चार जीवित प्राणी

परिचय

यहेजकेल नबी का पुस्तक एक नाटकीय दर्शन से आरम्भ होता है। उसने स्वर्ग खुला हुआ और कौंधती हुई तीव्र प्रकाश के बीच में चार जीवित प्राणियों को देखा। उसने उनका इस प्रकार वर्णन किया है: “उनके साम्हने के मुखों का रूप मनुष्य का सा था; और उन चारों के दाहिनी ओर के मुख सिंह के से, बाई ओर के मुख बैल के से थे, और चारों के पीछे के मुख उकाब पक्षी के से थे। उनके चेहरे ऐसे थे” (यहेजकेल १:१०)। यूहन्‍ना ने भी ऐसा ही दर्शन देखा, जिसका वर्णन प्रकाशित वाक्य ४:६-७ में किया गया है,“और उस सिंहासन के सामने मानो बिल्‍लोर के समान काँच का सा समुद्र है। सिंहासन के बीच में और सिंहासन के चारों ओर चार प्राणी है, जिनके आगे पीछे आँखें ही आँखें है। पहला प्राणी सिंह के समान है, और दूसरा प्राणी बछडे़ के समान है, तीसरे प्राणी का मुँह मनुष्‍य का सा है, और चौथा प्राणी उड़ते हुए ऊकाब के समान है।”

इन दर्शनों का और चार प्राणियों का अर्थ क्‍या है?

चार व्यक्तियों ने – जिनमें एक चुँगी लेने वाला, एक जिसका व्यवसाय अज्ञात है, एक वैद्य और एक मछुआरा था - यीशु मसीह की जीवनी लिखी। उन लोगों के नाम मत्ती, मर्कूस, लूका और यूहन्‍ना थे। उन लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकें (पतरस, पौलुस और अन्य द्वारा लिखीत पुस्तकों के साथ) यहूदियों के पवीत्र धर्मशास्त्र में सम्‍मिलित की जायेंगी और इस तरह वह पुस्तक तैयार होगा जिसे लाखों लोग बाईबल के नाम से जानते हैं । उन्हों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनके द्वारा लिखी पुसतकें सैकडों भषा में अनुवाद की जायेंगी । उनके लिये ऐसा सोचना भी आश्चर्य चकित कर देता ।

मत्ती, मर्कूस और यूहन्‍ना यहूदी होने के कारण निश्‍चय ही उन्हें यहेजकेल के दर्शन की जानकारी थी, परन्‍तु उनकी लिखी पुसतकों से इसका कोई सम्बन्ध भी था, इसका उन्हें कोई ग्यान नहीं था । वे लोग अन्‍जाने में ही इसके पुरे होने में अपनी भुमिका खेल रहे थे । ये चारों सुसमाचार क्रमिक रुप से चारों जीवीत प्राणी को दर्शाते हैं।

मत्ती

मत्ती का सुसमाचार पहले जीवित प्राणी को दर्शाता है, जो सिंह है। सिंह जानवरों का राजा है उसी अनुरूप मत्ती ने यीशु मसीह को राजा के रूप में देखा है। बाइबल स्वयम् सिंह को राजा और यहूदा के कुल से जोड़ता है, जिस कुल में यीशु का जन्‍म हुआ। उत्‍पत्ति ४९:९-१० में याकूब ने भविष्‍यवाणी की: “यहूदा सिंह का बच्‍चा है। हे मेरे पुत्र तू अहेर कर के गुफा में गया है, वह सिंह अथवा सिंहनी के समान दब कर बैठ गया फिर कौन उसको छेडे़गा। जब तक शीलों न आए तब तक न यहूदा से राजदण्‍ड छूटेगा, और न उसके वंश से व्‍यवस्‍था देने वाला अलग होगा और राज्‍य-राज्‍य के लोग उसके अधीन हो जायेगे”। मत्ती सरकारी अधिकारी था और चारों सुसमाचार लेखकों में यीशु को राजा के रूप में देखने वाला सबसे योग्य व्‍यक्ति।

इन शब्दों के साथ मत्ती ने अपने सुसमाचार का आरम्भ किया है, “इब्राहीम के वंशज दाऊद की संतान यीशु मसीह की वंशावली की पुस्तक । इसके बाद उसने अब्राहाम से लेकर दाउद तक और इस्राएल के सभी राजाओं तक यीशु के वंशावली को जोडता है”। दाऊद के सिंहासन पर बैठने के लिये नियुक्त किये गये व्‍यक्ति के लिए इस से अच्छी बात और क्‍या हो सकती है?

सिर्फ मत्ती ने ही ज्‍योतिषियों के दर्शन करने आने और उनकी कही बात लिखी है: “यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है? क्योंकि हम ने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको प्रणाम करने आए हैं।” (मत्ती २:२)।

मत्ती के पुस्‍तक के अन्‍त में चेलों को आज्ञा देते समय यीशु मसीह ने ऐसा कहा: “स्‍वर्ग और पृथ्‍वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है” (मत्ती २८:१८)। ऐसी भाषा एक राजा ही बोल सकता है।

मर्कूस

मर्कूस दूसरे जीवित प्राणी बैल को दर्शाता है, जो सेवक पशु है । उसी अनुरूप यीशु को सेवक के रूप में देखता है जो एक राजा के ठीक विपरीत है। सेवक अज्ञात मुनष्‍य होते हैं और यह इस तथ्य से मेल खाता है कि मर्कूस अज्ञात व्यवसाय करने वाला व्‍यक्ति था। उसके आरम्भिक शब्‍द साधारण हैं “यीशु मसीह के सुसमाचार का आरम्‍भ” । कोई वंशावली नहीं, न ही जन्म का कोई विवरण है। एक सेवक के लिये इसकी आशा भी नहीं की जा सकती । और मर्कूस ने न ही बहुत शिक्षा का उल्‍लेख किया है। उसके सुसमाचार में सिर्फ यीशु के काम संग्रहीत हैं । यीशु अपने पिता की आज्ञा पालन कर रहे हैं । एक सेवक के लिये जो होना चाहिए, मर्कुस का सुसमाचार सबसे छोटा है ।

मर्कूस के सुसमाचार के अन्‍त में चेलों को आज्ञा देते समय यीशु मसीह ने कहा: “और विश्वास करने वालों में ये चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्माओं को निकालेंगे, नई नई भाषा बोलेंगे, सांपों को उठा लेंगे, और यदि वे नाशक वस्तु भी पी जांए तौभी उन की कुछ हानि न होगी, वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएंगे”। वे अपने सेवकों के द्वारा किये जाने वाले काम के बारे मे बता रहे थे।

