ईंट और पत्थर

परिचय

बाबुल का गुम्मट ईंटों से निर्माण किया गया था।

राजा सुलेमान द्वारा निर्माण किया गया परमेश्वर का मन्दिर पत्थरों से बना था।

ईंट और पत्थर में क्या अन्तर है ?

ईंट मनुष्य के द्वारा बनाये जाते हैं और अधिक संख्या में उत्पादन किये जाते हैं। सब समान नाप, आकार के होते हैं और अधिकांश ईंटों का रङ्ग भी समान होता है। प्रत्येक ईंट एक दूसरे के समान होते हैं।

पत्थर परमेश्वर के द्वारा बनाये गये हैं। सबका आकार और नाप अलग अलग है। कुछ बडे आकार के होते हैं और कुछ छोटे आकार के और सब का रङ्ग अलग अलग होता है। कोई भी दो पत्थर एक समान नहीं होते।

परमेश्वर द्वारा बनाये गये अथवा मनुष्य द्वारा

परमेश्वर द्वारा बनाया गया हरेक वस्तु विशिष्ट होता है।

इस संसार में पेडों की बहुत सी प्रजातियाँ हैं, फिर भी एक ही प्रजाति के पेड एक दूसरे से अलग होते हैं। हरेक का आकार अलग होता है। पशु पक्षी की भी अनेक प्रजातियाँ हैं, लेकिन किसी भी एक प्रजाति के पशु पक्षी एक समान नहीं होते। प्रत्येक कुत्ता, प्रत्येक घोडा और प्रत्येक गाय अपने शारीरिक बनावट में एक दूसरे से अलग होते हैं। यहाँतक कि बर्फका प्रत्येक टुकडा (यदि माइक्रिस्कोप में देखा जाय तो) एक दूसरे से अलग होते हैं, ऐसा मुझे बताया गया है। इस पृथ्वी पर करीब आठ अर्ब व्यक्ति हैं, परन्तु बडे आश्चर्य की बात है, हम में से कोई भी एक दूसरे के समान नहीं है!

परमेश्वर असिमीत कल्पना, भिन्नता और सृजनशीलता के परमेश्वर हैं।

मनुष्य, अभी २१वीं शताब्दी में, हरेक वस्तु का बडे पैमाने पर उत्पादन करता है। इस प्रकार उत्पादित वस्तुयें एक दूसरे के समान होती हैं। एक ही कम्पनी से निर्मित कारें विभीन्न रङ्गों के अलावा सभी तरह से समान होती हैं, सिर्फ नम्बर प्लेट अलग होंगे। मेरा कम्प्यूटर या स्मार्ट फोन आपके कम्प्यूटर या स्मार्ट फोन के समान हो सकता है। करीब करीब सभी दूकानों में एक जैसी बहुत सी चीजें रखी मिलेंगी।

बाबुल का गुम्मट और परमेश्वर का मन्दिर

बाबुल(בָּבֶל) शब्द हिब्रू भाषा से लिया गया है और इसका अर्थ है उलझन। बाईबल में बाद में हम इसी शब्द का यूनानी स्वरूप बेबिलोन (Βαβυλων) पाते हैं।

बाबुल के गुम्मट का आत्मिक अर्थ क्या है? यह मनुष्य द्वारा अपने बल बूते पर परमेश्वर तक पहुँचने का प्रयास था। बाईबल में उत्पत्ति के ११: १-९ में आप इस घटना का पूर्ण विवरण पढ सकते हैं। यह सब कुछ परमेश्वर के निर्देशन और पवित्र आत्मा की अगुवाई के बिना मनुष्य की अपनी योजना और विचार पर आधारित था।

जब नूह ने जहाज का निर्माण किया, तब परमेश्वर ने उसे ठीक ठीक नाप और निर्माण सामग्री के उपयोग के विषय में पूर्ण निर्देशन दिया था। जब मूसा ने तम्बू का निर्माण किया, ऐसा ही हुआ, परमेश्वर ने उसे सभी कार्यों का पूर्ण निर्देशन दिया था। बाबुल का गुम्मट पूर्णतया मनुष्य के योजना पर आधारित था। परमेश्वर ने कोई निर्देशन नहीं दिया था।

