पांच सेवकाई

परिचय

इफिसियों की पत्री में पौलुस ने पांच अलग अलग सेवकाई के विषय में लिखा है। ये पांचों सेवकाई यीशु के द्वारा अपनी मंडलियों को दिये गये दान है।

इफिसियों ४:८ में पौलुस ने ऐसा लिखा है,“वह ऊंचे पर चढ़ा, .... और मनुष्यों को दान दिए।”

ये दान क्या क्या है, पौलुस ने इफिसियों ४:११; में लिखा हैः

ये पांच सेवकाई क्या क्या है? ये सेवकाई हमारी मंडलियों में उपयोग में लाये जाते है? प्रायः मंडलियों में अगुवाई करने वालो को पास्टर कहते है, लेकिन बाकी चार सेवकाई के विषय में क्या कहेंगे?

प्रेरित, भविष्यद्वक्ता, शिक्षक और सुसमाचार सुनाने वालो (प्रचारक) के विषय में हम क्या कहेंगे? क्या हमारी मंडलियों में ऐसे व्यक्ति है?

ऐसे सेवकाई (दान या वरदान) पवित्र आत्मा की शक्ति पर निर्भर करते है।बाइबल स्कूल या सेमिनरी में जाकर हम ऐसे सेवकाई नहीं सिख सकते है। पवित्र आत्मा की शक्ति में सिर्फ परमेश्वर द्वारा ही हम ऐसे वरदान प्राप्त कर सकते है।

१कुरिन्थियो १२: ८-१० में पौलुस ने पवित्र आत्मा के ९ वरदान का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार हैः

अलग अलग सेवकाई के लिये अलग अलग वरदान की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये सुसमाचार प्रचारक के लिये चङ्गा करने का वरदान होना अच्छी बात है। भविष्यद्वक्ता में भविष्यद्वाणी करने का वरदान होना आवश्यक है। इसी प्रकार रखवाले (चरवाहे) को बुद्धि की बातों का वरदान होना चाहिए।

हमारे साथ एक और समस्या भी है। मुझे ऐसा लगता है कि इन पांच सेवकाइयो में दो या तीन शब्दों का अङ्ग्रेजी या यूनानी भाषा से हिन्दी में किया गया अनुवाद ठीक नहीं है। क्षमा करे, आपको अङ्ग्रेजी सिखाना मेरा उद्देश्य नहीं है।

सर्वप्रथम हम यीशु को विचार करे।

यीशु

क्या यीशु ने इन पांच सेवकाइयों का उपयोग किया था? कृपया इन पदों को पढ़ें।

यीशु ने इन पांचों सेवकाइयो का उपयोग किया था, वचन के इन खंडों को देखने से स्पष्ट होता है।

अब हम इन सेवकाइयो को एक एक कर विचार करेंगे और इनके विषय में और जानने का प्रयत्न करेंगे।

प्रचारक – सुसमाचारक

हम लोग सर्वप्रथम सुसमाचारक या प्रचारक के विषय में विचार करेंगे।

हिन्दी शब्द प्रचारक (सुसमाचार सुनाने वाले) या अङ्ग्रेजी शब्द evangelist (इभान्जलिष्ट) इसके समान अर्थ देने वाले ग्रीक शब्द ‘εὐαγγελιστης’ एउअङ्गेलिष्टीज का अनुवाद है। इसका शाब्दिक अर्थ 'शुभ समाचार लाने वाला व्यक्ति' है। वास्तव में प्रचारक इस शब्द का ठीक अनुवाद नहीं है, इसके बदले सुसमाचारक शब्द उपयोग करना अच्छा रहता। सुसमाचारक का काम जहां सुसमाचार प्रचार नहीं हो सका है, वहां जाकर उन लोगों को यीशु के विषय में बताना है।

मरकुस के सुसमाचार के अन्तिम खण्ड में यीशु ने अपने चेलों से कहा,“तुम सारे जगत में जा कर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।” क्या यीशु ने सभी अनुयायियों को यह आज्ञा दी थी? नहीं! यह आज्ञा सिर्फ बाकी बचे उन ११ चेलों को दी थी। क्योंकि इसी काम को करने के लिये उन्हें तैयार किया गया था। इसके पहले भी यीशु ने उन्हें ऐसी आज्ञा देकर बाहर भेजा था, "रोगियों को चङ्गा करो, मरे हुओं को जीवित करो, कोढ़ियों का उपचार करो, लोगों से भूतात्मा भगाओ। बहुत से लोगों का चङ्गा होना और भूतात्मा से छुटकारा पाना ये लोग पहले ही देख चुके थे। उस समय ऐसे काम करने के लिये आवश्यक पवित्र आत्मा की शक्ति इन लोगों ने प्राप्त किया था। इसके कुछ समय बाद पेन्तिकोस के दिन इन्हें पवित्र आत्मा की पूर्ण शक्ति मिली।