एक ही आदमी कैसे राजा और सेवक दोनों हो सकता है? दोनों भूमिकायें एक दुसरे के ठीक विपरीत हैं। विभिन्‍न देशों के जैसा ही ईंगलैण्ड की महारानी सिर्फ सम्बैधानिक प्रमुख हैं । प्राचीन काल में राजा वास्‍तविक रूप में अपने देश पर शासन करते थे और उनके पास असिमीत अधिकार होते थे। वे लोग वर्तमान समय के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के समान थे परन्‍तु इससे भी ज्‍यादा वे आधुनिक तानाशाहों जैसे होते थे। शमूएल के पुस्‍तक के आरम्भिक अध्‍यायों में इस्राएल के प्रथम राजा शाऊल के राज्‍यभिषेक का वर्णन मिलता है। शमूएल ने यह कहते हुए अपनी बात पुरी की, “तुम लोग स्वयम् उसके दास हो जाओगे ।” प्राचीन काल में राजा अपनी आग्या उल्लंन करने वालों को आसानी से मृत्यु दण्ड दे सकते थे, और ऐसा सदा होता रहता था । दूसरी तरफ सेवक के पास किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता था। उसे अपने मालिक की हर एक इच्‍छा पुरी करनी पड़ती थी

यीशु ने राजा और सेवक दोनों भूमिकायें बखूबी पूरी की। उन्‍हों ने राजा जैसा बोला और काम किया “स्‍वर्ग और पृथ्‍वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है।” फिर उन्होंने नौकर की भाषा बोली और उसी के अनुसार अपना जीवन भी बिताया: “क्‍योंकि मैं अपनी इच्‍छा नहीं वरन अपने भेजने वाले की इच्‍छा पूरी करने के लिये स्‍वर्ग से उतरा हूँ” (यूहन्‍ना ६:३८)। उन्होंने सदा अपने पिता की हर इच्‍छा पूरी की।

लूका

तीसरे सुसमाचार के लेखक लूका, तीसरे जीवीत प्राणी को दर्शाते हैं। वे यीशु को मनुष्‍य के रूप में देखते हैं। लूका वैद्य थे, विभीन्न व्यक्तियों से उनका सम्‍बन्‍ध था और यीशु को इस दृष्टिकोण से देखना उनके लिये स्‍वाभाविक है। सिर्फ लूका ने यीशु के जन्‍म का विस्‍तृत मानवीय विवरण दिया है। उन्होंने जिब्राईल का मरियम से मिलने और गर्भ धारण करने की घटना का वर्णन किया है । सिर्फ लूका ने बेथलेहेम स्थित धर्मशाला और उस चरनी का उल्लेख किया है जहां यीशु पहली बार सोये थे। मत्ती के जैसा लूका ने भी यीशुके वंशावली का विवरण दिया है परन्‍तु इनका तरीका अलग है। मत्ती इब्राहिम से आरम्भ करके दाऊद से होते हुये ऊपर से नीचे जाता है । लूका मरियम से आरम्भ करके पिच्छे आदम तक पहुँचता है। लूका ३ अध्‍याय के अन्‍तिम शब्‍द इस प्रकार हैं,“आदम का पुत्र जो परमेश्‍वरका पुत्र था।” हिब्रू भाषा में आदम का अर्थ मनुष्‍य होता है। इसलिये इसको हम पुन: अनुवाद करके “मनुष्‍य का पुत्र, परमेश्‍वर का पुत्र” कह सकते है।

यीशु के जीवन का व्‍यक्तिगत विवरण के देने लिये हम लूका के प्रति ऋणी हैं। सिर्फ उसने बताया है कि कैसे भीड़ ने यीशु को अपने शहर नासरत से बाहर निकाला। सिर्फ लूका ने लिखा है कि गेतसमनी में यीशु के शरीर से पसीने के रुप में लहु की बुँदें गिरीं थीं।

लूका के सुसमाचार के अन्त में आग्या देते समय ये शब्द उल्लेखित हैं, “और यरूशलेम से ले कर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा”। उनका मन सुसमाचार के प्रति मनुष्‍य की प्रतिक्रिया, “पश्‍चाताप” और उसका प्रतिफल “क्षमा” पर केन्‍द्रित है।

यूहन्‍ना

यूहन्‍ना का सुसमाचार चौथे जीवित प्राणी, उड़ते ऊकाब को दर्शाता है। ऊकाब आकाश में उड़ने वाली पंक्षी होने के कारण परमेश्‍वर का प्रतिनिधित्‍व करता है। यूहन्‍ना यीशु को परमेश्‍वर के रूप में देखता है। दूसरे तीनों जीवित प्राणी पृथ्‍वी पर विचरण करने वाले जीव हैं। हमारे अपेक्षा के अनुरुप यूहन्‍ना का सुसमाचार मत्ती, मर्कूस और लूका से एकदम अलग है।

मत्ती और लूका दोनों में वंशावली और सांसारिक जन्‍म का विवरण है । यूहन्ना के लिये ऐसा करना सम्भव नहीं है। परमेश्वर के पास ऐसी बातें नहीं हैं । इसके बदले उसने स्वर्गीय जन्‍म कथा का उल्‍लेख किया है। हमें साधारण, सिधा और महत्त्वपुर्ण विवरण मिलता है: “आदि में बचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था”(यूहन्‍ना १:१)। इसके साथ साथ हम पढते हैं, “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।” (यूहन्‍ना १:१४)। लूका के सुसमाचार में जन्‍म कथा मानवीय है तो यूहन्‍ना में जन्‍म कथा ईश्‍वरीय ।

यूहन्‍ना “मै हूँ” का सुसमाचार है। सिर्फ यूहन्‍ना ने यीशु के महान दावों का उल्लेख किया है। “जीवन की रोटी मै हूँ ”(यूहन्‍ना ६:३५),“संसार की ज्‍योति मैं हूँ” (यूहन्‍ना ८:१२),“द्वार मै ही हूँ” (यूहन्‍ना १०:९),“अच्‍छा चरवाहा मैं हूँ ”(यूहन्‍ना १०:११), “पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूँ” (यूहन्ना ११:२५), “मार्ग, सत्य और जीवन मैं ही हूँ” (यूहन्ना १४:६) “सच्‍ची दाखलता मै हूँ” (यूहन्‍ना १५:१),“इब्राहीम से पहले मैं हूँ” (यूहन्‍ना ८:५८)। परमेश्‍वर के अलावा और कौन ऐसी बातें बोल सकता है? इसके पहले या बाद में, आज तक कोई भी शिक्षक या धर्मगुरु ऐसी बातें नहीं बोली हैं।

