द के सटिक अनुवाद हैं।

मत्ती १२:२२ में यीशु के द्वारा बोले जये वचन ग्रीक भाषा में ये हैं, “οὔτε ἐν τούτῳ τῷ αἰῶνι (this aion) οὔτε ἐν τῷ μέλλοντι (the coming)”। लेकिन वास्तव में यीशु ने ये शब्द नहीं बोले थे, क्योंकि वे हिब्रू बोलते थे, ग्रीक नहीं। इसके समानर्थी शब्द, प्राचीन और आधुनिक हिब्रू दोनों में - “ha-olam ha-ze” (העולם הזה) और “ha-olam ha-ba” (העולם הבא) - “वर्तमान olam” और “आनेवाला olam”।

(इजराइली ड्राइभरों को किसीने अति आवश्यक मशवरा इस प्रकार दी थी, “आने वाले olam में जल्दी पहुंचने से अच्छा है इस olam में देरी से पहुंचें!” स्पष्ट है इसका तात्पर्य इस संसार और आनेवाले संसार से है।)

तो प्राचीन अनुवादकों ने किस प्रकार इन हिब्रू शब्दों का अनुवाद किया था? “आने वाले संसार” या “आने वाले युग” के रूप में? विस्मयकारी उत्तर है कि दोनों ही रूप में।

बाइबल धर्मशास्त्र में परमेश्वर ने इस प्रकार की उलझन और स्पष्टता का अभाव क्यों रहने दिया है? और मेरा मानना है कि ऐसी समस्या सिर्फ इसी जगह नहीं है जहां वचन स्पष्ट नहीं हैं। मेरा विश्वास है कि इसके पिछे परमेश्वर के पास अच्छे कारण हैं। बाइबल धर्मशास्त्र में बहुत सी सच्चाइयां तबतक छिपी रहती हैं, जबतक परमेश्वर उन्हें प्रकट करना नहीं चाहते। और इसके बाद भी वे ‘बुद्धिमान और विवेकपूर्ण’ लोगों से छिपी हुइ ही रहेंगी, और सिर्फ उन्हीं लोगों पर प्रकट की जायेंगी जिनपर परमेश्वर की इच्छा होगी।

मैं ऐसा मानता हूं कि दोनों ही अनुवाद – आने वाला संसार और आने वाला युग – विभीन्न सन्दर्भ में मान्य होंगे। आने वाला युग राष्ट्रीय स्तर पर इस्राएल जाति के लिये उपयुक्त हो सकता है। आने वाला संसार व्यक्तिगत स्तर पर विभीन्न व्यक्तियो़ के लिये उपयुक्त हो सकता है। अब हम इन दो अलग अलग अनुवादों के वषय में विस्त्रित पडताल करंगे।

इस्राएल का अस्वीकार और पुनरुद्धार

यदि हम यीशु के शब्दों का अर्थ इस युग और आने वाले युग के रूप में लें तो हमें यह जानना आवश्यक होगा कि ये युग कब आरम्भ हुए थे? इनका आरम्भ कब हुआ था और अन्त कब हुआ था? इतिहास के किस काल खण्ड में पुराने युग का अन्त और नये युग का आरम्भ हुआ था? इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण संक्रमणकालीन क्षण क्या या कैसा था?

निश्चय ही सम्पूर्ण इतिहास में सबसे बडी घटना यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान थी। उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान का तत्कालीन परिणाम था पेन्तिकोस के दिन पवित्र आत्मा का उंडेला जाना। तो इसलिये हम निश्चय के साथ कह सकते हैं कि यीशु की मृत्यु के साथ पुराने युग का अन्त हो गया और पेन्तिकोस के दिन नया युग आरम्भ हुआ।

इसलिये जब यीशु ने इस युग की बात की तो उनका तात्पर्य उस युग से था जो शिघ्र ही उनकी मृत्यु के साथ समाप्त होने जा रहा था, और जब उन्होंने आने वाले युग की बात की तो उनका तात्पर्य उस युग से था जो शिघ्र ही पेन्तिकोस के दिन आरम्भ होने जा रहा था।

