मल्कीसेदेकका याजक पद

मल्कीसेदेक कौन थे?

पुराने नियमके बीस सुप्रसिद्ध ब्यक्तियोंमें मल्कीसेदेकका नाम नहीं आता । सिर्फ दो बार उनका नाम उल्लेख किया गया है । हमें यह छोटीसी जानकारी उत्पत्तिके १४: १८–२० पदोंमें मिलती हैः ‘तब शालेमका राजा मल्कीसेदेक, रोटी और दाखमधु ले आया । वह परमप्रधान परमेश्वरका याजक था । तब उसने उसे यह आशीर्वाद दियाः “स्वर्ग और पृथ्वीके सृष्टिकर्ता परमप्रधान परमेश्वर की ओर से अब्राम धन्य हो; परमप्रधान परमेश्वर भी धन्य है, जिसने तेरे शत्रुओं को तेरे वश में कर दिया । फिर अब्राम ने उसे सब वस्तुओंका दसवां अंश दिया ।’ इसके बाद इनके विषय में भजन संहिता ११०: ४ में एक महत्वपूर्ण बात उल्लेख हैः ‘यहोवा ने शपथ खाई है और वह उसे न बदलेगाः “तू मल्कीसेदेक की रीति पर युगानुयुग याजक है ।”

यदि आप सोचते हैं कि इस छोटीसी जानकारी के कारण नये नियम में मल्कीसेदेक का शायद ही कोई उल्लेख किया गया हो तो आप गलत हैं । पुराने नियम के बनिस्पत नये नियम में उनके विषयमें बहुत सारी बातें लिखी गई हैं । इब्रानियों की पत्री के लेखक को इस विषय में बहुत बडा प्रकाश मिला था ।

यीशु महायाजक कैसे हो सकते थे?

यीशु कौन थे, और अपने जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थानके व्दारा उन्होने क्या उपलब्धी प्राप्त की थी, इन्ही बातों को स्पष्ट करने के उद्देश्य से इस अनजान लेखकने यह पत्री लिखी थी । पहले अध्याय में उसने यीशु की तुलना स्वर्गदूतों से की और उन्हे श्रेष्ठ ठहराया; तीसरे अध्याय में लेखकने यीशुकी तुलना मूसा से की; चौथे अध्याय में यहोशू से; और पाँचवे अध्याय में हारुन से । यीशुको इन सबसे श्रेष्ठ ठहराया । इसके बाद लेखक समस्या में पड गया । प्राचीन इस्राएल में दो सबसे बडे पद होते थेः राजा का पद और महायाजक का पद । राजा की नियुक्ति हमेशा यहूदा के कुल से और महायाजक लेवी के कुलका होता था । यीशु यहुदा के कुल के थे और राजा दाउदके वंशज थे, इसके आधार पर वे राजा हो सकते थे । उनका जन्म लेवीके कुलमें नहीं होनेके कारण वे महायाजक पदके योग्य नहीं थे ।

इस समस्या का समाधान ढूंढते हुए होसकता है लेखक रात रात भर जागता रहा हो । वह इस ज्ञानके साथ बडा हुआ था कि सिर्फ लेवी वंशके पुरुष ही याजक हो सकते थे और यीशु लेवी वंशके नहीं थे । तब परमेश्वरने उसे यह प्रकाश दिया । लेखकने भजन संहिता ११० में लिखे गये शब्दों को याद कियाः ‘यहोवा ने शपथ खाई है और वह उसे न बदलेगाः “तू मल्कीसेदेक की रीति पर युगानुयुग याजक है ।” यह एक भिन्न प्रकारका याजक पद था । क्या यीशु मल्कीसेदेक की तरह के याजक हो सकते थे?

यह अलग याजक पद क्या था? और यह मल्कीसेदेक कौन था? लेवी कुल के याजक सर्वत्र थे । उनके विषयमें सभी जानते थे – जैसे आजकल कुछ देशोंके रोमन कैथालिक पादरी अथवा भारतवर्षके ब्राम्हण पुजारी । लेकिन मल्कीसेदेक की नाईं याजक क्यों नहीं थे ? या थे पर लागोंको जानकारी नहीं थी ?