यीशु ने कभी भी अपने आप को परमेश्‍वर नहीं कहा, परन्‍तु ग्रीक (युनानी) भाषा में यूहन्‍ना के सुसमाचार में उन्हों ने २१ बार “मै हूँ” कहा है। शताब्‍दियों पहले मूसा ने परमेश्वर का नाम पुछा था। उत्तर में उसे ये प्रसिद्ध शब्द मिले,“मैं जो हूँ, सो हूँ” (निर्गमन ३:१४)। यहूदियों के लिए “मैं हूँ” ईश्‍वरीय नाम का एक भाग था। यह आश्चर्य जनक बात है कि “मैं हूँ” का गणितीय भार २१ है, ठीक इतनी ही बार यीशु ने ये शब्द बोले थे। जब यीशु ने कहा, “इब्राहीम से पहले मैं हूँ”, तो यहूदियों ने इसे ईश्वर निन्दा के रुप में लिया । उन्होंने उसे मारने के लिये पत्थर उठा लिया था । मूसा के व्‍यवस्‍था में पत्‍थर से मारकर मृत्यु दण्ड देना ईश्‍वर निन्‍दा की सजा थी।

अपने सुसमाचार के अन्‍त में यूहन्‍ना ने थोमा के शब्‍दों को दोहोराया: “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्‍वर” (यूहन्‍ना २०:२८)। यीशु ने इन शब्दों को सहर्ष स्‍वीकार किया।

यूहन्‍ना के पुस्‍तक के अन्‍त में यीशु ने उनसे कहा,“तुम्‍हे शान्‍ति मिले, जैसा पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्‍हे भेजता हूं,पवित्र आत्‍मा लो, जिनके पाप तुम क्षमा करो, वे उनके लिये क्षमा किए गये हैं, जिनके तुम रखो वे रखे गये है।” लूका के जैसा ही यूहन्‍ना के सुसमाचार में भी पाप क्षमा समावेश किया गया है, परन्‍तु इस बार वास्तव में चेलों ने स्वयम् पाप क्षमा करने की शक्ति प्राप्‍त की। फरीसीयों और व्‍यवस्‍था के शिक्षकों के लिये यह ईश्‍वर-निन्‍दा थी। “यह ईश्‍वर निन्‍दा करने वाला व्यक्ति कौन है?” उन्होंने दूसरे अवसर पर कहा था, “परमेश्‍वर को छोड़ और कौन पापों को क्षमा कर सकता है?” (लुका ५:२१)। एक तरह से उन लोगों का कहना ठीक ही था। केवल परमेश्‍वर ही पाप क्षमा कर सकता है। परन्‍तु परमेश्‍वर मनुष्‍य में जीने के लिये आ गया था ।

कैसा विरोधाभास! राजा और फिर भी सेवक, मनुष्‍य और फिर भी परमेश्‍वर! कितना आश्‍चर्य जनक! कितनी कल्‍पनातीत! इतिहास में कोई ऐसा व्‍यक्ति नही है जो इतना विरोधाभासी हो । यीशु ऐसा ही थे और हैं: सेवक - राजा, मनुष्‍य – परमेश्‍वर ।

मसीह के शरीर का दर्शन

हम लोग यह निष्‍कर्ष निकाल सकते हैं कि यहेजकेल अगमवक्ता और प्रकाशितवाक्‍य में यूहन्‍ना ने यीशु के चार अलग-अलग रूपों का दर्शन देखा था । धर्मशास्‍त्र के आश्‍चर्यजनक नमूनों से सन्‍तुष्‍ट हो कर, और हमारे आश्चर्य जनक मुक्तिदाता के व्‍यक्तित्‍व के ऊपर पडता ताजा प्रकाश से आनन्‍दित होकर हम अपना अध्ययन यहीं समाप्त कर सकते हैं। निसन्‍देह बहुत से व्‍यक्तियों ने यहीं तक देखा है, पर इससे आगे नहीं।

परन्‍तु यहेजकेल ने केवल एक नहीं पर चार जीवित प्राणियों को देखा था। और वे चारों पुरी एकता में साथ साथ चल रहे थे। यूहन्‍ना ने चार जीवित प्राणियों को सिंहासन के मध्य और इसके चारों ओर देखा था। सिंहासन पर विराजमान क्यों नहीं? इसका उत्तर यह है कि ये दर्शन केवल अकेले यीशु के नहीं थे, परन्‍तु मसीह के सम्‍पूर्ण शरीर का था। यहेजकेल और यूहन्‍ना सामान्‍यत: सिर्फ यीशु को नहीं देख रहे थे, परन्‍तु ऐसे स्त्री पुरुष को भी देख रहे थे जो यीशु के स्‍वरूप में परिवर्तन हो चुके थे और उसके गुण प्राप्त कर चुके थे । जीवित प्राणी ऐसे लोगोंका प्रतिनिधीत्व कर रहे थे जो यीशु जैसे हो चुके थे। यह कैसा आश्‍चर्यजनक सुसमाचार है, कि राजा – सेवक, मनुष्‍य - परमेश्‍वर इस संसार में २,००० वर्ष पहले आया। इससे जुडा एक और सुसमाचार यह है कि असंख्य ऐसे व्‍यक्ति जो राजा - सेवक और मनुष्य -परमेश्‍वर होने वालों में वह पहिलौठा है । यह सुसमाचार के अन्दर का सुसमाचार है।

हम लोग भी उसके साथ राज्‍य करेंगे। हमें भी परमेश्‍वर और मनुष्‍य के सेवक और सेविका होना है। यद्यपि हम लोग मनुष्‍य ही हैं, तथापि हमें परमेश्‍वर का सन्‍तान और “स्‍वर्गीय स्‍वभाव में सहभागी” होना है।

हमारे मुक्तिदाता यीशु में वास करने वाले पवित्र आत्‍मा ही वह आत्मा थे जिन्हों ने उनको राजा, सेवक, मनुष्‍य और परमेश्‍वर बनाया। हमारे अन्दर रहने वाले पवित्र आत्‍मा ही हमको राजकीय शक्ति और अधिकार देते हैं। वह हमें सेवक होने के लिये नम्र स्‍वभाव और सेवा करने के लिये शक्ति देते हैं। पवित्र आत्‍मा के सहायता से हम लोग भी परमेश्‍वर के स्‍वभाव को प्रकट करेंगे।

अब हम इन चार जीवित प्राणियों का और नजदीक से अध्ययन करेगें और पवित्र आत्‍मा के सहायता से उस महिमा की कुछ बातों को समझेंगे जो मसीह के शरीर में प्रकट होने वाली है । यहेजकेल और यूहन्‍ना के दर्शन हम लोगों को परिवर्तन करने वाले दर्शन हो सकें ।