यीशु ने जिन शब्दों का उपयोग किया है, उसके अनुसार यह व्याख्या बिलकुल सटीक है। यीशु ने कहा, “हरेक पाप और ईशनिंदा क्षमा किये जायेंगे” और “यदि परमेश्वर के पुत्र के विरुद्ध कोई बोलता है तो उसे क्षमा किया जायेगा”। इसके थोडे ही समय बाद यहूदी और रोमी, दोनों ने ही मिलकर जघन्य पाप किया। उन्होंने परमेश्वर के पुत्र की हत्या कर दी। क्या इस पाप को क्षमा किया जा सकता था? हां, यीशु ने जैसे कहा था, इसे क्षमा किया जा सकता था। यीशु ने तो ऐसा भी कहा था, “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।”

“आने वाले युग” में फिर क्या हुआ – उस युग में जो पेन्तिकोस के दिन आरम्भ हुआ?

यीशु, जो मनुष्य के पुत्र थे, इस धरती से प्रस्थान कर चुके थे और उनके स्थान पर पवित्र आत्मा का आगमन हो चुका था। उनके आगमन के साथ साथ असिमीत आशिष के अवसर भी आये थे, लेकिन इसके साथ साथ इस बात का खतरा भी था कि यीशु की बातें पूरी नहीं की जायें, पवित्र आत्मा की निंदा की जाय और अक्षम्य पाप किये जायें।

बिमारों का चंगा होना, मृत्यु से जिवीत हो उठना, और लंगडे का चलना उन्होंने देखा था। उन्होंने अन्य भाषा में बोलने का अश्चर्यजनक वरदान का उपयोग होते देखा था। उन्होंने गलील के साधरण मछुआरों का जीवन पूर्ण परिवर्तित होते देखा था। और उनकी प्रतिक्रिया क्या थी? अधिकांश ने इन पर विश्वास नहीं किया और पवित्र आत्मा के इस काम को अस्वीकार कर दिया। यह पवित्र आत्मा की निंदा करना ही था। यह ऐसा पाप था जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता था।

यहूदियों के उपर परमेश्वर का न्याय आया और यहूदी जाति अपने देश से तितर बितर कर दिये गये और संसार के कोने कोने में पहुंच गये। उन देशों में वे सब युग के अन्त तक अपने अविश्वास में रहेंगे।

नया युग

क्या हम ‘आने वाले युग’ के अन्त में आ पहुंचे हैं? क्या हम एक नये युग में जी रहे हैं? बहुत से प्रमाण हैं जिससे मुझे ऐसा लगता है कि हां, हम नये युग में जी रहे हैं।

विगत १०० वर्षों में विश्व में अकल्पनीय परिवर्तन हुए हैं। मेरे दादा ने उस युग में अपना जीवन व्यतीत किया था जब हवाई जहाज, कार, टेलिविजन, रेडियो, टेलिफोन और इन्टरनेट अस्तित्व में ही नहीं आये थे। २० वीं सदी के आरम्भ होने से पूर्व जिनकी मृत्यु हो गयी थी वे लोग आज की स्थिति को कल्पना भी नहीं कर सकते थे, जिसमें हम जी रहे हैं। यदि उन्हें यह देखने का अवसर मिलता तो एक स्वर से वे इस बात की घोषणा करते कि यह नया युग है।

बाइबल क्रोनोलोजी हमें यही बात बताती है। यह विषय जटिल है और विभीन्न अन्वेषक विभीन्न विस्त्रीत विवरण पर सहमत नहीं हैं। फिर भी एक बात स्पष्ट है: यदि हम हिब्रू शास्त्रों (पुराने नियम) में दर्ज वर्षों को जोड़ते हैं, तो हम पाते हैं कि आदम से लेकर यीशु तक ४००० वर्ष और तब से लेकर आज तक लगभग २००० वर्ष हैं। दूसरे शब्दों में, हम आदम से लेकर आजतक ६००० वर्ष होते हैं। (मैंने इन बातों को Bible Chronolgy और The Year of Jubilee में बताया है।) “प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं।” (२ पतरस ३:८). छ दिन बित गये हैं और अब हम सातवें दिन में प्रवेश कर रहे हैं, जो कि प्रभु का दिन है।

जब हम यहूदियों की दुनिया में प्रवेश करते हैं तो पाते हैं कि गत शताब्दी में तीन विशेष घटनायें घटी हैं:

ये सभी चीजें यही दर्शाती हैं कि परमेश्वर की दृष्टि में हम नये युग में प्रवेश कर चुके हैं।

अस्वीकार और पुनरुद्धार

यहूदियों की वर्तमान् स्थिति क्या है?

