इस्राएल के पर्व

इस्राएल के पर्व और उनके आत्मिक अर्थ

परिचय

उत्सव और पर्व सभी बड़े धर्मों में होते हैं। अपने आप को ईसाई कहने वालों में से अधिकांश लोग बड़ा दिन और ईस्टर मनाते हैं। कुछ लोग अन्य पर्वों को भी मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के बहुत सारे पर्व हैं जबकि बौद्ध और मुसलमानों के पर्व थोड़े हैं।

जब हम बाइबल खोलते हैं तो यहूदियों के पर्वों से सम्बन्धित बहुत सी बातें पाते हैं लेकिन ईसाइयों के किसी पर्व का विवरण नहीं मिलता। इसका कारण यह है कि बड़ा दिन और ईस्टर, दोनों ही ईसाइयों के पर्व हैं ही नहीं, पर छद्म रूप में गैर ईसाइयों के पर्व हैं। इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिये Church Festivals देखें।

मैंने उत्सव शब्द के बदले पर्व शब्द को उपयोग करने का निश्चय किया है। बहुत सारे बाइबल के अनुवादों में यहूदियों के विशेष भोजों के लिये उत्सव शब्द का उपयोग किया गया है। लेकिन वर्तमान अंग्रेजी भाषा में किये गये उपयोग के अनुसार किसी उत्सव में एक भोज में सम्मिलित होने के लिये कुछ लोग एकत्रित होते हैं, जबकि किसी किसी पर्व में सहभागी होने के लिये बहुत सारे लोग पूरे देश से आते हैं, इसमें भोज खाना आवश्यक नहीं होता। इसीलिए यहूदियों के जमावड़ा का सही वर्णन करने के लिये पर्व उत्तम शब्द है। ये पर्व बुनियादी रूप से भोज खाने के लिये नहीं पर उनके इतिहास और कृषि वर्ष के विशेष घटनाओं को याद करने के लिये मनाये जाते थे।

हरेक पर्व के विषय में विचार करने से पहले हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि इनका अध्ययन हमारे लिये आवश्यक क्यों है? धर्मशास्त्र में उल्लिखित विभिन्न भागों के विषय में भी हम यही प्रश्न कर सकते हैं। तम्बू का अध्ययन क्यों? या लेवियों को दिये जाने वाले भेंट क्यों? या इस्राएलियो के लम्बे इतिहास का अध्ययन करना क्यों आवश्यक है? प्रेरित पौलुस हमें इनका सीधा उत्तर देते हैं: “ये बातें हमारे लिये दृष्टान्त ठहरी” (१ कोरि १०:६)। पुराने नियम के पर्व और उत्सव और यहूदियों का इतिहास, सभी चीजें हमारे लिये आत्मिक सत्यता के दृष्टान्त हैं। सम्पूर्ण धर्मशास्त्र पहले तो यीशु की ओर संकेत करते हैं और फिर जब हम उनकी तरह बनने का और उनके पीछे चलने का प्रयास करते हैं, तब यह हमारे अपने जीवन और अनुभवों की ओर संकेत करते हैं।

यहूदी व्यवस्था के अनुसार ७ पर्व निम्न अनुसार हैं:

पर्व
महीना
तारिख
फसह
१४
अखमिरी रोटी
१५-२१
पहले पुले का हिलाया जाना
 
सप्ताह (पेन्तिकोस)
 
तुरही
प्रायश्चित का दिन
१०
झोपड़ी
१५-२२

अन्य पर्व बाद में जुड़ गये, जैसे पुरीम जो एस्तर के समय में स्थापित हुआ और हनुक्का, मक्काबियों के समय में। लेकिन मूसा के व्यवस्था या तोरा के असली सात पर्व ये ही हैं।

इन पर्वों का धर्मशास्त्र के निम्नलिखित भागों में उल्लेख हुआ हैः

धर्मशास्त्र के भागपर्व
निर्गमन १२फसह
निर्गमन २३: १४-१७ सारांश
लैव्यव्यवस्था १६प्रायश्चित का दिन
लैव्यव्यवस्था २३सभी पर्व
गिनती २८:११- २९:४०सभी पर्व
व्यवस्था विवरण १६: १- १७सभी पर्व

कृषि और राष्ट्रीय इतिहास, दो ऐसे मूल विषय हैं जो इन पर्वों में अधिकांश को एक साथ पिरोते हैं। फसह, अखमीरी रोटी का पर्व और झोपड़ियों का पर्व ऐतिहासिक हैं और मिश्र से छुटकारे और मरु भूमि की यात्रा की याद में मनाये जाते हैं। पहले पुले का हिलाया जाना, पेन्तिकोस और फिर झोपड़ी, ये सभी पर्व कटनी के क्रम में विभिन्न समय पर मनाये जाते हैं। इस प्रकार झोपड़ी, जो पर्वों का उत्कर्ष है, दोनों विषयों को एक साथ मिलाता है, जैसा कि हम लोग कुछ देर में विस्तार से देखेंगे।

धर्मशास्त्र के और चीजों की तरह ये पर्व तीन समूहों में मनाये जाते हैं, जिससे एक नमूना उभरता है। पहले महीने में तीन पर्व मनाये जाते थे, तीसरे महीने में एक, और सातवें महीने में तीन पर्व। पहले तीन पर्व फसह समूह के हैं और हमारे आत्मिक अनुभव के आरम्भ को बताते हैं। तीसरे महीने में मनाये जाने वाले पेन्तिकोस, इसके बाद की अवस्था को दिखाता है। सातवें महीने के तीनों पर्व झोपड़ियों के समूह के हैं और आत्मिक परिपक्वता बताते हैं। सात का अंक परिपक्वता का अंक है और झोपड़ी का पर्व जो सातवां पर्व है और सातवें महीने में पड़ता है, परमेश्वर के साथ हमारे चलने को दर्शाता है। सभी इस्राएली पुरुषों को व्यवस्था में आज्ञा दी गयी थी कि वर्ष में तीन बार इन पर्वों के समय यरुशलेम में परमेश्वर के सामने उपस्थित हों। आज भी तेल अभिभ जाने के लिये इस अवधी में हवाई जहाज के टिकट मिलना प्रायः कठिन होता है।

लैव्य व्यवस्था २३ साप्ताहिक परम विश्राम दिन के विषय में बताते हुए आरम्भ होता है। यह ऐसा दिन था जिस दिन इस्राएली अपना सभी दैनिक काम से बन्द रखते। यह परमेश्वर के लिए अलग किया गया दिन था। सभी पर्व भी परम विश्राम दिन के समान ही थे, उस दिन कोई भी दैनिक काम करना निषिद्ध था।

व्यवस्था में यह भी आज्ञा दी गयी थी कि सभी पर्वों के दिन भेंट अर्पण किये जायें। विशेष कर फसह और झोपड़ियो के पर्व के समय बड़े परिमाण में बलिदान के भेंट अर्पण किये जाते थे।

विश्राम और बलिदान की ये दो आज्ञाएं हमें एक बुनियादी सत्यता सिखाती हैं। हमें परमेश्वर के लिये किये गये अपने कामों से कुछ भी लाभ नहीं है। सभी पर्वों से मिलने वाले सभी आशीष हमारे लिये क्रूस पर किये गये यीशु के बलिदान और भेंट से मिले हैं। सभी कुछ उन्हीं के द्वारा हैं। हम अपने प्रयास से कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते।

वे हमें दूसरी सत्यता सिखाते हैं। हमें सांसारिक अवस्था में बलिदान करना आवश्यक है और जिस समय को हम लाभ प्राप्त करने या विलास के लिये उपयोग करना चाहते हैं उसे परमेश्वर को देना चाहिए। हम सांसारिक चीजों का बलिदान कर आत्मिक लाभ पाते हैं।

ये पर्व किसी नक्शे के समान हैं जो परमेश्वर में हमारी आत्मिक प्रगति को रेखांकित करते हैं। हमारी यात्रा मेमना के लहू बहाने के साथ ही फसह के दिन आरम्भ होती है। यह पेन्तिकोस के दिन तक पवित्र आत्मा के उड़ेले जाने और हमारे पूर्ण उत्तराधिकार के पूर्व स्वाद तक बढ़ती जाती है। इस यात्रा का अन्तिम लक्ष्य झोपड़ियों का पर्व है, जिसके विषय में हम थोड़ी देर बाद विस्तार से विचार करेंगे।

हमारे आत्मिक लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारी सहायता करने के लिये धर्मशास्त्र में और नक्शे भी हैं। मिश्र देश से निकलकर प्रतिज्ञा के देश में जाने के लिये इस्रएलियों की यात्रा सर्वविदित है। इस्राएलियों के समान ही हमें भी लाल समुद्र पार करना, अमालेकियों से युद्ध करना, मरु भूमि से गुजरना, और यर्दन नदी को पार करना, कनान के आत्मिक भूमि पर विजय पाने से पहले आवश्यक है ताकि हमारा इस्राएल बन सके।