अधिकांश बाईबल के विद्वान् बाबुल/ बेबिलोन के रूप में मनुष्य निर्मित झूठे मण्डली की तश्वीर देखते हैं। कुछ विद्वान् बाबुल/ बेबिलोन के रूप में रोमन कैथोलिक मण्डली को समझते हैं। दूसरे लोग बेबिलोन को सभी झूठे धर्मों का सामुहिक रूप मानते हैं। (मैंने बेबिलोन के विषय में अलग लेख लिखा है)।

पुराने नियम के समय का मन्दिर और बाबुल के गुम्मट में अन्तर था। मूसा द्वारा निर्मित तम्बू के समान ही यह भी परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार निर्माण किया गया था। यहूदियों के लिये यह मन्दिर परमेश्वर का वास स्थान था।

सर्वप्रथम राजा सुलेमान ने ईसा पूर्व ९०० में इस मन्दिर का निर्माण किया था। नबुकदनस्सर ने ५८७ ईसा पूर्व में इसे नष्ट कर दिया था। ७० वर्षों बाद इसका पुनर्निमाण हुआ था और यीशु के जन्म से कुछ समय पहले राजा हेरोद ने इस मन्दिर का पुनरुद्धार और विस्तार किया था। रोमियों ने अन्त में यीशु की भविष्यवाणी के अनुरुप सन् ७० ई. में इस मन्दिर को ध्वस्त कर दिया।

परमेश्वर ने क्यों अपने मन्दिर को नष्ट हो जाने दिया? पौलुस और स्तिफनुस, दोनों ने इस प्रश्न का उत्तर दिया है। अपनी मृत्यु के कुछ ही समय पहले स्तिफनुस ने कहा, “परन्तु परमप्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता” (प्रेरित ७:४८)। पौलुस ने लिखा है, “क्या तुम नहीं जानते, कि तुम परमेश्वर का मन्दिर हो, और परमेश्वर का आत्मा तुम में वास करता है?” (१ को. ३:१६)।

परमेश्वर ने कभी भी इस पृथ्वी पर मन्दिर को अपना स्थायी वास-स्थान बनाने की ईच्छा नहीं की। उनकी योजना और उत्तम और उच्च थी। पवित्र आत्मा से भरे हुए व्यक्ति ही परमेश्वर का वास्तविक मन्दिर हैं – ऐसे व्यक्ति जो जीवित पत्थर हैं। इसका अर्थ है, हम और आप, यदि उनका आत्मा हमारे अन्दर वास करते हैं।

पुराना नियम

इब्रानियों के ११ वें अध्याय में पुराने नियम के वीर पुरुषों का विवरण उपलब्ध है।

परमेश्वर की सेवा करने के लिये क्या करना चाहिये, इसकी जानकारी प्राप्त करने के लिये इनमें से किसी व्यक्ति ने भी बाईबल का अध्ययन नहीं किया था, क्योंकि उस समय तक बाईबल लिखी ही नहीं गयी थी। उनमें से किसी ने भी एक दूसरे की नकल नहीं की। हरेक ने अलग अलग तरह के काम किये। उनमें से हरेक व्यक्ति अलग अलग आकार और नाप के पत्थर थे।

नूह ने जहाज का निर्माण किया। उसने ऐसा क्यों किया? क्योंकि परमेश्वर ने उससे बात की और ऐसा करने को कहा। नूह ने सुना और आज्ञा का पालन किया। उसने विश्वास और आज्ञाकारिता में परमेश्वर के वचन का पालन किया।

ईब्राहिम ने बिलकुल अलग काम किया। उसने प्राचीन शहर ऊर में अपने पूर्वजों और आरामदायक घर को छोड कर अपना पूरा जीवन तम्बुओं में व्यतीत किया।

युसुफ मिश्र देश का प्रधान मन्त्री बना और अपने परीवार के सदस्यों के साथ साथ मिश्रियों की भी अकाल के समय रक्षा की।

परमेश्वर के मन्दिर में मूसा एक शक्तिशाली पत्थर था। ४० वर्षों तक उजाड स्थान में जीवन व्यतीत करने के बाद वह मिश्र देश में लौटा और परमेश्वर के लोगों को मिश्र से निकालकर प्रतिज्ञा के देश तक पहुँचने में अगुवाई की। पवित्र आत्मा के प्रेरणा से मूसा ने बाईबल के प्रथम पाँच पुस्तकों की रचना भी की।

