परमेश्वर के वचन की अभिव्यक्तियां

‘आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था,
और वचन परमेश्वर था।’
(यूहन्ना १: १)

परीचय

परमेश्वर का वचन क्या है?

बाइबल क्या कहती है?

बहुत से लोगों के विचार में बाइबल परमेश्वर का वचन है, लेकिन बाइबल के अनुसार ही परमेश्वर के वचन का अर्थ ऐसा नहीं है। यीशु और नये नियम के लेखकों ने पुराने नियम को धर्मशास्त्र या व्यवस्था या भविष्यद्वक्ता की पुस्तक के रूप में उल्लेख किया है। बाइबल अपनेआप को कहीं भी परमेश्वर के वचन के रुप में उल्लेख नही करती।

परमेश्वर का वचन बाइबल की तुलना में असीमित है। बाइबल में सिर्फ ६६ किताबें (चर्म पत्र) हैं। यूहन्ना ने लिखा है कि “और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक कर के लिखे जाते, तो मैं समझता हूं, कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे जगत में भी न समातीं” (यूहन्ना २१: २५)। यह ६६ पुस्तकों से बहुत अधिक है!

इस बात को मैने धर्मशास्त्र और परमेश्वर का वचन पुस्तिका मे विस्तार से वर्णन किया है।

इसलिये परमेश्वर क वचन क्या है?

हमें गहराई से देखना होगा।

वचन और आत्मा

उत्पत्ति की पुस्तक हमें बताती है कि परमेश्वर से दो चीजे प्रकट होती है: आत्मा और वचन। इन दोनो शब्दो के अर्थ क्या हैं?

आत्मा (श्वास)

उत्पत्ति १: २ मे हम पढते हैं, “परमेश्वर का आत्मा (רוּחַ , रुआख) जल के ऊपर मण्डलाता था”। इस हिब्रू शब्द רוּחַ (रुआख)का अर्थ क्या होता है? इसका बुनियादी अर्थ है हवा। इसके बाद इसका उपयोग श्वास के अर्थ मे होने लगा, क्योकि श्वास हवा जैसी ही है जो मनुष्य अपने मुह से छोडता है। इसके बाद इसका उपयोग आत्मा के अर्थ मे होने लगा।

हिब्रू शब्द रुआख, ग्रीक शब्द πνευμα (प्नेउमा) और लैटीन शब्द spiritus (स्पिरिटस), इन सभी शब्दो के अर्थ श्वास, हवा या आत्मा होते हैं।

मनुष्य के समान ही क्या परमेश्वर का भी मुंह होता है? और क्या उससे हवा निकलती है? नही, ऐसा नही है, लेकिन परमेश्वर के मुंह से क्या निकलता है, इसे दिखाने के लिये मनुष्य की भाषा में यह सबसे अच्छा विवरण है।

श्वास जीवन का चित्र भी है। सभी जीवित प्राणी श्वास लेते हैं। जब श्वास रुक जाती है, जीवन चली जाती है।

वचन

बाइबल में हिंदी शब्द वचन आउर अंग्रेजी शब्द word, हिब्रू शब्द दावार (דָּבָר) और ग्रीक शब्द लोगोस (λογος) शब्दों का अनुवाद है, लेकिन ‘वचन’ शब्द अच्छा अनुवाद नहीं है। दोनों ही शब्द दावार और लोगोस का अर्थ शब्द वचन की तुलना में वृहत् है। हिंदी या अंग्रेजी का कोई भी एक शब्द इनका पूर्ण अर्थ नहीं व्यक्त कर सकता है।

दावार का बुनियादी रुप में अर्थ होता है ‘बोली गई बात’, एक शब्द, एक वाक्य या इससे भी अधिक। इसका सरल अर्थ ‘चीज’ भी है। इसलिये परमेश्वर के वचन का अर्थ परमेश्वर द्वारा बोली गई कोई भी बात या परमेश्वर से आई हुई कोई भी चीज हो सकता है। यूहन्ना १: १ वास्तव में कहता है, “वचन परमेश्वर था”। (स्ट्रांग के द्वारा दी गयी davar शब्द की परिभाषा देखें।)