सुसमाचारकों को चङ्गा करने और भूतात्मा भगाने के वरदान की आवश्यकता रहती है। क्योंकि अविश्वासी लोग ऐसे आश्चर्य कर्म देखकर यीशु पर विश्वास करेंगे।

अपने जीवन में परमेश्वर ने जो काम किये है, इसकी साक्षी सभी विश्वासी दे सकते है, परन्तु हरेक विश्वासी को प्रचारक की सेवकाई के लिये नहीं बुलाया गया है।

रखवाला/ चरवाहा

यीशु ने कहा,“अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है।” यीशु ने यह नहीं कहा कि मैं पास्टर हूं। अङ्ग्रेजी शब्द shepherd और pastor (शेफर्ड और पास्टर) दोनों का अर्थ चरवाहा होता है। पुरानी अङ्ग्रेजी भाषा में भी इन शब्दों का अर्थ वही है। आधुनिक अङ्ग्रेजी भाषा में पास्टर शब्द का अर्थ किसी कलीसिया का अगुवा होता है। यदि बाइबल में देखे तो कही भी चरवाहा शब्द कलिसिया के अगुवा के रूप में उपयोग नहीं हुआ है।

अपनी भेड़ों का देखभाल करने वाला व्यक्ति ही चरवाहा है। वह व्यक्ति भेड़ों को सुरक्षा देने, अगुवाई करने और भोजन देने का काम करता है। यदि आवश्यक हुआ तो उनके लिये अपना जीवन अर्पण करने के लिये भी वह इच्छुक रहता है (पीछे नहीं हटता)। मूसा और दाऊद, दोनों ही चरवाहा थे। बहुत वर्षों तक दोनों ने भेड़ों की देखभाल की थी, उसके बाद परमेश्वर ने दोनों को लोगों की देखभाल करने के लिये बुलाहट दी। चरवाहा का सेवकाई व्यक्तिगत सेवकाई है। यीशु,“अपनी भेड़ों को नाम ले ले कर बुलाता है” ऐसा बाइबल में हम पढ़ते है (यूहन्ना १०:३)। अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों को एक एक कर व्यक्तिगत रूप में जानना आवश्यक है। उसे उनकी देखभाल करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।

प्रत्येक कलिसिया में सिर्फ एक चरवाहा पर्याप्त नहीं है। कुछ लोगों के पास चरवाहे का शक्तिशाली वरदान होता है जिसके फलस्वरूप और वे बहुत सी भेड़ों की देखभाल कर सकेंगे। और लोगों के साथ यही वरदान छोटा होता है, जिसके कारण वे छोटी सन्ख्या मे या शायद एक या दो नये विश्वासियो की देखभाल कर सकेंगे।

कलिसिया के लोगो को परामर्श, उत्साह आदि देने के लिये चरवाहे में उत्साहित करने की खूबी होना ही चाहिये और इसके लिये उसे बुद्धि के वरदान की आवश्यकता पड़ेगी।

देखें अच्छा चरवाहा।

शिक्षक/ उपदेशक

यीशु के पास आकर निकुदिमुस ने कहा,“हे रब्बी, हम जानते हैं, कि तू परमेश्वर की आरे से गुरू हो कर आया है; क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।” इस लिये यीशु शिक्षक थे, लेकिन बाइबल के शिक्षक नहीं थे। यीशु ने धर्मशास्त्र की शिक्षा नहीं दी, बल्कि धर्मशास्त्र का अर्थ खोलकर उसकी व्याख्या की।

पुनरुत्थान के बाद इम्माऊस जा रहे दो चेलों से यीशु की भेंट हुई। यहां ऐसा लिखा है,“तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ कर के सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।” (लुका २४:२७) धर्मशास्त्र में लिखी बातें दोनों चेलों को पता था, लेकिन उसका गहरा अर्थ नहीं जानते थे। आजकल अन्य देशों की तरह इस देश में भी बहुत से व्यक्ति धर्मशास्त्र (बाइबल) में लिखी बातें जानते है, लेकिन इसे समझते नहीं। बहुत से बाइबल शिक्षक धर्मशास्त्र जानते है, लेकिन इसका सही अर्थ क्या है, नहीं जानते।