दाउद एक सामर्थी राजा और शक्तिशाली योद्धा था जिसने अपने देश और अपनी प्रजा को महान् बनाया।

सुलेमान ने परमेश्वर के लिये मन्दिर का निर्माण किया।

पुराने नियम के समय के सन्तों में एक दूसरे के बीच हम बहुत विविधता पाते हैं। उनमें से किसी ने भी अपने पूर्ववर्ती की नक्कल नहीं की। उन सबों ने परमेश्वर के लिये अलग अलग काम किये। लेकिन उनमें कुछ समानतायें भी थीं। सबों ने परमेश्वर की आवाज सुनी, वे सब विश्वास के द्वारा आज्ञाकारी हुए और पवित्र आत्मा ने उन सबों की अगुवाई की। वे सब मृत ईंटें नहीं, परन्तु वे सब जीवित पत्थर थे।

नया नियम

हमलोग ऐसी आशा कर सकते हैं कि नये नियम के समय के सभी सन्त एक दूसरे के समान होंगे, लेकिन यह हमारी भूल है।

पतरस, पौलुस और यूहन्ना, नये नियम के पत्रों के मुख्य लेखक, इन सबों के सन्देश अलग अलग थे। इनमें से प्रत्येक ने पवित्र आत्मा के द्वारा प्राप्त विशेष प्रकाश को व्यक्त किया।

पतरस और यूहन्ना यीशु के आरम्भिक १२ चेलों में से थे। तीन वर्षों तक उन्होंने उनकी शिक्षा को सुना और उन्हें आश्चर्यकर्म करते देखा। आप ऐसा सोच सकते हैं कि उनके पत्र यीशु के द्वारा कहे गये शब्दों और उनके आश्चर्यकर्मों की कहानियों से भरे होंगे। परन्तु आश्चर्य है कि उनके किसी भी पत्र में यीशु की कही गई कोई भी बात या उनके जीवन के किसी घटना का उल्लेख नहीं है। इसके विपरीत इन दोनों ने उन्ही बातों को लिखा जो परमेश्वर से इन्हें प्रकाश के रुपमें मिला था।

दमिश्क के सडक पर यीशु के साथ पौलुस की नाटकीय मुलाकात हुई थी। उस घटना के बाद उसने क्या किया? हम ऐसी आशा कर सकते थे कि वह पतरस या यूहन्ना या यीशु के किसी और चेला के पास जाता और अपने नये मुक्तिदाता के विषय में जो कुछ सिखना सम्भव होता, सिखता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। इसके विपरीत वह परमेश्वर के साथ अकेले समय व्यतीत करने के लिये अरबिया चला गया और कुछ समय के बाद दमिश्क को लौट आया। वह पतरस के साथ फिर तीन वर्ष रहने के लिये यरुशलेम नहीं गया। वह पतरस के साथ १५ दिनों तक रहा। पौलुस के अपने ही शब्दों में आप इस घटना के विषय में गलातियों १:१५ – १९ में पढ सकते हैं।

इसी पवित्र आत्मा ने पतरस और पौलुस और यूहन्ना के साथ साथ नये नियम के अन्य लेखकों को प्रेरणा दी। लेकिन वे सब अलग अलग पात्र थे और हरेक ने यीशु का चित्रण अपने ढङ्ग से किया।

ईन्द्रधनुष में सात रङ्ग होते हैं: लाल, नारङ्गी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैगनी। एक साथ ये सभी रङ्ग मिलकर शुद्ध सफेद रङ्ग बनाते हैं। जब परमेश्वर के सत्यता का शुद्ध, तेज सफेद रङ्ग पवित्र आत्मा से भरपूर मानव रुपी पात्र से गुजरता है तब यह विभीन्न रङ्गों में प्रस्फुटित हो जाता है।

यीशु

यीशु पूर्ण रूप से अद्वितीय व्यक्ति थे। उन्होंने ऐसी बातें कहीं और ऐसे काम किये जो न उनसे पहले न उनके बाद किसी ने किये।

उन्होंने मूसा, जो पुराने नियम का सबसे महान् भविष्यवक्ता था, का नकल करने का प्रयत्न नहीं किया। उनके पहले या उनके बाद के जितने भी धार्मिक अगुवा हुए, यीशु इन सब से अलग थे।