ग्रीक शब्द ‘लोगोस’ का अर्थ भी हिंदी शब्द वचन की तुलना में वृहत् है, इसमें विचार, प्रवचन और बतचीत आते हैं। प्रेरितों की पुस्तक के साथ साथ नये नियम की अन्य पुस्तकों में भी ‘लोगोस’ शब्द का साधारण अर्थ ‘सुसमाचार’ होता है। (स्ट्रांग द्वारा दी गई λογος शब्द की परिभाषा देखें।)

बीज

धर्मशास्त्र में वचन और बीज के बीच गहरा सम्बन्ध है। जब यीशु ने बीज बोने वाले के द्रिष्टान्त का अर्थ चेलों के सामने खोला, तो उनका कहना था कि, “बीज परमेश्वर का वचन है” (लुका ८: ११)। पतरस ने भी समान भाषा का उपयोग किया था: “तुम ने नाशमान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्वर के जीवते और सदा ठहरने वाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है”। (१पतरस १: २३)

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में बीज एक बहुत ही महत्वपूर्ण चीज है। मनुष्य के शुक्राणु के एक कोशिका का आकार एक मिलिमीटर के पांच सौवें भाग के बराबर होता है। अपनी आंखों से देखने के लिये इसे दो सौ गुणा बडा करना पडेगा। फिर भी इस सुक्ष्म बीज में असिमीत सूचनायें भरी पडी हैं। इसमें पिता की पूर्ण प्रतिलिपि भरी होती है। जाहिर है बीज में पिता की बाहरी आकृति, जैसे कि त्वचा का रंग, उनकी आंखें और उनके केश के रंग और उनके शरीर का आकार और माप भरा होता है। इसमें उनके अदृश्य गुण जैसे कि दिमाग, चरित्र और स्वभाव भी शामिल हैं।

बीज परमेश्वर के वचन की आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति है। बाद में हम यह भी देखेंगे कि प्राकृतिक बीज आत्मिक बीज का प्रतिरुप है। यीशु अपने पिता के बीज से पैदा हुए और पिता के गुण और चरित्र को हुबहु प्रदर्शित किया।

परमेश्वर के वचन की चार अभिव्यक्तियां

हम जैसे जैसे धर्मशास्त्र के पन्नों में मनुष्य के साथ परमेश्वर के बर्ताव का इतिहास देखते हैं, हम परमेश्वर के वचन की क्रमिक अभिव्यक्तियों को पाते हैं। हम मुख्य चार अभिव्यक्तोयों को क्रमश देखेंगे।

१= सृष्टी में परमेश्वर का वचन

“आकाशमण्डल यहोवा के वचन से, और उसके सारे गण उसके मुंह ही श्वास से बने” (भजन ३३: ६)।

उत्पत्ति के पहले अध्याय में सृष्टी का वर्णन है। परमेश्वर ने अपने वचन के द्वारा सभी चीजों की सृष्टी की। उनके शब्दों ने भौतिक आकार ले लिया।

परमेश्वर के प्रथम लिखीत वचन हैं, “उजियाला हो।” इसके फलस्वरुप मनुष्य के कल्पना से परे एक विशाल शक्ति का प्रस्फ़ुटन हुआ जिसे वैज्ञानिक ‘बीग बैंग’ कहते हैं। प्रकाश इस शक्ति का एक सरल स्वरुप है, जिसे परमेश्वर ने ऐसा बनाया कि इसके ‘वेभ लेंथ’ के कारण हमारी आंखें इसे देख सकें। रेडियो तरंग के साथ साथ अन्य तरंग हमारे लिये अदृश्य हैं।

यह बडा धमाका (बीग बैंग) मनुष्य के सभी कल्पनाओ से परे एक बहुत बडे आणविक बिस्फोट के समान ही था। कोई भी वैज्ञानिक नहीं बता सकता कि इतनी बडी शक्ति कहां से आई। मेरा विश्वास है कि यह परमेश्वर के वचन, दावर, या परमेश्वर से आयी ‘एक चीज’ से उत्पन्न हुई। सारे ब्रह्माण्ड में उपलब्ध सभी पदार्थ समय के एक क्षण में अस्तित्व में आगये। ये पदार्थ मिलकर तारे और आकाश गंगाओ को बनाया। परमेश्वर के वचन (दावर, लोगोस) में असिमीत शक्ति है।