उनके भविष्य के विषय में पौलुस ने रोमियों के पत्र में भविष्यवाणी की थी।

पौलुस ने पूरे रोमी सम्राज्य की यात्रा की और जहां जहां गये, सुसमाचार का प्रचार किया, पहले यहूदियों के बीच, फिर गैर यहूदियों या अन्य जातियों के बीच। अधिकांश यहूदियों ने उनके सन्देश को अस्वीकार कर दिया लेकिन बहुत से अन्य जाति के लोगों ने यीशु पर विश्वास किया।

अन्त में जब पौलुस रोम पहुंचे तब उन्होंने यहूदी अगुओ को बुला भेजा और धर्मशास्त्र से उन्हें इस बात को बताना चाहा कि यीशु ही मसीह हैं। (प्रेरित २८:१७-२८). उनमें से अधिकांश ने पौलुस के सन्देश को अस्वीकार कर दिया। यहूदियों को पौलुस के अन्तिम शब्द ये थे, “सो तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कथा अन्यजातियों के पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे।”

पौलुस ने एहसास किया कि परमेश्वर ने कुछ थोडे समय के लिये यहूदियों को अस्वीकार कर दिया था, लेकिन उसने उनका भविष्य में होने वाला पुनरुद्धार भी देखा था।

उसने लिखा, “जब तक अन्यजातियां पूरी रीति से प्रवेश न कर लें, तब तक इस्त्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा। और इस रीति से सारा इस्त्राएल उद्धार पाएगा” (रोमियों ११:२५,२६)).

क्या यहूदियों की सजा उनके पाप के समानुपातिक था? बाइबल क्रोनोलोजी एक दिलचश्प उत्तर मुहैया कराती है। इब्राहीम के जन्म और यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के बीच २००० वर्षों का अन्तर था। इस अवधी में यहूदियों ने लगातार अपने भविष्यवक्ताओ को अस्वीकार करते रहे और अन्त में उन्होंने यीशु और उनके प्रथम अनुयायियों को भी अस्वीकार किया।

इन्हें अपनी जन्म भूमि से निर्वासन में जाने और इसके अन्त का समय भी इसी के समान अवधी का था। यह सजा भी इनके पाप के समानुपातिक था। इस सजा का अब अन्त हो चुका है, और बहुत से यहूदी जाति के लोग अपने देश में लौट चुके हैं। परमेश्वर न्यायी हैं।

विश्व के लिये आशिष

परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, “और पृथ्वी की सारी जातियां तेरे वंश के कारण अपने को धन्य मानेंगी।” (उत्पत्ति २६:४)। और बेशक इन शब्दों को पूरा होते हमने देखा है। निसन्देह बुनियादी रूप से ये शब्द यीशु में पूर्ण हुए, जब वे संसार के उद्धारकर्ता के रूप में आये। लेकिन उसके बाद ये बातें हमारे धर्मशास्त्र में पुरी हुई हैं। बाइबल धर्मशास्त्र के लेखक सभी (सिर्फ लुका को छोडकर) इब्राहीम के वंशज थे। इस धर्मशास्त्र का विश्व की सभी मुख्य भाषाओ में अनुवाद हुआ है।

क्या यहूदियों के द्वारा विश्व को मिलने वाले आशिष पूरे हो चुके हैं? प्रेरित पौलुस के अनुसार अभी नहीं। उसने लिखा है, “क्योंकि जब कि उन का त्याग दिया जाना जगत के मिलाप का कारण हुआ, तो क्या उन का ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा?” (रोमी ११:१५)।

यह आशिष कैसा होगा?

यहूदी वैज्ञानिक, विशेषकर भौतिकी, मेडिसीन और कमप्यूटिंग के क्षेत्र में विश्व को अतुलनीय भौतिक आशिष से भर दिया है। ये वेबसाइट 10 Jewish inventions that changed the world और List of Israeli inventions यहूदी और इजराइली आविष्कारों का असाधारण विवरण देते हैं।

लेकिन क्या पौलुस इसी बात की भविष्यवाणी कर रहा था?