झोपड़ी हमारा अगला नक्शा है। हमें इसके तीनों भागों से गुजरना आवश्यक है। एक बाहरी भाग था जहां सभी लोग अपनी भेंट लेकर आ सकते थे। दूसरा पवित्र स्थान था जिसके अन्दर सिर्फ याजक जा सकते थे। अन्त में महा पवित्र स्थान था जिसमें सिर्फ महा याजक जा सकते थे, और वर्ष में सिर्फ एक बार। महा पवित्र स्थान में परमेश्वर की उपस्थिति रहती थी। ये तीनों भाग, मुझे लगता है, तीनों पर्व समूहों को दर्शाते हैं।

यीशु ने कहा, “मार्ग, सच्चाई और जीवन मैं ही हूं”। सर्व प्रथम हम उन्हें मार्ग के रूप में पहचानते हैं। उसके बाद हम उन्हें और गहरी रीति से सच्चाई के रूप में जानते हैं। अन्त में हम उन्हें जीवन के रूप में जानते हैं। किसी मार्ग या पगडण्डी की उपयोगिता सिर्फ इतनी है कि वह हमें गन्तव्य तक पहुंचा दे। सच्चाई भी अपने आप में हमारा लक्ष्य नहीं है, लेकिन हमारे लक्ष्य प्राप्ति में हमारी सहायता करता है। जीवन हमारा महान् लक्ष्य और हमारी यात्रा का उत्कर्ष है। मृत्यु परमेश्वर से अलग करता है, जीवन उनके साथ एक होना है। हम यह भी देखेंगे कि मार्ग, सच्चाई और जीवन भी तीनों पर्व समूहों को दर्शाते हैं।

ये सब हमारे प्रवास में हमारी सहायता करने वाले नक्शे हैं। यात्रा पर नहीं जाने वालों के लिये नक्शे की कोई उपयोगिता नहीं है। इसमें मूल्य और बलिदान निहित हैं। विश्वास की आंखों से दिखने वाली चीजों को प्राप्त करने के लिये हम उन चीजों का बलिदान करते हैं जो शारीरिक आंखों से देखी जा सकती हैं।

कुछ लोग अपने जीवन में फसह का अनुभव करते हैं। वे जानते हैं कि परमेश्वर का मेमना उनके लिये मरा था। वे अपने पापों की क्षमा पाने से आनन्दित होते हैं, लेकिन अनिच्छा या अज्ञान के कारण वे पेन्तिकोस तक पहुंचने में असफल रहते हैं, और जो परमेश्वर के साथ और आगे जाना चाहते हैं, उनका विरोध करते हैं। और लोग परमेश्वर के साथ अपने आरम्भिक अनुभव से आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं, और पेन्तिकोस तक पहुंच कर पवित्र आत्मा का बपतिस्मा और उनकी शक्ति का अनुभव करते हैं। बड़े दुख की बात है कि जो लोग पेन्तिकोस का अनुभव करते हैं, वे ऐसा विश्वास करने लगते हैं कि इससे आगे कुछ नहीं है और अपने इसी अनुभव से सन्तुष्ट हो जाते हैं। वे मरु भूमि में घूमते रहते हैं और उनके और कनान देश के बीच स्थित यर्दन नदी को कभी पार नहीं करते। पर खुशी की बात है कि ऐसे लोग भी हैं जो यर्दन नदी को पार कर “यीशु मसीह में परमेश्वर के उस उच्च बोला वट” की ओर आगे बढ़ना चाहते हैं। ये वे लोग हैं जो झोपड़ी का पर्व अनुभव करना चाहते हैं।

इसलिये इस लेख का मुख्य उद्देश्य सातवें महीने के तीनों पर्व, तुरही फूंकना, प्रायश्चित करना और झोपडड़ियों के पर्व का अध्ययन है। ये ही वे पर्व हैं जिनके विषय में जानना और अनुभव करना हमारे लिये आवश्यक है।

फसह

पहले महीने के पर्व फसह पर केन्द्रित थे। यह पर्व उन नाटकीय घटनाओं की याद दिलाता था जो इस्राएलियो के मिश्र देश से बाहर निकलते समय घटी थी। मिश्र देश में वे सब गुलाम थे। क्रूर मालिक उनसे बलपूर्वक कड़ा परिश्रम कराते थे। आनन्द या स्वतन्त्रता का अनुभव किए बिना ही इस्राएलियों के कई पुश्तों ने जन्म लिया और मृत्यु के मुख में चले गये। अन्त में परमेश्वर ने उनकी आर्तनाद सुनी और उनको स्वतन्त्र करने के लिये एक व्यक्ति को भेजा। मूसा ने उन्हें मिश्र देश से निकाल कर आखिर में इस्राएल देश में पहुंचा दिया।

उनके प्रस्थान की रात परमेश्वर के दूत ने हरेक मिश्री परिवार के पहिलौठे पुत्र को मार दिया। इस्राएलियों को निर्देशन दिया गया था कि वे मेमने को मारकर उसका लहू अपने घर के दरवाजे पर लगायें। परमेश्वर का दूत उस लहू को देखकर उस घर को बिना हानि पहुंचाये छोड़ कर चला गया, और पहिलौठा पुत्र नहीं मारा गया।

यहूदी परिवार आज भी इसी दिन प्रत्येक वर्ष फसह का पर्व मनाते हैं। हम जो यीशु के अनुयायी हैं, आत्मिक फसह मनाते हैं। हमारे लिये, यीशु परमेश्वर के मेमना हैं जो हमारे पापों से हमें उद्धार देने के लिये मरे। हमारे मृत्यु- आदेश रद्द कर दिये गये हैं। हमें मुफ्त में क्षमा किया गया है। परमेश्वर के मेमने ने हमारे सारे पाप, इसके भयङ्कर दण्ड के साथ, अपने ऊपर ले लिया है। पुराने जमाने के इस्राएलियो की तरह हम भी छुटकारा प्राप्त लोग हैं।

यह पर्व परमेश्वर में हमारे अनुभव का आरम्भिक बिन्दू है। यीशु के लहू के द्वारा हमारा छुटकारा हुआ है या हम परमेश्वर के लिये खरीद लिये गये हैं। सृष्टि के अधिकार से भी परमेश्वर हमारे मालिक हैं। उन्होंने हमारी सृष्टि की। पाप के कारण हम उनसे दूर हो गये हैं जो हमें उनसे अलग करती है। यीशु, परमेश्वर के मेमना, ने अपने जीवन - लहू में हमारा प्रतिनिधित्व करते हुए अपने आप को अर्पण किया ताकि हमें परमेश्वर के लिये खरीद सकें। इस आधार पर अब हम उनके हैं और उनकी सम्पत्ति हैं। यह एक बुनियादी सत्यता है जो हमारे सभी आत्मिक अनुभवों से महत्त्वपूर्ण है। हम परमेश्वर के लिए खरीदे गये हैं और हम उनके हैं। हम उनके लोग हैं और वह हमारे परमेश्वर।

अखमीरी रोटी का पर्व

फसह के दूसरे दिन अखमीरी रोटी का पर्व आरम्भ होकर सात दिनों तक मनाया जाता था। इसका आरम्भ भी मिश्र देश से निर्गमन से जुड़ा हुआ था। खमीर ऐसी वस्तु है जो आटे को फूलाती है। जब इस्राएलियो ने मिश्र देश छोड़ा था, उनके पास खमीर से रोटियों को फूलाने का समय नहीं था। उन्हें अखमीरी रोटी खाना पड़ा था।

यीशु ने चेलों से कहा, “फरिसियो के खमीर से सावधान रहो”। फरिसी लोग परमेश्वर द्वारा दिये गये मूसा की व्यवस्था के शिक्षक थे। लेकिन इन्होंने इसमें अपनी ओर से अर्थ और प्रचलन जोड़ दिये थे। इसके फलस्वरूप यह फूलकर अपने आकार से बहुत बड़ा हो गया था और अपनी शुद्धता पूरी तरह खो बैठा था। कुरिन्थियों को पौलुस ने लिखा, “सो आओ हम उत्सव में आनन्द मनावें, न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से, परन्तु सीधाई और सच्चाई की अखमीरी रोटी से” (१ कुरि ५:८)।

पौलुस के लिये व्यवस्था, “हमें मसीह तक पहुंचाने वाला स्कूल शिक्षक” था। इसके नियमों को पालन करने में अपने आप को पूरी तरह अयोग्य पाकर, उसने अपने पापी स्वभाव को देखा और परमेश्वर की करुणा के लिये पुकार उठा। उसने यीशु में पापों की क्षमा और इनसे छुटकारा पाया। पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से वह व्यवस्था के नियम पालन करने योग्य हुआ।