परमाणविक प्रतिकृयाओ ने इस पदार्थ को हाइड्रोजन, आक्सीजन, कार्बन, लोहा, चांदी, सोना और अन्य सभी तत्वो में परिवर्तित कर दिया, जिनसे हमारा संसार भरा पडा है। ये सभी चीजें भौतिक और रासायनिक नियमो के अनुसार हुई जिन्हें परमेश्वर ने निर्धारण किया था। ये नियम परमेश्वर के वचन (लोगोस) के हिस्सा हैं।

कुछ ताराओ के चारो ओर ग्रह बने और इनमें से एक ग्रह – हमारी पृथ्वी को परमेश्वर ने विशेष उद्देश्यो के लिये चुन लिया।

परमेश्वर ने इस ग्रह पर अपने वचन के द्वारा जीवन की सृष्टी की। जीवन के सबसे साधारण अवस्था में भी पदार्थ के अकार्बनिक अवस्था से जीवीत कार्बनिक अवस्था में परिवर्तन की व्याख्या कोई भी वैज्ञानिक नहीं कर सकता है। सिर्फ परमेश्वर का वचन ही यह उपलब्धी प्राप्त कर सकता है।

परमेश्वर ने जीव विज्ञान और क्रमिक विकाश के नियमो को बनाया और इन्हीं नियमो के द्वारा सूक्ष्मतम् जीवित कोशिकायें भी वन वृक्षो और जीव जन्तुओ के रुप में विकशित हो गयीं। ये नियम परमेश्वर के वचन की अभिव्यक्ति थे। विगत दो सदियो में वैज्ञानिको ने इन नियमो में अधिकांश की खोज की है और समझा है, लेकिन अधिकांश वैज्ञानिक इन नियमो के रचयीता को ढूंढ पाने में असमर्थ रहे हैं।

ब्रह्माण्ड में सबसे उलझी हुई चीज मनुष्य का दिमाग है। इसमें १०० खरब न्यूरौन होते हैं और प्रत्येक न्यूरौन दूसरे दस हजार न्यूरौन से जुडे होते हैं। लेकिन क्या आप इस बात पर विश्वास कर सकते हं कि इस दिमाग को बनाने के लिये आवश्यक सभी जानकारियां एक छोटे से बीज अर्थात् मनुष्य के वीर्य में मौजुद रहता है। यह भी आश्चर्यजनक बात है कि इस दिमाग में माता और पिता, दोनो के विशेष स्वभाव समावेश होते हैं।

परमेश्वर ने एक वचन और बोला, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं” (उत्पत्ति १: २६)। मेरे विचार में यह परमेश्वर की सृष्टी की पराकाष्ठा है। क्रमिक विकाश के खरबो वर्ष बाद अन्त में उन्होंने एक ऐसा शरीर बनाया जो उनके स्वरुप में बने मनुष्य के लिये उपयुक्त था। “पर मेरे लिये एक देह तैयार किया” (इब्रा १०: ५)। प्राकृतिक संसार की सृष्टी की यह पराकाष्ठा थी।

इन सभी बातो को बाइबल में सिर्फ एक वाक्य में व्यक्त किया गया है: “विश्वास ही से हम जान जाते हैं, कि सारी सृष्टि की रचना परमेश्वर के वचन के द्वारा हुई है” (इब्रा ११: ३)।

परमेश्वर के वचन में असीम शक्ति, असीम बुद्धी और असीम कल्पना निहित है।

सृष्टी में परमेश्वर के वचन की अभिव्यक्ति बिलकुल आश्चर्यजनक थी, लेकिन इसके बाद परमेश्वर के वचन की जो अभिव्यक्तियां होने वाली थी, वे और भी आश्चर्यजनक थी।