राजा

यीशु राजाओं के राजा थे और हैं। पौलुस ने उनको “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” के रुप में वर्णन किया है (१ तिमुथियुस ६:१५)। यूहन्‍ना ने भी उनको “प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा” के रुप में वर्णन किया है (प्रकाशितवाक्‍य १७:१४) और उनके बस्‍त्र और जांघ पर यह नाम लिखा हुआ देखता है: “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” (प्रकाशितवाक्‍य १९:१६)। आरम्भिक वर्षों में “राजाओं का राजा” बेबीलोन और फारस के राजाओं का पदवी होता था। यह विशेष सम्‍बोधन बेबीलोन के राजा नबूकनदेसर (यहेजकेल २६:७, दानिय्‍येल २:३७) और फारस के राजा अर्तक्षत (एज्रा ७:१२) के लिये प्रयोग किया गया है। इन राजाओं का विशाल साम्राज्‍य था और बहुत से छोटे छोटे राजाओं के ऊपर शासन करते थे जिनके अपने ही छोटे छोटे राज्य थे । जो भी हो, ये छोटे छोटे राजा हमेशा विशाल साम्राज्‍य के केन्‍द्रीय राजा के अधीन और उनपर निर्भर रहते थे।

यह मसीह के शरीर का चित्रण है। यीशु राजाओं के महाराजा हैं और उनके शरीर का हर एक सदस्य उनके अधीन एक राजा है। हर एक सदस्‍य राजा का शक्ति और अधिकार प्राप्‍त करने के लिये नियुक्त किया गया है। एक राजा होने का अर्थ क्‍या है? इसके लिये फिर हमें यीशु को देखना पडेगा। वे किस प्रकार के राजा थे? प्राचीन राजाओं के जैसा उनके पास भी असिमीत शक्ति थी। उनकी प्रत्‍येक इच्‍छा और आज्ञा पालन किया जाता था। हर एक मनुष्‍य और हर एक चीज उनके अधीन था। प्राचीन राजाओं के विपरीत उन्होंने अपनी शक्ति दूसरों की भलाई के लिये उपयोग किया। और उनके विपरीत यीशु ने स्‍वेच्‍छा से अपनी शक्ति दूसरों को प्रदान किया।

अपनी सार्वजनिक सेवकाई आरम्भ करने से पहले, यीशु ने अपने शरीर पर पूर्ण नियन्त्रण का प्रदर्शन किया। उन्होंने यह दिखा दिया कि अपने उपर उनका अपना ही शासन है । मत्ती ने लिखा है: “वह चालीस दिन और चालीस रात निराहार रहा, तब उसे भूख लगी” (मत्ती ४:२)। चालीस दिन पुरा होने पर यीशु को भूख लगी। ऐसा लगता है, चालीस दिन के अवधि भर यीशु को भोजन की कोई इच्छा नहीं हुई । असली भूख उस समय अनुभव होता है, जब शरीर सारा उपलब्ध चर्बी उपयोग कर लेता है। जिसे हम “भूख” कहते हैं, वह हमारे शरीर के द्वारा दैनिक आवश्यक भोजन की मांग के सिवा कुछ नहीं है। जब यीशु को बहुत अधिक भूख लगी, तब भी उन्होंने भोजन लेने के अवसर को अस्‍वीकार किया। बहुत ज्‍यादा भूख लगने पर भी उन्होंने शारीरिक भूख के आगे घुटने नहीं टेके। शायद उन्होंने भुख के कारण होने वाली मृत्यु का सामना किया हो, फिर भी वे अपने शरीर का मालिक बने रहे ।

शैतान के ऊपर भी यीशु का अधिकार था। उपवास के बाद शैतान को अपने से दूर जाने की आज्ञा दे सकते थे। अपने सेवकाई के पुर्ण अवधी भर आत्‍मिक क्षेत्र पर उनका पूर्ण नियन्‍त्रण था। यीशु के पास तो यह अधिकार था ही, उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि उनके पिछे चलने वाले भी इस अधिकार को पायेंगे । मत्ती १०:१ में हम पढ़ते हैं, “फिर उसने अपने बारह चेलो को पास बुलाकर, उन्‍हें अशुद्ध आत्‍माओं पर अधिकार दिया कि उन्‍हें निकाले और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करे।” लूका के पुस्‍तक में उन्‍हों ने कहा,“मै शैतान को बिजली के समान स्‍वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था, देखो मैने तुम्‍हें सांपों और बिच्‍छुओं को रौदने का, और शत्रु की सारी सामथ्‍ र्य पर अधिकार दिया है, और किसी वस्‍तु से तुम्‍हें कुछ हानी न होगी” (लूका १०:१८-१९)।

रोगों के ऊपर भी यीशु का अधिकार था। “जब संध्या हुई तब वे उसके पास बहुत से लोगोंको लाए जिन में दुष्‍टात्माएं यीं और उस ने उन आत्माओं को अपने वचन से निकाल दिया, और सब बीमारोंको चंगा किया।” (मत्ती ८: १६)। कोई भी रोग उनके सामने नहीं टीक सकता था। उन्होंने आज्ञा दिया, और रोग चला गया। यह अधिकार भी सिर्फ यीशु के लिये नहीं था। उन्होंने अपने चेलो को भी यह अधिकार दिया । “वे बीमारों पर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जायेंगे”(मर्कूस १६:१८)।

प्राकृतिक तत्‍वों पर अपने नियन्‍त्रण के द्वारा भी यीशु ने चेलों को आश्‍चर्य चकित कर दिया था। “यह कैसा मनुष्‍य है? क्‍योंकि आँधी और पानी भी उसकी आज्ञा मानते हैं” (मत्ती ८:२७)। इस बात में भी धर्मशास्‍त्र में वे अकेले नहीं थे। शताब्‍दियों पहले एलिया ने ३ वर्ष तक सूखा पडने की घोषणा की थी और फिर पानी पड़ने के लिये प्रार्थना की और पानी पड़ने लगा। यीशु के पास नाव नहीं होने पर वे पानी के ऊपर चलने लगे। पतरस में जब तक विश्‍वास था, वह भी पानी पर चला। भोजन कम पड जाने पर कुछ रोटी और थोडे मछलियों से हजारों व्यक्तियों को यीशु ने खाना खिलाया, पर यह भी दूसरों के हाथों किया।

यह आश्‍चर्य की बात है कि एक प्रकार का अधिकार यीशु मसीह के जीवन में कम ही दिखायी देता है। हम उन्हें मनुष्यों के ऊपर अधिकार चलाते नहीं देखते। वे संसार के किसी राजा जैसे नही थे । उन्‍हों ने स्‍पष्‍ट कर दिया था कि उनका राज्‍य इस संसार का नहीं था। परीक्षा के समय शैतान ने एक बार दण्‍डवत करने के बदले इस संसार का सारा राज्‍य देने का प्रस्‍ताव किया था, यीशु ने उसको अस्‍वीकार कर दिया। यह उन के पिता का मार्ग नहीं था। उनकी योजना तो मनुष्‍यों के स्वैच्छिक सहयोग से उनके हृदय में शासन करना था, उन के शरीर पर जबर्दस्ती राज्य करना नहीं ।