पौलुस नया नियम का बहुत ही अच्छा शिक्षक था। दमिश्क के रास्ते पर यीशु से मिलने से पहले, पौलुस ने बहुत ही लम्बे समय तक धर्मशास्त्र (पुराना नियम) अध्ययन किया था। वह धर्मशास्त्र जानता था लेकिन उसका सही अर्थ नहीं जानता था। जीवन परिवर्तन के बाद धर्मशास्त्र अध्ययन करने के लिये वह पतरस के पास नहीं जाकर अकेले परमेश्वर के पास गया। परमेश्वर ने उसे पुराने नियम (धर्मशास्त्र) में छिपे हुए अर्थ को समझने के लिये पूर्ण रूप से नयी ज्योति दी। पवित्र आत्मा के द्वारा इस विषय में उसे नया प्रकाश मिला। इसमें लम्बा समय व्यतीत हुआ। इसके बाद परमेश्वर के द्वारा प्राप्त प्रकाश को बांटने के लिये रोमियों के साथ साथ औरों को सुन्दर पत्र लिखने में पौलुस सक्षम हुआ। वास्तव में कलिसियाओं के लिये पौलुस यीशु मसीह का वरदान है।

संसार के इस भाग में परमेश्वर द्वारा व्यक्तिगत रूप में प्रकाश पाये हुए शिक्षकों की आवश्यकता है। यदि हम धर्मशास्त्र को समझना चाहते है तो हमें पवित्र आत्मा से प्रकाश पाना ही होगा।

प्रेरित - भेजा हुआ

प्रेरित का अर्थ क्या है? प्रेरणा पाया हुआ व्यक्ति ही प्रेरित है। मुझे लगता है 'प्रेरित' शब्द अङ्ग्रेजी के apostle (एपोसल) शब्द का ठीक अनुवाद नहीं है। यह शब्द यूनानी भाषा के (αποστολος) एपोस्तोलोस शब्द का अनुवाद है, जिसका अर्थ होता है 'भेजा हुआ व्यक्ति'। वास्तव में इसके लिये अङ्ग्रेजी भाषा का (missionary) मिश्नरी शब्द उपयोग करना ठीक है, क्योंकि इसका अर्थ भी होता है 'भेजा हुआ व्यक्ति'।

पुनरुत्थान के बाद यीशु अपने चेलों से मिले और कहा,“तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं। यह कहकर उसने उन पर फूंका और उन से कहा, पवित्र आत्मा लो।” (यूहन्ना २०:२२)

परमेश्वर पिता ने यीशु को इस संसार में भेजा।

पांचों सेवकाई में प्रेरित सबसे महत्त्वपूर्ण है। प्रेरित को प्रायः ऐसी जगह भेजा जाता है जहां किसी ने यीशु का नाम नहीं सुना हो। प्रेरित वहां जाकर अन्य सेवकाई का अभ्यास भी कर सकता है। उसे सुसमाचार प्रचारक तो होना ही चाहिये। यीशु के विषय में पूर्णतः अनजान लोगों के बीच में जाकर उसे सुसमाचार प्रचार करना होगा।

बाइबल में देखने से लगता है कि पौलुस प्रेरित था, इसके साथ ही वह शिक्षक और सुसमाचार प्रचारक भी था। सम्भवतः उसमें भविष्यद्वक्ता और चरवाहा का वरदान भी रहा होगा।

पतरस प्रेरित और शक्तिशाली सुसमाचार प्रचारक था। पेन्तिकोस के दिन उसके प्रचार से ३००० व्यक्तियों ने विश्वास किया (प्रेरित २:४१) बाद में वह अच्छा चरवाहा बना क्योंकि उसके लिये यीशु के आखिरी शब्द ऐसे थे,“मेरी भेड़ों को चरा।”

यदि वर्तमान की बात करे तो साधु सुन्दर सिंह प्रेरित थे। सुसमाचार प्रचार करने और कलिसिया स्थापित करने के लिये परमेश्वर ने साधु सुन्दर सिंह को भारत, नेपाल, तिब्बत और अन्य देशों में भेजा। उनमें निश्चय ही सुसमाचार प्रचारक का वरदान था।

