पूर्वअस्तित्व

और

विश्वव्यापी मिलाप

परिचय

हमलोग कहां से आये हैं और कहां जा रहे हैं? क्या हम इस प्रश्न का उत्तर जान सकते हैं? एक व्यक्ति निश्चीत रुपसे इसका उत्तर जानता था। ‘मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूं, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूं’ उन्होंने कहा था (यूहन्ना १६: २८)।

इस संसार के लोगों का ऐसा विश्वास है कि उनके पास सिर्फ यही जीवन उपलब्ध है, और इसी विश्वास के आधार पर वे जीवन व्यतीत करते हैं और विभीन्न कार्य करते हैं। यदि इस जीवन के बाद भी कोई जीवन है तो उसके विषय में हमें कोई विशेष ज्ञान नहीं है, वे ऐसा सोचते हैं, और जो सबसे उपयुक्त कार्य जो हम कर सकते हैं , वह यही है कि इस पृथ्वी पर जो जीवन उपलब्ध है, उसे उपभोग किया जाय और जितना सम्भव है, इसका लाभ लिया जाय।

दुसरी तरफ, अधिकांश धर्म इस जीवन के बाद के समय के विषय में बहुत ही अधिक महत्व देते हैं। अधिकांश धार्मिक व्यक्ति ऐसा विश्वास करते हैं कि आने वाला समय या तो स्वर्ग में बहुत ही आनन्द से भरपूर होगा, या फिर नर्क में सदा के लिये वेदना से भरपूर। हमारा आखिरी गन्तव्य हमारे विश्वास या वर्तमान् जीवन में।

हमारे कर्मों पर निर्भर करता है। बहुत से लोग इस सिद्धान्त पर विश्वास करते हैं, परन्तु बहुत थोडे लोग अपने विश्वास के अनुसार कार्य कर पाते हैं। अधिकांश लोग अपने अधिकतर सहकर्मियों को, विशेषकर अपने सगे सम्बन्धियों को अनन्त वेदना की ओर बढते हुए देखते हैं लेकिन इससे उन्हें बचाने में अपने आप को असमर्थ पाते हैं।

हिन्दू और बौद्ध धर्मावलम्बी पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। उनका ऐसा विश्वास है कि इस धरती पर हम विभीन्न जिवन से होकर गुजरते हैं, इस आशा के साथ कि हरेक बार हम आत्मिक प्रगति करते हैं और अन्त में हम ज्ञानोदय को प्राप्त करते हैं, जिसके बाद फिर जन्म लेना आवश्यक नहीं होता है। मैं इस शिक्षा पर विश्वास नहीं करता, परन्तु इसे इस बात की तुलना में अधिक तर्क संगत मानता हूं कि इस पृथ्वी पर हमें जो बहुत ही छोटा जीवन मिला है, उसके बाद हम लगे हाथ अनन्तकाल के लिये आनन्द से भरपूर या वेदना से भरपूर (इसकी उम्मिद अधिक है) स्थान को चले जायेंगे। यह भी इस बात पर निर्भर करता है कि किन किन बातों के आधार पर इसका निर्णय किया गया है।

आरम्भिक मण्डली में विशेषकर दो बातों पर विश्वास किया जाता था, जो आज कल प्राय: नहीं किया जाता है:

इन दोनों प्रकार के विश्वास ने हमारे सांसारिक जीवन का सम्पूर्ण परिदृश्य ही परिवर्तित कर दिया है। अब यह एक विशाल वस्तु का एक छोटा सा हिस्सा भर रह जाता है। हमारे अनुभवों और अवसर के बीच का बडा सा अन्तर पहले हुई घटनाओ और भविष्यमें होने वाली घटनाओ की पृष्टभूमि में देखने पर बहुत ही छोटी सी बात दिखती है।

सर्वप्रथम हम पूर्वअस्तित्व के विषय में धर्म शास्त्र में प्रमाण ढूढेंगे। उसके बाद हम विश्वव्यापी मिलाप के विषयमें संक्षेप अन्य लेखोंमें प्रमाण ढूढेंगे, जिसे मैंने में विस्तृत रुपसे वर्णन किया है। इसके बाद हम विचार करेंगे कि आज कल बहुत ही कम लोग इन बातों पर विश्वास करते हैं, इसके बावजूद भी यह दृष्टिकोण कैसे सही हो सकता है।

धर्मशास्त्र में पूर्वअस्तित्व का उल्लेख

धर्मशास्त्र में यीशु के पूर्वअस्तित्व का स्पष्ट उल्लेख मिलता है, लेकिन साथ ही अन्य व्यक्तियों के पूर्वअस्तित्व का भी स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