यहाँ तक कि उनका अपना जीवन भी विविधताओं से भरा था। उनका जन्म कन्या (अविवाहित) स्त्री के कोख से हुआ, उन्होंने पानी को दाखमद्य में परिणत किया, बिमारों को चङ्गा किया, मरे हुओंको जीवित किया, पानी पर चले, थोडे से रोटी और मछली से ५००० लोगों को खिलाया, उन्होंने आँधी को शान्त किया, कलवरी के क्रूस पर उनकी मृत्यु हुई, वह मृतकों में से जी उठे! वह परमेश्वर के दाहिने हाथ पर उठा लिये गये।

उनसे मिलने वालों के लिये यीशु के सन्देश भी अलग अलग थे, पूरी तरह श्रोताओं की आवश्यकता के अनुरुप। उन्होंने निकोदेमस से कहा कि नया जन्म पाना आवश्यक है। सामरी स्त्री से उन्होंने कहा कि वह उसे जीवन का जल देंगे। उन्होंने यहूदियों से कहा, “जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरा मैं हूं” (यूहन्ना ६:५१)। उन्होंने धनी युवक से कहा, “जा, अपना माल बेचकर कंगालों को दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा; और आकर मेरे पीछे हो ले” (मत्ती १९: २१)।

यीशु क्यों और कैसे और लोगों से अलग थे? और उनके अपने ही जीवन और शिक्षा में क्यों इतनी विविधता थी? एक साधारण सा उत्तर है। यीशु पूर्णतया और सदैव पवित्र आत्मा के अगुवाई में चलते थे और पवित्र आत्मा परमेश्वर के विविधता और सृजनशीलता के असीमित श्रोत हैं। जीवित पत्थरों में यीशु महानतम् थे। जैसा कि भजन संग्रह में लिखा है, “राजमिस्त्रियों ने जिस पत्थर को निकम्मा ठहराया था वही कोने का सिरा हो गया है”। (भजन ११८: २२)

मसीह का शरीर

विश्वासियों को पौलुस मसीह का शरीर कहता है। उसने कुरिन्थियों को लिखा, “तुम सब मिल कर मसीह की देह हो, और अलग अलग उसके अंग हो” (१ कुरि १२:२७)। शरीर के विभीन्न अङ्गों के बीच विद्यमान बहुत बडी विविधता पर पौलुस जोर देता है।

देह में आँखें, कान, मुँह, हाथ और पैर और बहुत से अन्दरुनी अङ्ग होते हैं। सामान्य जीवन व्यतीत करने के लिये ये सभी अङ्ग आवश्यक हैं। कोई भी अङ्ग किसी दूसरे अङ्ग की जगह नहीं ले सकता। हम ऐसे व्यक्तियों को जानते हैं जो अन्धे हैं, बहरे हैं या चल नहीं सकते। सम्भवत: हम ऐसे लोगों को भी जानते हों जिनके हाथ काम नहीं करते। ऐसे लोगों की कार्य क्षमता बहुत ही सिमीत होती है और उनका जीवन बहुत कष्टकर होता है।

क्या हमने परम्परागत मण्डलियों में आँखों, कान, हाथ और पैर, सभी अङ्गों को मिलकर काम करते हुए देखा है? क्या परमेश्वर के मन्दि र के जीवित पत्थरों को परस्पर विविधता के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से एकता में एक दूसरे से जुडे हुए रुप में हमने देखा है? या हमने सिर्फ बाबुल के गुम्मट की मृत ईंटें ही देखी हैं?

बडे दुख के साथ हमें यह स्वीकार करना पडता है कि विगत के वर्षों में हमने बाबुल के मृत ईंटें ही देखी हैं, जो सभी एक समान होते हैं। लेकिन विश्वव्यापी रूप में परमेश्वर ने नया काम आरम्भ किया है और हम मसीह की देह के जीवित पत्थर देख पा रहे हैं। मेरा विश्वास है कि ऐसा समय आयेगा जब आँखें, कान, मुँह, हाथ और पैर, सभी अङ्ग पूर्ण रूप से काम करेंगे। मेरा विश्वास है कि उस समय सम्पूर्ण विश्व आश्चर्य चकित रह जायेगा जब मसीह का देह अपनी पूर्णता में सम्पूर्ण विविधताओं के साथ प्रकट होगा। पौलुस ने रोमियों को लिखा, “क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है”। (पूर्ण पाठ के लिये रोमियों ८: १९-२३ देखें)। ऐसा समय आने वाला है जब सृष्टी की आशा पूरी होगी।