(सृष्टी और क्रमिक विकाश देखें।)

२= मनुष्य की भाषा में परमेश्वर का वचन

परमेश्वर के द्वारा मनुष्य की सृष्टी होने के बाद, हम परमेश्वर के वचन की पूरी तरह नयी अभिव्यक्ति देखते हैं। उस समय परमेश्वर के वचन की अभिव्यक्ति मनुष्य की भाषा – हिब्रू में हुई। धर्मशास्त्रो में परमेश्वर द्वारा बोली गई बातो को लिखा गया।

पूरे पुराने नियम में परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगो से बहुतसे भविष्यद्वक्ताओ और अपने सेवक सेविकओ के द्वारा बात की थी। “परमेश्वर का वचन … के पास आया”, यह वाक्यांश पुराने नियम में ९२ बार उल्लेख हुआ है। नीचे इनमें कुछ दिये गये हैं:

पुराने नियम में मुख्य विषय व्यवस्था या तोरह है, और व्यवस्था में मुख्य विषय ‘दस आज्ञा’ है। हिब्रू भाषा में इन्हें ‘दस वचन’(दस डवारिम )के रुप में जाना जाता है।

परमेश्वर ने मूसा के द्वारा जो व्यवस्था दी, वे सभी सर्वश्रेष्ठ थे और पृथ्वी पर किसी मनुष्य के द्वारा दी गयी व्यवस्था की तुलना में बेहतर थे। व्यवस्था के विषय में साक्षी देते हुए दाउद ने कहा, “यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है” (भजन १९: ७), लेकिन दुख की बात है कि यह अपना उद्देश्य प्राप्त नहीं कर सका। व्यवस्था त्रुटि रहित था, लेकिन परमेश्वर के चुने हुए लोग, मेरे पूर्वज, यहूदी समुदाय, त्रुटिरहित नहीं थे। उन्होने दस की दसो आज्ञाएं तोड दी। परमेश्वर को अपने वचन की एक और अभिव्यक्ति देनी पडी। जैसा कि परमेश्वर ने यिर्मयाह के द्वारा बोला, “फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आने वाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बान्धूंगा=== जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बान्धूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा” (यिर्म ३१: ३१, ३३)।(नई वाचा देखें)। वचन देहधारी होना आवश्यक था।

३= परमेश्वर का वचन यीशु के रुप में देहधारी हुआ

नये नियम के समय परमेश्वर बोलना जारी रखते हैं, लेकिन एक बहुत बडा परवर्तन होता है। हम पढते हैं कि “उस समय परमेश्वर का वचन जंगल में जकरयाह के पुत्र यूहन्ना के पास पहुंचा” (लुका ३: २), लेकिन यह अन्तिम घटना है जहां हम पढते हैं, “परमेश्वर का वचन पहुंचा”। ऐसा क्यो? यीशु हमें बताते हैं: “व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता यूहन्ना तक रहे” (लुका १६: १६)।

यूहन्ना ने सुसमाचार की अपनी पुस्तक को इन शब्दों के साथ आरम्भ करता है, “आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था”। (यूहन्ना १: १)। वह आगे कहता है, “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया” (यूहन्ना १: १४)।

इब्रानियो की पुस्तक के आरम्भिक शब्द इस प्रकार हैं: “पूर्व युग में परमेश्वर ने बाप दादों से थोड़ा थोड़ा कर के और भांति भांति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें कर के। इन दिनों के अन्त में हम से पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उसने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उसने सारी सृष्टि रची है” (इब्रा= १: १-२)।

इन दोनो उदाहरणो में हम देखते हैं कि परमेश्वर का वचन वही, एक ही था जिसने सृष्टी की रचना की और यीशु के रुप में देहधारी हुआ।

यीशु का जन्म या यूं कहें कि उनका गर्भधारण किस प्रकार हुआ था? उनका जन्म तीन चीजो से हुआ: वचन, आत्मा और बीज से।

यीशु पूर्णरूप से अद्वितीय थे। उनसे पहले उनके समान कोई भी व्यक्ति पैदा नहीं हुआ था। उनके पूर्ववर्ति और यीशु के बीच का अन्तर इतना बडा था कि उन्होने यहा़ तक कह दिया, “जितने मुझ से पहिले आए; वे सब चोर और डाकू हैं” (यूहन्ना १०: ८)। इतना बडा बयान!

