स्वर्ग, स्वर्गलोक, नरक,

शऔल (Sheol), हैडिस (Hades) और गेहेना (Gehenna)

परीचय

साधारण व्यक्तियों के लिये, स्वर्ग और नरक से सम्बन्धित विचार बिलकुल आसान हैं। स्वर्ग एक आश्चर्यजनक स्थान है जहां मृत्यु होने पर अच्छे लोग जाते हैं। यहां नीला आसमान, हरे खेत और बहुत से सुन्दर फल देने वाले वृक्ष हैं। नरक एक भयंकर स्थान है, जहां बुरे लोग जाते हैं। उन सभी लोगों को अनन्तकाल तक आग और गन्धक से सताया जायेगा।

बाइबल पर विश्वास रखनेवाले लोगों के लिये इस विषय पर शिक्षा देना इसी तरह आसान है, लेकिन यह स्पष्ट रुप से परिभाषित है। यीशु को उद्धारकर्ता स्विकार कर चुके लोग अपनी मृत्यु के बाद स्वर्ग जाते हैं। यीशुको अस्वीकार करने वाले लोग नरक जाते हैं। और वे जहां भी जाते हैं, उन्हें अनन्त काल तक उसी स्थान पर रहना पडेगा। यह भी सत्य है कि आरम्भ से अब तक बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हों ने कभी भी यीशु का नाम नहीं सुना है और न तो उन्हें स्वीकार किया है, न हीं अस्वीकार किया है। उनका भविष्य कैसा होगा, इस बात पर सभी एक मत नहीं हैं।

लेकिन आश्चर्य की बात है कि न तो हिब्रू भाषा में (जो बाइबल के पुराने नियम की भाषा है) और न ही ग्रीक भाषा में (जो बाइबल के नये नियम की भाषा है) स्वर्ग या नरक के लिये कोई भी स्पष्ट शब्द है। इस लेख में हम हिब्रू भाषा के शब्द स्वर्गलोक (पैराडाइज Paradise), शऔल (Sheol) और गेहेन्ना (Gehenna) और ग्रीक भाषा का शब्द हैडिस (Hades) का अध्ययन करेंगे और इस विषय में एक क्रान्तिकारी समझदारी पर पहुंचेंगे।

शऔल (שְׁאֹל - Sheol)

हिब्रू शब्द शऔल (Sheol) हिब्रू भाषा के ग्रन्थ (बाइबल के पुराने नियम) में बार बार उपयोग किया गया है और इसका सबसे नजदीकी हिन्दी भाषा का शब्द है ‘कब्र’ (Grave)। अधिकतर अनुवादक शऔल का अनुवाद कब्र के रुप में करते हैं लेकिन कुछ अनुवादों में इसका अनुवाद नरक या “hell” के रुप में किया गया है जो कि सही अनुवाद नहीं है। बहुसंख्यक व्यक्ति नरक को एक ऐसे स्थान के रुप में लेते हैं जहां सजा पाये लोगों को पिडा दी जाती है, जबकि शऔल सर्वथा तटस्थ स्थान है। जैसा कि अय्युब ने कहा है, ‘उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपने स्वामी से स्वतन्त्र रहता है (अय्युब ३:१९)। कुछ अनुवादों में शऔल शब्द को बिना अनुवाद किये हिब्रू शब्द के रुप में ही छोड दिया गया है।

हिब्रू भाषा के आरम्भिक ग्रन्थों में मृत्यु के बाद जीवन की परिकल्पना नहीं की गयी है: दुष्ट लोगों के लिये दण्ड और धर्मी लोगों के लिये पुरस्कार का प्रावधान नहीं है। बहुत बाद में दानियेल की किताब में दानियेल १२: २- ३(हम पुनरुत्थान की परिकल्पना पाते हैं जिसमें दुष्ट लोगों के लिये दण्ड और धर्मी लोगों के लिये पुरस्कार समावेश किये गये हैं।)

शऔल शब्द ‘שְׁאֹל’, जो कि एक क्रिया वाची शब्द है, ‘शाल’ से बना है जिसका अर्थ होता है ‘पूछना’ या ‘जांचना’ । शायद ऐसा इसलिये है कि हम पूछते हैं कि मृत व्यक्ति कहां हैं, लेकिन हमें पता नहीं होता है।

ᾅδης (हैडिस - Hades)

हैडिस बहुत हद तक हिब्रू भाषा के शब्द शऔल के समानार्थी ग्रीक भाषा का शब्द है। वास्तव में, पूरे LXX में (बाइबल के पुराने नियम का ग्रीक भाषा में अनुवाद) शऔल को हमेशा हैडिस के रुप में अनुवाद किया गया है। हैडिस शब्द का आरम्भ ‘अदृश्य’ शब्द से हुआ है। हैडिस मृत व्यक्तियों का ‘अदृश्य’ संसार है।