पौलुस ने इफिसियों को पाँच सेवकाईयों के विषय में लिखा, जो स्वर्ग पर उठा लिये गये मसीह द्वारा अपनी देह को दिये गये वरदान हैं। उनहीं के शब्दों में, “और उसने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए” (इफिसियो ४:११, १२)।

हमने हमारी मण्डलियों में प्रेरितों, भविष्यवक्ताओं, प्रचारकों, चरवाहों और शिक्षकों को सेवकाई करते देखा है? या हम सिर्फ बाबुल के तरह की मण्डलियों में पास्टरों और धर्म गुरुओं को जानते हैं? हमने मृत ईंटें देखी हैं या जीवित पत्थर?

बडे आनन्द पूर्वक मैं ऐसा विश्वास करता हूँ कि बिते समय की तुलना में आने वाला समय अलग होगा। परमेश्वर नया काम कर रहे हैं। मसीह की देह के लिये आवश्यक इन पाँच सेवकाइयों को परमेश्वर पनर्स्थापित कर रहे हैं।

पाँच सेवकाई देखें ।

एकरुपता

हम ईंट बनने से इनकार करके जीवित पत्थर कैसे बन सकते हैं?

पौलुस ने लिखा, “इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो” (रोमियो १२: २)।

संसार अपने सदृश बनाने को मजबूर करता है।

बचपन से ही हमारे पारिवारिक सोच, हमारे विद्यालय, हमारा समाज और हमारी धार्मिक पृष्टभूमि जिसमें हमारा जन्म हुआ, सब हमारे मन को अपने साँचे में ढालते हैं। हमारे मन पर समाचार पत्र, टेलिभिजन और वर्तमान् समय में मिडिया बहुत अधिक प्रभावित करते हैं, विशेषकर हमारे युवाओं को।

ये सभी चीजें मिलकर हमें संसार के सदृश बनने के लिये वाध्य करती हैं। ये सब हमें एक ही नाप और आकार की ईंटें बनाती हैं।

कोई भी संस्था, धार्मिक, शैक्षिक, राजनीतिक या आर्थिक, सभी अपने सदस्यों में समानता की अपेक्षा करता है।

कभी कभी यह एकरुपता मुख्यतया बाहरी होती है। बहुत से संस्था ये चाहते हैं कि उनके सदस्य समान पोशाक लगायें। विभीन्न धर्मों के पूजारी समान रङ्ग और आकार प्रकार के वस्त्र धारण करते हैं। बहुसंख्यक मुस्लीम महिलायें काला वस्त्र लगाती हैं, और आँखों को छोडकर पूरे शरीर को ढकती हैं। वे सब एक दूसरे के सदृश दिखती हैं। सेना में अनिवार्य है कि सभी सिपाही यूनिफर्म लगायें। विकशित देशों में फैशन का शक्तिशाली प्रभाव है, विशेषकर युवाओं पर।

कुछ संस्थायें बाहरी एकरूपता से अधिक चाहते हैं। कुछ गम्भीर मामलों में ऐसी संस्थायें अपने सदस्यों के मन, आत्मा और शरीर पर पूर्ण नियन्त्रण रखना चाहते हैं।

विश्व के बहुत से देशों में एकरूपता स्वीकार नहीं करने वाले लोग दण्ड, सतावट या मृत्यु दण्ड पा सकते हैं।

परिवर्तन

किस प्रकार हम इस संसार के सदृश होने से अपने को बचा सकते हैं? पौलुस के शब्द क्या कहते हैं? “इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए” (रोमी १२:२)

बप्तिस्मा देने वाला यूहन्ना और यीशु, दोनों के प्रथम शब्द जो उन्होंने आम लोगों के बीच बोले थे, पौलुस के शब्दों के समान ही हैं, “मन फिराओ; क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है” (मत्ती ३:२ और मत्ती ४: १७)।

‘मन फिराओ’ यूनानी शब्द ‘मेटानोइयो’ (μετανοεω) का अनुवाद है जिसका अर्थ है अलग तरह से सोचना या अपना मन परिवर्तन करना।