पुराने नियम के समय में परमेश्वर का वचन भविष्यद्वक्ताओ और परमेशवर के चुने गये लोगो के पास पहुंचता था। यह अपने आप में आश्चर्यजनक था, लेकिन परमेश्वर का वचन उनके पास सिर्फ़ पहुंचता था। यह उनमें रहता नहीं था।

यीशु पूर्णरुप से इनसे अलग थे। चारो सुसमाचार की पुस्तको में ढूढकर देखिए, ‘परमेश्वर का वचन यीशु के पास पहुंचा’, ऐसा कहीं नहीं मिलेगा। परमेश्वर का वचन उनके पास कभी नहीं आया। इसके बजाय, परमेश्वर का वचन उनके अन्दर था और उनमें से बाहर निकलता था। वह स्वयम् परमेश्वर का वचन थे। पौलुस ने लिखा, “परमेश्वर ने मसीह में हो कर अपने साथ संसार का मेल मिलाप कर लिया” (२ कोरि= ५: १९)।

यीशु अपने पिता के पुत्र थे। उनके पिता का बीज, जो परमेशवर का वचन था, उनमें था, जिसके फलस्वरुप यीशु ने अपने पिता के सभी विशेषतायें और गुणो को अभिव्यक्त किया। वे गुण क्या थे? परमेश्वर के तीन महानतम् गुणो में, उनकी बुद्धिमत्ता, उनका प्रेम और उनकी शक्ति हैं। यीशु ने इन सभी को अभिव्यक्त किया।

यीशु ने परमेश्वर के बुद्धिमत्ता को अभिव्यक्त किया। १२ वर्ष की उम्र में यीशु ने धर्म गुरुओ के साथ मन्दिर में बात की और “जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे” (लुका २: ४७)। बाद में, यीशु को पकडने गये अधिकारियो ने कहा, “कि किसी मनुष्य ने कभी ऐसी बातें न कीं” (यूहन्ना ७: ४६)। कोई भी उन्हें परास्त नहीं कर सकता था या तर्क वितर्क के जाल में नहीं फंसा सकता था। सभी परीस्थितियो में उन्हों ने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता को अभिव्यक्त किया।

यीशु ने परमेश्वर की शक्ति को अभव्यक्त किया। कोई भी परीस्थिति उनके नियन्त्रण से बाहर नहीं थी । वह सभी प्राकृतिक नियमो को परास्त कर सकते थे। शराब की आवश्कता थी, उन्होंने पानी को शराब में परिवर्तित कर दिया। भोजन कम पड गया? उन्होंने उपलब्ध रोटियों और मछलियों को कई गुणा बढा दिया। नाव नहीं है? यीशु पानी के उपर चल दिये। गलील सागर में तूफान? यीशु ने आज्ञा दी और तूफान शान्त! यीशु के मित्र लाजरस की मृत्यु हो गयी? यीशु ने उसे कब्र से निकल आने की आज्ञा दे दी।

यीशु ने परमेश्वर के प्रेम को अभिव्यक्त किया। तीन वर्षो तक इजराइल देश में पैदल चलकर बिमारों को चंगा कर, कोढियों को शुद्ध कर, मृतकों को जिवीत कर और दुष्टात्माओ को निकालकर यीशु ने प्रेम और दया दिखाई। अन्त में उन्हों ने मनुष्य जाति को पाप से बचाने के लिये सर्वोच्च बलिदान अर्पण किया। “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे” (यूहन्ना १५: १३)।

४= परमेश्वर का वचन उनके अपने लोगों में देहधारी हुआ

यीशु बहुत से भाइयों में पहिलौठा थे। वह परमेश्वर की नई सृष्टी के प्रतिरुप थे। परमेश्वर ने ऐसी योजना नहीं बनाई कि यीशु एक मात्र सन्तान रहें। उनकी इच्छा थी कि यीशु एक बहुत बडे परीवार में बहुत से भाई और बहनों में प्रथम सन्तान के रुप में रहें।