धर्मी लोगों के लिये हैडिस आनन्द से भरपूर जगह थी, वहीं दुष्ट लोगों के लिये यह पीडा से भरी जगह थी। नये नियम में यीशु ने धनी व्यक्ति को हैडिस में अत्यन्त पिडा भोगते हुए दिखाया है।

बाइबल के अधिकांश पुराने अनुवाद और कुछ नये अनुवाद हैडिस को नरक के रुप में अनुवाद करते हैं। शऔल शब्द के अनुवाद के समान ही यह अनुवाद भी सही नहीं है क्योंकि अधिकांश लोगों के मन में नरक शब्द दण्ड और पिडा से जुडा है, जो ग्रीक शब्द हैडिस में नहीं है। बहुत से आधुनिक अनुवादक इस शब्द को ‘हैडिस’ के रुप में हीं रहने देते हैं।

मत्ती १६:१८ में यीशु ने कहा, ‘तू पतरस है; और मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा: और हैडिस के फाटक उस पर प्रबल न होंगे।’अधिकांश पुराने अनुवाद में ‘नरक (hell) के फाटक’ का उपयोग किया गया है जो कि मेरे विचार में सही अनुवाद नहीं है। हिंदी में, मुझे लगता है, ‘अधोलोक के फाटक’ अच्छा अनुवाद नहीं है।

Γεενα (गेहेन्ना - Gehenna)

बहुसंख्यक अनुवादों में गेहेन्ना को नरक या Hell के रुप में अनुवाद किया गया है। कुछ अनुवादों में इसे गेहेन्ना के रुप में ही छोड दिया गया है। नये नियम में इस शब्द का उपयोग सिर्फ १२ बार हुआ है, जिनमें ११ बार तो स्वयम् यीशु ने इसका उपयोग किया है।

गेहेन्ना क्या है?

गेहेन्ना वास्तव में एक हिब्रू शब्द ‘गै हिनोम’ (Gei Hinom) का अक्षरस: अनुवाद है। गेई हिनोम का अर्थ है हिनोम की घाटी जो यरुशलेम में अवस्थित है। यदि आप गुगल में हिनोम टाईप करें तो गुगल आपको उस स्थान पर ले जायेगा!

यह हिनोम घाटी एक ऐसी जगह है जहां बच्चों को कनानी देवता मोलोक के सामने बलिदान कर अग्नि को समर्पित किया जाता था। (२ राजा २३:१०, २ इतिहास २८:३, २ इतिहास ३३:६, यिर्मया ७:३१ और यिर्मया ३२:३५ देखें।) ययहूदा के दो दुष्ट राजाओ आहाज और मनस्से ने अपने अन्य दुष्कर्मों के साथ साथ यह दुष्ट काम भी किया करते थे। बाद में यह स्थान दफन के काम में उपयोग होने लगा था (यिर्मया ७:३१ देखें)।

बाइबिल के इस भाग में यीशु ने गेहेन्ना का उल्लेख किया है: ‘यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल टुण्डा हो कर जीवन में प्रवेश करना, तेरे लिये इस से भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक (गेहेन्ना) के बीच उस आग में डाला जाए जो कभी बुझने की नहीं। जहां उन का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती। और यदि तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल। लंगड़ा हो कर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो पांव रहते हुए नरक (गेहेन्ना) में डाला जाए। और यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल, काना हो कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो आंख रहते हुए तू नरक (गेहेन्ना) में डाला जाए। जहां उन का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती’ (मरकुस ९:४३-४८)।

यह बात स्पष्ट है कि वचन के इस भाग को अक्षरस: नहीं लिया जा सकता है। किसी भी प्रकार से ऐसा नहीं लगता कि परमेश्वर ऐसा चाहते हैं कि लोग अपने हाथ या पांव काट दें या अपनी आंखें निकाल दें और ऐसा भी मुमकीन नहीं लगता कि जो लोग पाप के लिये प्रेरित करने वाले अपने शरीर के इन अंगों को नहीं काटते, उन्हें यरुशलेम ले जाकर हिन्नोम की घाटी में सशरीर डाल दिया जाय। यीशु के द्वारा बोले गये इन शब्दों का हमें आत्मिक अर्थ ही ढूंढना होगा।

हमारे हाथ हमारे कर्मों को दर्शाते हैं, पांव उन जगहों को दर्शाते हैं जहां हम जाते हैं और हमारी आंखें इस बात को दर्शाती हैं कि हमने क्या देखा है। इनमें से कोई भी काम हमें पाप करने के लिये प्रेरित कर सकता है।