इस प्रश्नका उत्तर उत्पत्ति के १४वें अध्यायमें उपलब्ध है । आइये इसे हम फिर से देखें । हम पढतेहैं कि लुतको छुडाकर युद्धसे लौटते समय इब्राहिम मल्कीसेदेक से रास्तेमें मिला ‘तब शालेमका राजा मल्कीसेदेक, रोटी और दाखमधु ले आया । वह परमप्रधान परमेश्वरका याजक था । तब उसने उसे यह आशीर्वाद दियाः “स्वर्ग और पृथ्वीके सृष्टिकर्ता परमप्रधान परमेश्वर की ओर से अब्राम धन्य हो; परमप्रधान परमेश्वर भी धन्य है, जिसने तेरे शत्रुओं को तेरे वश में कर दिया । फिर अब्राम ने उसे सब वस्तुओंका दसवां अंश दिया ।’

इस लेखकने सर्वप्रथम मल्कीसेदेक को परमप्रधान परमेश्वर (हिब्रू भाषामें एल एलियोन) के याजकके रुप में देखा । उसने यहभी पाया कि मल्कीसेदेक लेवी से श्रेष्ठ था, इब्राहिम लेवीका पुर्वज था और इब्राहिमने मल्कीसेदेक को दशमांश दिया था । इब्रानियों की पत्री ७: ४–७ में हम पढते हैं: “अब ध्यान करो कि यह मनुष्य कैसा महान था जिसे कुलपति इब्राहिम ने अपनी लूट के सर्वोतम भाग का दशवां अंश दिया । लेवी की संतानों में से जो याजक पद पाते हैं उन्हें आज्ञा मिली है कि लोगों से, अर्थात अपने भाइयों से, यद्यपि वे इब्राहिम के वंशज हैं, व्यवस्था के अनुसार दशवां अंश लिया करें । परन्तु इसने जो उनकी वंशावली में से भी नहीं था, इब्राहिम से दशवां अंश लिया और उसे आशिष दी जिसे प्रतिज्ञाएं मिली थीं । इसमें संदेह नहीं कि छोटा बडे से आशीर्वाद पाता है ।” इससे स्पष्ट हो जाता है कि मल्कीसेदेक का याजक पद लेवी के याजक पद से श्रेष्ठ था ।

समस्या का समाधान हो गया । यीशु ‘सदा के लिये मल्कीसेदेक की रीति पर महायाजक’ हो चुके हैं ।

बहुत सारे याजक

यीशु मल्कीसेदेक की रीति पर महायाजक हैं, लेकिन क्या वे एक मात्र याजक हैं? कदापि नहीं । सहायक याजकों के बिना कोई भी महायाजक पद सम्भाल नहीं सकता । ‘महायाजक’ के लिये उपयोग किया गया यूनानी शब्द ἀρχιερευς (arch-iereus) है । यूनानी शब्द ἀρχη (arche) का अर्थ ‘आरम्भ’ है । ‘आर्कएंजल’ और ‘आर्चबिशप’ जैसे शब्द इसी यूनानी शब्द से बने हैं । यूनानी शब्द ἀρχιερευς का शाब्दिक अर्थ ‘प्रथम याजक’ या फिर ‘प्रधान याजक’ हो सकता है । जब तक सहायक याजक या सह याजक नहीं हैं, तब तक ‘प्रधान याजक’ का अस्तित्व असम्भव है । इसके अलावा यदि और याजक नहीं हें तो यह याजकीय व्यवस्था हो ही नहीं सकता है । इससे यह स्पष्ट होता है कि मल्कीसेदेक की रीति पर यीशु अकेले याजक नहीं थे, परन्तु वह याजकों की नयी रीति पर प्रथम और प्रधान याजक थे ।

ये बहुत सारे याजक कौन हैं? इब्रानियों की पत्री के लेखक ने सिर्फ यीशु के विषय में लिखा है जो मल्कीसेदेक की रीति पर महा याजक हैं: लेकिन पतरस को इस विषय पर और ज्यादा प्रकाश मिला था । “परन्तु तुम एक चुना हुआ वंश, राजकीय याजकों का समाज, एक पवित्र प्रजा, और परमेश्वर की निज सम्पत्ति हो, जिस से तुम उसके महान गुणों को प्रकट करो जिसने तुम्हें अंधकार से अपनी अदभुत ज्योति में बुलाया है ।” परमेश्वर ने हम सबको याजक होने के लिये बुलाया है और सिर्फ इतना ही नहीं परन्तु मल्कीसेदेक और यीशु की तरह राजकीय याजक होने के लिये भी ।