यीशु का पूर्वअस्तित्व

बहुत से वचन यीशु के पूर्वअस्तित्व की साक्षी देते हैं। ‘आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था’ (यूहन्ना १: १). ‘वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया’ (फिलिपियो २: ७). यीशु ने स्वयम् कहा, ‘मैं पिता से निकलकर जगत में आया हूं, फिर जगत को छोड़कर पिता के पास जाता हूं’ (यूहन्ना १६: २८). यीशु के मन में इस बात पर किसी प्रकार की शंका नहीं थी कि वह कहां से आये हैं और नही इस बात पर कि वह कहां जा रहे हैं। वह पिता के पास से आये थे और पिता के पास लौट कर जा रहे थे। यीशु ने यह भी कहा था, ‘अब्राहम से पहले मैं हूं’’ (यूहन्ना ८: ५८)।

यीशु को अपने पूर्वअस्तित्व के विषय में किसी भी प्रकार की कोई शंका नहीं थी, लेकिन अपने चेलों के विषय में उनका क्या कहना था? उनके विषय में उन्हों ने कहा था,: ‘जैसे तू ने जगत में मुझे भेजा, वैसे ही मैं ने भी उन्हें जगत में भेजा’ (यूहन्ना १७: १८)।

सभोपदेशक

उपदेशक के बारहवीं अध्याय में बुढापा और मृत्यु के विषय में एक पद्यात्मक वर्णन मिलता है। इन शब्दों के साथ ही यह वर्णन समाप्त होता है, ‘उस समय चान्दी का तार दो टुकड़े हो जाएगा और सोने का कटोरा टूटेगा; और सोते के पास घड़ा फूटेगा, और कुण्ड के पास रहट टूट जाएगा, जब मिट्टी ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिसने उसे दिया लौट जाएगी’ (सभोपदेशक १२: ६,७)। यह एक बहुत ही सपष्ट विवरण है। आत्मा परमेश्वर के द्वारा दी गयी और उन्हीं के पास लौट जाएगी।

यिर्मयाह

यिर्मयाह ने परमेश्वर की सेवा करने के लिये अपने बुलाहट का इस प्रकार से वर्णन किया है, तब यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, गर्भ में रचने से पहिले ही मैं ने तुझ पर चित्त लगाया, और उत्पन्न होने से पहिले ही मैं ने तुझे अभिषेक किया; मैं ने तुझे जातियों का भविष्यद्वक्ता ठहराया’ (यिर्मयाह १: ४-५)। उसकी मां के गर्भ में आने से पहले ही परमेश्वर यिर्मयाह को जानते थे। यह इस बात की ओर भी संकेत करता है कि यिर्मयाह (और हम सब), अपने मानव शरीर में प्रवेश करने से पहले आत्मा के रुप में हमारा अस्तित्व था।

धर्मशास्त्र में लक्षित पूर्वअस्तित्व

पूर्वअस्तित्व के इन स्पष्ट विवरणों के अलावा भी हमें कम से कम दस ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिनमें पूर्वअस्तित्व को धर्मशास्त्रमें लक्षित किया गया है।

मृत और जिवीत

विश्वास नहीं करने वालों को नया नियम में मृत अवस्था में रहे लोगों के रुप में वर्णित किया गया है। यीशु ने कहा, ‘मैं तुम से सच सच कहता हूं, जो मेरा वचन सुनकर मेरे भेजने वाले की प्रतीति करता है, अनन्त जीवन उसका है, और उस पर दंड की आज्ञा नहीं होती परन्तु वह मृत्यु से पार हो कर जीवन में प्रवेश कर चुका है’ (यूहन्ना ५: २४)। जब तक आप मृत अवस्था में नहीं हैं, आप मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। पौलुस ने लिखा है, जब तक आप मृत अवस्था में नहीं हैं, आप मृत्यु से पार होकर जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। पौलुस ने लिखा है (ईफिसियो २: ५)। यूहन्ना ने भी इसी प्रकार की भाषा का उपयोग किया है, ‘हम जानते हैं, कि हम मृत्यु से पार हो कर जीवन में पहुंचे हैं’ (१ यूहन्ना ३: १४) । यीशु, पौलुस और यूहन्ना, सबों ने अविश्वासियों को मृत अवस्था में वर्णन् किया है। ‘मृत’ शब्द का अर्थ किसी भी शब्दकोष के अनुसार ‘जिवन रहित’ होता है। दूसरे शब्दों में मृत अवस्था में जाने से पहले आपको जिवीत अवस्था में रहना आवश्यक है। आप जब भी किसी मरे हुए जानवर, या चिडिया या कोई पौधा देखते हैं तो इस बात को जानते हैं कि पहले वह जिवीत अवस्था में था। धर्मशास्त्र की यह शिक्षा कि स्वाभाविक अवस्था में मनुष्य मृत है, इस सत्यताको बताती है कि पहले वह जिवीत था।