आग और गन्धक की झील

पतरस, पौलुस या यूहन्ना की पुस्तकों में हम गेहेन्ना शब्द नहीं पाते लेकिन प्रकाश की पुस्तक में हम इससे मिलती जुलती बातें पाते हैं। वचन के इन पदों में हम एक अग्नि कुण्ड का उल्लेख पाते हैं जहां गन्धक लगातार जलती है: प्रकाश १९:२०, प्रकाश २०:१०, प्रकाश २०:१४, प्रकाश २०:१५, प्रकाश २१:८

प्रकाश २१: ८ में लिखा है: ‘पर डरपोकों, और अविश्वासियों, और घिनौनों, और हत्यारों, और व्यभिचारियों, और टोन्हों, और मूर्तिपूजकों, और सब झूठों का भाग उस झील में मिलेगा, जो आग और गन्धक से जलती रहती है: यह दूसरी मृत्यु है’।

दोनों स्थान, गेहेन्ना (हिनोम घाटी) और अग्नि कुण्ड ऐसी जगहें हैं जहां लगातार आग जलती रहती है। सम्भवत: दोनों स्थानों पर, एक घाटी और दूसरी ताल के रुप में, ज्वालामुखी सक्रिय रही हो। स्पष्ट रुप से दोनों जगहें आत्मिक वास्तविकता दर्शाती हैं, न कि भौगोलिक स्थान। मनुष्य की आत्मा भौतिक आग में कभी नहीं जल सकती, और हमेशा के लिये तो कदापि नहीं।

Paradise - पारादैस - स्वर्गलोक - פַּרְדֵּס - παράδεισος

पारादैस, इस शब्द का अर्थ क्या है? सम्भवत: हमारे लिये इसका अर्थ अति सुन्दर और आनन्द से पूर्ण स्थान हो सकता है, लेकिन इसका असली अर्थ यह नहीं है। वास्तव में यह एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है चारों तरफ से घिरा हुआ स्थान जहां फलदार पेड लगाये गये हों, दूसरे शब्दों में फलों का बगीचा या दाख बारी।

पुराने नियम में इस अर्थ में यह शब्द तीन बार उपयोग किया गया है : नहेम्याह २:८, सभोपदेशक २:५ और श्रेष्ठ गीत ४:१३। इसका अनुवाद ज्यादातर बाग़ के रूप में किया गया है।

नया करार में, हिब्रू शब्द פַּרְדֵּס (पारदेस) को ग्रीक शब्द παράδεισος (पारादैसोस) में और फिर अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में Paradiseके रूप में लिप्यान्तरित किया गया है। हिंदी बाइबिल इसे स्वर्गलोक के रूप में अनुवादित करती है, जो अच्छा अनुवाद नहीं है।

स्वर्ग का दूसरा नाम पारादैस नहीं है। यह अदन का बाग का दूसरा नाम है। यह प्रकाशितवाक्य २:७ से स्पष्ट है: "जो जय पाए, मैं उसे उस जीवन के पेड़ में से जो परमेश्वर के स्वर्गलोक में है, फल खाने को दूंगा"। जीवन का वृक्ष अदन की बाग में था।

उत्पत्ति २:९ में, हम पढ़ते हैं हम “और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक वाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया। और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया”। (उत्पत्ति २:८, ९)। सभी पेड फल देने वाले ही थे और फूलों का कोई उल्लेख नहीं मिलता। अदन सुन्दर फूलों का बाग नहीं था, जैसा कि हम प्रायः सोचते हैं, लेकिन स्वादिष्ट फलों का बगीचा था!

नये नियम में ग्रीक शब्द παράδεισος (जिसका अनुवाद पैराडाइज किया गया है) का उपयोग तीन बार किया गया है: लुका २३:४३, २ कोरि १२:३–४) और प्रकाश २:७। यीशु ने अपने साथ क्रूस पर चढाये गये अपराधी से कहा था, “मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ पारादैस में होगा”। इसे आदमी इसे अदन के बाग का रूप में समझ गया होगा।

दृष्टान्त

हमने शऔल, हैडिस, गेहेन्ना और अग्निकुण्ड का शाब्दिक अर्थ के विषय में विचार किया है। इन शब्दों का अर्थ हम तबतक नहीं समझ सकते हैं जबतक हम ये नहीं समझ लेते कि यीशु दृष्टान्तों में बात करते थे, न सिर्फ यीशु ने दृष्टान्तों में बात की, बल्कि बाइबल में बहुत सी बातें दृष्टान्तों में कही गयी हैं जिन्हें उनके शाब्दिक अर्थों के द्वारा नहीं समझा जा सकता है।