प्रेरित का काम कलिसिया स्थापित करना है।

भविष्यद्वक्ता

पांच सेवकाई में भविष्यद्वक्ता ही एक ऐसा सेवकाई है जिसका उल्लेख पुराने नियम में किया गया है। पुराने नियम के आरम्भ से लेकर अन्त तक हम भविष्यद्वक्ताओं को पाते है। प्रथम भविष्यद्वक्ता इब्राहिम है तो अन्तिम मलाकी है। १००० वर्षों से अधिक समय तक परमेश्वर ने इन भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा अपने लोगों से बात की।

परमेश्वर ने विशेषकर दो तरह से इन भविष्यद्वक्ताओं से बात की।

पहला, परमेश्वर इन लोगों से शब्दों के द्वारा बात करते थे। पुराने नियम में १०० अधिक ऐसे वाक्य पढ़ने को मिलते है, "परमेश्वर का वचन यशायाह के पास आया," "परमेश्वर का वचन यिर्मयाह के पास आया" आदि। अपने लोगों को जो सन्देश देना चाहते थे, उसे भविष्यद्वक्ताओं को देते थे।

दूसरा, परमेश्वर भविष्यद्वक्ताओं से दर्शन द्वारा बोलते थे। यहेजकेल, दानिय्येल और जकर्याह ने बहुत सारे दर्शन देखे थे।

भविष्यद्वक्ता एक ऐसा व्यक्ति होता है, जो परमेश्वर की आवाज सुनकर उस सन्देश को और लोगों के बीच में प्रसारण करता है।

पुराने नियम के समय में भविष्यद्वक्ता विशिष्ट व्यक्ति समझे जाते थे। इने गिने होने के बावजूद भी ये लोग परमेश्वर की आवाज सुन सकते थे और उनका सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे। लेकिन नया नियम के आगमन के बाद पेन्तिकोस के दिन एक अद्भुत घटना हुई।

परमेश्वर ने अपना आत्मा सभी पर उड़ेल दियाः उन्होंने कुछ विशेष लोगों पर ही नहीं, परन्तु विश्वास करने वाले हरेक व्यक्ति पर उड़ेल डाला।

योएल भविष्यद्वक्ता के इन शब्दों को पतरस ने उद्धृत किया,“अन्त कि दिनों में ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्मा सब मनुष्यों पर उंडेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे, और तुम्हारे पुरिनए स्वप्न देखेंगे। वरन मैं अपने दासों और अपनी दासियों पर भी उन दिनों में अपने आत्मा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे।” (प्रेरितो २:१७,१८)

पुराने नियम में परमेश्वर ने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा अपने लोगों (यहूदी जाति के लोग) से बात की। नया नियम में परमेश्वर प्रत्येक विश्वासी से प्रत्यक्ष और व्यक्तिगत रूप में बोलते है। विश्वास करने वाला हरेक व्यक्ति, जवान हो या वृद्ध, पुरुष हो या स्त्री, शिक्षित हो या अशिक्षित, ये सभी लोग परमेश्वर से वचन (शब्द के रूप में) और दर्शन प्राप्त कर सकते है।

इसका अर्थ, क्या हरेक विश्वासी भविष्यद्वक्ता है? कदापि नहीं। प्रायः लोग अपने लिये, अपने परिवार के लिये या अपने मित्रो की आवश्यकता पूर्ति करने के लिये परमेश्वर से सामान्य सन्देश प्राप्त कर सकते है, जिसे वे और लोगों तक ले जा सकते है। ऐसे लोग ही भविष्यद्वक्ता हो सकते है।

भविष्यद्वक्ता उत्साह और सुधार के सन्देश ला सकते है (न्याय करने और दोष लगाने वाले सन्देश नहीं), लेकिन ऐसे सन्देश अपनी कलिसिया के लिये या फिर किसी क्षेत्र विशेष की सभी कलिसियाओ के लिये हो सकते है।

भविष्यद्वक्ता लोग भविष्य से सम्बन्धित सन्देश भी ला सकते है। परमेश्वर भारत और अन्य सभी देशों के भविष्य जानते है। हम लोग ऐसी बातें नहीं जानते। लेकिन लोगों को क्या जानना आवश्यक है, ऐसी बातें बताने के लिये परमेश्वर भविष्यद्वक्ताओं से बात करने में सक्षम है।

झूठे सेवकाई

सच्चे सेवकाई के साथ साथ बाइबल झूठे सेवकाई के विषय में भी बताती है।

झूठे भविष्यद्वक्ताओं के विषय में यीशु ने कहा,“झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएंगे, कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें।” (मत्ती २४:२४)