अलगाव

इसी प्रकार पौलुस परमेश्वर से मनुष्यों के अलगाव की बात भी करता है। ‘और उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया जो पहिले निकाले हुए थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे कुलु. १: २१)। आप सिर्फ ऐसे व्यक्तियों से अलग हो सकते हैं जिन्हें आप पहले से जानते हैं और जिनके साथ आपके अच्छे सम्बन्ध थे। जिन व्यक्तियों को पहले आप जानते ही नहीं, उनसे आपका अलगाव कैसे हो सकता है? यदि इस पृथ्वी पर हम अपना जीवन परमेश्वर के साथ अलगाव में आरम्भ करते हैं तो निश्चय ही इसके पूर्व हमारा उनके साथ गहरा सम्बन्ध था।

मिलाप

परमेश्वर के साथ मिलाप के विषय में पौलुस ने यहां लम्बी चौडी बात लिखी है: ‘और सब बातें परमेश्वर की ओर से हैं, जिसने मसीह के द्वारा अपने साथ हमारा मेल-मिलाप कर लिया, और मेल-मिलाप की सेवा हमें सौंप दी है। अर्थात परमेश्वर ने मसीह में हो कर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया, और उन के अपराधों का दोष उन पर नहीं लगाया और उसने मेल मिलाप का वचन हमें सौंप दिया है। सो हम मसीह के राजदूत हैं; मानो परमेश्वर हमारे द्वारा समझाता है: हम मसीह की ओर से निवेदन करते हैं, कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो (२ कुरिन्थी ५: १८ -२०)। मिलाप का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति से मित्रता करना नहीं है, जिसे आप जानते ही नहीं हैं, जिससे आप कभी मिले ही नहीं हैं। मिलाप का अर्थ होता है पहले स्थापित सम्बन्ध जो अभी टुट गया है, इस सम्बन्धको पुनर्स्थापित करना। इसी लिये हम परमेश्वरके साथ मिलाप में आ ही नहीं सकते यदि हम उन्हें पहले नहीं जानते थे और उनके साथ पहले हमारा कोई सम्बन्ध ही नहीं था। राजा दाउद ने लिखा है, ‘देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा’ भजन ५१: ५)। तब तो पहले का सम्बन्ध पहले के अस्तित्व में ही सम्भव है।

छुडाना

‘छुडाना’ शब्द अपने कल्पना चित्र के साथ यही बात बताती है। ‘छुडाना’ शब्द का अर्थ होता है पहले जिस वस्तु पर मालिकाना हक था, उसी वस्तु को फिर से खरीदना। जो वस्तु पहले आपकी नहीं थी, उस वस्तु को आप खरीद कर छुडा नहीं सकते। पुराने नियम के ‘व्यवस्था’ से इसका अर्थ स्पष्ट होता है। लेवी २५: २५ में हम इसका स्पष्ट उदाहरण पाते हैं, ‘यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल हो कर अपनी निज भूमि में से कुछ बेच डाले, तो उसके कुटुम्बियों में से जो सब से निकट हो वह आकर अपने भाईबन्धु के बेचे हुए भाग को छुड़ा ले’। सिर्फ जमीन ही नहीं, मनुष्यों को भी छुडाया जा सकता था: ‘‘तो उसके बिक जाने के बाद वह फिर छुड़ाया जा सकता है; उसके भाइयों में से कोई उसको छुड़ा सकता है, वा उसका चाचा, वा चचेरा भाई, तथा उसके कुल का कोई भी निकट कुटुम्बी उसको छुड़ा सकता है; वा यदि वह धनी हो जाए, तो वह आप ही अपने को छुड़ा सकता है’ (लेवी २५: ४८, ४९)। यहां भी हम स्पष्ट देखते हैं कि छुडाने के बाद किसी भी व्यक्ति को पहले जैसा ही स्वतन्त्रता मिल जाती है, जो वह उपभोग करता था। हम इस तथ्यको पाते हैं कि इस शरीर को धारण करने से पहले हम परमेश्वर के साथ थे लेकिन स्वाभाविक पाप ने हमें उनसे अलग कर दिया।