यीशु ने दृष्टान्तों में बात की है, लेकिन इसका वास्तव में अर्थ क्या है? इसका अर्थ सिर्फ यह है कि यीशु ने आत्मिक बातें धरती की भाषा में बतायीं।

आइये हम कुछ उदाहरण देखें:

बीज बोने वाले का दृष्टान्त हम सभी जानते हैं (मत्ती १३:३-८)। यीशु ने बीज बोने वाले व्यक्ति के विषय में एक साधारण कहानी सुनाई जिसने चार तरह की मिट्टी में बीज बोये। इस कथा में परमेश्वर, स्वर्ग, नरक या किसी भी आत्मिक या धार्मिक बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता। यहां तक कि जब यीशु ने इस कथा की व्याख्या की (मत्ती १३:८–२३), तब भी उन्होंने किसी आत्मिक भाषा का उपयोग नहीं किया। उन्होंने कहा कि बीज (स्वर्ग के) राज्य का वचन है और जिन चिडियों ने इन बीजों को चुग लिया वे सब दुष्टात्मायें थीं। यहां भी यीशु ने परमेश्वर या शैतान या सुसमाचार तक का कोई उल्लेख नहीं किया। उन्हों ने पूरी बात स्वाभाविक शब्दों में बतायी।

मत्ती के १३ वें अध्याय में ७ दृष्टान्त समावेश किये गये हैं:

ये सभी दृष्टान्त साधारण दैनिक जीवन की कथायें हैं। इनमें से किसी भी दृष्टान्त में परमेश्वर शब्द का उपयोग नहीं किया गया है। ये सभी दृष्टान्त स्वर्ग के राज्य को पूर्ण रुप से धरती की भाषा में दर्शाते हैं। इनमें से अधिकांश दृष्टान्त इन शब्दों के साथ आरम्भ होते हैं, “स्वर्ग का राज्य . . . जैसा है।” इसके बाद यीशु कोई परिचित तश्वीर सामने लाते हैं लेकिन किसी प्रकार के व्याख्या किये बिना या बहुत कम व्याख्या के साथ।

यहां तक कि स्वर्ग का राज्य या अक्षरस: अनुवाद किया जाये तो आकाश का राज्य अपने आप में एक दृष्टान्त हीं है। कोई भी राज्य इस धरती पर एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसपर कोई राजा शासन करता है। आकाश का राज्य एक तश्वीर की भाषा है जो आत्मिक साम्राज्य को दर्शाती है जहां परमेश्वर राज्य करते हैं।

यूहन्ना रचित् सुसमाचार में भी यीशु ने दृष्टान्तों में बात की थी:

इन सभी घटनाओ में यीशु साधारण दैनिक जीवन की भाषा का उपयोग करके अपनी बातों को एक आत्मिक आयाम दे रहे थे। इन सभी घटनाओ में श्रोता उन्हें नहीं समझ पा रहे थे। (यीशु को समझना पाना देखें।)

अब हमारे लिये यह आवश्यक है कि हम अपनी बाइबल में स्वर्ग और नरक, इन दोनों शब्दों का अर्थ ताजा रुप से देखें।

स्वर्ग

हिन्दी भाषा में अंग्रेजी भाषा के समान ही दो शब्द हैं स्वर्ग और आकाश, जबकि हिब्रू भाषा में दोनों के लिये एक ही शब्द है ‘शामायिम’। इसी प्रकार ग्रीक भाषा में भी दोनों शब्दों के लिये एक ही शब्द है ‘उरानोस’। आधुनिक अंग्रेजी और हिन्दी दोनों ही भाषाओ में स्वर्ग शब्द से हम यही समझते हैं कि यह एक ऐसा स्थान है जहां परमेश्वर वास करते हैं और मृत्यु के बाद लोग जाते हैं, लेकिन न तो हिब्रू शब्द शामायिम और न ही ग्रीक शब्द उरानोस का अर्थ यह बताता है। इन दोनों ही शब्दों का साधारण सा अर्थ है ‘आकाश’।

दूसरे शब्दों में बाइबल में हिब्रू या ग्रीक में कोई भी ऐसा शब्द नहीं है जो हमें स्वर्ग का वह अर्थ बताये जैसा हम विचार करते हैं।

क्या मृत्यु के बाद हम स्वर्ग जायेंगे? आइये हम कुछ मुख्य पदों पर विचार करें।

स्वर्ग जाना

‘स्वर्ग जाना’ बाइबल में कहीं भी इन शब्दों का उल्लेख नहीं किया गया है।

यीशु स्वयं स्वर्ग से नहीं आया और न ही वापस स्वर्ग को गया। वह परमेश्वर से आया और परमेश्वर के पास वापस चला गया (देखें यूहन्ना १३:३)।