नये याजकीय पद की विशेषतायें

बाइबल धर्मशास्त्रमें उल्लिखीत दोनों तरह के याजकीय ब्यवस्था में क्या भिन्नता थीं? और हम यह भी प्रश्न कर सकते हैं कि अन्य याजकीय ब्यवस्था जैसे रोमन कैथोलिक, अर्थोडक्स तथा हिन्दू याजकीय ब्यवस्था और इन दोनों में क्या समानतायें हैं ।

अब हम विभीन्न याजकीय ब्यवसथाओं के विषय में विचार करेंगे ।

स्वर्गीय याजक पद

मल्कीसेदेक की रीति के याजकों और लेवी की रीति के याजकों के बीच एक बुनियादी भिन्नता है जो और सारी भिन्नताओं से महत्वपूर्ण है । मल्कीसेदेक की रीति का याजक पद स्वर्गीय याजक पद है । लेवी की रीति का याजक पद और सभी याजक पदों के समान ही सांसारिक याजक पद है । इब्रानियों की पत्री के आठवें अध्याय में इस विभेद को स्पष्ट किया गया हैः पहले और दूसरे पद में हम पढते हैं कि यीशु “हमारा ऐसा महा याजक है, जो स्वर्गों में महामहिमन के सिंहासन के दाहिने विराजमान है । वह उस पवित्त स्थान और सच्चे तम्बू का सेवक बना जिसे मनुष्यों ने नहीं, परन्तु प्रभु ने खडा किया है ।” पांचवे पदमें हम पढते हैं कि लेवी की रीति के याजक “स्वर्गीय वस्तुओं के प्रतिरुप और छाया की सेवा किया करते हैं ।” कोई भी छाया किसी वास्तविक वस्तु का प्रतिरुप होता है । इसका आकार प्रकार वास्तविक वस्तु जैसा होने के बावजूद भी छाया में कोई वास्तविकता नहीं होती । यह किसी तस्वीर जैसा ही है । वास्तविक वस्तु जैसा दिखने के बावजुद भी इसमें कोई जीवन नहीं होता और यह कुछ भी कर सकने में असमर्थ होता है ।

परमेश्वर ने मूसा को लेवी की रीति पर याजक अभिषेक करने का निर्देश दिया ताकि याजक पद का अर्थ प्रदर्शित किया जा सके । परमेश्वर ने इसे अस्थायी रुप में स्थापित किया और इसे स्थायी करने की उनकी इच्छा कभी भी नहीं थी । इसका एकमात्र

उद्देश्य सिर्फ याजक पदका अर्थ दिखाना था । यह पुराने करार का एक हिस्सा था जो परमेश्वर ने इस संसार में अपने लोगों के रुप में इस्राएलके साथ किया था ।

याजकों का चयन

लेवी की रीति के याजक कैसे चुने जाते थे?

लेवी की रीति के याजक हिन्दू ब्राम्हण पुजारियों के तरह हीं एक ही गोत्र या जाति के होते थे और पिता के बाद स्वतः पुत्र याजक पद का उत्तराधिकारी होता था । सिर्फ लेवी कुल के लोग ही याजक हो सकते थे । लेवी कुल का प्रथम याजक हारुन था । परमेश्वर ने मूसा को उसे महायाजक पद पर नियुक्त करने का निर्देश दिया था । सर्वप्रथम निर्गमन २८:३ में इसका उल्लेख किया गया हैः “और तू उन सब कार्यकुशल लोगों से बातचीत करना जिन्हें मैने बुद्धि की आत्मा से परिपूर्ण किया है कि वे हारुन के लिये वस्त्र बनाएं कि वह पवित्र होकर मेरे लिये काम करे ।” इसके बाद याजक पद हारुन के पुत्रों से होते हुए उनके वंशजों तक चलता गया । भारत में ब्राम्हण याजकीय व्यवस्था इसी रीति से काम करता है ।