पुनर्जन्म

यूहन्ना के तीसरे अध्याय को नये दृष्टिकोण से देखना हमारे लिये आवश्यक है, जहां यीशु नया जन्म के विषय में बताते हैं। क्या वास्तव में ऐसा है? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ‘नया जन्म’ या ‘नया जीवन’ जैसे शब्दावली बाइबल में किसी भी पुस्तक में नहीं है। इसके बदले हमें पुनर्जन्म और पुनरुत्थान जैसे शब्द मिलते हैं। वास्तव में नया जन्म और पुनर्जन्म दोनों शब्दों के अर्थ एक दूसरे के विपरीत हैं। एक तो पहले हो चुका है और दूसरा अभी नहीं हुआ है। यीशु से इस प्रश्नको पूछते समय निकुदिमस ने भी उन्हें गलत समझा था। ‘नीकुदेमुस ने उस से कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दुसरी बार प्रवेश कर के जन्म ले सकता है’? यीशु यहां दुबारा शारीरिक जन्म की बात नहीं परन्तु दुबारा आत्मिक जन्म की बात कर रहे थे। जब हम इस संसार में प्रवेश करते हैं तब पाप के द्वारा हमारी आत्मिक मृत्यु हो जाती है। हमारे लिये आत्मिक रुप से पुनर्जन्म लेना आवश्यक है।

पुनरुत्थान

इस संसार में प्रवेश करते समय हमारी आत्मिक मृत्यु हो जाती है। यीशु पाप रहित थे, इसीलिये मानव शरीर धारण करते समय उन्हें आत्मिक मृत्यु का अनुभव नहीं करना पडा था। उनके लिये शारीरिक और आत्मिक मृत्यु एक साथ घटित हुआ जब उन्होंने हमारे पापों को अपने उपर लेकर कलवरी पर कष्ट भोगा। इसी प्रकार उन्होंने शारीरिक और आत्मिक पुनरुत्थान दोनों का अनुभव उस समय किया जब वे मरे हुओ में से जी उठे। हमारा आत्मिक पुनरुत्थान हमारे आत्मिक पुनर्जन्म के समान ही है। यह उस समय पूरा होता है जब हमारा आत्मा में पुनर्जन्म होता है। हमारे शरीर का पुनरुत्थान भविष्य में होने वाला है।

इस प्रकार हम यह पाते हैं कि ये शब्द – छुडाना, मिलाप, पुनर्जन्म और पुनरुत्थान, सभी मिलकर एक ही बात बताते हैं। हम एक ऐसी अवस्था की ओर लौट रहे हैं जिसमें हम पहले आनन्दित रहते थे और जिसे हम अनुभव करते थे।

पृथ्वी की नींव से पहले चुने गये

पौलुस ने लिखा है, ‘क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्थाई है। इस में तो हम कराहते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपने स्वर्गीय घर को पहिन लें’ (इफि. १: ४)। क्या हमारे अस्तित्व में आने से पहले ही हम लोग चुन लिये गये थे? ऐसा सम्भव है, लेकिन यह अर्थ और भी सन्तोष जनक लगता है कि संसार की उत्पत्ति से पहले ही हमारा अस्तित्व था जिस समय हम चुन लिये गये थे। यस वचन इस बात को भी दर्शाती है कि इस संसार में प्रवेश करने से पहले भी हमारा अस्तित्व था।

तम्बु में वास

‘क्योंकि हम जानते हैं, कि जब हमारा पृथ्वी पर का डेरा सरीखा घर गिराया जाएगा तो हमें परमेश्वर की ओर से स्वर्ग पर एक ऐसा भवन मिलेगा, जो हाथों से बना हुआ घर नहीं परन्तु चिरस्थाई है। इस में तो हम कराहते, और बड़ी लालसा रखते हैं; कि अपने स्वर्गीय घर को पहिन लें’ (२ कुरि. ५: १-२)। पौलुस इस वचन में मानव शरीर को तम्बु या डेरा के रुप में चित्रित कर रहा है। हम तम्बु से भवन की ओर प्रगति नहीं करते। हम अपने जीवन में घरों में रहते हैं और थोडे समय के लिये तम्बुओ में रहने चले जाते हैं, और उसके बाद फिर भवनों में लौट आते हैं। बाइबल में भी ऐसा ही चित्रण मिलता है। कल्दिओ के ऊर में अब्राहम का जन्म एक पक्का मकान में हुआ था, लेकि उसके बाद वह प्रतिज्ञा के देश में तम्बुओ में रहने लगा। परमेश्वर ने तम्बुओ का पर्व स्थापित किया कि इजराइली लोग इस बात को याद रखें कि मिश्र देश से निकलकर कनान देश की यात्रा में ये लोग तम्बुओ में रहते थे। शरीर को तम्बु के रुप में वर्णन् करना इन दोनों बातों को दर्शाती है कि हमारा पूर्वअस्तित्व और भविष्य का स्वरुप, दोनों ही स्थायी भवन में था और रहेगा।