फरिसियों के लिये व्यवस्था उनके पद और अधिकार को बनाये रहने का उपाय था। उन्होंने किसी भी आज्ञा के साथ उसके अर्थ को स्पष्ट करने के लिये नाना प्रकार की बातें जोड़ दीं। विश्राम के दिन किस प्रकार के काम किये जा सकते थे और किस प्रकार के नहीं, इसके लिये उन्होंने विशेष नियम बनाये थे। खेतों में उगायी गयी छोटी से छोटी सब्जियों के लिये दशमांश देने पर वे जोर देते थे। अधिक से अधिक नियमों का पालन करना उनके लिये परमेश्वर का अनुग्रह कमाने का उपाय था। उनकी व्यवस्था का बोझ दिन प्रति दिन भारी होता गया। यीशु ने, इसके विपरीत, कहा कि उनका बोझ हलका था।

इसी लिए आज भी धर्म का मार्ग यही है कि ऐसे बाह्य नियमों के पालन पर जोर देना जिन्हें परमेश्वर ने कभी दिया ही नहीं। यीशु का मार्ग यह है कि हमारा हृदय अन्दर से परिवर्तन हो जिससे हम उनके प्रेम के व्यवस्था का पालन करें क्योंकि यह हमारा अन्दरूनी स्वभाव बन चुका होता है।

पहिली उपज के पूलो का हिलाया जाना

फसह के बाद वाले विश्राम दिन के दूसरे दिन पहिलौठे फल के पूलों को हिलाये जाने का पर्व पड़ता था। यह सात सप्ताह के बाद आने वाले पेन्तिकोस या सप्ताहों के पर्व की ओर आगे देखने जैसा था। इस्रएलियों को आग्या दी गयी थी, “जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हें देता है और उस में के खेत काटो, तब अपने अपने पक्के खेत की पहिली उपज का पूला याजक के पास ले आया करना; और वह उस पूले को यहोवा के साम्हने हिलाए, कि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहण किया जाए” (लैव्य व्यवस्था २३:१०,११)।

यह पर्व बड़े स्पष्ट रूप से यीशु के विषय में बात करता है। वर्ष के इसी दिन उनका पुनरुत्थान हुआ था। पौलुस के शब्दों में यीशु, “सो गये लोगों में से पहला उपज” हो गये थे। यीशु पहला उपज हैं और एक बहुत ही अद्भुत पहला उपज। लेकिन ऐसा ही अद्भुत इसका प्रभाव भी है, क्योंकि और भी उपज बाकी है। पहला उपज तभी सम्भव है, जब और उपज बाकी हो। पहला उपज बाद के उपज से गुण में भिन्न नहीं होता है। साधारण सी बात है कि औरों के पकने से पहले ये पक जाते हैं। एक किसान के लिये यह बड़ी निराशा की बात होगी यदि पहला उपज गुण में उत्तम हो, पर बाद में काटे गये फसल खाने लायक ही नहीं हों।

हमारे लिये यह देखना महत्त्वपूर्ण है कि परमेश्वर ने ऐसी योजना बनायी कि सभी भाइयों में यीशु पहला फल हों। वह यीशु को एक मात्र सन्तान नहीं बनाना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि यीशु के और भी छोटे भाई बहन हों। बचपन में बड़े भाई छोटे भाई बहनों की तुलना में शक्तिशाली और चालाक होते हैं। लेकिन जैसे जैसे वे बड़े होकर परिपक्व होते जाते हैं, ये अन्तर कम होते जाते हैं और अन्त में खत्म हो जाते हैं। धर्मशास्त्र में दिखाई गयी परमेश्वर की योजना यही है कि हमारे और यीशु के बीच ऐसा ही हो।

परमेश्वर अनुग्रह करें कि हम इस सत्यता को देख सकें और इस पर विश्वास कर सकें।

सप्ताहों (पेन्तिकोस) का पर्व

पहली उपज के पूलो के हिलाये जाने के पचास दिन अथवा सात सप्ताह और एक दिन के बाद सप्ताहों का पर्व पड़ता है। नये नियम में इस पर्व का सर्वविदित नाम पेन्तिकोस है क्योंकि यूनानी शब्द πεντακοσιοι जिसका अर्थ पचास होता है, इस शब्द से मिलता जुलता है। इस प्रकार यह पर्व, जैसा कि हमने देखा है, पहले पूले के हिलाये जाने के पर्व की पूर्णता है। पहले प्रभू के आगे एक पूला हिलाया जाता था। पेन्तिकोस के दिन दो रोटियां हिलायी जाती थी। यीशु अब अकेले नहीं हैं। शरीर के साथ शिर जुड़ गया है।

फिर भी जैसे जैसे हम धर्मशास्त्र का अध्ययन करते हैं, हम पाते हैं कि पेन्तिकोस भी पहले फसल का पर्व कहलाता है (लैव्य व्यवस्था २३:१६)। इस पर्व की पूर्णता सातवें महीने में मनाये जाने वाला झोपड़ियों का पर्व है। पहले फसल के दो पर्व और इनकी दो पूर्णता कैसे हो सकते हैं। साधारण शब्दों में, यह परमेश्वर के काम करने का तरीका है। किसी चीज का अन्त वास्तव में अन्त नहीं है पर उससे भी किसी महान् काम का आरम्भ है। कोई भी बीज उग कर बढ़ने के बाद अपने से कई गुणा अधिक बीज उत्पादन करते हैं, फिर प्रत्येक नया बीज इसी प्रकार कई गुणा बीज उत्पादन करते जाते हैं।

हरेक नया आयाम छोटे आयाम की पूर्णता है। बिन्दू से तुलना करें तो रेखा इसकी पूर्णता है। रेखा से तुलना करने पर क्षेत्र इसकी पूर्णता है। इसी प्रकार यदि क्षेत्र से तुलना करें तो ठोस चीज इसकी पूर्णता है। इसी प्रकार हम एक महिमा से दूसरी महिमा की ओर बढ़ते जाते हैं और पवित्र स्थान से महा पवित्र स्थान की ओर। हरेक ताजा आशीष आने वाले आशीष के लिये बीज है।

मिश्र में मनाए गये पहले फसह के पचास दिनों बाद इस्राएली लोग सिनै पर्वत पर पहुंचे थे। परमेश्वर ने वहां उनके बीच जो कुछ किया वह मिश्र देश में किये गये कामों से कम नाटकीय नहीं थे। वह पर्वत पर अग्नि में होकर उतरे थे। वहां पर गर्जन हो रहे थे, भूकम्प हो रहे थे और तुरही फूंकने जैसी आवाज आ रही थी। ये सारी बातें मूसा को दस आज्ञा देने से पूर्व की तैयारी थीं।

प्रेरितों की पुस्तक में उल्लेखित पेन्तिकोस के दिन में बहुत समानताएं थीं। दोनों घटनाएं एक दूसरे से जुड़ी थीं। बड़ी तेज हवा चलने की आवाज हो रही थी, आग की जीभे थीं और पवित्र आत्मा के उतरने की घटना।

सिनै की घटना पुराने नियम का आरम्भ था और इस्राएल के लोगों से सम्बन्धित था। पेन्तिकोस का दिन नये नियम का आरम्भ था और परमेश्वर के आत्मिक लोगों से सम्बन्धित था।

पेन्तिकोस पवित्र आत्मा की शक्ति और उनके वरदानों के साथ जुड़ा हुआ है। उस दिन, जितना हमें पता है, पहली बार लोगों ने अन्य भाषा में बोला था। उसके बाद के दिनों में आश्चर्य जनक रूप से लोग चङ्गे हुए, ज्ञान के वचन के वरदान ने छुपाये गये पापों को प्रकट किया और अद्भुत रीति से कारागार के दरवाजे खुल गये थे। ईश्वरीय प्रकटीकरण का यह एक महिमित समय था। उनके लोगों के बीच परमेश्वर का हाथ स्पष्ट देखा जा सकता था।

आत्मिक वरदानों के साथ साथ आत्मिक सेवकाई भी थीं। इफिसियों के पत्र में पौलुस प्रेरित, भविष्यवक्ता, पास्टर, शिक्षक और प्रचारक की बात करता है। आज हमारे बीच इन सेवकाइयो के असली और नकली, दोनों तरह के लोग हैं। जब ये वास्तव में परमेश्वर द्वारा नियुक्त होते हैं तो बहुत बड़ी आशीष लाते हैं। पौलुस ने इस बात को स्पष्ट किया है कि परमेश्वर के लोगों के जीवन में मजबूत नींव के लिये इनका बहुत अधिक महत्त्व है। इफिसियो के पत्र के ४:१२-१४ पदो मे उसने इनका उद्देश्य स्पष्ट किया है, “जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं। ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।”