लेकिन इस व्यवस्था की एक कमजोरी है । प्रथम महायाजक हारुन विश्वासयोग्य और धर्मी व्यक्ति था । इतना ही नहीं, बहुत सारे लेवी कुल के याजक हारुन की तरह ही अच्छे और धर्मी व्यक्ति थे । लेकिन दुखद बात यह भी थी कि सब ऐसे नहीं थे । यहाँ तक कि हारुन के दोनों बेटे नादाब और अबीहू परमेश्वर की वेदी पर बाहरी आग अर्पण करने के कारण मारे गए थे (लैव्यः १०:१ ) । अच्छे पिता की संतान सदा अच्छी नहीं होतीं । भविष्यमें इससे भी बहुत बुरा होने वाला था । यीशु के समय में काइफा महायाजक था । इस व्यक्ति ने ही यहूदियों को यह सुझाव दिया था कि यीशुको मृत्यु दण्ड दिया जाय और मुकदमा चलाने तथा फैसला लेने के लिए पिलातुस को सौंप दिया था । यह कहा जा सकता था कि यह व्यक्ति अनजाने में ही महायाजक के रुप में परमेश्वर के मेमने को बलिदान के लिये अर्पण कर रहा था ।

राजवंश में भी ऐसी ही समस्या थी । राजा दाउद, अपने वंश का प्रथम सम्राट, इतिहास का शायद सबसे प्रसिद्ध राजा था । वह परमेश्वर का अति प्रिय व्यक्ति था । उसका पुत्र और उत्तराधिकारी सुलेमान भी अच्छा था, लेकिन उसके बाद की पीढ़ी अच्छी नहीं हुई । अन्तमें इनके वंशज मनश्शे की दुष्टता के कारण यहूदियों पर परमेश्वर का दण्ड आ पडा । यहूदा राज्य समाप्त हो गया और सारे यहूदी बाबुल देश मे. बन्धक होकर चले गये ।

मानवीय वंशानुगत उत्तराधिकार पर आधारीत कोई भी व्यवस्था परमेश्वर के राज्य के लिये पर्याप्त नहीं है । केवल ईश्वरीय उत्तराधिकार ही परमेश्वर का राज्य ला सकता है ।

रोमन कैथोलिक याजकों में ऐसी ही समानता है । अर्थोडक्स मण्डली के साथ वे यही जताते हैं कि उन्हें प्रेरितीय उत्तराधिकार प्राप्त है । दूसरे शब्दों में उनका दावा है कि यीशु द्वारा अभिषेक किए गए प्रथम प्रेरित पतरस के बाद पोप के साथ साथ सभी कैथोलिक पुजारी बिना नागा एक के बाद दूसरे उत्तराधिकारी बनते आए हैं । इन सभों का महा याजक या याजक पद तभी मान्य है जब इनका उत्तराधिकार विगत के बिशपों के साथ साथ पतरस से जुडता है ।

इस व्यवस्था में और भी गम्भीर समस्यायें हैं । पतरस को स्वयं यीशु ने चुना था और प्रेरित नियुक्त किया था । उसने अपना जीवन पूर्ण रुप से परमेश्वर की सेवा में व्यतीत किया था । लेकिन अपने आप को पतरस के उत्तराधिकारी बताने वाले रोमन कैथोलीक मण्डली के पोप और पुजारियों का जीवन शैली पूर्णतः इसके विपरीत है । इतिहास बताती है कि पोपों ने सभी तरह के पाप किये हैं । और वर्तमान की घटनायें भी यही दिखाती हैं कि आजकल के रोमन कैथोलिक पूजारी भी पापकर्म में लिप्त हैं । उनकी अनैतिक जीवन शैली यही प्रमाणित करती है कि उनका अभिषेक परमेश्वर ने नहीं किया है । निसन्देह बहुत से रोमन कैथोलिक पुजारी व्यक्तिगत रुप से धर्मी तथा आज्ञाकारी हैं और अपने भेंडों की अचछी तरह देखभाल करते हैं, लेकिन उनका समर्पण उस व्यवस्था के कारण नहीं है जिसके अधीन में वे रहते हैं ।

मल्कीसेदेक की तरह के याजक पद में ऐसी कोई समस्या नहीं है । यह भी वंशानुगत व्यवस्था है जिसमें पिता के बाद पुत्र की बारी आती है, लेकिन यहाँ पिता परमेश्वर हैं और प्रथम पुत्र यीशु । और जैसा कि पौलुस कहते हैं कि यीशु ‘बहुत सारे भाइयों में पहिलौठे’ हैं ।