अजनबी और परदेशी

इस वचन को हम १ पतरस २ : ११ में पाते हैं: ‘हे प्रियों मैं तुम से बिनती करता हूं, कि तुम अपने आप को परदेशी और यात्री जान कर उस सांसारिक अभिलाषाओं से जो आत्मा से युद्ध करती हैं, बचे रहो’ और इब्रानियों ११: १३ में, ‘... हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं’। आप तभी परदेशी और अजनबी हो सकते हैं जब आप किसी दूसरी जगह या दूसरे देश से आये हों। परदेशी शब्द के लिये उपयोग किया गया ग्रीक शब्द (παρεπιδημος)का अर्थ होता है ‘ऐसा व्यक्ति जो विदेश से आया है’। हम सब कहां से आये थे?

संसार में नंगे आना

‘क्योंकि न हम जगत में कुछ लाए हैं और न कुछ ले जा सकते हैं’ (१ तिमु. ६: ७)। पौलुस के इन शब्दों में भी पूर्वअस्तित्व और भविष्य की अवस्था दोनों अवस्थाओ को दर्शाये गये हैं। किसी वस्तु को लेकर जाना दूसरे जगह जाने की बात बताती है। कुछ लेकर आना किसी दूसरी जगह से आने की बात बताती है।

विश्वव्यापी मिलाप

अब हमलोग संक्षेप में विश्वव्यापी मिलाप की शिक्षा के विषय में बात करेंगे, क्योंकि इस विषय पर मैंने अन्य लेखों में विस्तार से चर्चा की है।

बाइबल में बहुत से वचनों में विश्वव्यापी मिलाप का उल्लेख किया गया है या इसे स्वीकार किया गया है। यहां ऐसे दो पद दिये गये हैं

अन्य वचन विश्वास नहीं करने वालों के लिये अनन्त वेदना की शिक्षा देते हैं। उदाहरण के लिये:

ये विरोधाभाषी शिक्षा किस प्रकार मिलाप में लाये जायेंगे?

इसका सिधा सादा उत्तर यही है कि हिन्दी शब्द ‘अनन्त’ और ‘सदा सर्वदा’ और ‘सदा के लिये’ जैसे वाक्यांश ग्रीक शब्द αἰωνιος (आयोनियोस) के गलत अनुवाद हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘एक युग’और ‘εἰς αἰωνα (ऐस आयोना) का शाब्दिक अर्थ है ‘युग तक’।

उपरोक्त दोनों पदों का सही अनुवाद निम्न लिखीत होगा:

अब ये सिमीत अवधी तक के दण्ड को दर्शाते हैं, जिसके बाद सबों का परमेश्वर के साथ मिलाप हो जाएगा।

इस विषय पर और अधिक अध्ययन के लिए अन्य लेख विश्वव्यापी मिलाप और other writings देखें।

इन सत्यताओ को क्यों छुपाया गया है?

यदि पूर्वअस्तित्व और विश्वव्यापी मिलाप सम्बन्धी शिक्षा सत्य हैं तो परम्परागत मण्डलियों ने इनकी शिक्षा क्यों नहीं दी? इतने लम्बे समय से उन्हें क्यों छुपाया गया है? मनुष्य की नजरों से सत्यता को बार बार क्यों छुपा लिया जाता है? हमलोग चार कारणों पर विचार करेंगे:

परमेश्वर का सही समय

सर्व प्रथम, सत्यता तब तक छुपाया जाता है जब तक परमेश्वर उन्हें प्रकट करने की इच्छा नहीं करते। पुराने नियम में सत्यता नमूना और छाया में छुपे थे – तश्वीरों और कथाओ में – और बाद में इन्हें प्रकट किया गया जब यीशु का आगमन नये करार के मध्यस्थकर्ता के रुप में हुआ। सत्यता वहीं था, परन्तु जब तक इसे प्रकट करने का सही समय नहीं आ गया, तब तक छुपा था।