वह मण्डली या संगति क्या ही आनन्दित है, जिसमें परमेश्वर के द्वारा दी गयी सेवकाइयाँ और वरदान हैं और जो अपने सदस्यों को तितर बितर होने से बचाने के लिये सांसारिक तरीकों और व्यावसायिक उपायों पर निर्भर नहीं हैं और जो विभिन्न मनोरंजन के उपायों का सहारा नहीं लेतीं।

तुरही का पर्व

कैलेण्डर

यहूदी लोगों के कैलेण्डर में तीसरे और सातवें महीने के बीच कोई पर्व नहीं था। सातवें महीने मे झोपड़ी समूह के तीन पर्व पड़ते थे। इनमें से पहला, महीना के पहले दिन, तुरही का पर्व पड़ता था।

हरेक पर्व के पहले और हरेक महीना के आरम्भ होते समय तुरही फूंका जाता था। इसी लिये तुरही के पर्व पर इन दो आवश्यकताओं के अलावा विशेष प्रकार से तुरही बजाया जाता है। यह अपने आप में एक पर्व है, इसके साथ साथ यह दो बड़े पर्वों का आरम्भ भी है। इसके तुरत बाद सातवें महीना के दसवें दिन प्रायश्चित का दिन पड़ता है, जिसके बाद १५ वें दिन से लेकर २२ वें दिन तक झोपड़ियों का पर्व पड़ता है। ये दोनों पर्व इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि इनकी घोषणा करने के लिये तुरही के पर्व की आवश्यकता पड़ती है। तुरही का पर्व हमें आगे आने वाले इन दोनों पर्वों की ओर बढ़ने का बुलावा देता है।

यहूदी लोगों का धार्मिक वर्ष वसन्त ऋतु में आरम्भ होता था, लेकिन उनका नागरिक या कृषि वर्ष शरद् ऋतु में। (भारत में नया वर्ष जनवरी में आरम्भ होता है लेकिन आर्थिक वर्ष अप्रैल में)। यह नागरिक वर्ष धार्मिक कैलेण्डर के सातवें महीने के पहले दिन आरम्भ होता था। इसका अर्थ यह हुआ कि तुरही का पर्व नागरिक वर्ष के आरम्भ में मनाया जाता था। इसलिये यह परमेश्वर में हमारे लिये यह एक ताजा आरम्भ का समय है।

संसार के लोगों के लिये नया वर्ष नये निर्णय लेकर अपने जीवन शैली या अपनी आदतों में सुधार लाने के प्रयास का समय होता है। ऐसे निर्णय लम्बे समय तक नहीं चलते क्योंकि मानव इच्छा शक्ति इन्हें कायम रखने में सक्षम नहीं होती।

परमेश्वर के लोगो के लिये नया वर्ष बिते समय के लिये पश्चाताप करने का और भविष्य के लिये पुनः समर्पण करने का समय हो सकता है। सातवें महीने का दसवां दिन, प्रायश्चित का दिन पाप क्षमा का दिन था। इस लिये तुरही का पर्व पश्चाताप करने का बुलावा है और तैयारी करने के लिये अपने हृदय के खनतलाशी करने का।

सभा

प्राचीन काल में तुरही का बहुत तरह से उपयोग किया जाता था। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग था लोगों को इकट्ठा करना। विगत में यूरोप के बहुत से देशों में उपयोग होने वाले मण्डली भवन के घण्टे इसी उद्देश्य को पूरा करते थे। आधुनिक खोजों से पूर्व तुरही की आवाज ही एक मात्र ऐसी आवाज थी जो सबसे ऊंची होती थी। मरु भूमि में यह आवाज इस्राएल के सभी तंबूओ में सुनी जा सकती थी या इस्राएलियों के प्रतिज्ञा के देश में पहुंच जाने के बाद किसी गांव या नगर में।

पूरी बाइबल में हम पाते हैं कि तुरही का उपयोग लोगों को इकट्ठा करने के लिये किया जाता था। गिनती के दसवें अध्याय में चांदी के दो तुरही बनाने के लिये परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी थी। इनका पहला उद्देश्य लोगों को इकट्ठा करना था। अमालेकी के विरुद्ध युद्ध करने के लिये गिद्दौन ने लोगों को इकट्ठा करने के उद्देश्य से तुरही फूंका था। राजा शाऊल ने तुरही का उपयोग करके फिलिस्तियो के विरुद्ध युद्ध करने के लिये लोगों को इकट्ठा किया था (१ शमूएल १३:३,४)। सभी पर्वों से पहले लोगों को इकट्ठा करने के लिये तुरही बजाये जाते थे। अपने चुने हुओं को चारों दिशाओं से इकट्ठा करने के लिये यीशु ऊंची आवाज वाली तुरही के साथ अपने दूत को भेजेंगे।

परमेश्वर की इच्छा है कि उनके लोग एक साथ इकट्ठा हों, पर कहां और कैसे? क्या उन्हें मण्डली भवनों में इकट्ठा होना चाहिए, या सभा भवनों में, या उनके अपने घरों में? क्या उन्हें सभी सच्चे विश्वासियो को मिलाकर कोई बड़ा संप्रदाय का गठन कर लेना चाहिए? परमेश्वर के मन में किस प्रकार के जमावड़ा की बात चल रही है।

पुरानी वाचा में जमावड़ा के लिये केवल एक ही स्वीकृत स्थान था। जब इस्राएली लोग मरु भूमि में थे तब तुरही बजने पर सभी लोग मिलने वाले तम्बू के दरवाजे पर मूसा के सामने एकत्रित होते थे। इस मिलने के तम्बू में ही परमेश्वर की उपस्थिति रहती थी। इस्राएलियों के प्रतिज्ञा के देश में पहुंचने के बाद परमेश्वर ने “अपना नाम रखने” के लिये एक विशेष स्थान को चुना। “किन्तु जो स्थान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे सब गोत्रों में से चुन लेगा, कि वहां अपना नाम बनाए रखे, उसके उसी निवासस्थान के पास जाया करना” (व्यवस्था १२:५)। यह स्थान यरुशलेम स्थित मन्दिर था। वर्ष में तीन बार, तीन मुख्य पर्वों के समय, व्यवस्था में ऐसी आज्ञा थी कि सभी इस्राएली प्रौढ़ पुरुष यरुशलेम जायें।

यीशु ने अपने चेलों को किस स्थान पर इकट्ठा होने का निर्देशन दिया? “क्योंकि जहां दो या तीन मेरे नाम पर इकट्ठे होते हैं वहां मैं उन के बीच में होता हूं” (मत्ती १८:२०)। एकत्रित होने के लिये उन्होने आत्मा मे एक नये स्थान को स्थापित किया। उन्होंने “मण्डली भवन जाओ” ऐसा नहीं कहा, बल्कि उन्होंने कहा, “मेरे पास आओ”। उन्होंने कहा, “तुम न तो इस पहाड़ पर पिता का भजन करोगे न यरूशलेम में,․․․ सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे” (यूहन्ना ४:२१, २३)।

पौलुस ने थिस्सलुनिकियों को “अपने प्रभु यीशु मसीह के आने, और उसके पास अपने इकट्ठे होने के विषय में” लिखा था (२ थिस्स २:१)। नये नियम में एकत्रित होने का बुनियादी सिद्धान्त यह है कि हम किसी स्थान पर एकत्रित नहीं होते। हमें अपने घरों या तम्बुओ से बाहर निकलकर यीशु के पास एकत्रित होना आवश्यक है।

वर्तमान के लिये पर्व

मेरा मानना है कि इस पर्व में आज के लिये एक सन्देश है। परमेश्वर अभी नये तरह से काम कर रहे हैं और इसकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। तुरही फूंके जा रहे हैं।

यीशु को संसार में प्रकट करने से पहले परमेश्वर ने इस्राएल में तुरही फूंका। उन्होंने बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना को भेजा कि लोगों को पश्चाताप के लिये पुकारे और प्रभू का मार्ग तैयार करे। बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना तुरही था। मलाकी के बाद ४०० वर्षों तक भविष्यवाणी और प्रकाश की आवाज नहीं सुनाई पड़ी थी। परमेश्वर के लोगों को जगाने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के लिये तुरही फूंका गया। परमेश्वर के उद्देश्य में पूर्ण रूप से एक नया युग आ चुका था।

इसी प्रकार आज भी तुरही फूंके जा रहे हैं। परमेश्वर अपने लोगों को एकत्रित होने के लिये और आगे बढ़ने के लिये पुकार रहे हैं। मेरा मानना है कि हम लोग परमेश्वर के साथ एक नये वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं।