समस्या हमारे मन में है। हमने झूठी बातों पर विश्वास किया है। इन झूठी बातों से हम किस प्रकार छुटकारा पा सकते हैं? यीशु ने अपने चेलों से कहा, “और सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा” (यूहन्ना ८:३२)। सच्चाई झूठ को नष्ट करता है। कुछ समय बाद यीशु ने चेलों को बताया कि यह कैसे होगा। “परन्तु जब वह अर्थात सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा” (यूहन्ना १६:१३)।

ये झूठी बातें क्या हैं? ऐसे तो तरह तरह की झूठी बातें हैं लेकिन हम सिर्फ तीन तरह के झूठ पर विचार करेंगे: परमेश्वर से सम्बन्धित झूठ, हमारे अपने विषय का झूठ और दुष्ट या शैतान का झूठ।

परमेश्वर से सम्बन्धित झूठ

परमेश्वर से सम्बन्धित बहुत से गलत विचारों के साथ हम में से अधिकांश लोगों का पालन पोषण हुआ। हमारा पृष्टभूमि यहूदी, हिन्दू, मुस्लिम, नास्तिक या नामधारी मसीही, जो भी रहा हो, सत्य परमेश्वर के विषय में हम अनभिज्ञ थे या बहुत कम जानते थे।

हम में से कुछ ऐसा मानते थे कि परमेश्वर का अस्तित्व ही नहीं है, या वह हमसे बहूत दूर रहते हैं तथा हमारे विषय में उनकी कोई अभिरुची नहीं है।

कुछ लोगों का सोच ऐसा था कि उसे प्रसन्न रखने के लिये रसम रिवाज और धार्मिक अनुष्ठान करना आवश्यक है।

अधिकांश लोगों के विचार में मानव जाति के बहुसंख्यक लोगों को वह नर्क के आग में झोंक कर दण्डित करेगा, यद्यपि उनलोगों ने सुसमाचार या यीशु का नाम कभी नहीं सुना।

हमलोगों ने ऐसा समझ लिया कि आश्चर्य कर्मों के युग का अन्त हो गया।

जब हम पवित्र आत्मा को ग्रहण करते हैं तब परमेश्वर अपना वास्तविक स्वभाव हमें प्रकट करना आरम्भ करते हैं। वह सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञानी और सर्व व्यापी हैं। सम्पूर्ण सृष्टि के लिये उनमें अपार प्रेम है। वह “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; वरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले” (२ पतरस ३: ९)। उनकी ईच्छा है कि हरेक व्यक्ति का उनसे सिधा व्यक्तिगत सम्बन्ध रहे। यह ज्ञान सिर्फ हमारे शिर तक सिमीत नहीं रहता परन्तु हम इसे गहराई से अनुभव भी करते हैं।

हमारे अपने विषय के झूठ

अपने बारे में बहुत सी गलतफहमियों के साथ हम बडे होते हैं। “मैं अन्य लोगों की तुलना में श्रेष्ठ हूँ”। “मैं दूसरों से तुच्छ हूँ”। और इनसे भी गम्भीर बात, “मैंने कोई पाप नहीं किया है और मुझे परमेश्वर या यीशु की आवश्यकता नहीं है”।

जब हम यीशु के पास आते हैं तब बहुत से झूठ अपने आप नष्ट हो जाते हैं। हम जान लेते हैं कि हम ने पाप किया है और हमें मुक्तिदाता की आवश्यकता है।

इसके बाद ही प्राय: शैतान के द्वारा लायी गयी नयी नयी झूठी बातों को हम अनुभव करना आरम्भ करते हैं। अब हम उनके विषय में बात करेंगे।

शैतान या दुष्ट का झूठ

यीशु ने कहा कि शैतान , “झूठा है, वरन झूठ का पिता है” (यूहन्ना ८:४४)।

हिब्रू शब्द ‘शैतान’ का अर्थ है ‘दोष लगाने वाला’ (अभियोक्ता) और इसके समकक्षी यूनानी शब्द διαβολος (डायाबोलोस) (जिससे हमें devil शब्द मिला है) का अर्थ है निन्दक।

जकर्याह भविष्यवक्ता ने लिखा है, “फिर उसने यहोशू महायाजक को यहोवा के दूत के साम्हने खड़ा हुआ मुझे दिखाया, और शैतान उसकी दाहिनी ओर उसका विरोध करने को खड़ा था” (जक. ३:१)।