उनके सारे शत्रु जब तक उनके पांव के निचे नहीं आते तब तक यीशु राज्य करेंगे। परन्तु उनके पाँव क्‍या हैं? वे उनके शरीर के अँग है। जन्म के समय सब से अन्त में बाहर आने वाले अँग पाँव ही हैं, और विजयी होकर उनके साथ राज्‍य करने वालों को दर्शाता है।

यीशु ने अपना सारा राजकीय अधिकार चेलों को प्रदान कर दिया। पहले उल्लेखित पदों के साथ-साथ हम निम्‍नलिखित पदों को भी पढ़ सकते हैं: “मैं तुमसे सच सच कहता हूं कि जो मुझ पर विश्‍वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा,वरन इनसे भी बड़े काम करेगा, क्‍योकिं मैं पिता के पास जाता हूँ।” (युहन्ना १४:१२) यीशु ने फिर उनसे कहा, “जैसे पिताने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्‍हें भेजता हूँ” (यूहन्‍ना २०:२१)। बहुत दिनों के बाद यूहन्‍ना ने लिखा, “क्‍योंकि जैसा वह है, वैसे ही संसार में हम भी हैं”(१ यूहन्‍ना ४:१७)। प्रकाशितवाक्‍य ३:२१ में हम यह पढ्‍ते हैं, “जो जय पाये मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाउंगा, जैसे मैं भी जय पा कर अपने पिता के साथ उनके सिंहासन पर बैठ गया।”

संसार में राजा लोग सेवक नहीं होते और न ही सेवक लोग राजा । संसार के राजा और शासक अपने ही भोग बिलास और लाभ के लिये शासन करते हैं। बहुतों ने तो अपनी जनता को वर्णनातीत दु:ख कष्‍ट दिये हैं। कुछ ही समय पहले एक शताब्‍दी पुरी हुइ है जिसमें क्रूर शासकों ने लाखों लोगों को यातना दे कर, भुखे पेट रखकर और हत्या कर मार डाला। हिटलर, स्‍टालिन और माओ त्से तुँग ने इनसे पहले के तानाशाहों द्वारा किये गये अत्याचार की तुलना में अत्यधिक क्रुरता और कष्ट के द्वारा लाखों निर्दोष लोगों को सताया ।

परमेश्‍वर के राज्‍य के शासक पुरी तरह अलग प्रकार के होंगे । वे परमेश्‍वर के सेवक होंगे जो सदा उसकी इच्‍छा के अनुसार काम करेंगे, और इसके आधार पर दूसरों की सेवा करेंगे । यीशु के लिये सेवक के रुप में अपने पिता की पूर्ण आज्ञाकारिता ही राजा के रुप में उनके के पूर्ण अधिकार का आधार था। इसलिए उनके पीछे चलने वालों के लिये भी ऐसा ही होना चाहिये। वे लोग पूर्ण आज्ञाकारिता में अपने स्‍वर्गीय पिता की इच्‍छा पुरी करने के कारण उनके जेष्‍ठ पुत्र के साथ सिंहासन के साझेदार होने के योग्‍य होंगे।

सेवक

जैसा मैने कहा है, प्राचीन काल में सेवक राजा के ठीक विपरीत होते थे। राजा के पास सम्पुर्ण अधिकार और शक्ति होता था । एक सेवक केवल दास और अपने मालिक की सम्‍पत्ति होता था। उसका अपना कोई अधिकार नहीं होता था। अपने मालिक की इच्‍छा पूरी करना ही उसका कर्तव्‍य था।

यीशु अपने पिता के एकदम अच्छे सेवक थे। उन्‍हों ने कहा, “क्‍योंकि मैं अपनी इच्‍छा नहीं वरन् अपने भेजने वाले की इच्‍छा पूरी करने के लिये स्‍वर्ग से उतरा हूँ” (यूहन्‍ना ६:३८)। जैसे प्राचीन समय में नौकर अपने सांसारिक मालिक की आग्या पालन करने के लिये प्रत्येक दिन चौबीसौं घण्‍टा उपलब्ध रहते थे, ठीक उसी प्रकार यीशु ने हर एक क्षण अपने स्‍वर्गीय पिता को समर्पित किया। वे अपनी स्‍वाभाविक इच्‍छा और आकांक्षाओं के द्वारा निर्देशित, नियन्त्रित और शासित नहीं थे । उनके पिता की इच्‍छा उनके अपने विचार, वचन और काम को नियन्त्रित करते थे।

प्राचीन काल के दास बाध्‍यता से अपने मालिक की सेवा करते थे । उनके लिये कोई विकल्‍प नहीं था। वे अपना सारा समय किसी दूसरे की सेवा करके बिताना नहीं चाहते थे। वे अपनी इच्‍छा और चाह के अनुसार जीवन बिताना चाहते थे । परन्‍तु दुःख की बात है कि उनका अपना कोई अधिकार नहीं था और न वे चूनने के लिये स्वतन्त्र थे ।

यीशु ने स्वेच्छा से अपने पिता की सेवा की। उन्हें अपने पिता की इच्‍छा पुरी में आनन्द मिलता था । उनके लिये यह कोई कठीनाई या समस्‍या नहीं थी, क्‍योंकि हर परीस्थिती में उनकी अपनी इच्‍छा और उद्देश्‍य अपने पिता के समान ही था।

उनके पिता की यह सेवा ही और लोगों की सेवा का नींव था। आश्‍चर्य जनक रुप से अपने ही सृष्‍टि की सेवा करना सृष्‍टिकर्ता पिता के हृदय में है और यही सेवा भावना उनके पुत्र के हृदय में भी है। यीशु ने अपने चेलों के पैर धोते समय इस सेवक हृदय का सुन्‍दर प्रदर्शन किया था। उन्‍हों ने अपने चेलों को एक दूसरों के पैर धोने का निर्देशन दिया।

उनका जीवन अपने चेलों के लिये एक नमूना था। उन्‍हों ने अपने चेलों से कहा, “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे” (यूहन्‍ना १४:१५)।

प्रेरित पौलुस ने अपने बहुत से पत्रों में अपने पाठकों के आगे अपना परिचय ‘मसीह यीशु का नौकर या दास’ के रुप में दिया है। दूसरे पत्रों में उन्‍होंने अपना परिचय ‘मसीह यीशु का प्रेरित’ के रुप में दिया। परन्‍तु ‘प्रेरित’ शब्द का मौलिक अर्थ और ‘सेवक’ शब्द के अर्थ में ज्‍यादा अन्‍तर नहीं है। इसका साधारण अर्थ है “भेजा गया व्यक्ति”। पतरस, याकूब, और यहूदा ने भी अपने पाठकों को अपना परीचय ‘यीशु के सेवक’ के रुप में दिया है।