प्रायश्चित का दिन

पृष्ठभूमि

प्रायश्चित का दिन (इसे बहुत लोग इसके हिब्रू नाम यम किप्पुर से जानते हैं) वर्ष के सभी पर्वों में विशेष था और इसके बाद खुशियां मनाने वाला पर्व पड़ता था। परमेश्वर के मार्ग से परिचित मन इस नमूना को आसानी से पहचान सकता है। बच्चे के जन्म से पहले प्रसूति का दर्द होना आवश्यक है। रात भर के कष्ट के बाद नयी सुबह के साथ आनन्द का आगमन होता है। यीशु के लिये दुख सहना और मरना, उनके जी उठने और पिता के पास जाने से पहले आवश्यक था।

प्रायश्चित का दिन अन्य पर्वों से इस अर्थ में भी अलग था कि इसका मनाना पूर्णतः अनिवार्य था। व्यवस्था के अनुसार यदि कोई व्यक्ति इस पर्व को नहीं मनाता था तो उसे अपने लोगों के बीच से (मृत्यु दण्ड देकर) अलग कर दिया जाता था।

यह कृषि से सम्बन्धित पर्व भी नहीं था और न ही किसी राष्ट्रीय स्मृति से सम्बन्धित। यह पाप जैसे गंभीर विषय से जुड़ा था। यह उपवास और पश्चाताप का समय था।

यहूदी प्रचलन में तुरही के पर्व के दस दिन बाद से लेकर प्रायश्चित के दिन तक तैयारी का समय होता था। यह आत्म निरीक्षण का समय है। यहूदी नया वर्ष तुरही के पर्व के दिन आरम्भ होता है और इसीलिये प्रायश्चित का दिन गत वर्ष के सारे पापों से छुटकारा पाने का समय होता है।

प्रायश्चित के दिन वर्ष में एक बार प्रधान याजक अति पवित्र स्थान में अपने पापों के और सारे इस्राएल के पापों के प्रायश्चित के लिये जाते थे। इस दिन उनके सारे पाप क्षमा किये जाते थे। लैव्य व्यवस्था १६:३० के अनुसार “क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिये तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित्त किया जाएगा; और तुम अपने सब पापों से यहोवा के सम्मुख पवित्र ठहरोगे।”

स्वतन्त्रता और छुटकारा

तुरही के पर्व के बड़े आशीषों के लिये पापों से शुद्ध होना एक आवश्यक तैयारी है। परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध के आरम्भ में हम यह जानते हैं कि हमने पाप किया है और उन्हें दुखी किया है। हमारे मन और विवेक की शान्ती के लिये हम यह देखते हैं कि हमारे छुटकारे और क्षमा के लिये फसह के मेमने की बलि की गयी है। बड़े आनन्द के साथ हम परमेश्वर के उपाय और पवित्र आत्मा के सामर्थ्य को अपने जीवन में अनुभव करते हैं। उसके बाद जब धीरे धीरे हमें यह पता चलता है कि पाप का एक नियम अब भी हमारे जीवन में शासन करता है तो हमें झटका लगता है। पौलुस ने इस बात को स्वीकार किया कि जो अच्छे काम वह करना चाहता था, वह करने में असमर्थ था, और जो दुष्ट काम वह करना नहीं चाहता था, वही वह करता था। हमें क्षमा से भी अधिक की आवश्यकता है। हमें अन्दर से शुद्ध होना आवश्यक है। हमारे अन्दर वास करने वाले पाप की शक्ति से छुटकारा पाना आवश्यक है। हमारे जीवन से इसके पकड़ को तोड़ना आवश्यक है। प्रायश्चित के दिन हमें यही मिलता है।

प्रत्येक सात वर्षों के बाद प्रायश्चित के दिन जो कुछ होता था, उसमें पूर्ण क्षमा और पुनर्स्थापन के इसी विचार को जोर दिया गया है। हरेक हिब्रू दास को स्वतन्त्र किया जाता था। ४९ वां या जुबली वर्ष और भी महत्त्वपूर्ण था। उस वर्ष प्रायश्चित के दिन प्रत्येक दास स्वतन्त्र होता था और बिक्री की गयी हरेक जमीन अपने पूर्व मालिक को लौटा दी जाती थी। यह सब प्राचीन काल के यहूदी और उनके बीच रहने वाले विदेशियों के लिये एक अति उत्तम व्यवस्था थी। लेकिन तस्वीर की भाषा में यह किसी असीमित और बहुत बड़ी चीज की ओर संकेत कर रहा था, पौलुस ने जिसका वर्णन रोमी के ८ अध्याय में किया है। यहां वह कहता है कि “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है” ताकि “ परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करे” (१८-२२)। इस अद्भुत स्वतन्त्रता में सहभागी होने के लिये परमेश्वर के पुत्र सर्व प्रथम छुटकारा पायेंगे। उसके बाद ही सारी सृष्टि को छुटकारा मिलेगी। हिब्रू दास परमेश्वर के पुत्रों को दर्शाते हैं जिन्हें सबसे पहले छुटकारा मिलेगा। विदेशी दास सृष्टि के बाकी लोगों को दर्शाते हैं जिन्हें इसके बाद स्वतन्त्रता मिलेगा।

यह सत्यता बहुत महान् है और हमारे लिये इसे स्वीकार करना और विश्वास करना कठिन भी। निम्नलिखित बातें (आर्थर वेयर और फ्रैन्क पेन की पुस्तक से ली गयी हैं) इस सत्यता को और मजबूती देतीं हैं। जुबली वर्ष के ४९ वर्षों में १ वर्ष और जोड़कर इसे ५० वर्ष बना दिया गया। जुबली वर्ष का जुबली (अथवा ५० गुणा ५०) इस प्रकार २५०० वर्ष होते हैं। क्या आप अनुमान कर सकते हैं कि आदम के पाप करने के २५०० वर्षों बाद क्या हुआ था? ठीक इसी वर्ष इस्राएली लोगों को मिश्र देश से छुटकारा मिला था। सांसारिक रीति से सम्पूर्ण इतिहास में यह गुलामी से छुटकारे की सबसे बढ़ी घटना थी। आदम के पाप करने के ठीक ८० जुबली या ४००० वर्षों बाद इससे भी बहुत महान काम हुआ था। सारी सृष्टि आदम के पाप के कारण जिस बन्धन में पड़ी थी, उससे छुटकारा देने के लिये यीशु क्रूस पर मरे थे।

कष्ट और अनादर

कोई भी स्त्री या पुरुष पाप से कैसे छुटकारा पा सकता है? पौलुस के पास इसका उत्तर है, “क्योंकि जो मर गया, वह पाप से छूटकर धर्मी ठहरा” (रोमी ६:७)। शारीरिक मृत्यु इस संसार से सम्बन्धित सभी चीजों से हमें सदा के लिये अलग कर देती है। मृत व्यक्ति पाप नहीं करते। कुछ लोगों का कहना है कि शारीरिक मृत्यु के बाद ही हम पाप से पूरी तरह स्वतन्त्र हो सकते हैं, लेकिन पौलुस का कथन कुछ दूसरा ही है। रोमियों की पत्री के ६ अध्याय में वह मृत्यु, गाड़े जाने और यीशु के साथ जी उठने के द्वारा पाप से छुटकारा पाने की बात करते हैं। यह वही मृत्यु है जो हमें छुटकारा देता है और प्रायश्चित का दिन इसी की बात करता है। झोपड़ी का पर्व पुनरुत्थान दर्शाता है।

हमारे अनुभव के लिये इस मृत्यु का अर्थ क्या है? जब आप परमेश्वर के महान स्त्री और पुरुष के जीवन का अध्ययन करते हैं तो आप उन्हें मृत्यु की छाया की घाटी से गुजरते हुए देखते हैं। युसुफ के युवा काल के सारे सपने उस समय चकनाचूर हो गये जब उसे गलत इल्जाम लगाकर विदेश के कारागार में डाल दिया गया। अपने लोगों को भूख और मृत्यु से बचा सके, इसके लिये फिरौन के दाहिने हाथ बिठाये जाने से पहले उसे कष्ट में जीना पड़ा था। मूसा की भी सारी योजनाएं नष्ट हो गयी थीं और आकांक्षाएं मर गयी थीं जब वह मिश्र के राजकुमार से सिनै के उजाड़ मरुभूमि में एक चरवाहा की मजदूरी करने लगा था। यह कष्ट और अनादर ही वह मार्ग था जिससे वह धर्मशास्त्र में लिखे गये परमेश्वर के सामर्थ्य का महानतम भौतिक प्रदर्शन करने और उनकी इच्छा का महानतम प्रकाश व्यक्त करने की अवस्था तक पहुंचा जो मानवीय शब्दों में वर्णन किया गये हैं। इस्राएल के सिंहासन पर विराजमान होने से पहले राजा दाऊद को शाऊल के क्रोध से बचने के लिये गुफाओं में छुपकर गये गुजरे लोगों के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ा था। परमेश्वर द्वारा महिमित किये जाने और इतिहास के सबसे प्रसिद्ध राजा बनने से पहले उन्हें इस्राएल देश को छोड़कर शत्रुओं के देश फिलिस्तीन में रहना पड़ा था।

