आग और गन्धक से पिडीत

“जो कोई उस पशु और उस की मूरत की पूजा करे, और अपने माथे या अपने हाथ पर उस की छाप ले। तो वह परमेश्वर का प्रकोप की निरी मदिरा जो उसके क्रोध के कटोरे में डाली गई है, पीएगा और पवित्र स्वर्गदूतों के साम्हने, और मेम्ने के साम्हने आग और गन्धक की पीड़ा में पड़ेगा। और उन की पीड़ा का धुआं युगानुयुग उठता रहेगा, और जो उस पशु और उस की मूरत की पूजा करते हैं, और जो उसके नाम की छाप लेते हैं, उन को रात दिन चैन न मिलेगा।” (प्रकाशित वाक्य १४: ९-११)

(प्रकाशितवाक्य २०: १०भी देखें)

प्रकाशितवाक्य के इस वचन का परम्परागत अनुवाद हमारे सामने एक डरावना चित्र पेश करता है, जिसके अनुसार हरेक अविश्वासी अनन्तकाल तक भयानक पीडा में रहेगा। यदि वचन के इस भाग का यही सटीक अनुवाद है, तो हमारे बहुत से पूर्वज इस भयानक पीडा में हैं और हमारे अधिकांश मित्र, पडोसी, सम्बन्धी और सम्भवत: बच्चों के किस्मत में भी यही पीडा है। ( हमारे अपने बच्चों के किस्मत में अनन्त पीडा अवश्म्भावी है, ऐसा विश्वास करने वाले मातापिता रात में चैन से कैसे सो सकते हैं?)

मैं कुछ ऐसे महत्वपूर्ण शब्दों और वाक्यांशों पर विचार करना चाहता हूं (जिन्हें पीले रंग से चिन्हीत किया गया है) जो हमें इनके सही अर्थ तक पहुंचायेंगे।

पिडीत

पिडीत शब्द यूनानी भाषा की ‘क्रिया’ बासानीजो (basanizo) का अनुवाद है। इस क्रिया का नये नियम में विभीन्न सन्दर्भ में १२ बार उपयोग किया गया है।

सम्बन्धित सन्दर्भ निम्न अनुसार हैं:

तो, वास्तव में इस ग्रीक शब्द ‘बासानीजो’ का अर्थ क्या है? इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक संज्ञा ‘बासानोस’ से हुई है, जिसका अर्थ है कसौटी जो बहुमूल्य पत्थर जैसे सोना और चांदी की शुद्धता जांचने के काम आता है। इस शब्द को बाद में अपराधियों को यातना देकर अपराधों के अनुसंधान के लिये उपयोग किया जाने लगा। हालांकि उपर उल्लेखित उदाहरणों में हम पिडा का स्तर सधारण अवस्था से लेकर गहन अवस्था तक पाते हैं।

आग और गंधक

लोगों को आग और गंधक से क्यों प्रताडित किया जायेगा? पूरे इतिहास में मनुष्य ने पिडा देने के सभी प्रकार के डरावने उपायों को तैयार कर लिया है, लेकिन आग और गंधक प्रचलित उपाय नहीं हैं। इसका उत्तर यही है कि आग और गंधक दोनों ही शुद्ध करने वाले प्रतिनिधी हैं। मलाकी की पुस्तक में लिखे गये इन शब्दों से बहुत से लोग परीचित होंगे: “परन्तु उसके आने के दिन की कौन सह सकेगा? और जब वह दिखाई दे, तब कौन खड़ा रह सकेगा? क्योंकि वह सोनार की आग और धोबी के साबुन के समान है। वह रूपे का ताने वाला और शुद्ध करने वाला बनेगा, और लेवियों को शुद्ध करेगा और उन को सोने रूपे की नाईं निर्मल करेगा, तब वे यहोवा की भेंट धर्म से चढ़ाएंगे”। (मलाकी ३: २, ३)।

अर्थ और स्पष्ट हो गया है। आग और गंधक नाश करने या अविश्वासियों को पिडा देने के लिये नहीं बल्कि उन्हें शुद्ध करने के लिये उपयोग किये गये हैं।

हमें इस बात को भी याद रखना पडेगा कि प्रकाशितवाक्य की अधिकांश बातें सांकेतिक भाषा में लिखी गयीं हैं और उन्हें अक्षरस: नहीं लिया जा सकता है। किसी आत्मा को भौतिक आग और गंधक से पिडीत नहीं किया जा सकता।