इस परीवार को किस प्रकार जन्म लेना था? यीशु, पतरस और यूहन्ना, तीनों ने नये जन्म के विषय में बात की है।

यीशु ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। “मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता”। नीकुदेमुस ने उस से कहा, “मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दुसरी बार प्रवेश कर के जन्म ले सकता है?” यीशु ने उत्तर दिया, कि “मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। क्योंकि जो शरीर से जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से जन्मा है, वह आत्मा है। अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से जन्म लेना अवश्य है” (यूहन्ना ३: ३-७)।

पतरस ने लिखा, “क्योंकि तुम ने नाशमान नहीं पर अविनाशी बीज से परमेश्वर के जीवते और सदा ठहरने वाले वचन के द्वारा नया जन्म पाया है” (१ पतरस १: २३)।

यूहन्ना ने लिखा, “जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज उस में बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है” (१ यूहन्ना ३: ९)।

परमेश्वर के नये परीवार के जन्म में हम उन्हीं तीन विशेषताओ को देखते हैं जिन्हें हम यीशु के जन्म में भी देखते हैं: वचन, आत्मा और बीज। परीवार के छोटे भाइयों का जन्म भी ठीक बडे भाई के जन्म के समान ही है। सम्पूर्ण प्रकृति में यह सामान्य बात है कि छोटे भाई बडे भाई के समरुप बनें। जब मै दो वर्ष का था, मेरा बडा भाई चार वर्ष का था और मुझसे बहुत बडा था, साथ ही वह मुझसे सभी बातों में श्रेष्ठ था। आगे चलकर मैने उसे पकड लिया और आज मेरी लम्बाई उससे एक इन्च अधिक है!

इसका अर्थ क्या है? इसका अर्थ सिर्फ यही है कि हम अपने बडे भाई यीशु के स्वरुप में अपने आप को विकशित करें। इसका अर्थ यही है कि जिस प्रकार उन्होंने अपने पिता के गुणों और विशेषताओ को अभिव्यक्त किया, हम भी ऐसा ही करें। यीशु ने परमेश्वर की शक्ति का प्रदर्शन किया। हमें भी उसी प्रकार परमेश्वर की शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिये। यीशु ने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता दिखाई, हमें भी ऐसा ही करना चाहिये। यीशु परमेश्वर के प्रेम से भरपूर थे, हमें भी वैसा ही होना चाहिये। यीशु ने इन सभी बातों को एक वाक्य में व्यक्त किया है: “मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, वरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं” (यूहन्ना १४: १२)।

परमेश्वर की योजना थी कि यीशु का असिमीत पुनरुत्पादन हो। उनकी इच्छा थी कि यीशु के सदृश ही असंख्य सन्तान उत्पन्न हों। परमेश्वर का वचन यीशु में देहधारी हुआ था और इस प्रकृया की पनरावृति होना आवश्यक था। परमेश्वर के वचन का उन सभी भाइयों और बहनों में देहधारी होना आवश्यक था, जिनके वह बडे भाई थे।

अपने प्रस्थान के थोडे समय पूर्व, यीशु ने बीज के विषय में बात की थी। फसह के आखिरी पर्व मनाने के लिये जब यीशु यरुशलेम में थे, कुछ यूनानी लोग जिन्होंने यीशु के विषय में सुना था, उनसे मिलना चाहते थे। (यूहन्ना १२: २०-२५)। यीशु ने उन्हें रहस्यपूर्ण और अप्रासंगिक उत्तर दिया, “मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परन्तु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है” (यूहन्ना १२: २४)।