ये लोग और इनके जैसे अन्य लोगों को भी आशीष और उत्थान से पहले कष्ट में जीना पड़ा था। उनके कष्ट व्यर्थ या बिना किसी उद्देश्य के नहीं थे, परन्तु परमेश्वर ने इनका उपयोग उनके घमण्ड, आकांक्षा और स्वेच्छाचारिता का अन्त करने के लिये किया। उनके अन्दर किसी की मौत हो गयी। उनके जीवन अब उनके अपने नहीं रहे। उनके ऊपर से संसार का दावा खत्म हो गया। वे पूरी तरह परमेश्वर के थे और उनके लिये हमेशा उपलब्ध थे। सन्सार के लिये उनका मर जाना ही धार्मिकता में इस पर राज्य करने और परमेश्वर के आशीषों को प्रदान करने की उनकी योग्यता थी।

यीशु ने अपने चेलों के आगे स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें लोकप्रियता की आशा नहीं करनी चाहिए। उन्होने कहा था, “वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा वह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूं” (यूहन्ना १६:२)। विरोध और तिरस्कार उनके अपने ही समाज के लोगों से आने वाला था, जो बड़े चाव से उसी परमेश्वर की सेवा करते थे, जिनकी आराधना चेले करते थे।

कष्ट और अनादर निश्चय ही उन सब के जीवन में आयेंगे जो मेमने के पीछे पीछे चलने का प्रयत्न करते हैं। हरेक के लिये इस कष्ट का बाहरी रूप अलग अलग हो सकता है और इसकी गहराई कम या ज्यादा। परमेश्वर को पता है कि वह क्या कर रहे हैं और हमारी आवश्यकता के अनुरूप ही इसे होने देंगे। इस लिये हमारे कष्टों के कारण हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है और न ही हमें दूसरों से अपनी तुलना करनी चाहिये जिनका जीवन हमसे अच्छा दिखता हो। बल्कि हमें उन्हें वैसे ही स्वागत करना चाहिए जैसे हम कैन्सर से छुटकारा दिलाने वाले सर्जन की छुरी का करते हैं। ये स्वर्ग में रहने वाले पिता के द्वारा भेजे गये हैं जो अपने बच्चों का भला चाहते हैं। हमारे अन्दर का पाप निर्मूल होना ही चाहिए और हमारे सर्वशक्तिमान पिता के पास इसका अन्य कोई उपाय नहीं है।

कष्ट के विषय पर हमें दूसरे विचार पर भी ध्यान देना आवश्यक है। पेन्तिकोस के दिन १२० व्यक्ति ऊपर के कमरे में बड़ा भोज कर रहे थे और ऐसा लगता था कि वे सब शराब के नशे में थे। प्रायश्चित के दिन प्रधान याजक अकेले अति पवित्र स्थान में प्रवेश करते थे। युसुफ, मूसा और दाऊद अपने कष्ट में अकेले थे। यीशु अपने प्राण त्याग करते समय कराह उठे थे, “हे परमेश्वर, हे परमेश्वर, आपने क्यों मुझे त्याग दिया है?” पेन्तिकोस के दिन हमारी संगति विशेषकर मनुष्यों के साथ होती है, प्रायश्चित के दिन हम अकेले परमेश्वर के साथ चलते हैं।

इस विशेष दिन, जिस दिन यहूदी उपवास रखते और अपने को नम्र करते थे, इसका अन्त अद्भुत छुटकारे के साथ होता था। सिर्फ इनके पाप ही क्षमा नहीं किये जाते थे, पर इन्हें सारे पापों से शुद्ध किया जाता था और पूर्ण स्वतन्त्रता पाते थे। यह इसके पश्चात् आने वाले आनन्द पूर्ण पर्व के लिये तैयारी का समय था। पौलुस लिखते हैं कि, “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है। जैसे वह बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है”। ये वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं जो प्रायश्चित के दिन के खारे जाने और छुटकारे से होकर गुजर चुके हैं और झोपड़ी के पर्व में प्रवेश कर चुके हैं।

झोपड़ियों का पर्व

कटनी का पर्व

झोपड़ियों का पर्व इकट्ठा करने का पर्व भी कहलाता है। यह कटनी समाप्त होने का पर्व है और इसीलिये परमेश्वर के उद्देश्यों का उत्कर्ष भी।

किसी किसान के काम का कोई महत्त्व नहीं होता यदि उसके पास कटनी करने के लिये कुछ भी नहीं। वह बढ़ती हुई फसलों के विषय में बड़े आनन्द के साथ सपने देखता रहता है क्योंकि कटनी का समय आने पर उसके खेत अन्न से भरे होंगे। कटनी के बिना बीज बोना, पानी डालना और घास निकालना, सारा परिश्रम बेकार होता है। पिता के साथ भी ऐसा ही है, जिन्हें यीशु ने किसान कहा है। जो लोग कटनी पर विश्वास नहीं करते, उनके लिये परमेश्वर के उद्देश्यों को समझना कठिन होता है। कुछ भी स्पष्ट नहीं दिखता।

हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी ऐसा ही है। बहुत कुछ ऐसा होता है जो हम समझ नहीं पाते। वे सब अनावश्यक दिग्भ्रमित करने वाले और कष्ट लगते हैं। जब तक फल नहीं प्राप्त हो जाता, खुशी देने वाली कोई चीज नहीं दिखती। जब हमारा व्यक्तिगत कटनी का समय आ जाता है, सब चीजें बदल जायेंगी। हम बड़े आनन्द के साथ खुशी मनायेंगे, क्योंकि तब हमें अपने कष्ट पूर्ण जीवन का उद्देश्य समझ में आ जायेगा।

मण्डली में व्यापक स्तर पर ऐसा ही होता है। अभी हम परमेश्वर के लोगों की ओर देखते हैं और बहुत अधिक गोलमाल पाते हैं। आंशिक रूप से यह यीशु के शब्दों की परिपूर्णता है, “कटनी तक दोनों को (गेहूं और जंगली दाने को) एक साथ बढ़ने दो, और कटनी के समय मैं काटने वालों से कहूंगा; पहिले जंगली दाने के पौधे बटोरकर जलाने के लिये उन के गट्ठे बान्ध लो, और गेहूं को मेरे खत्ते में इकट्ठा करो” (मत्ती १३:३०)। कई बार जब प्रभु के लोग इकट्ठे होते हैं, विश्वासी और अविश्वासी अगल बगल बैठे होते हैं। हम स्वयं भी कई बार विश्वास और अविश्वास के मिश्रण बने रहते हैं।

पूरे संसार में इससे भी व्यापक स्तर पर और भी अधिक दिग्भ्रमित अवस्था है। बहुत से अविश्वासी हिंसा, अकाल और हताशा की ओर उंगली उठायेंगे और प्रश्न करेंगे कि कोई परमेश्वर है भी? फिर हम यह कह सकते हैं कि परमेश्वर की योजना और उनके उद्देश्य कटनी के समय तक छुपे रहेंगे। वह समय आयेगा जब जकरियाह के अनुसार (१४:१६), अन्य जाति भी सर्व शक्तिमान राजा की आराधना करने, यरुशलेम जायेंगे ताकि झोपड़ी के पर्व का उत्सव मना सकें। “कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी” (रोमी ८:२१)।

सिद्धता का पर्व

झोपड़ी का पर्व सातवां पर्व है और यह सातवें महीने में पड़ता है। इसे सात दिनों तक मनाया भी जाता था (सभा के अन्त में आठवां दिन भी जोड़ दिया जाता था)। इस प्रकार यह सात की संख्या से भरा पड़ा है, जो आत्मिक पूर्णता और सिद्धता का अंक है। कटनी की पूर्णता में पेन्तिकोस तो आरम्भ था। इसलिये इसे यीशु में हमारे आत्मिक अनुभव के सिद्धता के प्रतिनिधि के रूप में देखना चाहिए।

हरेक पर्व विश्राम या सबथ का समय होता है। इस लिये सातवां पर्व सबथों का सबथ या पर्वों का पर्व है। जिस प्रकार पवित्र स्थान की तुलना में अति पवित्र स्थान अत्यन्त पवित्र था, उसी प्रकार झोपड़ी का पर्व अन्य पर्वों की तुलना में विशेष पर्व है। इसकी तुलना में अन्य पर्व साधारण समय जैसे ही हैं।