बिलकुल नहीं! मेरा विश्वास है कि पौलुस आत्मिक आशिष की बात कर रहा था। जैसे जैसे अधिक से अधिक यहूदी लोग यीशु को अपना मुक्तिदाता स्वीकार करते जायेंगे, वैसे वैसे मेरा विश्वास है कि वे बाकी मानव जाति के लिये अनसुनी आत्मिक आशिष लायेंगे।

व्यक्तिगत दण्ड और पुनरुद्धार

हमने यहूदियों के त्यागे जाने और उनके पुनरुद्धार के विषय में देखा है। अब हम व्यक्तिगत दण्ड और पुनरुद्धार के विषय में विचार करेंगे। हम इस दण्ड की प्रकृति और इसकी अवधी तथा इसके बाद पुनरुद्धार के साथ परमेश्वर से मिलाप के विषय में विचार करेंगे।

दण्ड की प्रकृति या स्वरुप

इस दण्ड का स्वरुप क्या है? बाइबल में मृत्यु के बाद जीवन के सम्बन्ध में कुछ स्पष्ट बातें लिखी गयी हैं। इसमें स्वर्ग से सम्बन्धित सैकडों सन्दर्भ हैं, लेकिन ये मृत्यु के बाद जीवन की तुलना में स्वर्ग के राज्य के विषय में अधिक बताते हैं। पौलुस ने स्वर्गीय स्थानों में दुष्ट के आत्मिक सेना के साथ मल्लयुद्ध की बात लिखी है। (इफि ६:१२). स्वर्ग जाना शब्दावली बाइबल में एक बार भी उपयोग नहीं किया गया है। यीशु ने निकुदिमुस को कहा था कि नया जन्म पाये बिना नहीं तुम परमेश्वर के राज्य को देख सकते हो और न ही उसमें प्रवेश कर सकते हो। (यूहन्ना ३: ३-५); किन यीशु तो वर्तमान में सम्भव एक अनुभव के विषय में बात कर रहे थे, जिसे निकुदिमुस ने प्राप्त नहीं किया था, ‘मृत्यु के बाद क्या होगा’ इस विषय पर नहीं।

बाइबल में कुछ भाग ऐसे हैं जहां मृत्यु के बाद जीवन की बात की गयी है। इनमें सभी या तो यीशु की कही बातें हैं या प्रकाशित वाक्य की पुस्तक में लिखी गई बातें।

‘मृत्यु के बाद जीवन’ की बात करने के लिये यीशु ने दो अलग अलग शब्दों का उपयोग किया है। मत्ती १८:९ में उन्होंने कहा है, ​“और यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकाल कर फेंक दे। काना हो कर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो आंख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए।”. गेहेन्ना या gei hinnom (हिन्नोम घाटी) यरुशलेम के बाहर उस जगह का नाम था जहां कूडा फेंका जाता था, जहां “जहां उन का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।”.

धनी व्यक्ति और लाजरस की कथा में (लुका १६:१९-२४), धनी व्यक्ति अधोलोक में गया जहां उसे अग्नीज्वाला के कष्ट में रहना पडा।

प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में हम बार बार आग और गन्धक जलती हुई झील के विषय में पढते हैं। देखें प्रकाश १४:१० और प्रकाश १९:२०.

इन सभी वचनों में हम अग्नि के विषय में पढते हैं और प्रकाश की पुस्तक में गनधक का भी उल्लेख किया गया है। मैं इस बात पर बल देना चाहता हूं कि यह चित्र भाषा है। आत्मा को किसी भी भौतिक वस्तु से कष्ट नहीं दिया जा सकता है। अग्नि और गन्धक दोनों वस्तुएं शुद्धकारी हैं और इस बात को स्पष्ट चित्रीत करती हैं कि पश्चाताप नहीं करने वाले हरेक पापी व्यक्ति शुद्धीकरण की प्रक्रिया से गुजरना आवश्यक है।

शुद्धीकरण की तिब्रता हरेक व्यक्ति के लिये एक समान नहीं होगी। परमेश्वर धर्मी न्यायकर्ता हैं। दण्ड हमेशा ही किये गये पाप के और पाप करने वाले व्यक्ति की अवस्था के अनुपात में ही होगा।

जब शुद्धिकरण की प्रक्रिया पूरी हो जायेगी तब दण्ड भी समाप्त हो जायेगा।

दण्ड की समय सिमा

इस दण्ड की समय सिमा क्या है? बाइबल के परम्परागत अनुवादों में इसे अनन्तकाल के लिये बताया गया है। लेकिन जैसा हमने देखा है, ग्रीक शब्द (aion) का अर्थ अस्पष्ट है और इस धरती पर व्यतीत किये गये छोटे समय में किये गये पाप के लिये अनन्तकाल का दण्ड समानुपातिक भी नहीं है।