उनके कहने का अर्थ क्या था? क्या वह इन यूनानियों से नहीं मिलना चाहते थे, या नहीं चाहते थे कि वे उनसे मिलें? निसन्देह वह मिलना चाहते थे। लेकिन गिनती के कुछ यूनानियों से मिलने की तुलना में उनका उद्देश्य बहुत वृहत् था। प्रत्येक शारीरिक आंख, यहूदी और अन्य जाति, स्त्री और पुरुष, बच्चे और बुढे, सभी के लिये यीशु को देखना आवश्यक है और एक दिन, “हर एक आंख उसे देखेगी” (प्रकाश १: ७)। लेकिन कैसे? यह तभी सम्भव था, जब वह बीज के रुप में, जमीन में पडकर मरते और तब तक बढते जाते, बढते जाते और बढते जाते, तब तक जब तक कि आकाश के नीचे इस पृथ्वी के सभी देश के सभी स्त्री पुरुष, जवान वृद्ध, धनी गरीब, विद्वान् और साधारण सभी मनुष्य उनके रुप में रुपान्तरण नहीं हो जाते। सिर्फ तभी सब आंखों के लिये यीशु को देखना सम्भव होगा।

हर एक आंख यीशु को देखेगी जब वह “बादलों में आयेंगे” (प्रकाश १: ७)। ये बादल कैसे होंगे? वे पानी से लदे सामान्य बादल नहीं होंगे जिन्हें हम रोज देखते हैं। वे मनुष्यों से बने बादल होंगे: ऐसे मनुष्य जिनका यीशु के साथ स्वर्गीय स्थानों में, जो यीशु ने तैयार किया है, बैठने के लिये पुनरुत्थान हुआ है। वे सब साक्षियों के बादल होंगे। वे सब उस बीज के फल होंगे जो जमीन में पडा, मर गया और बहुगुणा फल फलाया।

परमेश्वर के पुत्रों की अभिव्यक्ति

क्या इन चीजों का होना मुमकिन है? क्या हम और आप यीशु के समान बन सकते हैं? क्या हम भी परमेश्वर के गुण और चरीत्र को अभिव्यक्त कर सकते हैं? यह साधारणतया असम्भव लगता है। यह हमारे पहुंच से बहुत दूर लगता है। फिर भी यीशु और नये नियम के तीन महत्वपूर्ण लेखकों, पतरस, पौलुस और यूहन्ना का कहना है कि ऐसा ही होने वाला है।

यीशु ने कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, वरन इन से भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूं” (यूहन्ना १४: १२)। मृत्यु के बाद चार दिन कब्र में पडे व्यक्ति को फिर से जिवीत करने से भी कोई बडा कार्य हो सकता है क्या? मैं ने चिन्ह और आश्चर्य कर्म में इसका वर्णन किया है। उनके अनुयायी उनकी तुलना में बडे बडे काम नहीं कर पायेंगे, यीशु ने कभी ऐसी आशा नहीं की थी। यीशु ने कहा, “जगत की ज्योति मैं हूं” (यूहन्ना ८: १२)। उन्हों ने यह भी कहा, “तुम जगत की ज्योति हो” (मत्ती ५: १४)।

यूहन्ना भविष्य की ओर आशा भरी नजरों से उस समय की ओर देख रहा था जब यह सब पूरी होने वाली थी: “हे प्रियों, अभी हम परमेश्वर की सन्तान हैं, और अब तक यह प्रगट नहीं हुआ, कि हम क्या कुछ होंगे! इतना जानते हैं, कि जब वह प्रगट होगा तो हम भी उसके समान होंगे, क्योंकि उसको वैसा ही देखेंगे जैसा वह है” (१ यूहन्ना ३: २)। यीशु ने निश्चित शब्दों में एक ऐसे भविष्य की भविष्यवाणी की है, जब हम उसके सदृश बनेंगे।

पतरस ने भी एक महान् भविष्य की ओर आशा भरी नजरों से देखा था, “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिसने यीशु मसीह के हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया। अर्थात एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये। जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है, जिन की रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से, विश्वास के द्वारा उस उद्धार के लिये, जो आने वाले समय में प्रगट होने वाली है, की जाती है” (१ पतरस १: ३-५)। मेरा विश्वास है कि हम सब इस अन्त के समय के निकट पहुंच रहे हैं जिसकी आशा पतरस ने की थी।