पुराने नियम में उल्लेखित बहुत सारे व्यक्तियों के विपरीत मल्कीसेदेक की कोई वंशावली नहीं दी गई । उनके सांसारिक माता पिता का उल्लेख नहीं है । उनके जन्म या मृत्यु के विषय में भी कुछ नहीं लिखा । इब्रानियों की पत्री ७:३ में लेखक ने ये बातें लिखीं हैं, “इसका न कोई पिता, न माता, और न कोई वंशावली है । इसके दिनों का न कोई आदि है और न जीवन का अन्त, परमेश्वर के पुत्र सदृश ठहर कर यह सदा के लिये याजक बना रहता है ।” दूसरे शब्दों में दो तरह से वह यीशु का प्रतिरुप है । पहली बात यह कि याजक पद उसे अपने पिता से उत्तराधिकार में नहीं मिला, जैसा कि लेवी कुल में होता था, लेकिन उसे यह सीधा परमेश्वर से मिला । दूसरी बात, उसका याजक पद सदा के लिये है ।

मल्कीसेदेक हमें इस काम के लिये आवश्यक योग्यता भी दिखाता है । इब्रानियों की पत्री ७:२ में हम मल्कीसेदेक के विषय में पढते हैं: “वह अपने नाम के अर्थ के अनुसार पहिले तो धार्मिकता का राजा और तब शालेम का राजा अर्थात् शांति का राजा है ।” (हिब्रू भाषा में मेलेक का अर्थ राजा और सेदेक का अर्थ धर्मी होता है)। इन योग्यताओं को हम पूरी तरह यीशु में पाते हैं । वह धार्मिकता के राजा और शांति के राजकुमार थे । उनमें कोई पाप नहीं था और वह परमेश्वर एवं मनुष्य के बीच मिलाप कराने का याजकीय कर्तव्य पूर्ण करने आये थे । इब्रानियों की पत्री ७:१६ में हम पाते हैं कि यीशु “शारीरिक व्यवस्था के नियम के अनुसार नहीं, परन्तु अविनाशी जीवन की सामर्थ के अनुसार याजक नियुक्त हुआ ।”

यहाँ संक्षेप में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि मोर्मन सम्प्रदाय यह दावा करता है कि उनके याजक मल्कीसेदेक की रीति पर नियुक्त होते हैं । लेकिन यह बाइबल में उल्लेखित मल्कीसेदेक की रीति का याजकीय व्यवस्था नहीं है । रोमन कैथोलिक प्रचलन के विपरीत मोर्मन लोग धर्मशास्त्र में उल्लेखित पद और शब्दों का उपयोग करते हैं । लेकिन आत्मा मे. वे मल्कीसेदेक की रीति के याजकीय विधि की तुलना में रोमन कैथोलिक के याजकीय विधि के बहुत करीब हैं । मानव निर्मित यह दूसरी ऐसी व्यवस्था है जहाँ शानो शौकत व आकर्षक पदों की भरमार है, लेकिन ऐसी व्यवस्था नहीं जिसमें यीशु प्रथम महायाजक थे ।

याजकों का अभिषेक

निर्गमन के २९ वें अध्याय में हारुन और उसके पुत्रों का याजक के रुप में अभिषेक किए जाने का वर्णन मिलता है । यह एक बहुत ही विशेष अवसर था ।

इस विधि को चार भागों में विभाजित किया गया थाः

हम देखेंगे कि इस विधि का अपने आप में कोई महत्व नहीं था । यह विधि स्वर्गीय वास्तविकता की छाया मात्र थी । उचित समय आने पर परमेश्वर इससे भी महान् प्रकाश देने वाले थे ।

अब एक एक कर हम इनपर विचार करेंगे और देखेंगे कि कैसे पहले नयी रीति के महायाजक यीशु में और फिर उनके पीछे चलने वाले याजकों में ये बातें पूरी हुई हैं ।

जल से नहलाना

निर्गमन २९:४ में परमेश्वर ने मूसा को निर्देश दिया, “तब हारुन और उसके पुत्रों को मिलापवाले तम्बू के द्वार के समीप लाकर जल से नहलाना ।”

इन याजकों की पहली आवश्यकता इनकी स्वच्छता थी । याजकीय वस्त्र धारण करने से पहले इनका नहाना आवश्यक था । सच्चे अर्थों में इस काम का कोई महत्व नहीं था । पानी जो बप्तिसमा देने या और कामों के लिये उपयोग किया जाता है, सिर्फ शरीर को स्वच्छ कर सकता है, लेकिन ह्रदय परिवर्तन करने में असमर्थ है । इसका महत्व सिर्फ उतना ही है जितना यह दिखाता है, अर्थात स्वर्गीय वास्तविकता का सांसारिक प्रतिरुप ।