यूहन्ना ने इस विषय में ऐसा लिखा है,“हे प्रियों, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं।” (१यूहन्ना ४:१)

पौलुस ने झूठे प्रेरितों के विषय में लिखा,“ऐसे लोग झूठे प्रेरित, और छल से काम करने वाले, और मसीह के प्रेरितों का रूप धरने वाले हैं।” (२कुरिन्थियो ११:१३)

पतरस ने झूठे शिक्षकों के विषय मे लिखा,“जिस प्रकार उन लोगों में झूठे भविष्यद्वक्ता थे उसी प्रकार तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे, जो नाश करने वाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस स्वामी का जिसने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे और अपने आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे।” (२पतरस २:१)

यिर्मयाह और यहेजकेल ने झूठे चरवाहो के विषय में बताया। (यहेजकेल ३४ अध्याय देखे)।

झूठे प्रेरित सच्चे प्रेरित का अनुकरण (नक्कल) करेंगे। झूठे भविष्यद्वक्ता सच्चे भविष्यद्वक्ताओं का अनुकरण करेंगे। झूठे शिक्षक सच्चे शिक्षकों का अनुकरण करेंगे। झूठा चरवाहा सच्चे चरवाहो का अनुकरण करेंगे।

क्या इस देश में झूठे शिक्षक है? हां, है। अन्य देशों से आने वाले व्यक्ति नयी शिक्षा लेकर आते है। उन शिक्षकों में कुछ सच्चे होते है, कुछ झूठे होते है। इस प्रकार बाहर से आने वाले लोग अपने साथ बहुत सारा पैसा लेकर आते है। स्थानीय व्यक्ति भी झूठे शिक्षक, झूठा चरवाहा और झूठा भविष्यद्वक्ता हो सकते है।

नये विश्वासी बड़े जोखिम में है (असुरक्षित है)। छोटा बच्चा किसी भी चीज को मुंह में डाल लेता है। वह क्या अच्छा और क्या खराब है, इनमें अन्तर नहीं कर पाता है। उसे कौन सी वस्तु खाने योग्य है और कौन सी वस्तु खाने योग्य नहीं है, इसका भी ज्ञान नहीं है। नया विश्वासी ऐसा ही होता है। वह आत्मिक भोजन और आत्मिक विष में अन्तर नहीं कर सकता है।

नये विज्श्वासियों को हम किस प्रकार झूठे सेवकाई से रक्षा कर सकते है? सच्चा सेवकाई ही इसका उत्तर (समाधान) है। सच्चा सेवकाई ही नये और पालन पोषण पा रहे विश्वासियों को झूठे सेवकाई से रक्षा कर सकता है।

पौलुस ने इफिसस के विश्वासियो को इस बात की जानकारी दी थी। उसने जो बातें लिखी थी, हम उन्हें फिर से देखेः "और उसने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं।

“ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।“ (इफिसि ४:११-१४)

भविष्यद्वक्ताओं के पास आत्माओं का परख करने का वरदान होगा। सच्चा भविष्यद्वक्ता झूठे भविष्यद्वक्ता को पहचानेगा। झूठे भविष्यद्वक्ता धर्मशास्त्र से बहुत से खंडों को उद्धृत करेंगे, लेकिन इसके बावजूद भी यह झूठा भविष्यद्वक्ता परमेश्वर के द्वारा नहीं भेजा गया है, वह अपने हृदय में महसूस करेगा।

सच्चा शिक्षक झूठे शिक्षक को पहचानेगा। सच्चा शिक्षक धर्मशास्त्र का सच्चा अर्थ समझेगा और यदि कोई गलत व्याख्या करता है तो वह जान लेगा।झूठी शिक्षा क्यों और कैसे गलत है, वह प्रमाण के साथ बता सकता है।

चरवाहा अपनी भेड़ों को सुरक्षा देने और भोजन देने के लिये उत्सुक रहेगा। झूठे शिक्षक भेड़ों के वेष में आये हुए भेड़िये है। सच्चा चरवाहा अपने झुण्ड की सुरक्षा के लिये ऐसे भेड़ियों को भगायेगा। वह अपने झुण्ड को आत्मिक परिपक्वता तक पहुंचाने के लिये पौष्टिक भोजन की व्यवस्था करेगा।

नये विश्वासी को आत्मिक परिपक्वता तक पहुंचाने के लिये भविष्यद्वक्ता, शिक्षक और चरवाहा को एक साथ मिलकर काम करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