यीशु के बगल में क्रूस पर लटकाये गये अपराधी से उन्होंने कहा था, “मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ पारादैस में होगा” (लूका २३:४३)।

पौलुस ने लिखा, "मेरी इच्छा है कि मैं विदा हो जाऊं और मसीह के साथ रहूं, क्योंकि यह बहुत अच्छा है" (फिलिप १ २२–२४)। यीशु की तरह, पौलुस एक जगह नहीं जा रहा था, बल्कि एक व्यक्ति के पास जा रहा था।

निकुदिमुस

निकुदिमुस से यीशु ने क्या कहा था?

यीशु “स्वर्ग जाने” के विषय में बात नहीं कर रहे थे। वह तो यह बता रहे थे कि पहले परमेश्वर के राज्य को कैसे देख सकते हैं और फिर उसमें कैसे प्रवेश कर सकते हैं।

परमेश्वर का राज्य एक आत्मिक संसार है। इसे देखने और इसमें प्रवेश करने के लिये हमें अपनी मृत्यु तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है।

यूहन्ना १४:१-३

अन्तिम संस्कार के समय पाठ किये जाने वाले वचनों में यूहन्ना १४:१-३ बहुत ही लोकप्रिय पद हैं: “तुम्हारा मन व्याकुल न हो, तुम परमेश्वर पर विश्वास रखते हो मुझ पर भी विश्वास रखो। मेरे पिता के घर में बहुत से रहने के स्थान हैं, यदि न होते, तो मैं तुम से कह देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। और यदि मैं जा कर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूं, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो”।

क्या मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की निश्चयता की बात करके यीशु अपने चेलों को सान्त्वना दे रहे थे? या अपने दूसरे आगमन की बात कर रहे थे?

यीशु ने वचन के इस भाग में स्वर्ग का कोई उल्लेख नहीं किया है और नहीं चेलों की मृत्यु के बाद क्या होगा, इस पर कोई बात की है। दो हजार वर्ष बीत गये हैं और अभी तक उनका दूसरा आगमन नहीं हुआ है! कमसे कम चेलों की आशा के अनुरुप या जिस प्रकार अधिकांश लोग आज कल आशा करते हैं उस रुप में तो नहीं हुआ है। यदि आप यूहन्ना १४, १५ और १६ अध्याय पूरी तरह पढें तो पायेंगे कि पूरा सन्दर्भ ही पवित्र आत्मा के आगमन से जुडा है। इस अध्याय के अन्तिम भग में यीशु ने अपने शब्दों को स्पष्ट करते हुए कहा, “मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे” (यूहन्ना १४: २३)। यीशु ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दी, परन्तु चेलों की मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग ले जाकर नहीं, वरन् पेन्तिकुस के दिन स्वयम् आकर! इफिसियों २:६ में उल्लिखित पौलुस के शब्दों को सविस्तार अनुवाद करने पर हम पाते हैं कि उस दिन, “परमेश्वर ने चेलों को मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया”। (इस विषय पर मैंने प्रभु का आगमन में विस्तार से लिखा है।)

स्वर्ग में टकराव

हम ग्रीक शब्द ‘उरानोस’ पर विस्तार से विचार करेंगे, जो एक संज्ञा (Noun) है और इसका अनुवाद सामान्यतया स्वर्ग या आकाश और इसके विशेषण शब्द एपोरानियस का अनुवाद ‘स्वर्गीय’ होता आया है। बाइबल के बहु संख्यक पद हमें यह बताते हैं कि उरानोस सिर्फ परमेश्वर का वास स्थान ही नही है, बल्कि शैतान और दुष्टात्मायें भी यहीं रहती हैं।

इफिसियों के दो सन्दर्भ हमें स्वर्गीय स्थानों के बारे में बताते हैं। ईफिसी १:३: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो, कि उसने हमें मसीह में स्वर्गीय स्थानों (एपोरानियस) में सब प्रकार की आशीष दी है”। ६:१२: “क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और स्वर्गीय स्थानों में दुष्ट आत्माएँ से”। हमें स्वर्गीय स्थानों में आशीषें मिली हैं; हम स्वर्गीय स्थानों में दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से मल्लयुद्ध करते हैं।