मत्ती ३:१३ में हम पढते हैं कि, “यीशु गलील से यरदन के किनारे यूहन्ना के पास आया कि उस से बपतिस्मा ले ।” हम समझ सकते हैं कि यूहन्ना यीशु को बपतिस्मा देना नहीं चाहता था । इस काम के लिये वह अपने आप को सही अर्थों में अयोग्य समझता था । १४ पद में हम पढते हैं, ‘परन्तु यूहन्ना यह कहकर उसे रोकने लगा, “मुझे तो तुझ से बपतिस्मा लेने की आवश्यकता है, और क्या तू मेरे पास आता है ?” परन्तु यीशु ने उत्तर दिया, “इस समय ऐसा ही होने दे, क्योंकि हमारे लिये उचित है कि इसी प्रकार सारी धार्मिकता को पूर्ण करें ।” यीशु जानते थे कि व्यवस्था पूरी करने के लिये इस विधि को पालन करना आवश्यक है, हालाँकि उनको स्वयं नहाने की आवश्यकता नहीं थी । परमेश्वर ने इस विधि को पुरा करने के लिये यूहन्ना को चुना क्योंकि वह लेवी वंश के याजक का पुत्र था ।

यह आवश्यक है कि यीशु के पीछे चलने वाले याजक इसी रास्ते पर चलें । सर्वप्रथम बुनियादी रुप से यह आवश्यक है कि उनके पाप धो दिये जायँ । बाहरी स्वच्छता इसका स्थान नहीं ले सकतीं हैं । यीशु ने पतरस से कहा, “यदि मैं तुझे न धोउँ तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं ” (यूहन्ना १३:८) । यूहन्ना ने प्रकाश की पुस्तक में उन लोगों के लिये एक दर्शन देखा था जिन्हों ने, “अपने वस्त्र मेमने के लहू में धोकर श्वेत किए हैं ” (प्रकाश ७: १४) ।

याजकीय वस्त्र

हारुन और उसके पुत्रों को नहलाने के बाद परमेश्वर ने मूसा से कहा, “वस्त्र लेकर हारुन को पहनाना ” (निर्गमन २९: ५) । २८ वें अध्याय में इन वस्त्रों का बडे विस्तार से वर्णन किया गया है । रोमन कैथोलिक याजकों की तरह ही लेवी कुल के याजक भी विशेष प्रकार के वस्त्र पहनते थे । परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी, “फिर तू अपने भाई हारुन के लिए वैभव और शोभा के निमीत्त पवित्र वस्त्र बनाना” (निर्गमन २८:२)। इस अध्याय के सम्पूर्ण बाकी भाग में इन्हीं वस्त्रों का वर्णन है । क्या मल्कीसेदेक भी विशेष वस्त्र पहनता था? इस विषय में बाइबल हमें कुछ नहीं बताती । और यीशु? क्या वे विशेष वस्त्र पहनते थे? इसका उत्तर है हाँ, लेकिन ये वस्त्र आँखों से दिखने वाले सांसारिक वस्त्र नहीं थे । इसमें कोई सन्देह नहीं कि उनके सांसारिक वस्त्र उनके समय के और लोगों के तरह ही थे । लेकिन उनके विशेष वस्त्र स्वर्गीय थे और शारीरिक आँखों के लिये अद्दश्य ।

भजन संहिता ४५: ६–८ में यीशु के वस्त्रों के विषयमें हमें यह आश्चर्यजनक विवरण मिलता है, “हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा – सर्वदा के लिये स्थिर है, तेरा राजदण्ड तो न्याय का है । तू ने धार्मिकता से प्रेम और दुष्टता से बैर किया है, इसी लिये परमेश्वर तेरे परमेश्वर ने तेरे साथियों से बढकर तुझे हर्ष के तेल से अभिषिक्त किया है । तेरे सब वस्त्र गन्धरस, अगर, और तेजपात से सुगन्धित हैं; हाथीदाँत के महलों में से तार वाले बाजों ने तुझे आनन्दित किया है ।”

प्रकाशितवाक्य १:१३ में यूहन्ना ने देखा, “और उन दीपदोनों के मध्य मनुष्य के पुत्र सदृश एक पुरुष को देखा जो पैरों तक चोगा पहिने और छाती पर एक सुनहरा पट्रटा बांधे हुए था ।”