स्‍वभाव से हम लोग स्‍वेच्‍छा से परमेश्‍वर के सेवक बनना नहीं चाहते। हम जो भी करते हैं सब अपनी ही इच्‍छा और आकंक्षा पुरी करने के लिये करते हैं। हम लोग अपनी लालसा और भुख के दास हैं। यीशु ने इस बात को ऐसे कही: “मैं तुमसे सच सच कहता हूं कि जो कोई पाप करता है वह पाप का दास है” (यूहन्‍ना ८:३४)।

हम कैसे यीशु के विश्‍वासयोग्‍य सेवक हो सकते हैं? संघर्ष या प्रतिस्पर्धा करके हम यह काम कभी नहीं कर सकते। हम अपनी इच्छा से प्रयास करके भी नहीं कर सकते । यीशु अपने अनुयायियों से सेवा की माँग करने वाले कठोर मालिक नहीं हैं। मत्ती ११:२८ में उन्हों ने कहा,“मेरा जुआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” उनका जुआ सहज औ बोझ हलका है क्‍योंकि हम उनकी इच्‍छा पुरी करना चाहते हैं। जैसे यीशु अपने पिता के साथ एक थे और उनकी इच्‍छा पुरी करने से आनन्दित होते थे, उसी प्रकार हम भी उनके साथ एक होकर उनकी इच्‍छा पुरी करने में अनन्दित होते हैं। हम आन्‍तरिक नयापन तथा हृदय के परिवर्तन द्वारा उनके सेवक बनते हैं।

यूहन्‍ना १५:१५ मे यीशु ने अपने चेलों पर से सेवक की उपाधि भी हटा लिया। उन्‍हों ने कहा, “अब से मै तुम्‍हे दास न कहूंगा, क्‍योंकि दास नहीं जानता कि उसका स्‍वामी क्‍या करता है, परन्‍तु मै ने तुम्‍हें मित्र कहा है, क्‍योंकि मैने जो बाते अपने पिता से सुनी, वे सब तुम्‍हें बतादी।” जब हम उनके साथ एक होते हैं तब साधारणतया अपने खुशी और इच्‍छा अनुसार काम करते हैं जो आश्‍चर्यजनक रूप में उनकी इच्छा या खुशी होती है। पूर्ण स्‍वतन्‍त्रता में हम जो चाहते हैं वही काम करते हैं और पाते हैं कि हम उनकी सेवा कर रहे हैं ।

मनुष्‍य

यीशु में परमेश्‍वर ने अपने आप को एक मनुष्‍य के रूप में प्रकट किया। यीशु के आने से पहले उन्होंने दूसरे तरीके से अपने आप को प्रकट किया था। पुराने नियम के व्‍यवस्‍था और विधी स्वर्गीय सत्‍यता के सिर्फ छाया थे। प्राचीन याजकों ने भी परमेश्‍वर को प्रकट किया परन्‍तु अस्‍पष्‍ट रूप में। धर्मशास्‍त्र ने उन थोडे व्यक्तियों के आगे परमेश्‍वर को प्रकट किया जिन्हे यह उपलब्ध था और जो समझ सकते थे। यीशु ने प्रकाश की इन सारी सिमाओं को तोड दिया जब वे संसार में मनुष्‍य के रूप में परमेश्‍वर को प्रकट करने आये ।

वे परमेश्‍वर का पुर्ण प्रकाश थे, परन्‍तु उनकी भी सिमा थी। उन्होंने खूद कहा: “मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी सकेती में रहूंगा?”(लूका १२:५०)। उन्होंने अपनी सिमा स्वीकार कर ली थी जब वे पृथ्‍वी पर मनुष्‍य के रूप में आये ।

वे एक भौतिक शरीर में सीमीत थे। वे सिर्फ एक प्रकार के व्‍यक्ति हो सकते थे। वे पुरुष थे और स्‍त्री भी नहीं हो सकते थे। वे यहूदी थे और भारतीय, नेपाली, चीनीया, अमेरिकी, अफ्रिकी या और कोई जाति के नहीं हो सकते थे। वे बढई का काम करते थे। वे मछुआरा, किसान, खिलाडी, संगीतकार या दूसरे हजारों उपलब्ध व्यवसाय में से कोई भी दूसरा व्यवसाय नहीं कर सकते थे । वे सिर्फ ३३ वर्ष की उम्र तक पहुंचे, वे पिता या वृद्ध नहीं बन सके। उन्होंने परमेश्‍वर को एक ही व्‍यक्ति के रुप में व्‍यक्त किया जो वे स्वयम् थे - पुरुष, यहूदी बढई और घुमन्ता प्रचारक । उनका पुर्ण शरीर विशाल और बहुजातीय मानव जाति के बीच परमेश्वर को प्रकट और व्यक्त करेगा। पुरुष और स्त्री, प्रत्येक जाति, हरेक उम्र, हरेक व्यवसाय और सभी शारीरिक रुप में यीशु को देख पाना कैसा सुहाना होगा ।

शुद्ध प्रकाश सभी रंगो से मिलकर बनता है । जब मसीह के शरीर के सदस्‍यों का विभिन्‍न रंग एक साथ मिलेंगे, तब परमेश्‍वर का पवित्र और तेज प्रकाश बनेगा ।

बिते हुए शताब्दियों में मण्डली ने परमेश्वर को प्रकट करने का दावा किया है। करोडौं नहीं तो लाखों ने अवश्य इस दावे का विश्वास किया है । यह प्रकटिकरण बहुत ही सिमीत रहा है । धर्मगुरु मानव जाति का एक बहुत ही छोटा अंश रहे हैं। रोमन कैथोलिक समुदाय में ये सिर्फ अविवाहित यूरोपीय पुरुष तक ही सिमीत रहे हैं और इनका एक ही काम रहा है – ‘याजक पद’ । यह परमेश्वर का मानव रुप लेना नहीं कहा जा सकता। इस धार्मिक व्यवस्था में परमेश्वर को मानव जाति के एक छोटेसे समुदाय में सिमीत रखा गया था ।

पुराने नियम का ईश्वरीय अभिषिक्त याजक पद भी थोड़े ही व्यक्तियों को उपलब्ध था। वे लोग सिर्फ लेवी कुल के ३० से ५० वर्ष तक के उम्र के पुरुष ही हो सकते थे। स्‍त्री, जवान, वृद्ध और दूसरे कुल के व्यक्ति को समावेश नहीं किया जाता था।

यीशु का सच्‍चा शरीर जब प्रकट होगा, पूर्णरुप से मानवीय होगा। सम्पुर्ण मानव जाति तक इसकी पहुँच होगी । यह यीशु का विशाल विस्तारित रुप होगा जो इसके शिर हैं ।

देव

अब हम अपने अध्‍ययन के चौथे तथा आश्‍चर्यजनक भाग की तरफ बढ़ रहे हैं। और तीनों सुसमाचार से अलग यहून्‍ना के सुसमाचार ने यीशु को परमेश्‍वर के रूप में प्रकट किया है।