तुरही फूंक कर हरेक पर्व की घोषणा की जाती है। लेकिन झोपड़ी का पर्व इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसकी घोषणा करने के लिये तुरही फूंकना एक अलग पर्व है।

राजाओं के राजा अन्य राजाओं के बीच में भी राजा ही रहते हैं। प्रभुओं के प्रभु अन्य प्रभुओं के बीच में भी प्रभु ही रहते हैं। जुबलियों के जुबली, जैसा कि हमने देखा है, जुबलियों के बीच भी विशेष बना रहा। इसी प्रकार झोपड़ी के पर्व की महिमा अन्य पर्वों की महिमा को फीका कर देगी।

इससे हम यह देख सकते हैं कि हम परमेश्वर के उद्देश्यों के उत्कर्ष की ओर आगे बढ़ रहे हैं। मण्डली को इसकी बुनियादी पवित्रता में पुनर्स्थापित करने के लिये भौतिकवाद, आधुनिकता, साम्यवाद और अन्य धर्मों से प्रतिस्पर्धा के विरुद्ध जो संघर्ष है उसमें परमेश्वर परास्त होने की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। वह बिते समय की तुलना में किसी अत्यंत महान चीज की ओर आगे बढ़ रहे हैं।

यहां हमें झोपड़ी के पर्व की तुलना फसह से करना आवश्यक है। फसह के समय यहूदी लोग मिश्र के अपने समय को याद करते थे। वे सब मिश्र में गुलाम थे और मूसा के द्वारा परमेश्वर ने उन्हें मुक्त किया और स्वतन्त्र देश बनाया। वे गुलामी और स्वतन्त्रता के अन्तर को महसूस करते थे। झोपड़ी के पर्व में वे मरु भूमि में व्यतीत किये गये समय को याद करते थे। प्रतिज्ञा के देश में इस्रएलियो के अपने घर थे, अपनी जमीन थी और नियमित रूप से अन्न उपजाते थे। लेकिन मरुभूमि में परिस्थिति ऐसी नहीं थी। वे सब एक स्थान से दूसरे स्थान पर खानाबदोशों की तरह घूमते रहते थे और स्वर्ग से भेजे गये मन्ना के लिये परमेश्वर पर निर्भर रहते थे। कौन सी अवस्था बेहतर थी? क्या मरुभूमि में रहना और स्वर्ग से भेजा गया मन्ना खाना अच्छा था? या इस्राएल की उपजाऊ भूमि में भरपूर फसल के साथ रहना अच्छा था, जिसे परमेश्वर ने दिया था? हम एक ही उत्तर दे सकते हैं। प्रतिज्ञा के देश में रहना ही अच्छा है।

मरुभूमि के आश्चर्य कर्म, सिनै पर्वत के गर्जन, चट्टान फोड़कर पानी का निकलना, मन्ना और बटेर, ये सब परमेश्वर द्वारा दी गयी अद्भुत चीजें थी। इन्हें देखना और अनुभव करना विशेष सौभाग्य की बात थी। लेकिन ये सब चीजें खत्म हो रहे समय के लिये क्षणिक थीं। मिश्र की गुलामी के कड़ुवे समय की तुलना में सब कुछ बेहतर था, लेकिन परमेश्वर की योजना उनके लोगों के लिये मरुभूमि नहीं था। यह एक ऐसा स्थान था जिससे होकर उन्हें गुजरना था।

जब इस्राएली लोग प्रतिज्ञा के देश पहुंच गये तो स्वर्ग से मन्ना गिरना बन्द हो गया। मरुभूमि में आश्चर्य कर्म का समय समाप्त हो गया। इसके समकक्ष आत्मिक अनुभव क्या है? नये नियम में ऐसी कौन सी बात है जिसके विषय में हमें कहा गया है कि वह समाप्त हो जाएगा?

“प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। परन्तु जब सर्व सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सयाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी। अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं” (१ कोरि १३:८-१२)।

पौलुस स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जब सिद्धता आयेगा तब आत्मा के वरदान (अन्य भाषा, ज्ञान का वरदान और भविष्यद्वाणी) समाप्त हो जायेंगे। पवित्र आत्मा के वरदान क्षणिक प्रेरणा हैं जो हमें थोड़ी देर के लिये आत्मिक अभाव की अवस्था से ऊपर उठा कर परमेश्वर के राज्य में पहुंचा देते हैं। यह विद्युत लाईन में आने वाला चढ़ाव जैसा ही है जब भोल्टेज थोड़ी देर के लिये बहुत ऊंचा हो जाता है और फिर जल्द ही नीचे आ जाता है। यीशु के जीवन में ऐसा उतार चढ़ाव कभी नहीं हुआ। यह आवश्यक नहीं था। वह परमेश्वर में जीते थे। पवित्र आत्मा के इन बहुमूल्य वरदानों से भी बेहतर चीजें परमेश्वर के पास हैं। ये चीजें उनके लिये अनुग्रह से भरे उपाय हैं जो अपरिपक्व हैं और जिनके अन्दर अभी तक मसीह का मन नहीं है।

जब पौलुस ने कहा, “अभी हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे” उसके मन में निश्चय ही मूसा के विषय में परमेश्वर द्वारा कहे गये शब्द आये होंगे। “तब यहोवा ने कहा, मेरी बातें सुनो: यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उस से बातें करूंगा। परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानों में विश्वास योग्य है। उस से मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आम्हने साम्हने और प्रत्यक्ष हो कर बातें करता हूं;” (गिनती १२:६-८)।

मूसा पवित्र आत्मा के प्रेरणादायक वरदानों से परमेश्वर के अनुभव के गहरे ज्ञान की ओर आगे बढ़ चुका था। जब पौलुस ने कुरिन्थियों को अपना प्रथम पत्र लिखा, ऐसा लगता है कि वह जानता था कि परमेश्वर के साथ उसका सम्बन्ध मूसा के समान नहीं था। यह चिट्ठी निश्चय ही उसकी आरम्भिक चिट्ठियों में से एक थी और बीस वर्षों के बाद उसकी चिट्ठी में अन्तर होता।

कारागार से उसने जो पत्र फिलिप्पियों को लिखा था वह ऐसा ही था, “यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था। हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं कि मैं पकड़ चुका हूं: परन्तु केवल यह एक काम करता हूं, कि जो बातें पीछे रह गई हैं उन को भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ। निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूं, ताकि वह इनाम पाऊं, जिस के लिये परमेश्वर ने मुझे मसीह यीशु में ऊपर बुलाया है” (फिलिप्पियो ३:१२-१४)।

कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि यदि हम आत्मिक अनुभव में पौलुस से आगे जाना चाहें तो यह ईश्वर निन्दा होगी। लेकिन हमें यह प्रश्न करना चाहिए कि क्या बाइबल में उल्लेखित सभी व्यक्ति सिद्ध हैं? क्या उन्हें सब कुछ पता था? क्या उन्होंने ऐसे आत्मिक स्तर प्राप्त किये थे जिसे कोई पार नहीं कर सकता? परमेश्वर वृद्धि और प्रगति के परमेश्वर हैं। पौलुस स्वयं दमस्कस के मार्ग पर नाटकीय रूप से परिवर्तित हुआ था। वह अनुभव परमेश्वर के साथ चलने का आरम्भ था। उस दिन के बाद से वह परमेश्वर के बुद्धि, समझ और ज्ञान में बढ़ने लगा था। उससे भी अधिक वह प्रेम, आनन्द और शांति में आगे बढ़ा। प्रेरित के पुस्तक में और फिर उसके पत्रों में हम इस वृद्धि को स्पष्ट चिन्हित कर सकते हैं। परमेश्वर के महान् और अद्भुत व्यक्ति के रूप में उसका उत्थान हुआ, जिसने अपने पुश्ते की सेवा की और उसके बाद अपने पत्रों द्वारा अन्य लाखों लोगों की भी। आज भी परमेश्वर वृद्धि, प्रगति और प्रकाश के परमेश्वर हैं। ऐसा विश्वास करना तर्कसंगत है कि आने वाले दिनों में ऐसे सन्त होंगे जो पौलुस से भी आगे जायेंगे। यह ईश्वर निन्दा नहीं है पर सामान्य ज्ञान की बात है।

मेरा मानना है कि बाइबल में सिर्फ यीशु ही ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने हमेशा के लिये परमेश्वर के साथ लगातार ऐसी संगति की जिससे आगे कोई भी कभी भी नहीं जा सकता।