यद्यपि शारीरिक आँखों के लिये यीशु के विषय में यह कहा गया था, “क्योंकि वह उसके सामने कोमल अंकुर के समान और सुखी भूमि से निकली जड के समान उगा; उसमें न रुप था, न सौंदर्य कि हम उसे देखते, न ही उसका स्वरुप ऐसा था कि हम उसे चाहते” (यशा ५३:२ ) । तथापि उनका आत्मिक वस्त्र हमारे कल्पना से भी अधिक महिमीत था ।

यदि महायाजक के रुप में यीशु ने ऐसे वस्त्र धारण किये थे तो उनके सह याजक कैसे वस्त्र धारण करते हैं? इनके भी याजकीय वस्त्र शारीरिक आँखों के लिये अदृश्य हैं ।

भजनसंहिता १३२ अध्याय के ९ वें पद में हमें इसका उत्तर मिलता हैः “तेरे याजक धार्मिकता धारण किए रहें, और तेरे भक्त जयजयकार करते रहें।” दिखने वाले सफेद वस्त्र शारीरिक आँखों को अच्छे और स्वच्छ लगते हैं, लेकिन आत्मिक और धार्मिकता के वस्त्र ही परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं और हमें असली याजक होने के योग्य ठहराते हैं । हम कभी भी अपने प्रयास से परमेश्वर के स्तर का धार्मिकता प्राप्त नहीं कर सकते । यशायाह ने ठीक ही लिखा है, “हमारे सारे धर्म कर्म के काम गन्दे चिथडों के समान हैं ।” लेकिन यीशु के द्वारा हम धर्मी ठहराये जा सकते हैं । जब आदम और हव्वा ने यह जाना कि वे नंगे थे, उन्हों ने अंजीर के पत्तों को जोडकर अपनेलिये वस्त्र बनाया । बादमें हम पढते हैं कि “यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नि के लिए चमडे के वस्त्र बनाकर उनको पहना दिए ।” चमडे के ये वस्त्र उस मेमने की तस्वीर हैं जो हमारी नग्नता को अपनी धार्मिकता से छुपाने के लिये मारा गया था । पौलुस ने रोमियों से कहा कि “प्रभु यीशु मसीह को धारण कर लो,” और मल्कीसेदेक की रीति के याजक के रुप में सेवा करने के लिये हमारे लिये उपयुक्त वस्त्र धारण करने का यही एक मात्र उपाय है ।

तेल से अभिषेक किया जाना

हारुन और उसके पुत्रों को विशेष याजकीय वस्त्र पहनाने के बाद परमेश्वर ने मूसा से हारुन को तेल से अभिषेक करने को कहा । “तब अभिषेक का तेल लेना और उसके सिर पर उण्डेलना और उसका अभिषेक करना (निर्गमन २९:७) ।”

जब यूहन्ना ने यीशु को बप्तिस्मा दिया तब उसे तेल से अभिषेक नहीं किया । इसके बदले, “आकाश खुल गया, और उसने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर की भांति उतरते और अपने उपर आते देखा ।” (मत्ती ३:१६) और परमेश्वर ने घोषणा कियाः “यह मेरा प्रिय पुत्र है जिस से मैं अति प्रसन्न हूँ ” (मत्ती ३:१७) । तेल का अपने आप में कोई महत्व नहीं है । इसका महत्व सिर्फ इस तथ्य में है कि यह पवित्र आत्मा का प्रतीक है । यही वह शक्ति है जिसके द्वारा यीशु ने अपनी याजकीय सेवकाई पूरी की । उन्हों ने जो भी काम किया, पवित्र आत्मा ने उनकी अगुवाई की ।

महायाजक यीशु के लिये यही एक मार्ग था और उनके पीछे चलने वाले याजकों के लिये भी यही एक मार्ग है । अपने पुनरुत्थान के बाद चेलों के पास आकर यीशु ने कहा, “तुम्हें शांति मिले, जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही में भी तुझे भेजता हूँ ।” और जब वह यह कह चुका तो उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, “पवित्र आत्मा लो ।” (यूहन्ना २०: २१) इसके थोडे ही दिनों बाद, पेन्तिकोस के दिन पवित्र आत्मा बडे सामर्थ के साथ चेलों पर उतरे । इसके फलस्वरुप उनका पूर्ण परिवर्तन हो गया और जिस सेवकाई के लिये उनका चयन हुआ था उसके लिये वे तैयार हो गए थे ।