जैसा हम पहले देख चुके हैं, यूहन्‍ना बडे साधारण रीति से कहता है: “वचन परमेश्‍वर था”। उसने थोमा के स्‍वीकारोक्ति को भी दुहराया है: “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्‍वर।” इसके अलावा उसने यिशु को २१ बार “मै हूं” स्‍वर्गीय नाम उपयोग करते हुए उद्धृत किया है । दो बार फरीसियों ने यीशु के दावे को ईश्‍वर निन्‍दा समझ कर पत्‍थरवाह करने की घटना का उल्लेख किया है । इन घटनाओं और अन्य बातों के आधार पर यूहन्‍ना के सुसमाचार ने यीशु को परमेश्‍वर के रूप में प्रस्‍तुत किया है। नया नियम के दूसरे लेखकों ने भी यीशु को परमेश्‍वर के रूप मे देखा । पौलुस ने लिखा है: “परमेश्वर शरीर में प्रकट हुआ।” (१ तिमुथियुस ३:१६)। इब्रानियों के लेखक ने यीशु का वर्णन करते हुए लिखा है: “वह उसकी महिमा का प्रकाश और उसके तत्‍व की छाप है”(इव्रानियों १:३)।

क्‍या यूहन्‍ना का सुसमाचार यीशु को परमेश्‍वर और उनके अनुयायियों को मनुष्‍य के रुप में पेश किया है जिनके बीच में नहीं पाट सकने वाली खाई है? क्‍या नया नियम या सम्पूर्ण बाईबल का सन्‍देश यही है? शताब्‍दियों से मण्डली यही शिक्षा देती आयी है । वास्तव में प्राचीन काल के यूनानी और वर्तमान में हिन्दु अपने देवताओं के विषय में जो विश्वास करते हैं वह इससे अधिक भिन्न नही है । उनके लिये देवी देवता दूसरे जादुई शक्तिधारी हैं जो दूसरी दुनिया से आते हैं और हम शरीर धारी प्राणी से अलग हैं।

क्‍या यीशु ने अपने आप को अपने चेलों से अलग जाति के व्यक्ति के रुप में देखा था? क्या वे स्वयम् को बिलकुल अलग वर्ग के मनुष्य के रुप में देखते थे ? एक बार फिर हम उनकी बातों पर विचार करेंगे।

यीशु ने कहा, “मैं और पिता एक हैं” (युहन्‍ना १०:३०)। यहूदियों ने प्रतिकृया स्वरुप उनको मारने के लिये पत्‍थर उठा लिया। यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम्‍हें अपने पिता की ओर से वहुत से भले काम दिखाये हैं; उनमें से किस काम के लिये तुम मुझ पर पथराव करते हो?” यहूदियों ने उनको उत्तर दिया, “भले काम के लिये हम तुझ पर पथराव नहीं करते परन्‍तु परमेश्‍वर की निन्‍दा करने के कारण; और इसलिये कि तू मनूष्‍य हो कर अपने आप को परमेश्‍वर बनाता है” (यूहन्‍ना १०:३१-३३)।

जिन शब्दों ने फरीसीयों को सब से अधिक क्रोधित किया था, वे शब्द यही थे, “मैं और पिता एक हैं।” उन लोगो ने इन शब्दों को स्वयम् को परमेश्वर होने का दावा करने वाले ईश्‍वर-निन्‍दा के रूप में लिया था। यीशु ने केवल अपने लिए यह दावा नहीं किया, वरन् चेलों के लिए भी । उन्हों ने चेलों के लिये प्रार्थना किया ( और आने वाले यूग में विश्‍वास करने वाले सभी लोगों के लिये) “कि वे सब एक हों, जैसा तू मुझ में है, और मैं तुझ में हूँ, वैसे ही वे भी हम में हों, जिससे संसार विश्‍वास करे कि तू ही ने मुझे भेजा है (यूहन्‍ना १७:२१)। पिता के साथ उनकी एकता सिर्फ उनके लिये सुरक्षित नहीं रखी गयी थी। उनकी प्रार्थना थी कि उनके अनुयायी भी उस एकता को जान सकें और अनुभव कर सकें ।

यीशु की प्रार्थना कोई दिवा स्वप्न नही था । वे हमेशा अपने पिता की इच्‍छा के अनुसार प्रार्थना किया करते थे और फलस्वरुप उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर मिलता था । यीशु की सभी प्रार्थनायें भविष्य में होने वाली घटनाओं का ठीक ठीक विवरण होती थीं । उन्‍होंने प्रार्थना किया कि उनके चेले, वे और उनके पिता के साथ एक हों। हम लोग निश्‍चय हो सकते हैं कि उनके अनुयायी, यीशु और उनके पिता के साथ एक होंगे।

फरीसियों ने यीशु को ईश्‍वर-निन्‍दा का आरोप लगाया । यीशु ने उन लोगों को कैसा जवाब दिया? यीशु ने कहा, “क्‍या तुम्‍हारी व्‍यवस्‍था में नहीं लिखा है: मैने कहा तुम ईश्‍वर हो? यदि उसने उन्‍हें ईश्‍वर कहा जिनके पास परमेश्‍वर का वचन पहुंचा (और पवित्र शास्‍त्र की बात असत्‍य नहीं हो सकती), तो जिसे पिता ने पवित्र ठहरा कर जगत में भेजा है, तुम उससे कहते हो,“तू निन्‍दा करता है”, इसलिये कि मैने कहा “मैं परमेश्‍वर का पुत्र हूँ” (यूहन्‍ना १०:३४-३६)।

यीशु ने उन के आरोप को इन्‍कार नहीं किया । बल्कि उन्‍होंने उस आरोप में अपने चेलों को समावेश करने के लिये उसे और बढा दिया। उन्हों ने भजनसंहिता ८२:६ को उद्धृत किया, ‘मैने कहा था,“तुम ईश्‍वर हो, और सब के सब परमप्रधान के पुत्र हो।” इस अनुच्‍छेद में “ईश्‍वर” शब्द बहुवचन में उल्लेख हुआ है। यीशु ने इस बात को दिखाया कि न सिर्फ उनके लिये बल्कि उनके अनुयायीयों के लिये भी परमेश्‍वर की सन्तान होने का दावा करना धर्मशास्त्र सम्मत है।

यीशु ने अपने जवाव को आगे बढाते हुए फरीसियों से यह कहा,“यदि मैं अपने पिता के काम नहीं करता, तो मेरा विश्‍वास न करो, परन्‍तु यदि मैं करता हूं, तो चाहे मेरा विश्‍वास न भी करो, परन्‍तु उन कामों का तो विश्‍वास करो ताकि तुम जानो और समझो कि पिता मुझमें है और मै पिता में हूं” (यूहन्‍ना १०:३७-३८)।