प्रकाश १२:७ में भी हमें यही संदेश मिलता है: “फिर स्वर्ग पर (‘उरानोस’) लड़ाई हुई, मीकाईल और उसके स्वर्गदूत अजगर से लड़ने को निकले, और अजगर ओर उसके दूत उस से लड़े”। स्वर्ग और स्वर्गीय राज्य सिर्फ अच्छाई, मिलाप और सुन्दरता से भरपूर जगह नहीं हैं, यह एक द्वन्द्व पूर्ण स्थान भी है।

ईफिसी २:२ भी पूर्व उल्लिखीत पदों के समान ही है: “और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है”।

Hell - नरक

अंग्रेजी शब्द Hell नोर्स माइथोलॉजी से आया है। इसी तरह हिंदी शब्द नरक हिंदू धर्म से आया है।

नोर्स पौराणिक कथाओ में Hel अधोलोक में अवस्थित एक ऐसी जगह का नाम था जहां एक ऐसा स्थान जहाँ पापियों को हमेशा के लिए आग से तड़पाया जाता था। एक भयंकर देवी, जिसका नाम भी हेल (Hel) था, इस स्थान पर शासन करती थी। लोगों का मानना था कि यह स्थान भूगर्भ में अवस्थित है।

हिंदी शब्द नरक का अर्थ अंग्रेजी शब्द hell से काफी मिलता-जुलता है। हिंदू धर्म में नरक भी एक ऐसी जगह है जहां पापियों को पीड़ा दी जाती है। भगवान यम इस पर शासन करते हैं।

Hell और नरक शब्द पुराने बाइबिल अनुवाद में Hades और गेहन्ना शब्द का अनुवाद करने के लिए उपयोग किये गए हैं। अधिकांश आधुनिक अनुवाद में ग्रीक शब्द Hades रखा गया है, लेकिन गेहन्ना शब्द को नरक या hell शब्द से बदल दिया गया है। कुछ अनुवाद में Hades और गेहन्ना शब्द हैं और hell या नरक शब्द बिल्कुल नहीं हैं।

क्या hell या नरक हैडिस का उचित अनुवाद है? इसका सही जबाब है, नहीं! नये नियम में दोनों ही हिब्रू शब्द Paradise और Gehenna, ग्रीक भाषा में सामान्य रुप से Paradisus and Gehenna रखे गये हैं। लैटीन भल्गेट बाइबल (Latin Vulgate Bible) (जिसका पूरे यूरोप में एक हजार वर्षों तक बोलबाला था), इसी तरह के अभ्यास को जारी रखा और इन दोनों शब्दों को Paradisus और Gehenna ही रखा। बहुत से बाइबिल अनुवादों में ‘Paradise’ शब्द ही रखा गया लेकिन Gehenna के बदले बुत परस्त शब्द Hell या नरक समावेश कर दिया गया। हिब्रू शब्द हिनोम की घाटी के बदले बुत परस्त शब्द Hell इसमें समाहित सभी अर्थों के साथ समावेश करना सर्वथा अनुचित है।

आश्चर्य की बात है कि सुसमाचार की पुस्तकों के अलावा Gehenna शब्द सिर्फ एक बार उपयोग में आया है - याकुब ३:६ में। पूरे प्रेरितों की पुस्तक में न तो पतरस और न हीं पौलुस ने लोगों को किसी तरह की चेतावनी देते हुए इस बात का जिक्र किया है कि यदि लोग यीशु पर विश्वास नहीं करते हैं तो उन्हें सदा सर्वदा के लिये Gehenna या Hell (नरक) में कष्ट भोगना पडेगा। शिक्षा देने के लिये उनके पास इस बात की तुलना में और अच्छी बातें थीं।

हमें कहीं नहीं बताया गया है कि शैतान और उसके दूत, दुष्ट आत्माएँ, नरक में रहते हैं। बहुत आश्चर्यजनक रूप से हम पाते हैं (प्रकाश १४:१०) यीशु और उसके स्वर्गदूत आग की झील ("नरक") में अविश्वासियों की "पीड़ा" की निगरानी कर रहे हैं।

इसका अर्थ यही है कि नरक के सम्बन्ध में जो शिक्षा शताब्दियों से परम्परागत कलीसियाओ में दी जा रही है, उनका कोई आधार बाइबल धर्मशास्त्र में नहीं है। बाइबल में अविश्वासियों के लिये निश्चित रुप से न्याय और दण्ड की बात की गयी है, लेकिन इसका नरक शब्द से कोई लेना देना नहीं है। एक और बात, बाइबल में इस बात का भी उल्लेख नहीं है कि नरक शैतान और दुष्टात्माओ का वास स्थान है।