इसके अलावा भी आइन्सटाइन के अनुसार समय, स्थान और समय के अबाध क्रम का एक हिस्सा है और यह सापेक्ष है पूर्ण नहीं। समय और स्थान एक दूसरे से स्वतन्त्र नहीं हैं, बल्कि एक दूसरे से जुडे हैं। परमेश्वर, इस ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता के रूप में, स्पष्ट है कि ब्रह्माण्ड से अलग हैं, इसका हिस्सा नहीं हैं। जिस स्थान की उन्होंने सृष्टि की, वे उसका हिस्सा भी नहीं हैं। यदि समय और स्थान एक दूसरे से जुडे हुए हैं तो परमेश्वर निश्चय ही समय से भी बाहर हैं। इसलिये इस संसार में समय का जो अर्थ है वही अर्थ आत्मिक जगत में नहीं हो सकता है।

सभी न्यायसंगत दण्ड किये गये अपराधों के अनुपातिक ही होना चाहिये। यदि अपराध क्षमा नहीं किये गये हैं तो सजा भुगतना आवश्यक है। लेकिन जब दण्ड का भुगतान हो चुका है तो अपराध को भुला दिया जाता है।

सारांश

जैसा कि पौलुस ने हमें बताया है, “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं” (रोमी ३:२३). मानव जाति का एक एक सदस्य, सिर्फ एक व्यक्ति के अलावा, पापी ठहराया गया है। इसके बाद यह भी लिखा गया है, “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है” (रोमी ६:२३).

हमारी जाति के कुछ सदस्य अपने पापों से पश्चाताप करते और अनन्त जीवन प्राप्त करते हैं। दूसरे अपने पाप में आगे बढते हैं।

जो लोग पश्चाताप करते हैं उनके लिये यीशु के ये शब्द हैं, “आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा” (लूका २३:४३)। यीशु ने उनके सारे पाप कलवरी पर अपने उपर ले लिया।

वे लोग जो अपने पापों से पश्चाताप नहीं करेंगे, उन्हें अपने पापों का दण्ड भुगतना ही होगा। लेकिन जब उनका दण्ड भुगतान हो जायेगा और उनके जीवन में सुधार का काम पूर्ण हो जायेगा। तब परमेश्वर के साथ उनका भी मिलाप हो जायेगा।

निष्कर्ष

विश्वव्यापी मिलाप, जिसे आजकल बहुत से लोग विश्वास करते हैं और यीशु के द्वारा अक्षम्य पाप के विषय में दी गयी शिक्षा के बीच अवश्यमभावी संघर्ष के मद्देनजर मैंने इस लेख को आरम्भ किया। दोनों ही बातें कैसे ठीक हो सकती हैं?

उसके बाद हमने यीशु के शब्दों में कुछ अस्पष्टता देखी। वे आने वाले युग के विषय में या आने वाले संसार के विषय में बात कर रहे थे? इस लेख में मैंने दोनों ही प्रकार से समझने का प्रयास किया है।

इस्राएल के लोगोंने पहले अपने भविष्यवक्ताओ को अस्वीकार करके और फिर यीशु को त्याग कर परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया। एक जाति के रुप में वे अपने देश को छोड एक लम्बे और तीते निर्वासन में गये, जब तक कि उनके पाप का दण्ड पूरी तरह भुगतान नहीं हो गया। उनके परमेश्वर के विरुद्ध विगत के सारे पाप भुला दिये गये हैं। अब हम सब एक नये युग में आ गये हैं और उनके पुनरुद्धार का समय आ गया है।

व्यक्तिगत स्तर पर भी यही बात लागू होती है। “क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ाँपा गया हो” (भजन ३२:१), लेकिन वे सब जिनके पाप क्षमा नहीं किये गये हैं, अपने पाप का पूर्ण दण्ड भुगतान करना पडेगा। जब ऋण का भुतान हो जायेगा तब पाप भुला दिये जायेंगे। और बाकी मानव जाति के साथ अन्त में उनका भी परमेश्वर के साथ मिलाप हो जायेगा।

Printable A5 booklet of this writing --- printing instructions