यीशु के आश्‍चर्य कर्म और दूसरे काम यह दिखाते थे कि परमेश्‍वर उनके पिता और वे परमेश्‍वर के पुत्र हैं । यीशु ने अपने चेलों को बुलाया और जो काम वे खूद करते थे, उन्हें करने के लिये चेलों को सुसज्‍जित किया । उन्‍हों ने कहा, “मैं तुम से सच सच कहता हूं कि जो मुझ पर विश्‍वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूं वह भी करेगा, वरन इनसे भी बड़े काम करेगा, क्‍योंकि मैं पिता के पास जाता हूं” (यूहन्‍ना १४:१२)। जो आश्चर्यकर्म यीशु को परमेश्‍वर का पुत्र प्रमाणित करते थे, उन्ही आश्‍चर्यकर्मों के द्वारा उनके पीछे चलने वाले भी परमेश्‍वर के पुत्र हैं, यह प्रमाणित करेंगे।

यीशु ने जोर देकर कहा, “अपने से मैं कुछ नहीं करता” । उनमें वास करने वाले पिता ही सभी काम करते थे। “क्‍या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूं, और पिता मुझ में हैं? ये बातें जो मैने तुमसे कही है, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्‍तु पिता मुझ में रह कर अपने काम करता है” (यूहन्‍ना १४:१०)। उन्हों ने अपने चेलों को आश्‍चर्यजनक प्रतिज्ञा करते हुए कहा कि वे और उनके पिता दोनों उनमें भी वास करेंगे। “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे।” (यूहन्‍ना १४:२३)। पिता जो यीशु में वास करते थे, हमारे अन्‍दर भी वास करते हैं ।

यीशु ने कहा, “मै संसार की ज्‍योति हूँ।” बाद में यीशु ने अपने चेलों से कहा,“तुम जगत की ज्‍योति हो”

अपने चेलों अलग होने से कुछ समय पहले यीशु ने मरियम मगदलिनि से कहा, “मेरे भाइयों के पास जा कर उनसे कहदे, कि मैं अपने पिता और तुम्‍हारे पिता, और अपने परमेश्‍वर और तुम्‍हारे परमेश्‍वर के पास ऊपर जाता हू” (यूहन्‍ना २०:१७) ।

यीशु ने अपने चेलों को अपने से निचले दर्जा या हीन अवस्था के भिन्न प्राणी के रूप में नहीं देखा । और न ही वे हम लोगों को तुच्छ प्राणी के रूप में देखते हैं। वे मरे ताकि उनके अन्दर वास करने वाली ईश्वरीय आत्मा आ कर हमारे अन्दर वास करे और हमें उनके साथ एक बनाये। वह आत्मा वही महान् “मैं हूं” है जो हमारे अन्दर भी वास करती है। वही आत्मा हम सब को परमेश्वर की सन्‍तान बनाती है।

पौलुस ने इस को ऐसे व्यक्त किया है “उस भेद को जो समयों और पीढिय़ों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है। जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।” (कुलुस्सियो १:२६-२७)। पौलुस से पहले पुस्तों तक इस रहस्य को गुप्त रखा गया था और उस के बाद भी आज तक इसे गुप्त रखा गया है। परन्तु उस समय जैसा ही आज भी परमेश्वर ने अपने सन्‍तों को यह रहस्य प्रकट किया है।

बहुत बर्षो के बाद यूहन्ना ने स्वयम् लिखा,“देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वयर की सन्तान कहलाएं।” (१ यूहन्ना ३:१)। हम भी अपने बोलावट को आश्चर्य के साथ देखते हैं।

यीशु मसीह की आत्‍मा

अब हम यहेजकेल के दर्शन की ओर लौटते हैं कि उसने क्या देखा था उसे विस्तार से पढ़ सकें । जीवित प्राणियों के विषय में उसने ऐसा लिखा है, “उनके मुख और पंख ऊपर की ओर अलग-अलग थे, हर एक जीवधारियो के दो-दो पंख थे, जो एक दूसरे के पंखो से मिले हुए थे, और दो-दो पंखों से उनका शरीर ढका हुआ था। और वे सीधे अपने अपने सामने ही चलते थे, जिधर आत्मा जाना चाहता था, वे उधर ही जाते थे, और चलते समय मुड़ते नहीं थे।” (यहेजकेल १: ११,१२) ये चारों जीवित प्राणी पूर्ण एकता में चलते थे, और जिधर जाने के लिये आत्मा अगुवाई करता था, उधर ही जाते थे । पौलुस ने इन्हीं शब्दों को प्रतिध्वनित किया है, “जितने लोग परमेश्‍वर के आत्‍मा के चलाए चलते हैं वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं” (रोमी ८:१४)।

स्‍वभाव से हम लोग न तो राजा, नौकर, अथवा देवता ही हैं। हमारे पास न तो शासन करने की शक्ति और न ही सेवा करने लायक नम्रता है। हम लोग सिर्फ परमेश्वर रहित तुच्छ मनुष्य हैं। हम अपनी बुद्धि, बल अथवा इच्छा शक्ति से इनमें से कुछ भी नहीं बन सकते । ख्रीष्ट का आत्मा महान् परिवर्तक हैं। यीशु भी अपने बल से कुछ नहीं कर सके थे। उन्हों ने स्वयम् कहा था “पुत्र अपने से कुछ नहीं कर सकता” और “मैं अपने से कुछ नहीं कर सकता।” । उन्होंने जो कुछ भी किया, सब कामों के लिये उनमें वास करने वाले अपने पिता के आत्मा पर निर्भर थे। उनमें वास करने वाला आत्मा अधिकार सम्पन्न राजा तथा आज्ञाकारी सेवक थे। वह आत्मा सिद्ध मनुष्य और सर्वशक्तिमान परमेश्वर थे।

वही आत्मा जो उनमें थे अब हमारे अन्दर हैं । स्‍वभाविक मनुष्य के लिये जो असम्भव है वह परमेश्वर के लिये सम्भव है। जिस आत्मा ने यीशु को राजा बनाया, वही आत्मा उनके शरीर के सदस्यों को भी राजा बनायेंगे। यीशु को सेवक बनाने वाला आत्मा ही उन के शरीर के सदस्‍यों को भी सेवक बनायेंगे। वही आत्मा जो यीशु में वास करने वाला परमेश्वर था, उनके अनुयायियों में वास करने वाला परमेश्वर होंगे। उसी आत्मा के द्वारा वे लोग महिमित, संयुक्त शरीर और मन की एकता में एक साथ चलने वाले बनेंगे। उसी आत्मा की सहायता से वे लोग एक दूसरे के साथ और परमेश्वर के साथ एक हो जायेंगे। आमिन!

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