आत्मिक संसार

मैं फिर से इन बातों को दुहराना चाहता हूं, हिंदी भाषा में जिस अर्थ में स्वर्ग और नरक शब्दों का उपयोग किया जाता है, उसी अर्थ में उपयोग करने के लिये हिब्रू भाषा में ऐसा कोई शब्द नहीं है। ग्रीक भाषा में भी ऐसा ही है: स्वर्ग या नरक के लिये कोई स्पष्ट शब्द नहीं है।

ये सभी शब्द आत्मिक संसार के चित्र हैं, स्वर्ग या नरक के वैकल्पिक नाम नहीं।

बाइबल के अनुवादकों ने हमेशा स्वर्ग और नरक के सम्बन्ध में, साथ ही अन्य विषयों पर कलीसिया में प्रचलित परम्परागत शिक्षा के अधार पर ही अनुवाद किया है। उन्हों ने सत्यता के आधार पर प्राय: अनुवाद नहीं किया है।

कलीसिया की पारंपरिक शिक्षा यह है कि स्वर्ग और नरक नामक दो अलग-अलग स्थान हैं। मृत्यु के समय प्रत्येक व्यक्ति इनमें से किसी न किसी स्थान पर जाता है और अनंतकाल तक वहीं रहता है। यह शिक्षा बाइबल से नहीं, बल्कि सदियों की चर्च परंपरा और मूल रूप से मूर्तिपूजक धर्मों से आती है।

बाइबल में, हम शैतान और उसके दूतों को "स्वर्ग" में और यीशु और उसके दूतों को "नरक" (आग की झील) में पाते हैं। शास्त्रों में इब्रानी या यूनानी भाषा में स्वर्ग या नरक के लिए कोई स्पष्ट शब्द नहीं है।

तो, असली तस्वीर क्या है? मेरा मानना है कि ये दो ग्रीक शब्द, οὐρανος (औरानोस) और ἐπουρανιος (एपौरानिोस), आमतौर पर अनुवादित स्वर्ग या आकाश और स्वर्गीय, वास्तव में पूरे आध्यात्मिक संसार को संदर्भित करते हैं। इस आध्यात्मिक दुनिया में अच्छाई और बुराई दोनों हैं। स्वर्ग, गेहन्ना और हैडिस शब्द स्थानों के नाम नहीं हैं, बल्कि इस आध्यात्मिक दुनिया के विभिन्न पहलुओं के लिए चित्र भाषा हैं।

स्वर्ग का स्वर्ग या सर्वोच्च स्वर्ग, जिसका उल्लेख २इतिहास २:६ में किया गया है, और अथाह गड्ढा, जिसका उल्लेख प्रकाश ९:२ में किया गया है, इस आध्यात्मिक दुनिया के दो छोर हो सकते हैं।

यह सोच कि सभी विश्वासी स्वर्ग नामक एक ही स्थान पर और सभी अविश्वासी नरक नामक दूसरे स्थान पर जाते हैं तर्क संगत नहीं लगता। अविश्वासियों के जीवन में बहुत भिन्नता है। उनमें से कुछ लोग अत्यन्त दुष्ट स्वभाव के हैं और उन्होंने पूर्ण रुपसे पापी जीवन व्यतीत किया है। दूसरे बहुत लोग ऐसे हैं जिन्होंने धर्मी जीवन व्यतीत किया है और अपने अपने धर्मों का पूरी इमानदारी से पालन किया है। न्याय कहता है कि इनकी मृत्यु पर इनमें से हरेक व्यक्ति को आत्मिक संसार में उचित स्थान मिले।

इसी प्रकार विश्वासियों में भी उनके आत्मिक अवस्था में बहुत बडी भिन्नता है। कुछ लोग परमेश्वर के प्रति गहरे समर्पण और संगति में अपना पूरा जीवन व्यतीत करते हैं। कुछ अन्य ऐसे हैं जिनका कुछ हद तक विश्वास है, लेकिन उन्होंने अपना जीवन सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये व्यतीत किया है। ये सभी लोग भी आत्मिक संसार में अपने आत्मिक जीवन के विकाश के आधार पर उचित स्थान पाने के हकदार हैं। उस स्थान से अन्त में परमेश्वर के साथ पूर्ण रुप से एक होने के लिये वे प्रगति के पथ पर आगे की यात्रा पूरा कर सकते हैं। अपने साथ क्रूस पर चढाये गये अपराधी से यीशु ने कहा था, “तुम आज ही मेरे साथ पारादैस (Paradise) में रहोगे”। यूहन्ना, वह चेला जिसे यीशु बहुत प्रेम करते थे, इसके बाद ४० या ५० वर्षों तक परमेश्वर के साथ जीवन व्यतीत किया और उसके बाद यीशु के साथ रहने के लिये चला गया, मेरा विश्वास है कि वह सर्वोच्च स्वर्ग में गया।