मेमने की उपस्थिति में

इस पिडा देने की जगह कौन सी होगी? उत्तर है: “पवित्र स्वर्गदूतों की उपस्थिति में और मेमने की उपस्थिति में।” क्या वास्तव में आप ऐसी कल्पना कर सकते हैं कि पवित्र स्वर्गदूत और स्वयम् यीशु अनन्त काल तक लोगों को दण्ड देते हुए देखना चाहेंगे? सम्राट् निरो और उसके मित्र विश्वासियों को शेरों के सामने फेंके जाने के नजारे का आनन्द ले सकते थे! यदि यीशु और स्वर्गदूत भी यही करते हैं तो निरो से कोई भिन्नता नहीं रही।

मैं तो सिर्फ यही विश्वास कर सकता हूं कि यीशु और स्वर्गदूत इन मनुष्यों की शुद्धिकरण का काम सुपरीवेक्षण करने के लिये उपस्थित रहेंगे और इस बात को निश्चित करेंगे कि पीडा देने का समय और तिब्रता दोनों ही आवश्यकता से अधिक या कम न हों।

युगानुयुग

यह प्रक्रिया पूर्ण होने की अवधी क्या होगी?

अधिकांश अंग्रेजी बाइबल के अनुवाद कहते हैं, “युगानुयुग”। दूसरे शब्दों में, यह प्रक्रिया अरबों वर्ष चलती रहेगी, फिर भी इसका अन्त नहीं होगा। लेकिन कभी अन्त नहीं होने वाले इस दण्ड का विचार न सिर्फ डरावना है, बल्कि न्याय के परिकल्पना के विरुद्ध भी है। बाइबल के साथ साथ सभ्य मानव समाज में दण्ड हमेशा किये गये अपराध के आधार पर ही निर्धारण होता है। आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत इसी सिद्धान्त को दर्शाता है। एक आंख गंवाना एक दांत गंवाने की तुलना में बडी सजा है। आने वाले जीवन में अनिश्चितकालीन दण्ड किसी प्रकार से भी इस संसार में ७० या ८० वर्ष तक किये गये पापों के लिये समानुपातिक नहीं हो सकता है।

वास्तव में ‘युगानुयुग’ ग्रीक शब्द ‘eis aionas aionon’ का पूर्ण रुप से गलत अनुवाद है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘युग से युग तक’। ग्रीक भाषा के इस शब्द का सही अर्थ कठीन है, परन्तु मेरा मानना है कि इसका अर्थ एक लम्बा, अनिश्चित समय हो सकता है। इन शब्दों के विषय में मैंने विश्वव्यापी मिलाप और aion and olam में विस्तार से लिखा है।

क्या स्वर्ग का समय धरती के समय के समान ही है? ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि आइन्सटाइन के अनुसार समय हमेशा पर्यवेक्षक के सापेक्ष होता है। मेरा समय और आपका समय, यद्यपि दोनों में बहुत सुक्ष्म अन्तर हो सकता है, एक समान नहीं हो सकता है। और पतरस हमें बताते हैं कि “यह एक बात तुम से छिपी न रहे, कि प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं। ” (२ पतरस ३: ८)।

प्रकाशितवाक्य २०: १४ में हम पढते हैं कि अग्निकुण्ड दूसरी म्रित्यु है। १ कुरिन्थयों १५: २२ -२६ में पुनरुत्थान के सम्बन्ध में लिखे गये विषय के अन्त में हम पढते हैं कि “सब से अन्तिम बैरी जो नाश किया जाएगा वह मृत्यु है”। इसका अर्थ यह है कि जब इसका उद्देश्य पूर्ण हो जायेगा तब अग्निकुण्ड भी नष्ट कर दिया जायेगा।

सारांश

हमने प्रकाशितवाक्य १४: ९ – ११ और अन्य सम्बन्धित वचनों के दो अलग अलग अर्थ देखे हैं।

परम्परागत द्रिष्टीकोण यह है कि अधिकांश मानव जाति यीशु की उपस्थिति में अकल्पनीय पिडा में अनन्तकाल तक रहेंगे। वे सभी जिन्होंने यीशु पर विश्वास नहीं किया है, इसी पिडा में युगानुयुग तक कष्ट सहेंगे। अति दुष्ट और साधारण मनुष्य में कोई अन्तर नहीं। सभी के लिये एक समान सजा होगी।

वर्तमान में बहुसंख्यक लोग इस द्रष्टीकोण को इन्कार कर रहे हैं। क्योंकि यह सर्व शक्तिमान, सर्व ज्ञानी और सर्व प्रेमी परमेश्वर और यीशु मसीह के चरित्र से मेल नहीं खाता। उनका विश्वास है कि भविष्य में दिया जाने वाला दण्ड सिमीत समय के लिये और शुद्धिकरण के उद्देश्य से दिया जायेगा। और पौलुस के शब्दों में “और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे” (१ कुरि १५: २२) अक्षरस: पूर्ण होगा।