पौलुस ने लिखा, “क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है” (रोमी= ८: १९)। पौलुस भी आशा भरी नजरों से भविष्य के उस समय की ओर निगाहें लगा रखा था, जिसे वह, “परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने” का समय बता रहा था।

जब बीज जमीन में बोया जाता है, यह नजर से ओझल हो जाती है। कुछ समय तक जमीन के उपर कुछ भी नजर नहीं आता। कुछ समय के बाद, अन्त में जब एक हरी टहनी दिखती है, वह भी अन्य सभी पौधों के समान ही दिखती है। एक लम्बे समय के बाद, शायद महीनों, शायद वर्षों व्यतीत होने के बाद, अन्त में वह बीज फल फलाती है। परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने के समय भी ऐसा ही होगा।

यीशु ने भी अपने जीवन के प्रथम तीस वर्ष नासरत में शान्तिपूर्वक व्यतीत किये। १२ वर्ष की उम्र में यरुशलेम स्थित मन्दिर में थोडे समय के लिये यीशु गये थे, और ऐसी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन किया जो उनकी उम्र के लिये असम्भव था, लेकिन कोई सेवकाई नहीं, कोई शिक्षण नहीं, परमेश्वर की शक्ति का कोई प्रदर्शन नहीं, ऐसी कोई बात हमें पढने को नहीं मिलती जो उन्हें जनसधारण से अलग करती हो। वह कौन थे और क्या थे, कोई भी नहीं पहचान सका था।

इसके बाद परमेश्वर के पुत्र के रुप में तीन वर्षों के लिये उनकी अभिव्यक्ति आरम्भ हुई।

परमेश्वर के पुत्रों के साथ भी ऐसा ही होगा। लम्बे समय की तैयारी के बाद वे उस बिन्दु पर पहुंचेंगे जहां पर वे परमेश्वर के फिलौठे पुत्र की बुद्धिमत्ता, शक्ति और प्रेम को अभिव्यक्त कर सकेंगे। लेकिन परमेश्वर द्वारा निर्धारित सम्पूर्ण उद्देश्य प्राप्ति का समय आना आवश्यक है। उनका परीवार पूर्ण होना आवश्यक है ताकि सभी अपने बडे भाई के चरित्र और गुणों को दोहरा सकें।

निष्कर्ष

हमने परमेश्वर के वचन की चार महान् अभिव्यक्तियों पर विचार किया है।

ये सब परमेश्वर के आश्चर्यजनक बुद्धिमत्ता, कल्पना और शक्ति की अभिव्यक्तियां हैं।

इनमें प्रथम तीन इतिहास हैं। उनका उद्देश्य पूर्ण हो चुका है। चौथे का कार्य प्रगति पर है। यह आरम्भ हो चुका है परन्तु अभी पूर्ण नहीं हुआ है।

कलीसिया के इतिहास में वर्णित कलीसियाओ की तुलना में परमेश्वर के पुत्रों की अभिव्यक्ति बिलकुल अलग होगी। अधिकांश परंपरागत कलीसिया परमेश्वर के गुणों के ठीक प्रदर्शन में विफल रहे हैं। इसने परमेश्वर की शक्ति को अभिव्यक्त करने के बदले मनुष्य की कमजोरियों को अभिव्यक्त किया है। इसने परमेश्वर की बुद्धिमत्ता को अभिव्यक्त नहीं करके मनुष्य की मूर्खता को अभिव्यक्त किया है। कई बार परमेश्वर के प्रेम को अभिव्यक्त करने के बजाय मानवीय घृणा और कलह को अभिव्यक्त किया है। (बेबीलोन देखें)।

अभी ये अब परीवर्तन हो रहे हैं। परमेश्वर एक नयी जाति उत्पन्न कर रहे हैं जो उनकी बुद्धिमत्ता, उनकी शक्ति और उनके प्रेम को अभिव्यक्त करेंगे। वे परमेश्वर के पुत्रों की अभिव्यक्ति होंगे।


अनुवादक: डा. पीटर कमलेश्वर सिंह


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