प्रकाशित वाक्य के १२:१० में हम पढते हैं, “क्योंकि हमारे भाइयों पर दोष लगाने वाला, जो रात दिन हमारे परमेश्वर के साम्हने उन पर दोष लगाया करता था, गिरा दिया गया।”

परमेश्वर के लोगों पर दोष लगाना शैतान का मुख्य काम है। इस काम को वह अन्य व्यक्तियों के द्वारा किसी भी तरह पूरा करता है। “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हरो विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें ” (मत्ती ५:११)।

शैतान नकारात्क विचार और झूठ हमारे मन में डालकर हमें सिधा भी दोष लगाता है। “परमेश्वर वास्तव में हमें प्रेम नहीं करते”। “वह तुम्हारी प्रार्थनाओं को नहीं सुनते”। “तुम उनके किसी काम के नहीं”। “तुम पाप को कभी वश में नहीं कर सकते”। इस प्रकार के दोषों से बचना और कठीन है क्योंकि हमें लगता है कि ये हमारे अपने विचार हैं और शैतान से आये विचार के रूप में इन्हें हम पहचान नहीं पाते हैं।

प्रकाशितवाक्य के सन्तों ने , “मेम्ने के लोहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली” (प्रकाश १२:११)। हम सबको ऐसा ही करना आवश्यक है।

अन्य झूठ

“हमारी बुद्धि के नये हो जाने से होने वाले परिवर्तन” सम्बन्धी विषय विशाल है और इस लेख में मैं ने इसे सिर्फ छुआ है। इस विषय पर बहुत सी पुस्तकें लिखी गयी हैं और बहुत सारे वेबसाइट भरे पडे हैं।

हरेक व्यक्ति कम या ज्यादा अपने परिवार में, स्कूल या कौलेज के साथियों से, अपने समाज से, अपने धर्मों से, बडे पैमाने पर मिडिया से और अन्य स्रोतों से झूठ सिखते हैं। पवित्र आत्मा बहुत से तरिकों से हमारे मन से इन झूठी बातों को दूर करते हैं और हमें “सब सत्य का मार्ग” बताते हैं (यूहन्ना १६:१३)।

बाईबल धर्मशास्त्र दो प्रकार के मन के विषय में बताता है: पशु का मन (दानियल ४:१६) और मसीह का मन (१कोरि २:१६)। स्वभाव से ही हममें पशु का मन है और पवित्र आत्मा के काम और अनुग्रह के द्वारा हम मसीह का मन प्राप्त करते हैं। (६६६ और ८८८ पुस्तिका पढें।)

निष्कर्ष

यीशु का पार्थीव शरीर पूरे दो दिनों तक कब्र में दफन रहा। तीसरे दिन उन्होंने कफन को फेंक कर मरे हुओं में से जी उठे। “प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर हैं” (२ पतरस ३:८)। दो दिन दो हजार वर्ष के बराबर हुए। जिस प्रकार यीशु का कफन में बँधा हुआ पार्थीव शरीर पूरे दो दिनों तक कब्र में पडा रहा, ठीक उसी प्रकार यीशु का आत्मिक शरीर दो हजार वर्ष तक कफन में व्यतीत किया है, ऐसा मेरा विश्वास है। मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि मृत्यु का समय पूर्ण हो चुका है और इसके पुरुत्थान का समय आ चुका है। (Bible Chronology पुस्तिका पढें)।

होशे ने इस दोहरे पुनरुत्थान (मसीह के पार्थीव शरीर और आत्मिक शरीर) के विषय में भविष्यवाणी की है। उसने कहा है, “दो दिन के बाद वह हम को जिलाएगा; और तीसरे दिन वह हम को उठा कर खड़ा करेगा; तब हम उसके सम्मुख जीवित रहेंगे” (होशे ६:२)।

वह तीसरा दिन अब आ गया है।

परमेश्वर के लोग अब संसार के सदृश बनना छोड रहे हैं, और बुद्धि के नये होने से उनके चाल चलन में परिवर्तन हो रहे हैं।

बाबुल की मृत ईंटें परमेश्वर के सच्चे मन्दिर के जीवित पत्थरों द्वारा विस्थापित हो रही हैं।

आमीन।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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