प्रत्येक कलिसिया में भविष्द्वक्ता, चरवाहा, शिक्षक और सुसमाचार प्रचारकों की आवश्यकता होती है। विस्तारपूर्ण सेवकाई करने वाली कलिसियाओं को प्रेरितो की आवश्यकता होती है। ऐसे सेवकाई के अभाव में नये विश्वासी आत्मिक परिपक्वता नहीं प्राप्त कर सकते है। वे सब आत्मिक रूप में बालक या शैशवावस्था में ही रहेंगे। सिर्फ इतना ही नहीं, ये आसानी से आत्मिक भेड़ियों का शिकार बनेगे

भविष्यद्वक्ता, चरवाहा और शिक्षक, ये सब विश्वासियों को आत्मिक रूप से पालन पोषण करने और शिक्षा देने वाले माता पिता के समान होते है। ये सब बाल्यावस्था के विश्वासियों को लालन पालन करके युवावस्था में पहुंचाते है। इसके साथ साथ ये लोग विश्वासियों के मार्ग में (जीवन में) आने वाले अनगिनत खतरों से भी सुरक्षित रखते है। सुसमाचार सुनाने वाले उन प्रसव कराने वाली दाइयों के समान होते है जो नवजात बच्चे को संसार में आने में सहायता करती है।

ये सेवकाई कलिसिया के लिये परमेश्वर और यीशु द्वारा दिये गये वरदान (उपहार) है। हमें प्रार्थना में परमेश्वर से इन वरदानों को मांगना ही पड़ेगा।

इसके साथ साथ जो सेवकाई पहले से ही परमेश्वर दे चुके है, उन्हें भी पहचानना हमारे लिये आवश्यक है। अपने अन्दर तथा और लोगों में उपलब्ध सेवकाई को पहचानना भी आवश्यक है।

सम्भव है आप सुसमाचार प्रचारक है। आपके लिये इस सेवकाई को पहचानकर इसका विकास करना आवश्यक है, साथ ही और लोग भी आपमें इस सेवकाई को पहचानेंगे। आपको चङ्गा करने का वरदान भी ढूंढ़ना पड़ेगा ताकि अविश्वासियों के बीच में आपके सन्देश की सत्यता प्रमाणित हो सके।

या हो सकता है आप शिक्षक है। यदि ऐसा है तो परमेश्वर से प्रकाश पाने के लिये आपको उन पर भरोसा रखकर प्रतीक्षा करना आवश्यक है। बाइबल कॉलेज या तालीम केन्द्र में जाकर शिक्षकों से तालीम लेना अच्छा है लेकिन पर्याप्त नहीं। अच्छा शिक्षक बनने के लिये आपको पवित्र आत्मा ही सिखा सकते है। आपके वरदान को पहचान कर और लोगों को भी आपको शिक्षा देने का अवसर देना आवश्यक है।

शायद आपको चरवाहा का वरदान हो। यदि ऐसा है तो परमेश्वर के द्वारा दिये गये इस सेवकाई के लिये परमेश्वर के प्रति आपको विश्वास योग्य रहना आवश्यक है। यीशु ने पतरस को, 'मेरी भेड़ों को चरा' कहकर जो आज्ञा दी थी उसे समझकर इस आज्ञा के प्रति आज्ञाकारी होना आवश्यक है।

या हो सकता है परमेश्वर आपको भविष्यद्वाणी का सेवकाई दे रहे है। यदि ऐसा है तो आपको परमेश्वर की आवाज सुनने का अभ्यास करना आवश्यक है, साथ ही उनका दिया हुआ सन्देश उनके लोगों तक पहुंचाना भी आवश्यक है।

हो सकता है आपमें इन सेवकाईयो में से कुछ सेवकाई हो। परमेश्वर ने आपको प्रेरित होने के लिये बुलाया हो। यदि ऐसा है तो आपको अपने बुलाहट के प्रति विश्वास योग्य होना पड़ेगा।

यदि आपकी कलिसिया में ये पांचों सेवकाई अच्छी तरह काम करते है तो नये लोग यीशु पर विश्वास करेंगे और नया जन्म पायेंगे। तत्पश्चात् वे लोग आत्मिक रूप में शिशु अवस्था, बाल्यकाल, किशोरावस्था को सुरक्षित रूप में पार करते हुए मसीह के शरीर में मजबूत और वयस्क (परिपक्व) सदस्य बनेंगे।

अनुवादक - डा. पीटर कमलेश्वर सिंह

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