स्वाभाविक रुप से यह तब सत्य प्रमाणित हुआ जब पौलुस ने हिब्रू भाषा में धर्म शास्त्र को चेतनशील नजरों से दुबारा पढना शुरु किया और उन बातों को देखा जिनके विषय में उसका कथन था, ‘‘अब जो तुम को मेरे सुसमाचार अर्थात यीशु मसीह के विषय के प्रचार के अनुसार स्थिर कर सकता है, उस भेद के प्रकाश के अनुसार जो सनातन से छिपा रहा। परन्तु अब प्रगट हो कर सनातन परमेश्वर की आज्ञा से भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों के द्वारा सब जातियों को बताया गया है, कि वे विश्वास से आज्ञा मानने वाले हो जाएं (रोमी १६: २५, २६)।

नया नियम के समय में यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों को शिक्षा दी, ताकि सत्यता उन्हीं लोगों पर प्रकट हों जिन्हें यीशु बताना चाहते थे, भीड को नहीं।

इसी लिये हम लोग कुछ ऐसी बातों का पता लगायेंगे जिन्हें धर्म शास्त्र में स्पष्ट रुप से सभी के समझने के लिये उल्लेख किया गया है। अन्य सत्यता विभीन्न तरह से छुपा हुआ ही मिलेंगे, जो परमेश्वर के परिकल्पना के अनुसार सिमीत रखे गये हैं। व्यवस्था के नियम, कथायें, वचन, संख्या, और भी बहुत कुछ, इन सभी में सत्यता निहीत है, जिसे प्रकट करने में सिर्फ परमेश्वर सक्षम हैं और उनकी इच्छा पर निर्भर करता है कि कब और किसे प्रकट करें।

मनुष्य का पाप

दूसरी बात, हम देखते हैं कि मनुष्य के पाप और भ्रष्ट मन के कारण सत्यता छुपाया गया है। विश्वव्यापी मिलाप की शिक्षा मुख्य ग्रीक भाषा के शब्दों के गलत अनुवाद के कारण छुपाया गया है। सम्पूर्ण रुप से मण्डली को अनुग्रह और दया के सुसमाचार का बहुत कम ज्ञान था, और उन्हें अनन्त काल के दण्ड की शिक्षा की आवश्यकता थी जिससे वे अपने सदस्यों को नियन्त्रण में रख सकें और उनमें भय उत्पन्न कर समर्पण में लाया जा सके। मण्डली के अधिकारी भी इस गलत अनुवाद के लिये अति आनन्दित ही थे।

सत्यता के पिछे छुपा हुआ सत्य

तीसरी बात हम यह पाते हैं कि सत्यता किसी अन्य सत्य के पीछे छुपा है। अनन्त काल के न्याय के सम्बन्ध में मण्डलियों का परम्परागत दृष्टीकोण पूर्वअस्तित्व पर विश्वास करना किसीके लिये भी असम्भव बना देता है। यीशु ने कहा कि वह पिता से आये और पिता के पास चले गये। क्या यह बात सम्भव लगती है कि हम सब भी इस संसार में पिता से आये और हम में से अधिकांश लोग दुष्ट के पास चले गये? किसी विदेशी भूमि पर मलेरिया संक्रमित जंगल में कौन पिता होगा जो अपने बच्चों को भेजेगा, जहां से लौटकर आने की सम्भावना सिर्फ १० प्रतिशत है और ९० प्रतिशत सम्भावना दयनीय मृत्यु की है? क्या परमेश्वर अपने संतान को इस पृथ्वी पर भेजना चाहेंगे जहां १० प्रतिशत सम्भावना है कि वे उनके पास लौट आयेंगे और ९० प्रतिशत सम्भावना इस बात की है कि वे अनन्तकाल तक अवर्णनीय वेदना में बितायेंगे?

यदि आप इस परम्परागत शिक्षा को मानते हैं कि अधिकांश मानव जाति का गन्तव्य लगातार और अवर्णनीय वेदना है, तो परमेश्वर के साथ पूर्वअस्तित्व की बात मूर्खतापूर्ण और असम्भव हो जाती है।

विश्वव्यापी मिलाप और पूर्वअस्तित्व की शिक्षा एक दूसरे से जुडे हुए हैं। यदि आप अनन्त काल के न्याय पर विश्वास करते हैं तो शायद आप आत्मा में परमेश्वर के साथ पूर्वअस्तित्व पर विश्वास नहीं कर पायेंगे। यदि आप पूर्वअस्तित्व पर विश्वास करते हैं तो विश्वव्यापी मिलाप पर विश्वास करने का आपके पास मजबूत आधार है।