पेन्तिकोस दान और चिह्नों की अवस्था है। यह गर्मी मौसम के आरम्भ में आता है। दान और फल में अन्तर होता है। दान तुरत दिये जा सकते हैं जबकि फल के बड़े होने और पकने में लम्बा समय लगता है। गर्मी के मौसम की गर्मी सहने के बाद ही यह सिद्धता की स्थिति में आता है। चिह्नों का अपना कोई महत्त्व नहीं होता। उनका महत्त्व इस बात में है कि वे किस तरफ संकेत करते हैं। ये इस बात के संकेत हैं कि पूर्ण फल आने वाला है। हमें गर्म मौसम की गर्मी सहना पड़ेगा जो फलों के पकने के लिये आवश्यक है।

झोपड़ियों का पर्व

झोपड़ी के पर्व में दो विषय कटनी और राष्ट्रीय स्मरण एक साथ मनाये जाते हैं। इन्हें सात दिनों तक मनाया जाता था, “तू जब अपने खलिहान और दाखमधु के कुण्ड में से सब कुछ इकट्ठा कर चुके, तब झोंपडिय़ों का पर्व्व सात दिन मानते रहना” (व्यवस्था १६:१३)। कटनी का समय समाप्त हो गया था और उत्सव मनाने का समय था। उत्सव मनाने का तरीका असामान्य था (आज भी यहूदी इसी संशोधित तरीका को अपनाते हैं)। परमेश्वर ने लोगो से कहा था कि वे खजूर की डालियां और पोपलर की डालियां लेकर उनसे झोपड़ियां बनाकर उनमें सात दिन रहें। यह उन्हें स्वयं को याद दिलाने के लिये करना था कि वे मरुभूमि में चालीस वर्षों तक इसी प्रकार तंबू में घुमंतू रहे थे।

झोपड़ी का अर्थ अस्थायी आवास होता है, जो तम्बू से भिन्न है। धर्मशास्त्र में इसे मानव शरीर को दर्शाने के लिये उपयोग किया गया है जो इस संसार में हमारे छोटे से समय को दिखाता है। पौलुस ने हमारे प्राकृतिक शरीर को झोपड़ी कहा है। यूहन्ना कहता है, “और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर हमारे बीच में डेरा किया।” यीशु मानव शरीर में अस्थायी वास करने आये थे। इस बात को दिखाने के लिये अकाट्य प्रमाण हैं कि उनका जन्म झोपड़ियों के पर्व के समय हुआ था। ये सारी बातें यही दिखाती हैं कि झोपड़ियों के पर्व की सारी महिमा इसी जीवन में परिपूर्ण होंगे। परमेश्वर अपन लोगों के अन्दर वास करेंगे जब वे सब अपने मरणशील शरीर में ही रहेंगे। यह पर्व भविष्य में स्वर्ग की महिमा की बात नहीं करता, वरन वे इसी पृथ्वी पर पूरे होंगे। हमारे मरणशील शरीर छोड़ने के बाद हमारी जो अवस्था होगी वह तो अद्भुत और कल्पना से परे है ही, लेकिन झोपड़यो का पर्व उस महिमा की बात करता है जो उन लोगों के लिये है जो मरणशील शरीर में रहते हुए ही पुत्रत्व की पूर्णता में प्रवेश करते हैं।

यीशु ने अपनी मृत्यु से कुछ समय पूर्व चेलों से कहा था कि वे अपने पिता के साथ आयेंगे और उनमें वास करेंगे। परमेश्वर में हमारे अनुभव का उत्कर्ष यह है कि वह हममें वास करें और हम उनमें। यह पूर्ण एकता है, जैसे दो प्रकार के तरल पदार्थ एक दूसरे में मिलकर अपनी पहचान खो देते हैं। अब उनमें अन्तर किया ही नहीं जा सकता। जब आप चाय में दूध मिलाते हैं तो दूध चाय के अन्दर है या चाय दूध के अन्दर, कहना कठिन है, क्योंकि दोनों एक दूसरे में खो गये हैं। यीशु और हमारे बीच ऐसा ही होने वाला है। जब लोग हमें देखेंगे, तब वे यीशु को देखेंगे।

जीवित जल

झोपड़ियों के पर्व का नये नियम में सिर्फ एक बार यूहन्ना रचित सुसमाचार के सातवें अध्याय में उल्लेख हुआ है। इस अध्याय के आरम्भ में यीशु ने इस पर्व को मनाने के लिये अपने भाइयों के दबाव के बावजूद यरुशलेम जाने से यह कहकर कि उनका समय अभी नहीं आया है, इंकार कर दिया था। आधा पर्व बीत जाने पर वह यरुशलेम में दिखे और अन्तिम परन्तु सबसे बड़े दिन पर उन्होंने यह आश्चर्यजनक घोषणा की, “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए। जो मुझ पर विश्वास करेगा, जैसा पवित्र शास्त्र में आया है उसके हृदय में से जीवन के जल की नदियां बह निकलेंगी।”

यीशु जीवन के स्रोत के विषय में बात करते हैं जो हमारे अन्दर स्थित है। यह हमारे अन्दर उनके वास करने का सीधा प्रतिफल है। अब लोगों को दूसरे व्यक्तियों के पास उनसे आशीष पाने के लिये ले जाना आवश्यक नहीं है। कितनी बार हमने लोगों को सभा सम्मेलन, विभिन्न स्थान, किताबें, टेप दिखाये हैं जिनसे वे आत्मिक जीवन प्राप्त कर सकें। बड़े दुख की बात है कि हमारे अन्दर के जीवन का स्रोत उनकी आवश्यकता पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं था।

परमेश्वर के साथ हमारी यात्रा के आरम्भ में हम सब चाँद जैसे होते हैं। हम ऐसी महिमा प्रतिबिम्बित करते हैं जो हमारा अपनी नहीं है। हम सूर्य से प्राप्त प्रकाश को बांटते हैं क्योंकि हमारा अपना प्रकाश नहीं होता। चाँद से प्राप्त उजाला अन्धेरे से तो बेहतर है ही, लेकिन यह सूर्य के उज्ज्वल प्रकाश से तुलना करने लायक ही नहीं है। सूर्य का अपना स्वयं का प्रकाश है जो गर्मी और चँगाई बांटता है।

यीशु ने जीवित जल के नदियों के बह निकलने की बात की है। बहना एक प्रक्रिया है जो सदा चलता रहता है। नदियां रात दिन बहती रहती हैं और कभी भी रुकती नहीं। बहना उनका अंदरूनी स्वभाव है। मेरा मानना है कि यीशु के जीवन से बिना रुके लगातार जीवित जल बह रहा था और उनके चारों ओर जिनमें ग्रहण करने की क्षमता थी, उन्हें मिल रहा था। झोपड़ियों के पर्व तक उनके पीछे आने वाले लोगों के लिये यह उनकी प्रतिज्ञा है।

जब जीवन के पानी का यह नदी परमेश्वर के पुत्रों से पूरी शक्ति में बह निकलता है, प्रकाशित वाक्य के अन्तिम अध्याय में उल्लेखित यूहन्ना का जीवन के नदी का दर्शन पूरा हो जायेगा। राष्ट्रों की चँगाई पाने का समय आ चुका होगा।

सारांश

परमेश्वर ने अपने दास मूसा के द्वारा इस्राएल को जो सात पर्व दिये थे, जिनसे होकर हमें अलग अलग अनुभव पाने के लिये उनसे गुजरना है, उन्हें हमने एक एक करके देखा है। यह बात कुछ हद तक सत्य है, पूरा सत्य नहीं। भवन जीतना बड़ा हो, नींव उतनी ही मजबूत होनी चाहिए। जैसे जैसे हम परमेश्वर के साथ अपनी यात्रा आरम्भ करते हैं, हमारा नींव स्थिर नहीं रहेगा, लेकिन मजबूत होता जाएगा। हम लोग कभी भी फसह से आगे नहीं निकल पाएंगे। लेकिन हम समझ की गहराई में बढ़ते जायेंगे और इस बात पर आश्चर्य करेंगे कि हम खरीदे गये परमेश्वर के लोग हैं। पेन्तिकोस के वरदान नष्ट न होकर परमेश्वर के लगातार के अनुभव में और अधिक सुदृढ़ होते जायेंगे।

हमें इस ज्ञान के साथ आगे बढ़ते रहना आवश्यक है कि परमेश्वर की बड़ी महिमा और प्रकटीकरण हमारे आगे हैं। हमें बिते दिनों की महिमा को पुनः निर्माण करने की आवश्यकता नहीं है। हमें वर्तमान की अच्छी चीजों से भी चिपके नहीं रहना चाहिए। हमें अच्छी चीजों को छोड़ना आवश्यक है ताकि हम बेहतर और सर्वश्रेष्ठ चीजों को पा सकें। पौलुस के समान हमें भी आगे बढ़ते रहना आवश्यक है, ताकि यीशु मसीह में परमेश्वर के उच्च बुलाहट का पुरस्कार पा सकें।