भारतीय मूल के एक विश्वासी थे साधु सुन्दर सिंह, जिन्होंने बहुत से दर्शन देखे थे। उनकी किताब ‘Visions of the Spiritual World’ ('आध्यात्मिक दुनिया के दर्शन') में उन्होंने उन चिजों का वर्णन किया है जो उन्हों ने देखा था। पुस्तक के प्राक्कथन में वह लिखते हैं, “आत्मिक संसार का अर्थ यह है कि सभी आत्मिक व्यक्तित्व आत्मिक संसार के अन्धकार और ज्योति में परमेश्वर के सिंहासन तक क्रमिक प्रगति करते हुए विभीन्न अवस्थाओ को पार कर पहुंचते हैं। उन्होंने यह भी देखा कि परमेश्वर का राज्य एक विशेष अवस्था है जिसमें अच्छे और बुरे दोनों सम्मिलित हैं।

१ पतरस ३:१८–१९ में हम पढते हैं कि मृत्यु के बाद “उसी में उसने जा कर कैदी आत्माओं को भी प्रचार किया”। हम हिब्रू ४:१४ में पढते हैं कि यीशु “जो स्वर्गों से हो कर गया है”। फिर हम इफिसियों ४:१० में पढते हैं कि यीशु “जो सारे आकाश से ऊपर चढ़ भी गया, कि सब कुछ परिपूर्ण करे”। इन तीनों पदों में हम यही देखते हैं कि यीशु मृत्यु की गहिराई को पार कर सम्पूर्ण आत्मिक संसार की ऊंचाई पर पहूंच गया।

मत्ती १३ अध्याय में उल्लिखित सातों दृष्टान्त आत्मिक संसार में निहित विशाल आयाम की ओर इंगित करते हैं। मत्ती १३: ४७–५० में उल्लिखित जाल के दृष्टान्त को देखें: “फिर स्वर्ग का राज्य उस बड़े जाल के समान है, ...जगत के अन्त में ऐसा ही होगा: स्वर्गदूत आकर दुष्टों को धर्मियों से अलग करेंगे, और उन्हें आग के कुंड में डालेंगे”। यह स्पष्ट है कि यहां एक वृहत आत्मिक संसार की बात की गयी है, न कि एक पवित्र स्थान की, जहां परमेश्वर सन्तों और स्वर्गदूतों के साथ विराजमान रहते हैं।

जंगली बीज का दृष्टान्त (मत्ती १३:२४–३०) ऐसा ही है, जैसा कि खमीर का दृष्टान्त (मत्ती १३:३३)। इन दोनों दृष्टान्त में हम यही पाते हैं कि स्वर्ग में अच्छे और बुरे, दोनों प्रकार के लोगों का मिश्रण सम्मिलीत हैं।

कुलुस्सियों को पौलुस ने अपनी चिट्ठी में लिखा था: “क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं। और वही देह, अर्थात कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठने वालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे। क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उस में सारी परिपूर्णता वास करे। और उसके क्रूस पर बहे हुए लोहू के द्वारा मेल मिलाप कर के, सब वस्तुओं का उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की” (कुलु १:१६–२०)।

वचन का यह भाग हमें परमेश्वर की उस वृहत योजना के विषय में बताती है जिसके अनुसार सृष्टी करने के बाद सम्पूर्ण सृष्टी का उद्धार करके पूरे आत्मिक संसार को अपने साथ मिलाप में लाना चाहते हैं।

निष्कर्ष

हमने पैराडाइज, शिउल, हैडिस और गेहेन्ना जैसे शब्दों के अर्थ को समझने का प्रयत्न किया है। ये सभी स्वर्ग या नरक के लिये उपयोग किये जाने वाले वैकल्पिक शब्द नहीं हैं, जैसा कि हम में से अधिकतर लोगों को बताया गया है। बल्कि ये शब्द तो हिब्रू और ग्रीक भाषा के ऐसे शब्द हैं जो सम्पूर्ण आत्मिक संसार के विभीन्न पक्ष को चित्रीत करते हैं।

इस आत्मिक संसार का अधिकांश भाग हमारे लिये अदृश्य हैं, लेकिन हमारे चारो ओर वास्तविक रुप से व्याप्त हैं। इसकी विविधता और इसका आयाम हमारे वर्तमान संसार की तुलना में अति महान् हैं।

मृत्यु के समय हम आत्मिक संसार के उस स्थान और स्तर पर अपनी आंखें खोलेंगे जो हमारे लिये उचित होगा। वहां से हम प्रगति के रास्ते पर तब तक आगे बढते जायेंगे जब तक हम पिता के साथ पूर्ण रुप से एक नहीं हो जाते।