मण्डली का इतिहास

चौथी बात, आरम्भिक मण्डली इन दोनों शिक्षाओ, विश्वव्यापी मिलाप और पूर्वअस्तित्व पर विश्वास करते थे। मैंने पढा है कि ,’छठी शताब्दी के अन्त तक प्रारम्भिक मण्डली इस बात की शिक्षा देती थी कि इस पृथ्वी पर हमारा पूर्व–जीवन था। इसके बाद पूर्वअस्तित्व की शिक्षा को कौन्सटेनटीनोपोल के परिषद द्वारा ईस्वी सन् ५५३ में निन्दीत किया गया।‘ अन्य सभी सत्यताओ की तरह यह सत्यता भी सुधार के समय तक भूला दिया गया था, जो हाल के समय में फिर से प्रकाश में आ रहा है।

एक छोटी कहानी और एक कविता

एक दिन एक छोटी बच्ची ने अपने माता पिता से कहा कि वह उनके नवजात बच्चे से अकेले बात करना चाहती है। बच्चे के कमरे में इन्टरकौम लगाया गया था ताकि बच्चे के रोने की आवाज माता पिता सुन सकें। उन्होंने इस बच्ची को जाने को कह दिया और उनमें यह जानने की जिज्ञासा थी कि बच्ची नव जात बच्चे से क्या कहती है। कमरे में लगाये गये इन्टरकौम के स्वीच को औन करने के बाद इस बच्ची की कही एक एक बात उसके माता पिता सुन सकते थे। वह नवजात शिशु के पालने के पास जाकर कहना आरम्भ किया, ‘ इस धरती पर आने के बाद मेरे ‘पिता’ कैसे दिखते हैं इसे मैं भूल गयी हूं। क्या तुम मुझे बता सकती हो कि वह कैसे दिखते हैं?’

यह छोटी सी सुन्दर कहानी बिते समय की एक कविता की कुछ पंकतियों की याद दिलाती हैं। अंग्रजी कवि William Wordsworth की कविता, ‘Intimations of immortality from recollections of early childhood - बचपन की कुछ यादें, अमरत्व के कुछ निमन्त्रण के कुछ अंश’:

Our birth is but a sleep and a forgetting
The soul that rises with us, our life’s star
Hath had elsewhere its setting,
And cometh from afar;
Not in entire forgetfulness
And not in utter nakedness,
But trailing clouds of glory do we come
From God who is our home:
Heaven lies about us in our infancy.
Shades of the prison-house begin to close
Upon the growing boy,
But he beholds the light, and whence it flows,
He sees it in his joy.

हमारा जन्म एक नींद है जहां हम कुछ भूलते हैं,
हमारा प्राण जो समारे साथ उठता है, हमारे जीवनका सितारा,
किसी दूसरी जगह अस्ताना है, और कहीं दूर देश से आना है,
पूर्ण रुपसे भूलाना नहीं, और पूरी नग्नता भी नहीं,
फिर भी महिमा के बादलों के पिछे हम आ गये,
परमेश्वर के पास से, जो हमारा घर है,
हमारे बालपन में हमारे चारों ओर स्वर्ग ही तो लिपटा है,
कारागार के छाया पास पास आ रहे,
बढते हुए बचपन के साथ ,
उसे तो प्रकाश दिखता है, और जहां से यह बहता है,
वह अपने आनन्द में इसे ही देखता है।

प्रभाव

पूर्वअस्तित्व का क्या प्रभाव पडता है और किस प्रकार यह हमारी धारणा को परिवर्तीत करता है? पहले हमलोग इसके व्यापक प्रभाव पर विचार करेंगे, उसके बाद फिर व्यक्तिगत प्रभाव पर?

व्यापक प्रभाव

परम्परागत शिक्षा हमें यह बताती है कि यह जीवन ही हमारे अस्तित्व का आरम्भ है। यह जीवन लम्बा हो सकता है और छोटा भी, खुशी से भरपूर या कष्ट से भरपूर, अवसर प्राप्त या अवसरहीन, अविश्वास के अन्धेरे से भरपूर या आत्मिक प्रकाश से भरपूर। कुछ लोग अच्छे परीवार में पैदा होते हैं, किसी स्वतन्त्र देश में, और स्वस्थ शरीर के साथ आनन्दित और समृद्ध जीवन व्यतीत करते हैं। अन्य लोग गरिबी में जन्म लेते हैं, अभाव में और किसी दुष्ट सरकारों के अधीन या बिना किसी कारण अति कष्ट में अपना जीवन बिताने को बाध्य होते हैं जिसमें उनकी अपनी कोई गल्ती नहीं होती है।

संसार के लोग बार बार इसी बात को दुहराते हैं कि यह सर्वथा अन्याय है। परमेश्वर कैसे धर्मी हो सकते हैं जबकि अस्तित्व में इतनी असमानता है?