सांसारिक याजकीय व्यवस्था, चाहे लेवी कुल के अथवा तथा कथित ईसाई याजक हों, दोनों ही पूरी तरह असफल रहे हैं क्योंकि इन्हों ने शारीरिक ज्ञान के बल पर काम किया है । मल्कीसेदेक की रीति के याजक इसलिये सफल होते हैं, क्योंकि वे पवित्र आत्मा के सामर्थ से काम करते हैं ।

याजकीय बलिदान

सभी धर्मों के याजक परमेश्वर और मनुष्य के बीच मध्यस्थ होने का या तो दावा करते हैं या ऐसा लक्ष्य रखते हैं । लेवी कुल के याजक आम आदमी के तरफ से परमेश्वर के पास बलिदान और भेंट अर्पण करने का काम करते थे । लैव्यव्यवस्था की पुस्तक में विभीन्न प्रकार के बलिदान का विस्तार से वर्णन किया गया है । वे पशु बलि और धूप दोनों परमेश्वर के सामने अर्पण किया करते थे ।

रोमन कैथोलिक याजक भी परमेश्वर के सामने भेंट अर्पण करने का दावा करते हैं । उनका कहना है कि जब भी वे ‘मास’ में सहभागी होते हैं, वे मसीह का शरीर और लहू अर्पण करते हैं । अन्य धर्मों के याजक भी लोगों के तरफ से भेंट और बलिदान अर्पण करते हैं । फिर यीशु ने क्या अर्पण किया था?

इब्रानियों की पत्री के ७:२७ में हम पढते हैं, “जिसे अन्य महा याजकों की भांति यह आवश्यक नहीं कि प्रतिदिन पहिले अपने पापों और फिर अपनी प्रजा के पापों के लिए बलिदान चढाये, क्योंकि उसने यह कार्य अपने आप को एक ही बार बलिदान चढाकर सदा के लिए पूरा कर दिया ।”

जब बप्तिस्मा देने वाले यूहन्ना ने यीशु को देखा तो बोल उठा, “देखो, परमेश्वर का मेमना जो जगत का पाप उठा ले जाता है ।”

यूहन्ना को यह गहरा और आश्चर्यजनक प्रकाश मिला था कि पुराने नियम के सभी बलिदोनों की परिपूर्णता यीशु थे । वे बलिदान अपने आप में महत्वहीन थे । क्रूस की मृत्यु के लिये अपने आप को अर्पण कर यीशु ने जो सच्चा बलिदान किया था, वे उसका सिर्फ प्रतिरुप थे ।

परमेश्वर की प्रसन्नता के लिये यीशु ने दूसरा बलिदान भी किया था । इब्रानियों की पत्री के ५:७ में हम पढते हैं, “अपनी देह में रहने के दिनों में मसीह ने ....उच्च स्वर से पुकार कर और आँसु बहा बहा कर प्रार्थनायें और विनतियाँ कीं ।” उनका जीवन अपने पिता के सामने लगातार प्रार्थना और आराधना से भरा हुआ था । परमेश्वर के सामने हारुन के द्वारा अर्पण किया गया धूप का यही सही अर्थ है । धूप सिर्फ छाया है, प्रार्थना और आराधना असली हैं ।

हम जो अपने प्रभु के पद चिन्हों पर चलते हैं, पाप के बदले अपना जीवन बलिदान नहीं कर सकते । पहला कारण यह है कि यीशु निष्खोट थे पर हम नहीं; दूसरा कारण यह है कि यीशु का बलिदान सब लोगों के लिए सर्वदा के लिए सम्पुर्ण व पर्याप्त था इसलिए इसे कभी भी दोहराने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन पौलुस द्वारा रोमीयों को कहे शब्दों का हम सब के लिये पालन करना आवश्यक हैः “अतः हे भाइयों, मैं परमेश्वर की दया का स्मरण दिलाकर तुमसे आग्रह करता हूँ कि तुम अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र और ग्रहण योग्य बलिदान करके परमेश्वर को समर्पित करदो । यही तुम्हारी आत्मिक आराधना है ।”

यदि हम अपने आप को जीवित बलिदान के रुप में परमेश्वर के सामने समर्पित कर दें, और लगातार प्रार्थना और आराधना अर्पण करते रहें तो हम भी मल्कीसेदेक की रीति के याजक हो सकते हैं ।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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