विगत में हमने इस प्रकार से उत्तर दिया होगा कि यही जीवन पूरी कहानी नहीं है। कोई भी व्यक्ति जो अपने पापों से पश्चाताप करता है और उद्धार के लिए यीशु पर विश्वास करता है, वह मृत्यु के बाद स्वर्ग जायेगा, और उसके जीवन के सारे कष्ट आनन्द में बदल जायेंगे। पश्चाताप नहीं करने वाले अनन्त वेदना में प्रवेश करेंगे।

मेरे मित्र का कहना है कि यह तो और भी अन्यायपूर्ण है। न सिर्फ यह जीवन यह जीवम अन्यायपूर्ण है बल्कि इसके बाद का समय तो अनन्तकाल तक ही कष्टप्रद है। बहुत से व्यक्ति इस जीवन में कष्ट और अभाव में जीते हैं, और बाद में पाते हैं कि इससे भी बुरा समय अनन्त काल के लिये उनकी प्रतिक्षा कर रहा है।

परमेश्वर का धन्यवाद हो कि सत्य सुसमाचार इसके तुलना में असिमीत रुपसे अच्छा है। इस संसार का हमारा जीवन बहुत बडे तश्वीर का एक छोटा हिस्सा भर है। यह न तो आरम्भ है और न ही अन्त। परमेश्वर के साथ हमारा सच्चा आरम्भ अच्छा था। उनके साथ हमारे जीवन की आखिरी अवस्था उससे भी और अच्छा होगा। स्वर्गीय आशिष की वह अवस्था अभी भी आरम्भ हो सकती है।

पौलुस ने लिखा है, ‘क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है’’ ((२ कुरि. ४: १७).। यीशु स्वयम् ने हम जिनके विषय में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं उन कष्टों को सहा था, जब कल्पना से परे का अन्धकार और संसार के सारे पापों का बोझ पिता के साथ अभी तक के अटुट संगतिको तोड दिया था। विभीन्न अनुपात में मानव जाति के अन्य सभी सदस्य पिता के साथ उनके सम्बन्धों में आये दरार का कष्ट सहते हैं। अन्त में उनके साथ सिद्ध संगति की अवस्था में सभी लौट जायेंगे। लम्बा या छोटा, छोटे परिमाण का या बडा, इस जीवन का कष्ट आने वाले समय की महिमा से जो सम्पूर्ण मानव जाति को प्राप्त होने वाली है, तुलना करने पर बिलकुल नगन्य लगता है।

किसी विशाल आयल पेन्टींग के एक वर्ग इंच भाग को देखकर कोई भी यही कहेगा कि इसका तो कोई मतलब नहीं दिखता है। उसे पूरी पेन्टींग दिखाइये, तब उसे इस पेन्टींग की विशेषता समझ में आयेगी। जब हम इस जीवन को सिमीत मानव दृष्टीकोण से देखते हैं , हम तो एक असिमीत विशाल वस्तु के छोटे हिस्से को देख रहे हैं। परमेश्वर की सृष्टी एक विशाल और त्रुटी रहित कलाकृति के समान है। वर्तमान् में हम सिर्फ इसके एक बहुत ही छोटे भाग को देख पा रहे हैं। पर वह तो सम्पूर्ण भाग को देखते हैं और जैसा कि उत्पत्ति के पुस्तक में लिखा है, वह घोषणा करते हैं – यह बहुत अच्छा है।

व्यक्तिगत प्रभाव

व्यक्तिगत स्तर पर पूर्वअस्तित्व हमारे लिये कैसा प्रभाव डालता है?

हम सब उडन्ता पुत्र के समान अपने पिता के पास लौट रहे हैं जिन्हें हम पहले जानते थे और प्रेम करते थे। हम किसी नये देश में नहीं जा रहे हैं, जहां इससे पहले हम कभी गये ही नहीं हैं। हम किसी यात्री के समान ही परदेश से अपने घर और देश को आ रहे हैं जहां के हम पूर्व बासिन्दा हैं।

परमेश्वर के साथ मिलाप का अर्थ यह नहीं है कि हम किसी अजनबी से मित्रता कर रहे हैं, जिसके साथ पहले कभी मिले नहीं हैं। यह तो गुमा हुआ और टुटे हुए सम्बन्ध को पुनर्स्थापित करना है, और इसे नयी उंचाई और अति आश्चर्यजनक स्तर पर ले जाना है।

हमलोगों को किसी नये खरीददार ने नही खहरीदा है जिससे हम कभी मिले नहीं हैं, परन्तु हमारे वास्तविक प्रेमी स्वर्गीय पिता के द्वारा छुडाये गये हैं।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह